आस्था और कला का संगम, गया के फल्गु नदी के तट पर ये देखने को मिला.कुमारी प्रियंका सूप पर अपनी श्रृद्धा को उकेरती हैं. ये इन सूपो पर मधुबनी पेंटिंग बना रही हैं. इनकी पेंटिंग का शौक जो अब भक्ति का रूप ले चुका है.सूर्य देव और छठ माता के चित्र बनाते हुए वो कहती हैं कि ये चित्र बनाते हुए ऐसा लगता है जैसे खुद अर्ध्य दे रही हूं.प्रियंका कोरे सूपों पर अपनी मधुबनी पेंटिंग से इनको जिवंत कर देती हैं.गन्ना, फल, दिए, केले के पत्ते, मिट्टी का हाथी और उसके ऊपर छोटा घड़ा, महिला का सूर्य भगवान को अर्ध्य देते चित्र, इनकी आस्था को प्रकट करते हैं. यह कला मिथिला की परंपरागत शैली पर आधारित है, जिसमें प्राकृतिक रंगों, ज्यामितीय आकृतियों और सांस्कृतिक प्रतीकों से देवी-देवताओं, प्रकृति और लोक जीवन की कहानियों को दर्शाया गया है.प्रियंका सूप पर केवल इस कला को बनाती हीं नहीं है. बल्कि वो छात्राओं को इस का प्रशिक्षण भी देती हैं.अब तक 500 से अधिक छात्राओं को प्रशिक्षित कर चुकी हैं. उनका मानना है कि ये कला न केवल आर्थिक सशक्तिकरण का माध्यम बनी है.बल्कि बिहार की सांस्कृतिक विरासत को विश्व पटल पर फैला भी रही है.
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