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Shaniwarwada Fort – पुणे का खौनी श्राप | The Cursed Fort of Pune | Haunted Story of Narayanrao Peshwa

In the heart of Pune stands the grand yet haunted Shaniwarwada Fort, once the pride of the Maratha Empire. But behind its royal walls lies a dark secret — the murder of young Peshwa Narayanrao, whose dying cries still echo every full moon night: “Kaka… mala vachva!”
This is the story of power, betrayal, and an eternal curse that turned a palace of glory into a haunted ruin.
Watch till the end… if you dare to hear the scream that never fades.

पुणे के बीचोंबीच खड़ा शनीवारवाड़ा किला, जो कभी मराठा साम्राज्य की शान था, आज एक श्रापित खंडहर बन चुका है।
कहा जाता है कि यहाँ 18 वर्षीय पेशवा नारायणराव की हत्या हुई थी, और उनकी आत्मा आज भी हर पूर्णिमा की रात चिल्लाती है —
“काका… मला वाचवा!”
यह कहानी है सत्ता, साज़िश और श्रापित आत्मा की — जिसने इतिहास को हमेशा के लिए खून से लाल कर दिया।

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Transcript
00:00दोस्तों, आपने कई बार सुना होगा कि कुछ जगें केवल इतिहास की गवाही नहीं देती, बलकि वहा की जमीन, वहा की हवाएं और वहा की दीवारें, अपने भीतर खून से लिखें किस से छुपाएं बैठी होती हैं।
00:22आज हम आपको ले चलते हैं महाराष्ट्र के पुने शहर में, जहाँ खड़ा है शनी वारवाडा किला, एक ऐसा किला, जो केवल मराठा सामराज्य की ताकत और वैभव का प्रतीक नहीं है, बलकि वो जगे हैं जहा साजिश, विश्वास घात और एक मासूम की चीख है, आज �
00:52मला वाच्वा, काका, मला वाच्वा, काका, मुझे बचाओ, तो आईए, सुनते हैं शनी वारवाडा का खौनी श्राब, साल 1732, मराठा सामराज्य अपनी शक्ती के चरम पर था, पेश्वा बाजिराव प्रतम के आदेश पर पुने में एक विशाल और भव्य किले का निर्
01:22राजनिती और वैभव का केंद्र था, पत्थरों और लकडी से बना, ये किला दूर से ही राजसी शान बिखेरता था, उची दीवारें, विशाल दर्वाजे, भव्य आंगन और शानदार महलनुमा हिस्से, इसे किसी स्वपन महल से कम नहीं बनाते थे, लेकिन दोस्त, कहत
01:52प्रथम के बाद, पेश्वा की गद्धी पर कई लोग आएं और गए, लेकिन जब सत्ता की बारी आई, नारायनराव पेश्वा की, तभी से किले की दीवारों पर खुन की लकीरे बनने लगी, नारायनराव पेश्वा केवल 18 साल के थे, कम उम्र, मासून चहरा और भोली आ
02:22पेश्वा बनने का सपना देखते थे, मगर नारायनराव की मौजूद की, उनके सपनों के रास्ते की सबसे बड़ी दीवार थी, यही से शुरू हुआ सत्ता का खेल, जिसमें चाचा ने अपने ही भदीजे की जान की बाजी लगा दी, किले के अंधेरे कमरों में फुस्फ
02:52पेश्वा बनने का सपना देखते हैं कि नारायनराव और रघुना अथराव के बीच कई बार बहस होती थी, एक बार गुस्से में नारायनराव ने अपने चाचा को कैद करने का आदेश दे दिया, यही अपमान रघुना अथराव और आनन दिबाई के दिल में जहर बन ग
03:22लेकिन दोस्त कहते हैं कि आनन दिबाई ने उस आदेश के शब्दों में एक हलकी सी चाला की की, उन्होंने पकडून, पकडो की जगे मारून, मारो लिखवा दिया, और यही वो एक शब्द था, जिसने एक मासुम पेश्वा की जिन्दगी चीन ली, साल 1773, पुने का शहर
03:52का माहौल था, मगर इनी शौरगुल और संगीत के बीच, चुपचाप घुसाए थे कई गार्ड्स और खोनी सैनिक, जिन्हें सिर्फ एक काम सौपा गया था, 18 साल के बेश्वा नारा इंडराव का कतल, मध्यरातरी, जब उत्सव की आवाजे धीमी हो गई, और किले की कलिय
04:22खतरनाक चहरों को देखा, और चीकते हुए भागने लगे, उनकी छोटी सी देह, डर से कापती हुई आवाज, और उनकी आखों में सिर्फ मौत का साया, वो भागते भागते किले के गलियारों से होते हुए, अपने चाचा रगुना अथ्राव के कमरे की ओर दोडे, दर्�
04:52लेकिन दोस्त, दर्वाजा कभी नहीं खुला, कहा जाता है कि उस रात, निर्दई सैनिकों ने नारा इनराव के टुकड़े टुकड़े कर दिये, किले की दीवारे खुन से लाल हो गई, और एक मासून की चीखें, हमेशा के लिए इन हवाओं में कैद हो गई, उस रात के �
05:22परणों से वही चीक सुनाई देती है, काका, मला वाच्वा, कई स्थानिय लोग और गार्ज ने दावा किया है, कि उन्होंने अंधेरे कमरों में एक छोटे लड़के की परचाई देखी है, जो मदद के लिए भागता हुआ नजर आता है, और अचानक गायब हो जाता है, स
05:52के अधिकांश हिस्से को राख में बदल दिया, लोगों का मानना है कि ये आग भी उसी श्राब का हिस्सा थी, किले की बरबादी और उसके डरावने रहस्य, एक दूसरे से हमेशा जुड़े रहे, आज भी ये किला पुने का एक बड़ा परियतक स्थल है, दिन में हजारों
06:22से दूर भागते हैं, स्थानिय गाइट्स और गार्ड्स बताते हैं कि वे अजीब आवाजे सुनते हैं, किसी के रोने की, किसी के भागने की, और उस एक मासूम चीक की, कई बार कुछ लोगों ने तो कहा कि उन्होंने एक धुंधली परच्छाई को देखा, एक ननहा लड
06:52और डर की कहानिया मिलकर दिमाग पर खेल करती हैं, लेकिन सवाल उठता है, अगर ये सब जूट है, तो हर पूर्णिमा की रात यहां जाने वालों को वही आवाज क्यों सुनाई देती हैं, क्यों हर कोई वही शब्द दोहराता है, काका, मला वाजवा, क्या ये केवल कलपन
07:22जिवारे तूटी है, आंगन सुनसान है, लेकिन इस जगे की हवाओं में अभी एक पेचैन आत्मा भटकती है, लोग कहते हैं कि सत्ता और विश्वास घात ने एक पूरे सामराज्य को श्रापित कर दिया, और जब तक उस मासूम की आत्मा को शान्ती नहीं मिलेगी, तब �
07:52ऐसा किला, जहां इतिहास और विश्वास घात ने मिलकर एक मासूम की जान ले ली, और आज भी हर पूर्णिमा की रात, उस किले की दीवारों से वही चीग गूंचती है, कागा, मला वाच्वा, शायद ये सिर्फ एक कहानी हो, या शायद ये उस मासूम की आत्मा की अधू
08:22झाल
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