00:00दिपावली के अवसर पर मा लक्षमी की पूजा का विशेश महत्व है लक्षमी जी को धन्धाने और शुबलाव की देवी माना जाता है
00:16कोटा पैलेस इस्थित राव माधो सिंग म्यूजियम में रखे गए एतिहासिक शाही हौदो इस परंपरा की शांदार जलक पेश करते हैं
00:46उपर विराज कर उस सवारी में पता आते थे तो उन होदों में आप देख सकते हैं कि गज लक्षमी की सुंदर प्रतीमा को उकेरित किया गया है
00:56और बहुत अच्छी तरह से इसपष्ट रूप से देखा जा सकता है कि उसमें दोनों तरफ से जो है गज महालक्षमी जी का गटा भी शेक कर रहे हैं
01:06और उनको जो क्रियासत कोटा का चिन्न है उसके साथ ही महालक्षमी जी को भी शुपता और मंगलता का प्रतीमाना गया इसलिए उनको प्रश्ट भाग में इस्तापित किया
01:18यह होदो 200 साल पुराने है और इनमें हाथी के अगर भाग पर गज लक्षमी की मूर्ती उकेरी गई है इनमें से एक होदो चांदी के साथ गोल्ड पॉलिश वाला है और दूसरा पूरी चांदी का महराव और महाराज कुमार शाही सवारी में इन होदो पर विराजित होकर �
01:48महाराजा तो लगाया ही नहीं जा सकता है अपने आप में अधितिये और अमुल्य हैं और वजन के इसाप से कर देखा जाये तो इनको उठाने के लिए जहां तक मैं समस्ता हूं समय चार से छे आद्मियों का एक जापता कम से कम लगता होगा इतना इनके अंदर वजन है और
02:18मुजियम में संग्मर्मर की गजलक्षमी की 200 साल पुरानी प्रतिमा भी प्रदर्शित है
02:47इसमें बीच में लक्षमी जी विराजित है और दोनों तरफ हाथी उनका घटा भी शेक कर रहे हैं से भी काए चवर ढूला रही है
02:55कोटा रियासत में गजलक्षमी स्वरूप का यह सांस्कृतिक महत्व सदियों से बना हुआ है
03:00कोटा से इटीवी भारत के लिए मनीश कौतम की रिपोर्ट
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