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जानिए उस दिव्य क्षण की कहानी जब भगवान श्री राम और माता सीता का प्रथम मिलन हुआ था। यह पवित्र कथा प्रेम, भक्ति और मर्यादा का अद्भुत संगम है। 🌸✨

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00:00संध्या के समय मुनी विश्वा मित्र ने आज्या दी फिर सब ने संध्या वंदना की और प्राजीन कथाएं तथा इतिहास कहते कहते सुन्दर रात्री बीत गई तब मुनी ने शेयन किया
00:18दोनों भाई उनके चरन दबाने लगे जिनके चरन कमलों के दर्शन एवं स्पर्श के लिए वैराग्यवान पुरुष भी भाति भात के जब और योग करते हैं
00:33वो दोनों भाई प्रेम पूर्वक गुरुजी के चरन कमलों को दबा रहे थे
00:39और मुनी ने जब अनेको बार रगुनाथ जी को आग्या दी तब जाकर उन्होंने शेयन किया
00:49फिर श्री राम जी के चरनों को हिर्दे से लगा कर प्रेम पूर्वक परम सुख का अनुभाव करते हुए
00:57लक्षमर जी उनके पैर को दबाने लगे
01:01तो प्रभू श्री राम चंदर जी ने अनेको बार उनसे कहा
01:06हे तात अब तुम भी सोचाओ
01:09तब लक्षमर जी ने उनके चरन कमलों को अपने हरदय से लगाया और लेट गए
01:16रात बीट जाने पर मुर्गी की बांग सुनकर लक्षमर जी उठ गए
01:22और जगत के स्वामी श्री राम चंदर जी भी गुरू के उठने से पहली ही जग गए
01:28शौच क्रिया आदि से निवरत होकर उन्होंने जाकर स्नान किया
01:34फिर संध्या अग्निहोत्त्रादी नित्य कर्म समाप्त करके उन्होंने मुनी को मस्तक नवाया
01:42पूजा का समय निकट आता देखकर गुरू की आग्या लेकर दोनों भाई फूल लेने चल दिये
01:51उन्होंने राजा का सुन्दर बाग देखा जहां मन को लुभाने वाले अनीक व्रक्ष लगे थे
01:59जो रंग बिरंगी सुन्दर लताओं से चाय हुए थे
02:04नए पत्तों, फूलों और फलों से युक्त सुन्दर व्रक्ष अपनी संपत्ती से कल्प व्रक्ष को भी लजा रहे थे
02:15पपीहे, कोयल, तोते और चकोर, आदिपक्षी, मीठी बोली बोल रहे थे
02:23और मोर सुन्दर नर्त्य कर रहे थे
02:27बाग के बीचों बीच सुहामना सरोवर सुशोभित था
02:32जिसमें मरियों की सीडियां विचित्र ढंग से बनी हुई थी
02:37उसका जल बहुत ही निर्मल था
02:41जिसमें अनिकों रंगों के कमल खिले हुए थे
02:45जल के पक्षी कलरों कर रहे थे
02:48और भवरे गुणजार कर रहे थे
02:52बाग और सरोवर को देख कर प्रभू शेराम चंदर जी के साथ
02:57उनके भाई लक्षमन भी बहुत हर्शित हुए
03:01यह बाग वास्तों में परम रमणी है
03:05जो जगत को सुख देने वाले शेराम जी को सुख दे रहा है
03:10चारों ओर द्रिष्टी डाल कर और मालियों से पूँच कर दोनों भाई प्रसंद मन से पत्र पुष्प लेने लगे
03:21उसी समय सीता जी भी भाग में आई हुई थी
03:25माता ने उन्हें पार्वती जी की पूजा कर रहे के लिए भेजा था
03:31साथ में सब सक्षियां भी थी जो मनोहर वाड़ी से गीत गा रही थी
03:38सरुवर के पास पार्वती जी का मंदिर सुशोबित था जिसे देखकर मन मोहित हो जाता था
03:47सक्षियों के साथ सरुवर में सनान करके सीता जी प्रसंद मन से पार्वती जी के मंदिर में गई
03:55और वहां उन्होंने बहुत प्रेम से पूजा की और उनसे अपने योग्य सुन्दर वर मागा।
04:03उन में से एक सखी सीता जी को वहीं छोड़कर फुलवारी देखने चली गई।
04:09और उसने वहां दोनों भाईयों को देखा और उनकी सुन्दरता देखकर वह प्रेम में वेवल हो गई।
04:17और वहां सक्ही सीता जी के पास आई।
04:21सबी सक्हियों ने देखा कि उसका शरीर पुलकित हो रहा था और नेत्र में जल भरा था।
04:29यह देखकर सब उससे कोमलवाणी से पूछने लगी कि अरे अपनी प्रसनता का कारण तो बता
04:38उसने कहा दो राजकुमार बाग देखने आए हैं किशोर अवस्था के हैं और बहुत सुन्दर हैं वो सावले और गोरे रंगे हैं
04:51मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं उनके सौन्दर का कैसे बखान करूँ यह सुनकर सीता जी के हरदे में उन्हें देखने की उत्सुकता जाग गई और यह देखकर सारे इस्त्रियां बहुत प्रसन्द हुई
05:09तब एक सखी कहने लगी हे सखी यह वही राजकुमार है जो कल विश्वा मित्र मुनी के साथ आए हैं और जिन्होंने अपने रूप की मोहिनी से नगर के सभी इस्त्रिय पुरुष को अपने वश में कर लिया है
05:27जिस प्रकार से सब लोग उनकी छवी का वर्लन कर रहे हैं हमें अवश्य चल कर उन्हें देखना चाहिए निशित ही वे देखने योग के हैं उस सखी के वजन सीता जी को अत्यांत प्रिय लगे
05:45और उनके दर्शन के लिए सीता जी के नेत्र अकुला उठे और उसी प्यारी सखी को आगे करके सीता जी उसके पीछे पीछे चल पड़ी
05:58पुरानी पृत को कोई बुला नहीं पाता
06:01नारत जी के वचनों का इस्मरन करके सीता जी के मन में पवित्र पृती उत्पन्न हुई
06:09श्रीराम चंद्र जी की एक जलक पानी के लिए सीता जी चकित होकर चारो दिशाओं में ऐसे देख रही थी
06:19जैसे डरी हुई हिरनी इधर उधर देखती है
06:23हाथों के कड़े करधनी और पायजेब के शब्द सुनकर
06:29श्रीराम चंदर जी के हिरदे में विचार आया
06:33और वह लक्षमन से कहते हैं
06:36या ऐसी ध्वनी है जैसे काम देव ने
06:39विश्व को जीतने का संकल्प लेकर डंके पर चोट मारी हो
06:45ऐसा कहकर श्रीराम चंदर जी ने फिर उस ओर देखा
06:51और सीता पर द्रिष्टी पढ़ते ही
06:54उनके मुख रूपी चंदरमा को निहारने के लिए
06:58श्रीराम चंदर जी के नेत्र चकूर बन गए
07:02सुन्दर नेत्र इस्थिर हो गए
07:05और एक तक-टकी सी लग गई
07:08सीता जी की शोभा देखकर
07:11श्रीराम चंदर जी के नेत्रों को बहुत सुख प्राप्त हुआ
07:16वा हिर्दय में ही उनकी सराहना कर रहे थे
07:20परंदु मुख से वचन निकल नहीं पा रहे थे
07:24सीता जी की शोभा ऐसी अनुपम्थी जैसे ब्रह्म्भा ने अपनी सारी निपुड़ता सीता जी को मूर्ती मान कर संसार के सामने प्रकट करती हो
07:37सीता जी की ऐसी शोभा है जो सुन्दरता को भी सुन्दर करने वाली है
07:44और ऐसी मालूम होती है जैसे सुन्दरता रूपी घर में दीब की लौ चल रही हो, अब तक जैसे सुन्दरता रूपी भवन में अधेरा था, और भवन बानो सीता जी की सुन्दरता रूपी दीब शिक्खा को पाकर जगमगा उठा हो, और पहले से भी अधिक सुन्दर हो गय
08:14माएं तो उनके सामने जूट ही हो जाती हैं।
08:18इस प्रकार हिर्दय में सीता जी की शोभा का वर्णन करके
08:23और अपनी दशा पर विचार कर प्रभूशे राम चंद्रजी ने
08:28पवित्र मन से अपने छोटे भाई लक्षमन से समय के अनकूल जान कर कहा
08:35हेतात ये वही जनक जी की कन्या है जिसके लिए धनुश यग्य होने जा रहा है।
08:44सखियां इन्हें यहां गौरी पूजन के लिए लाई हैं।
08:48ये भुलवारी में प्रकाश करती हुई यहां ब्रहमन कर रही हैं।
08:53जिसकी अलोकिक सुन्दर्ता देखकर सभाव से पवित्र मेरा मन भी विचलित हो गया है।
09:01इसके पीछे चुपा कारण तो विधाता ही जानते हैं।
09:05किन्तु हे भाई सुनो मेरे मंगल दायक दाहिने अंग फड़क रहे हैं।
09:12रगवन्शियों का यह जन्मजात सभाव है कि उनका मन कभी कुमार्ग पर नहीं जाता।
09:20मुझे अपने मन पर पूरा विश्वास है कि जिसने जगत की किसी भी पराई स्त्री पर द्रिश्टी नहीं डाली।
09:29रण में शत्रुजिन की पीट नहीं देख पाए।
09:33पराई इस्त्री जिनके मन और द्रिश्टी को नहीं खीच पाई।
09:38और भिखारी जिनके यहां से खाली हाथ नहीं लोटे।
09:43ऐसे श्रेष्ट पुरुष संसार में थोड़े है।
09:47यूँ तो श्रीराम जी अपने छोटे भाई से बात कर रहे हैं पर उनका मन सीता जी के रूप में लगा हुआ था।
09:57जो उनके मुख रूपी कमल की छवी रूपी मकरंद रस को भौरे की तरह पी रहा था।
10:04सीता जी चकित होकर चारों ओर देख रही थी। मन में चिंता हो रही है कि राजकुमार कहां चले गए।
10:14म्रग के बच्चे सी आँख वाली सीता जी जहां दृष्टी डालती वहां जैसे श्वेत कमल की बरसात हो जाती।
10:23तभी सक्यों ने उन्हें व्रक्ष की लता की ओड में सुन्दर शाम और गौर कुमारों को दिखाया।
10:32उनके रूप को देखकर सीता जी के नेत्र ललचा उठे और वे ऐसे प्रसन्न हुए जैसे उन्होंने अपना कोई खोया हुआ खजाना पहचान लिया हो।
10:46शेर अकन्वात जी की छवी देखकर नेत्र निशल होकर पलकों ने जपकाना छोड़ दिया।
10:54अधिक स्नेह के कारण शरीर वैसे बेकाबू हो गया जैसे शरद रितु के चंद्रमा को चकोरी बेसुद होकर देख रही हो।
11:05नेत्रों के रास्ते शेराम चंद्रजी के हिरदे में बसकर जानकी जीने पलकों के किमार लगा दिये।
11:13तो सखियों ने जान लिया कि सीता जी प्रेम के वश में हो गई हैं पर वे मन ही मन सकुचा गई क्योंकि वह कुछ ना कह सकती थी।
11:25उसी समय दोनों भाई लता मंडप में से प्रकट हुए।
11:31दोनों सुन्दर भाईयों की शोभा की कोई सीमा ना थी।
11:35उनके शरीर की माया नीले और पीले कमल सी थी।
11:40सिर पर सुन्दर मोर पंख सुशोभित था।
11:44माथे पर तिलक और पसीने की मूद शोभाय मान थी।
11:49तिणी भोएं और घुंगराले बाल थे।
11:53कमल के समान लाल नेत्र थे।
11:56सीता जी के सामने प्रकट हुए राम जी की थोड़ी नाक और गाल बहुत सुन्दर थे।
12:04और हसी की शोभा इतनी थी कि किसी का भी मन मोह लेती थी।
12:10जिसे देखकर असंख्य काम देव लजा जाए।
12:14बक्षस्थल पर मडियों की माला थी।
12:18शंक के समान सुन्दर गला था।
12:22हाथी के बच्चे की सूड के समान उतार चढ़ाओ वाली कोमल भुजाए थी।
12:34सामला कुमर तो बहुत ही सलोना है।
12:38सिंग सी पतली और लचीली कमर वाले पीतामबर धारन किये हुए शोभा और शील के भंडार।
12:47सुर्य कुल के भूशन श्री राम चंदर जी को देखकर सखियां अपने आपको भूल गई।
12:55एक चतुर सखी धीरज धर कर हाथ पकड़ कर सीता जी से बोली गिरजा जी का ध्यान फिर कर लेना।
13:04इस समय राज कुमार को क्यों नहीं देख लेती।
13:08तब सीता जी ने सकुचा कर नेत्र खोले और कुल के दोनों सिंगों को अपने सामने खड़ा देखा।
13:17नक से शिखा तक श्री राम चंदर जी की शोभा देखकर फिर पिता का प्रणयाद करके उनका मन बहुत शुब्द हो गया।
13:29जब वहां उपस्थित मुनियों ने सीता जी को प्रेम वश देखा तब सारी सक्या भैभीत होकर कहने लगी।
13:39बड़ी देर हो गई है अब चलना चाहिए। कल इसी समय फेराएंगी।
13:46ऐसा कहकर सखी मन में हसी। सखी की रहस्य भरी वानी सुनकर सीता जी सकुचा गई।
13:55देर हो जाने के कारण उन्हें भी माता का भै लगा।
13:59बहुत धीरज धर कर वो श्रे राम चंद्र जी को हिर्दय में धारन कर उनका ध्यान करती हुई।
14:07जाने हुई स्वयम को अपने पिता के अधीन जानकर महल जाने के लिए तो चल पड़ी।
14:14पर मार्ग में पक्षी और व्रक्षों को देखने के बहाने सीता जी बार बार घूम जाती है।
14:21और श्रे राम जी की छवी देखकर उनका प्रेम बढ़ता ही जाता था।
14:27श्रिवजी के धनुष को कठोर जानकर उनका मन विलाप करता और उन्हें चिंता होती कि येशु कुमार रगुनात जी कैसे तोड़ेंगे।
14:39पिता के प्रण की स्मृती से उनके हिर्दय में शोब था ही फिर भगवान के बल से स्मर्ण होते ही वे हर्शित हो गई और सावलीक्षवी को हिर्दय में धारण करके चली।
14:54प्रभू श्री राम जी ने जब सुख, स्नेह, शोभा और गुणों की खान श्री जानकी जी को जाती हुई देखा तब उन्हें प्रेम की कोमल स्याही से सीता जी के स्वरूप को अपने सुन्दर चित रूपी पटल पर चित्रित कर लिया।
15:14सीता जी एक बार फिर भवानी जी के मंदिर में आई और उनके चरुणों की वंदना करके हाँ जोड कर बोली।
15:23हे परवतों के राजा के पुत्री पार्वति आपकी जै हो। महादेव जी की पत्नी आपकी जै हो।
15:32हे हाथी के मुखवाले श्री गणेश जी और छे मुखवाले स्वामी कारतिक जी की माता आपकी जह हो, हे बिजली की कान्टी युक्त शरीर वाली आपकी जह हो, आपका ना आदी है, ना मध्य और ना अंत है, आपके असीम भाव को वेद भी नहीं जानते,
15:56आप संसार को उत्पन, पालन और नाश करने वाली हैं
16:02विश्व को मोहित करने वाली और स्वतंतरता रूप से विहार करने वाली है
16:08आप पती को इश्ट दियो मानने वाली नारियों में श्रेष्ट है माता
16:14आपकी महिमा अपार है
16:17जिसका वर्णन सरस्वती जी और शेश्ची भी नहीं कर सकते
16:24हे भक्तों को मुह मांगा वर देने वाली
16:27हे देवी आपके चरण कमलों की पूजा करके देवता, मनोश्य और मुनी सभी सुखी हो जाते हैं
16:36आप अंतर्यामी हैं
16:39मेरे मनुरत को आप भली भाती जानती हैं क्योंकि आप सदा सब के हिरदय में निवास करती हैं
16:48ऐसा कहकर जान की जी ने उनके चरण पकड़ लिये
16:52गिरजा जी सीता जी के विनय और प्रेम के वश में हो गई
16:58उनके गले की माला खिसक गई और मूर्ती मुस्कुराई
17:03सीता जी ने आदर पूरवक उस प्रसाद रूपी माला को सिर में धारन कर लिया
17:10गौरी जी का हिरदय हर्श से भर गया और वे बोली
17:16हे सीता हमारा आशीश है तुम्हारी मनो कामना पूरी होगी
17:22जिसमें तुम्हारा मन अनुरुक्त हो गया है
17:26तुम्हे वह श्री राम चंद्र जी ही वर के रूप में मिलेंगे
17:32वह दया की खान है तुम्हारे शील और स्ने को जानते है
17:38श्री गौरी जी का आशिरवात सुनकर जान की जी समेत
17:42सब सक्यां हिर्दय में हर्शित होई
17:46और भवानी जी को बार बार पूज कर
17:50सीता जी प्रसन मन से राजमहल लोट गई
17:54गौरी जी के अशिर से सीता जी के हिर्दय में जो हर्श हुआ
17:59वह कहा नहीं जा सकता
18:01हिर्दय में सीता जी के सौन दरे की सराहना करते हुए
18:07और भाई गुरू जी के पास कहे
18:10श्री राम चंद्रजी ने विश्वा मित्रजी से सब कुछ कह दिया
18:16क्योंकि उनका स्वभाव सरल था छल तो जिन्हें छूता भी नहीं था
18:22दोनों भाईयों के लाए फूल पाकर मुनी ने पूजा की
18:27फिर उनको आशिरवाद दिया कि तुम्हारा मनोरत सफल हो
18:32यह सुनकर श्री राम लक्षमन के हिरदय को बहुत सुख प्राप्त हुआ
18:38मुनिश्रेस्ट विश्वा मित्रजी भोजन करने के पश्षात कुछ प्राचीन कथाईं कहने लगे
18:45इतने में दिन बीट गया और गुरु की आग्या पाकर दोनों भाई संध्या करने चल दिये
19:02समान देखकर सुख पाया फिर मन में विशार आया कि यह चंद्रमा भी सीता के मुख के समान नहीं है
19:11दिन में शोभाहीन और निस्तेज रहता है और ये तो काले दाग से युक्त है
19:19बेचारा गरीब चंद्रमा सीता जी के मुख की बराबरी कैसे पा सकता है फिर यह घड़ता बढ़ता है और विरानिस्त्रियों को दुख देने वाला है
19:32कमल का बैरी है उसे मुर्जा देने वाला है
19:36हे चंद्रमा, तुझ में बहुत से अवगुड हैं जो सीता जी में नहीं है।
19:43अता जानकी जी के मुख की तुझ से उप्मा देने पर बहुत बड़ा दोश लगेगा।
19:49इस प्रकार चंद्रमा के बहाने सीता जी के मुख की छवी का वर्णन करते करते बहुत रात हो गई। और वे गुरु जी के पास चल दिये। मुनी के चरण कमलों को प्रणाम करके आग्या पाकर उन्होंने विश्राम किया।
20:07फिर रात बीत जाने पर श्री रगुनात जी जागे और भाई को देखकर ऐसा कहने लगे। हे तात देखो समस्त संसार को सुख देने वाला सुर्योदय हुआ है। लक्षमर जी दोनों हाथ जोड़कर प्रभू के प्रभाव को सूचित करने वाली कोमल वानी बोले। सुर्यो
20:37प्रकाश फीका पड़ गया है। जिस प्रकार आपके आने का समाचार सुनकर सारे राजा बलहीन हो गये हैं। सारे राजा रूपी तारे मंदर प्रकाश कर रहे हैं। पर वे धनुष रूपी महान अंधकार को हटा नहीं सकते। रात्त्री का अंत होने से जैसे कमल, चक्व
21:07के सारे भक्त धनुष तूटने पर सुखी होंगे, फिर सूर्योदय हुआ, बिना किसी परिश्रम के अंधकार नस्ठ हो गया। तारे छिप गये, संसार में तेज का प्रकाश हो गया। ही रगुनात जी, सूर्य ने अपने उदय के बहाने सब राजाओं को प्रभु आपका
21:37धनुष तोड़ने की या पद्धती प्रकट होई है। भाई के बचन सुनकर प्रभु मुस्कुराए, फिर सभाव से ही पवित्र श्रीराम जी ने सौच से निवरत होकर स्नान किया, और नित्य कर्म करके वे गुरु जी के पास आए। और आकर उन्होंने गुरु जी के सु
22:07पुरंत ही विश्वा मित्र मुनी के पास भेजा, शतानन्द जी ने वहाँ पहुँचकर जनक जी की विनती सुनाई। विश्वा मित्र जी ने हर्शित होकर दोनों भाईयों को बुलाया। शतानन्द जी के चरणों की बंधना करके प्रभू शे राम चंदर जी गुरु ज
22:37स्वयंबर को देखना चाहिए। देखें ईश्वर किसको प्रशंशा देते हैं। लक्षमर जी ने कहा हेनात जिस पर आपकी कृपा होगी धनुष तोरने का श्रेय उसी को प्राप्त होगा। ऐसी श्रेष्ट वानी सुनकर सारे मुनी बहुत प्रसंद हुए।
22:59फिर सभी ने सुख मान कर दोनों भाईयों को आशिरवात दिया। और मुनियों के समुह सहित कृपालू श्रे राम चंद्रजी धनुष यगशाला देखने चल दिये। दोनों भाई रंग भूमी में आये हैं।
23:17यह खबर जैसे ही नगर निवासियों को मिली वैसे ही बालक, जवान, बूढे, स्त्री, पुरुष, सभी घर और काम काज को भुला कर चल दिये।
23:31जब जनक जी ने देखा कि बहुत भीड हो गई है तब उन्होंने सारे विश्वास पात्र सेवकों को बुला लिया और कहा तुम लोग तुरंत सब लोगों के पास जाओ और हर किसी को यथा योग्य आसंदू।
23:48जनक जी के आदेश पर सेवकों ने रंग भूमी में आये उत्तम, मध्यम, नीची, नीच और लगु, सभी श्रिणी के इस्त्री पुरुष को कोमल और नम्रवचन कहकर अपने अपने योग स्थान पर बैठाया।
24:04उसी समय राजकुमार राम और लक्षमन वहां आये। वे ऐसे सुन्दर थे जैसे साक्षात मनोहरता ही उनके शरीरों पर छा गई हो जिनका सुन्दर सावला और गोरा शरीर है और वे गुड़ों के सागर चतुर और उत्तम वीर है।
24:27वे राजाओं के समाज में ऐसे सुशोभित हो रहे थे जैसे तारा गड़ों के बीच दो पूर्ण चंद्रमा हों जिनकी जैसी भावना थी प्रभु की मूर्ती उन्होंने वैसी ही देखी।
24:42महान रणवीर राजा श्री राम चंद्रजी के रूप को ऐसे देख रहे थे जैसे स्वयम वीर्ता शरीर धारन किये हुए हो।
24:52कुटिल राजा प्रभु को ऐसे देख कर डर गए जैसे कोई बड़ी भायानक मूर्ती हो।
24:59छल से जो राक्षस वहां राजाओं के वेश में बैठे थे उन्होंने प्रभु को प्रत्यक्ष काल के समान देखा।
25:08नगर निवासियों ने दोनों भाईयों को मनुष्यों के भोषण रूप और नेत्रों को सुख देने वालों के रूप में देखा।
25:19स्त्रियां हिर्दय में हर्शित होकर अपनी अपनी रुची के अनुसार उन्हें देख रही थी।
25:26जैसे श्रिंगार रस ही परम अनुपम मूर्ती धारण किये सुशोबित हो रहा हो।
25:33विद्वानों को प्रभु विराट रूप में दिखाई दिये, जिसके बहुत से मुह, हाथ, पैर, नेत्र और सिर है।
25:43जनक जी के कुटुमभी प्रभु को ऐसे प्रियरूप में देख रहे थे, जैसे सगे संबंधी प्रिय लगते हैं।
25:52जनक समेत रानिया उन्हें अपने बच्चे के समान देख रही थी।
25:58उनकी प्रीति का वर्णन नहीं किया जा सकता। योगियों को वो शांत, शुद, परमतत्व के रूप में दिखे।
26:08हरी भक्तों ने दोनों भाईयों को सब सुखों को देने वाले इश्ट देव के समान देखा।
26:16सीता जी जिस भाव से श्रीराम जी को देख रही थी, वा इसने और सुख को तो कहने में ही नहीं आ सकता।
26:25उससे सने और सुख को वो हरदय में अनुभाव कर रही थी, पर वे भी उसे कह नहीं सकती।
26:34जिस प्रकार जिसका जैसा भाव था उसने कौशला धीश शुरी राम चंद्रजी को बैसे ही देखा।
26:43सुन्दर सावले और गोरे शरीर वाले तथा विश्व भर के नेत्रों को चुराने वाले कौशला धीश के कुमार रास समाज में इस प्रकार सुशोभित हो रहे थे।
27:04मन को हरने वाली हो। करोणो काम देवों की उपमा भी उनके लिए तुछ थी।
27:12उनके सुन्दर मुक पोणिमा के चंद्रमा को नीचा दिखाने वाले थे और कमल नेत्र मन को बहुत ही भाने वाले थे।
27:23उनकी सुन्दर चित्वन सारे संसार के मन को हरने वाले काम देवों के भी मन को हरने वाली थी।
27:32वा हिरदय को बहुत ही प्यारी लग रही थी।
27:35पर उसका वर्णन नहीं किया जा सकता।
27:39सुन्दर गाल, कानों में जूमते हुए कुंडल, सुन्दर ठोड़ी और होट थे और कोमल पानी थी।
27:48हसी चंद्रमा के किरणों का तिरसकार करने वाली और भौहे तेड़ी और नासिका मनोहर थी।
27:57उचे चोड़े माथे पर तिलक जलक रहे थे।
28:01काले घुमराले बालों को देखकर भौहरों की पंक्तियां भी लजा जाती थी।
28:08शंकर के समान गले में तीन मनोहर रेखाएं थी।
28:13जिसे देखकर ऐसा लगता था कि तीनों लोकों की सुन्दर्ता की सीमा को बता रही है।
28:20उनके कंधे बैलों के कंधे की तरह उंचे और पुष्ट थे।
28:26खड़े होने की शान सिंह जैसी और भुजाएं विशाल एवं बल की भंडार थी।
28:33कमर में तरकश और पीतांबर बधे हैं।
28:37दाहिने हाथों में बान और बाएं सुन्दर कंधों पर धनुष तथा पीले यगो पवीत सुशोभित हैं।
28:46नक से लेकर शिखा तक सारे अंग सुन्दर हैं।
28:51उन पर महान शोभा चाई हुई है।
28:54उन्हें देखकर सब लोग सुखी हो गए।
28:58जनक जी दोनों भाईयों को देखकर हरशित हो गए और उन्होंने जाकर मुनी के चर्ण कमल पकड़ लिये।
29:07विनती करके अपनी सारी कथा सुनाई और मुनी को सारी रंग भूमी दिखाई।
29:14मुनी के साथ दोनों श्रेस्ट राजकुमार जहां जहां जाते थे।
29:19हर कोई उन्हें आश्यर चकित होकर देखने लगता था।
29:24सब ने देखा कि राम जी जैसे उन्हीं को देख रहे हूं।
29:29परंतु इसका रहस्य कोई नहीं जान सका।
29:33मुनी ने राजा से कहा रंग भूमी की रचना बड़ी सुन्दर है।
29:39विश्वा मित्र जैसे ज्यानी मुनी से रंग भूमी की प्रशंसा सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुए।
29:47और उन्हें बड़ा सुख मिला।
30:09प्रसने जास बड़ा बड़ी से ठाजा है।
30:13और उन्हें प्रसन्न हुए।
30:17झाल
30:19झाल
30:21झाल
30:23झाल
30:25झाल
30:27झाल
30:29झाल
30:31झाल
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