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  • 9 minutes ago
राजस्थान के भरतपुर का अपना घर जो 1120 बुजुर्गों को सहारा दे रहा है. यहां उत्तरप्रदेश के रहने वाले रामहेत बताते हैं कि तीन साल पहले मानसिक स्थिति ठीक नहीं होने पर उनके बच्चे छोड़ गए. उसके बाद उनकी सुध लेने नहीं आए. इससे अलग पश्चिम बंगाल आसनसोल के रहनेवाले अशोक कुमार राय की कहानी नहीं है. शादी नहीं हुई, परिवार में सिर्फ भाई है, अशोक घर जाना चाहते हैं, लेकिन कोई उनको ले जाने को तैयार नहीं. आश्रम में इन सभी बुजुर्गों का ख्याल रखा जाता है, इनकी बीमारी के लिए यहां अलग से वार्ड बने हुए है, डॉक्टर इनकी नियमित जांच करते हैं.  लेकिन इन बुजुर्गों को अभी भी अपनों का इंतजार है.

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Transcript
00:00आँखों में अपनों से बिछड़ने का दर्द
00:13उत्रप्रदेश के रहने वाले ये हैं रामहित
00:17तीन साल पहले इनका अपना बेटा
00:19राजिस्थान के भरतपुर के इस आश्रम में इने छोड़ गया
00:23बताया कि इनकी मानसे के स्थिती ठीक नहीं है
00:26बिमार बाप को यहां छोड़ने के बाद उदो बारा इन से मिलने के लिए नहीं आया
00:31पश्यम बंगाल के आसन सोल के रहने वाले अशोक कुमार की कहानी रामहित की तरह ही है
00:51इनकी शादी नहीं हुई
00:52परिवार में सिर्फ भाई है
00:54अशोक घर जाना चाहता है
00:56लेकिन कोई उनको ले जाने को तैयार नहीं है
00:59यह दास्ता सिर्फ रामहित और अशोक कुमार की नहीं है
01:12बलकि इसी आश्रम में रहने वाले एक हजार एक सो बीस बुज़ूर्गों की है
01:17जिने अपनों ने ठुकरा दिया
01:19लेकिन इस आश्रम ने उन्हें अपना रखा है
01:41फिलाल इन बुज़ूगों की आखों में अभी भी अपनों से मिलने की आस बरकरार है
01:46और उनका इंतजार है
01:49E.T.O. भारत के लिए भरतपुर्ट से शामवीर सिंग की रिपोर्ट
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