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00:00बगदाद का शहर उस वक्त मुस्लिम दुनिया का दिलेर दिल समझा जाता था।
00:07हर तरफ बाजारों का शोर, इत्र की खुश्बू और लोगों की बातचीत की मिठास घूंजती रहती।
00:15इस शहर के दिल में था खलीफा, हरून अल, रशीद का सर जहां ताकत, अदल और रौनक एक सार बसी हुई थी।
00:27उस महल के सबसे कीमती और सम्मानित व्यक्ति का नाम जाफर अल बरम की था।
00:34वहना केवल वजर एक आजम था, बल्कि खलीफा का दोस्त, सलाहकार साथी और राजदार भी था।
00:43जाफर की शख्सियत में एक अजीब सा सुकून, नजाकत और योजना बद्धता थी।
00:50मैं जब बाजार से गुजरता तो लोग सिर जुका कर सलाम करती।
00:55और जब वो किसी मसले पर बोलता तो सब घौर से सुनते, अपने उसूलों में सक्त, लेकिन दिल से नर्म मिज़ाज था।
01:03वो अमूमन रातों को भेश बदल कर शेहर की हालत देखता, ताकि बंदा ए खुदा की असल हालत समझ सके।
01:11एक रात चांद बादलों के पीछे छुप छुप कर छलक रहा था। हवा ठंडी थी और बगदाद की गलियां आधी नीन में थी।
01:21जाफर ने अपने दो खास आदमियों को साथ लिया मसरूर जो कतल कुन सिपाही था।
01:27मगर वफादार और एक जवान नाम रावन्द जो खामोश तबियत का था।
01:34टिनों ने साधारन कपड़े पहने, कमर बंधी और बाजार की तरफ निकले।
01:39बाजार में चंद दुकाने अभी बंध हो रही थी, चंद जल रही थी।
01:43कहीं दूर से गोश्ट फ्राई होने की खुश्बू आ रही थी, और कहीं रोटी के तंदूर की गरम हवा मोह से टकरा रही थी।
01:51इसी रवानी में उनका गुजर एक छोटी दुकान के पास से हुआ, जहां मसूर, लोबिया, मूंग और सफेद फलियों के थैले रखे थे।
02:00वहां एक पचास साला आदमी बैट के हिसाब कर रहा था।
02:04दाड़ी सफेद थी, चश्मे लगाए हुए, और कपडों में घरीवी का साफ साफ दिख रहा था।
02:11जाफर ने धीरे से उस दुकानदार से पूछा, बाबा, रात का वक्त है, घर क्यों नहीं गए अब तक, वो मुस्कुराया।
02:20लेकिन मुस्कुराहट के चहरे के पीछे धकान छिपी दी, बोला, आका, मैं बाकल फरोश हो, दिन भर बिक्री अच्छी नहो तो रात को हिसाब लगाना पड़ता है, वरना सुबह कर्जदार मेरे सिर गुंता है।
02:35जाफर ने बैठे, बैठे देखा कि उसके ठेले में आदमी के कदम बढ़ने से भी फल के आखाने गिर जैसे बेचैन है।
03:05जाफर ने चंद लमहें सोच कर अपनी जेब से एक चांदी का सिक्का निकाला और उसके आगे रख दिया।
03:35इससे कुछ आराम हो जाएगा।
03:37कासिम ने फौरण हाथ पीछे कर लिया।
03:39नहीं हुजूर, ये सदक्खा या खैरात हो तो मैं नहीं लेता।
03:45इस्जद से जीता हूँ, इस्जद से कमाऊगा।
03:47अगर कर्ज समझें तो एक महीने के अंदर लोटा दूगा।
03:51वरना नहीं लूगा।
03:53जाफर ने यकीन से कहा, ठीक है, कर्ज समझ कर लो।
03:59कहासिम ने सिक्का लिया।
04:01उसको आँखों से लगाया।
04:03और दुकान सौंभालते हुए शुक्रिया अदा किया।
04:07जाफर ने फिर भी बिना अपनी असलियत बताए।
04:11उसको सलाम किया और रवाना हुआ।
04:14अगली सुभर जाफर कर्सर वगेरा के काम से फारिग हुआ।
04:18तो उसके जहन में खासिम का जिक्र बार बार आए।
04:21उसने सोचा के काश इस बंदे की इमानदारी और घरुबत को किसी तरह मदद मिले।
04:27वो खलीफा हारून के पास गया और सारी बात बताई।
04:31खलीफा ने मुस्कुराते हुए कहा।
04:34जाफर तुम अजीब हो।
04:37रात को भेश बदल के घूमते हो।
04:39और सुबह किसी और के कस्मत पे सोचने लगते हो।
04:43लेकिन अगर ये बंदा वाकई इमानदार है तो उसका इम्तिहान लेना चाहिए।
04:48दोपहर के वकत जाफर फिर साधारन लिबास पहन के बाजार गया।
04:53और कासिम की दुकान पर पहुँच गया।
04:56कासिम अभी साबुन के पानी से अपनी दल्ली साफ कर रहा था।
05:00जाफर ने कुछ फलियां ली और पैसे दी।
05:03उंगलियों से हिसाब करते हुए कासिम ने ठीक कीमत बदाई।
05:07एक दाना भी न ज्यादा लिया न कम।
05:10जाफर ने जिक्र छेड़ा। तुमने वो कर्ज जो कल लिया था।
05:15याद है कासिम ने तुरंत कहा।
05:18हाँ हुजूर। याद है।
05:21आज कुछ बिक्री बेहतर रही तो शाम तक आधा आधा कर दूँगा।
05:25उस वकत एक नेजे के साथ फौज की जहंकार बाजार में सुनाई दे।
05:31सिपाहियों के दर्मियान मसरूर भी था।
05:34लेकिन इस दफ़ा असल रूप में कसरी लिबास पहन उन्होंने आवाज लगाए।
05:40कहसिम नाम के बाकल फरोश को खलीफा ने दर्बार में तलब किया है।
05:46बाजार के लोग घबरा गए।
05:48कहसिम ने सोचा कि शायद कोई शिकायत हुई हो या किसी ने उस पर इल्जाम लगाया हो।
05:54मगर वो सब कुछ अल्ला के हवाले करके उनके साथ चल पड़ा।
05:59कसर में उसको एक बड़े हॉल में बिठाया गया जहां परदे के पीछे से आवाज आई क्या तुम कहसिम हो जो फलियां बेचता है कहसिम ने आराम से जवाब दिया।
06:12जी मैं ही हूँ। फिर परदे हिले और खलीफा हारून अल रशीद खुद सामने आए। उनके साथ जाफर भी कासिम हैरान रह गया।
06:22और सोचने लगा कि कल रात जिसे उसने गर बताए पैसे लिये थे। वो तो ये खुद ववीर लग रहे है।
06:29हारून ने नर्मी से कहा कासिम हमने सुना है तुम इमानदार हो। हम तुम्हारा बोज हलका करना चाहते है।
06:38तुम चाहें तो सर के अंदर बैठ के हिसाब रखो या अपनी दुकान जैसे चलाए हम तुम्हारी मदद करेंगे।
06:45आसिम ने जुके सर के साथ कहा।
06:48फुहूर मैं एक्त से काम करता हूँ।
06:51अगर आप मुझसे कोई जिम्मेदारी लेना चाहें तो सर आंखों पर।
06:56लेकिन महरबानी करके मेरे घरीब घर को महर के बोज के नीचे मत दबाएं।
07:02मैं अपनी दुकान छोटी सही। अपनी महनत से चलाता।
07:07बस कर्ज उतर जाए तो सुकून मिला।
07:10जाफर ने उसके लिए जादा बोलने की जरूरत न समझी।
07:14उसने चुप चाप हारून को इशारा दिया।
07:17हारून ने हुक्म दिया कि कासिम का सारा कर्ज अदा कर दिया जाए।
07:22और उसके बच्चों के लिए तालीम का इंतजाम किया जाए।
07:26साथ ही कहा।
07:28तुम रात को हमारी निग्रानी में अपनी दुकान को वही रखो।
07:31लेकिन अगर कभी जरूरत पड़ी तो करसर तुम्हारा ही घर समझो।
07:36कासिम की आँखें भर आए।
07:38उसने दूआ दिया।
07:40अल्लाह आपको हमेशा इज्जत दे।
07:43आज अगर मेरे जैसे गरीब का ख्याल आपने रखा है तो खुदा भी आपको कभी खाली नहीं रखेगा।
07:50फिर उसने जाफर को देखा।
07:52पहचाना और हलका सा मुस्कुराया।
07:55आपने जो सिक्का दिया था वो अब भी मेरी जेब में है।
07:59वो कर्ज।
08:01अब मैं इजजत के फूल की तरह संभाल के रखूँगा।
08:05जाफर ने हसकर कहा।
08:07वो कर्ज नहीं एक निशानी थी और तुमने इजजत से उसको कभूल करके हमें भीड से अलग दिखाया।
08:15दस्तूर के मुदाबिक।
08:17कुछ दिन बाद कासिम अपनी दुकान फिर से खोल लेता है।
08:22लेकिन इस दफ़ा उसके पास ज़्यादा सामान होता है।
08:26खलीफा का हुक्म था कि उसकी दुकान तक मलिका एक बाजार उसे परेशान न करे।
08:33और उससे जबरदस्ती का कोई कर्ण न लिया जाए।
08:36लोग उसके पास आकर फलिया लेते, बात करते और कहते, खुदा ने तुम्हारी किस्मत पलड़ती।
08:43कासिम के बच्चे तालीम हासिल करने लगते हैं।
08:46बीवी की दवा का इंतजाम होता है।
08:49खाना बेहतर होने लगता है।
08:51लेकिन कासिम की आदत वही रहती है।
08:55सिर्फ उतना ही लेते जितना जरूरत हो।
08:58कभी आजादियत या शान और शौकत की तमना नहीं करता।
09:03एक साल बाद, जब रभी, उल, अवल का चांद नजर आया।
09:09दर्बार में महफिल रची।
09:12हर तरफ चिराहान किये गए।
09:14मसरूर ने जाफर को याद दिलाया।
09:17हुजूर, वो बाकल फरोश कासिम, आज कल बड़े चैन से रहता है।
09:22क्या आप कभी फिर उसके पास जाएंगे।
09:25जाफर ने मुस्कुराते हुए कहा।
09:27इस दफ़ा हम बिना होशकिरी के जाएंगे।
09:30ताकि देखें कि इज्जत पाने के बाद उसकी फितरत बदली या नहीं।
09:35रात को फिर तीनों भेश बदलके कासिम की दुकान पर गए।
09:40वहाँ एक नौजवान लड़का ठेले से फलियां तौल रहा था।
09:44कासिम एक कोने पर बैटकर दुआ कर रहा थ।
09:47कर रहा था।
09:48जाफर ने अंदर जाकर खरीदारी की फिर कहा
09:52बाबा अब तो आपके पास सब खुश हाल है।
09:56क्या आपने इज्जत का बोज महसूस किया या उसने आपको हलका किया।
10:01कासिम ने सर उठाया और कहा।
10:03आका जब तक इनसान महनत से जुड़ा रहे।
10:07मदद इज्जत का बोज नहीं होता।
10:10रहमत का पैगाम होता है।
10:12मगर मदद लेने वाले को भी अपनी हद में रहना चाहिए।
10:16वरना इनसान खुदगर्ज हो जाता है।
10:19जाफर ने दिल ही दिल में सोचा कि ऐसे बंदे ही शहरों की बुनियाद मजबूत करते हैं।
10:25उसने फिर अपनी हकीकत जाहिर की।
10:28कासिम ने उनका हाथ चुमा और कहा।
10:31अल्लाह ने आप जैसे हुक्मरान दिये हैं इस मुल्क को तो हम जैसे घरीबों की फरियात कजिस्मत लिखती है।
10:38हारून रशीद ने बाद में कासिम की दुकान के लिए एक छोटा गोदाम दिलवाया।
10:46और फलियों के साथ साथ उसे मसाले, चावल और चावलों की सफाई की मशीन भी दिला दी।
10:53कासिम ने न घमंड किया। न लालच।
10:57उसने दो चेले रखे जो उसके साथ खुश मिजाजी से काम करते।
11:02एक दिन उसने अपनी बीवी से कहा।
11:05देखो जमीला, जब इमानदारी से काम किया और लफज रखा, तो किस्मत भी इजद देती है।
11:12वो मुस्कुराई और बोली।
11:14और जब हुक्मरान इंसाफ पसंद हो तो रियाया भी खुद इजददार हो जाती है।
11:18बगदाद के लोग बाद में कहते थे कि जाफर ने न केवल एक किराने वाले की जिन्दगी बगली।
11:25बलकि इमानदारी का एक उदाहरन स्थापित किया।
11:29और कासिम बार बार दुआ देता रहता।
11:32कि अल्लाह जिसने मुझ पर महरबानी की।
11:35उस पर हमेशा अपनी रह्मत बरसाए।
11:38फिर क्या हुआ।
11:40जिन्दगी चलती रही।
11:41कासिम ने अपने बच्चों की शादियां की।
11:44एक दफ़ा खलीफा ने उसे दावत पर बुलाया।
11:47वो सर गया मगर जैसे दुकान से उठकर एक छोटी महिल में आया।
11:52उसने ना सरी सोने की कुरसियों पर ओर दिया।
11:56ना चांदी के बरतनों पर हैरान हुआ।
11:59उसने सिर्फ अल्लाह का शुक्र अदा किया।
12:03और हंस के बैठा।
12:05जाफर ने महफिल में उससे कहा।
12:07। । । । । । ।
12:37। । । ।
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