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00:00Baghdad के प्राचीन शहर का सूरज, सुबह का द्रिश्य, आज भी परंपराओं के पन्नों से उभर कर सामने आता है।
00:12दजला के किनारे, बहती हुई हवा, बाजारों में, मसालों की खुश्बू, कहवे की भाप और गुमबदों पर चमकती पहली रोशनी, यह वह दुनिया थी जहां वन थाउस हैंड एंड वन नाइट्स यानी अरेबियन, रातों की दास्ताने पैदा हुई, इन्ही में से एक �
00:42जो अपनी असलियत में जबरदस्त सांस्कृतिक अहमियत रखती है, लेकिन इसके हकीकी वजूद का तारीखी सबूत साबित शुदा नहीं, बलकि यह ज्यादा एक अखलाकली व इबरत अंगेज कहानी के तौर पर है, पुराने अर्बी और फारसी पांडोलिपियों में च
01:12यह कहानी शहरजाद की कहानी कहने के फ्रेम से बंदी हुई सामने आती है, जहां एक बेनाम आदमी जो न बहुत अमीर था न बिलकुल फखीर, बाजार से गुजरते हुए एक व्यापारी को देखता है, जो अपने प्यारे कुट्टे को सोने, चमकते बरतनों में खाना खि
01:42इंसान का वह पुराना जजबा लालच और इंतिहान उस चोर के दिल में जाकता है, वह बरतन चुरा लेता है, लेकिन जल्दी ही पकड़ा जाता है, व्यापारी उसे काजी के सामने पेश करता है, जहां रिवायत के मताबिक काजी इंतिहान लेता है, और चोर दावा करता है
02:12حکم دیتا ہے کہ برطن پر خوشکی ڈالی جائے اور جب سونے کی چمک
02:17اتر کر عام دھاتو اور رنگ کا جھوٹ سامنے آتا ہے تو تازر بے
02:23نقاب ہو جاتا ہے چور رہا کر دیا جاتا ہے اور داستان اپنی
02:29حکمت چھوڑ کر آگے بڑھتی ہے یہ روایت مخطوطوں میں مختلف
02:36सूरत में मिलती है कहीं यह अदल की मिसाल है कहीं इनसानी नफस की कहीं दिखावा और असल के बीच फर्क की लेकिन तहकी कर बताती है कि हमें ना ताजिर का नाम मालूम है ना चोर का और नहीं कोई मुस्तनद वाकले आर्थी रिकॉर्ड मिलता है
03:00बस यह कहानी साराजेवो की हुसेनुवा कलेक्शन, पेरिस की अर्बी पांडुलिपियों और बंगाल के 19. सदी के हुर्दू तर्जुमों में मुकरर होती नजर आती है
03:15हर जगह एक ही मकसद के साथ के जाहिर की चमक से धुखा हो सकता है और अदल उस वकत मुकमल होता है जब सच बे नखाब किया जाए
03:29इसलिए यह दास्तान तारीखी तोर पर साबित शुदा नहीं बलकि इनसान और उसकी सोच का आइना है एक ऐसा आइना जिसमें शहरजार्द की रातों की आवाज अब तक गुंचती है कहानी जो सक्त तोर पर वाकई नहीं
03:49मगर कुवत ए तजस्स इनसाफ और नफस ए इनसान को समझने का जरिया जरूर हाए और आज जब हम इस किस्से को एक आधुनिक डॉक्युमेंटरी की तरह सोच में चलते हुए देखते हैं
04:08तो पता चलता है कि असल माल या सोने के बरतन का सवाल से ज़्यादा अहम वह हकीकत है जो चमक के नीचे छुप कर बैठी होती है
04:19और शायद इसी लिए यह कहानी सदियों से जिन्दा है क्यूंके दास्ताने अकसर कागज से ज्यादा इनसान के जहन में बढ़ती हैं अफसाना हो या सच इसका तासुर सच्चाई की कैस्मत रखता है
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