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Transcript
00:00पिछले वर्ष मेरे पिता गए, अगनी मैंने ही दी, कपाल क्रिया औगया जो कुछ भी है मैं मौजूद था
00:07मेरे लिए तो जैसे हमेशा होता है वैसे ही यही प्रश्नोस वक्त भी प्रासंगिक था
00:12कौन थे कहां गए, कौन थे कहां गए
00:16हम गंगा के किनारे थे, बिल्कुल सुबह सुबह का वक्त था, परवरी अभी आरम भी हुई है तो सुबह की जाड़े की धूप
00:23और मैं एक बहुत अदभूत स्पश्टता के साथ देख पा रहा था, कि वो गंगा हो गए है
00:29मैं देख पा रहा था, कि वो कट की मिट्टी हो गए है, धुआ उठ रहा था, मैं देख पा रहा था, कि वो वायू हो गए है
00:37आप न कहीं से आये हो, न कहीं को जाओगे
00:40मृत्यों का डर सबसे बड़ा डर होता है, यह मृत्यों का ही डर नहीं, और कौन सा डर?
00:45कोई बोले मर जाओगे, बोले मर नहीं जाओँगा, दिख दिख दिख बिखर जाओँगा, तुम समेट ले न, मर नहीं जाओँगा, हवा हूँ हवा हो जाओँगा, मर नहीं जाओँगा, मिट्टी हूँ, मिट्टी हो जाओँगा, इसी जीवन से एक हो जाओ, डूप जाओ �
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