00:00एक बोड़ी औरत, चुपचाप कबूत्रों को दाना डाल रही थी, इसकी जिंदगी में कोई अपना ना था, अच्चानक एक छोटा सा जखमी बंदर उसके दर्वाजे के करीब आगरा, इसकी टांग लंगडा रही थी, बोड़ी औरत ने उसे नर्मी से उठाया, जखम साफ
00:30इस्पिताल के गेट पर बैठा रहा, कामता रहा, आखिरकार औरत सहतियाब होकर इस्पिताल से बाहर निकली