00:00अबी भी हमारे समाज में है लड़के और लड़कियों में भेट किया जाता है परिबार वालों से भी और सोसाइटी के तौर पर भी भारत के बहुत सारे घरों में यही हाल है।
00:30अब मैं उनसे दूसरा सवाल पूछना चाहता हूँ आखरी जिम्मेदारी तो महिला को स्वयम उठानी पड़ेगी और थोड़ा बोलना भी सीखना होगा।
01:00तोड़े बिना शांत मत हो जाना।
01:02अब हमारी बच्चियां बहुत आगे बढ़नी हैं लेकिन फिर भी हमने देखा है अभी भी हमारे समाज में हैं बच्चे लड़के और लड़कियों में भेद किया जाता है परिवार वालों से भी और सोसाइटी के तौर पर भी दिल्ली या बड़े शहरों की बात नहीं हो �
01:32आगे बढ़ाने में क्या चीजें हमें मदद कर सकती हैं देखिए इंसान है अगर आप तो अपने खिलाफ जो कुछ बड़ी से बड़ी मुर्खता का और हिंसा का आप काम कर सकते हैं उन कामों में से एक ये है लिंग आधारित भेदभाव क्योंकि इंसानों में 50 प्रतिशत
02:02उन से आप भेदभाव कर रहे हो तो माने आप उनको जानोगे ही नहीं कभी और अगर नहीं जानना है किसी को तो बहुत जरूरी हो जाता है कि अपनी आखें खराब कर ली जाएं भई एकाद कोई चीज हो ये पूरा पेविलियन है इतना बड़ा है यहां मैं कह दूं कि मु
02:32आएगी पर यहां पर मान लीजिए 50 प्रतिशत लड़किया महिलाएं मौझूद है और मैं कह दूं कि मुझे इनको नहीं जानना है इनके विशह में अपनी माननेताएं रखनी है बस तो वह हो नहीं पाएगा क्योंकि मैं जहां भी देखोंगा यह दिखाई देंगी 50 प्रत
03:02यूरोप के कई देशों में उन्हें अभी 20-40 साल पहले तक वोट देने का हक नहीं था ड्राइविंग लाइसनस नहीं मिलता था तो मैं इमान के चल रहा हूं इन्हें गाड़ी चलाना नहीं आता इन्हें कुछ नहीं आता तो उसके लिए फिर जरूरी हो जाएगा कि मैं अ
03:32जरूरी है कि आहीं और जहां देखो यही दिखाई देती हैं तो मेरे लिए जरूरी हो जाएगा कि मैं अपनी आख़ेए खराब कर लो अर जो अपनी आख़े खराब कर लेगा उसने तो अपनी जिंद�qी खराब कर ले ना उससे अब महिलाएं छोड़दो कुछ भी ठीक से
04:02बच्चियों को आगे बढ़ने, उनका क्या होता है, अच्छा बढ़ले गई, अब इसके शादी करके अपनी जिम्मेदारी खतम कर लेनी है, अच्छा हमारे पास पैसा है बैंक में, ये पैसा खर्च नहीं करना है, इसको दहेश में देना है, हाला कि अब वो तमाम कुरीतिया
04:32करनी है, तुम तो पराया धनो, मतलब आपको लाखों लाख लोग सुनते हैं, और देश के कोने-कोने तक आपके वीडियो जाते हैं, तो उन माबाप के लिए आपका क्या संदेश है, देखिए माबाप को लगातार संदेश देता ही रहता हूं, और आपने ठीक कहा, लाखो
05:02और माबाप को लगातार बोलता ही रहता हूं, कि अगर अपने आपको हकदार मानते हो बाप बोलने के या मा बोलने के, तो फिर इंसाफ करो बच्ची के साथ, उनको तो बोलता ही रहता हूं, पर एक बात और है उससे आगे की भी, बच्ची के साथ तब नाइंसाफी हो सकती
05:32साफी को आत्मसात कर चुकी होती है
05:35यह जिस लिंग अधारित भेदभाओं की हम बात कर रहे हैं न
05:40इसको करने वाले सिर्फ पुरुश ही नहीं है
05:45महिलाएं दूसरी महिलाओं के खिलाफ भी करती है
05:49और खतरनाग बाती है कि महिलाएं खुद अपने खिलाव भी करती है
05:52और उसमें बहुत सारा रोल होता है टीवी सीरियल का
05:56आप उठा कर देख लें तो उसमें एक महिला दूसरी महिला को
05:59पीछे खिचने में लगातार लगी रहती है
06:01और घर में महिलाएं गौर से इतना देखती है
06:04फिर टीवी बंद करने के बाद उन चीजों को वो घर में अपलाई करती है
06:07अब महिला 35 साल की हो गई है मान लीजिए
06:11ये तक हो सकता है कि माबाप दोनों गुजर गए हूँ
06:14माबाप तो इस दुनिया में ही नहीं है
06:17लेकिन वो आज भी सोयम को हीन मानती है
06:20और वो अपनी बच्ची में भी हीनता के संसकार भर रही है
06:24तो आखरी जम्मेदारी तो महिला को सोयम उठानी पड़ेगी
06:29दूसरे ने आपके साथ जो किया सो किया
06:32आप अपने साथ बुरा क्यों कर रहे हो
06:34दूसरे ने आप पर कुछ प्रभाव कुछ संसकार डाले तो डाले और तब आप असहाय थीं दुरबल थीं आपने सुईकार कर लिया पर आज भी क्यों सुईकार करे हुए हो आप तो 18 पार कर गए ना मैं तो कहा रहा हूँ आप 35 की हो गई तो महिलाओं की दुरबलता का एक �
07:04एड़्जस्ट हो गई है और जो विवस्था चलती है ना पित्र प्रधान उसमें इतना ही नहीं किया जाता कि बस शोशन कर लो महिला का शोशन के एवज में उन्हें कुछ सुख सुविधाई भी दे दी जाती है और उन सुख सुविधाओं की लत लग जाती है सब जानते ह
07:34मैं पूछ रहा हूँ कि आप ये बारगेन सुविकार क्यों करते हो इसको फॉस्टियन बारगेन बोलते है जहां आदमी अपनी एक तरह से अपनी अपनी आत्मा बेच देता है कुछ सुख सुख सिधाओं स्वार्थ के एवज में कि कुछ चीजे मिल रही है बैठे बिठा�
08:04महिला जब तक अपनी प्रगतिका और मुक्तिका बीड़ा स्वयम नहीं उठाएगी दूसरों से शिकायत करना और दूसरों से उमीद करना बात को बहुत नहीं आगे ले जा सकता क्योंकि दूसरों के बाद अपनी जिंदगी है भाई और इस दुनिया में इतना निस्वार्
08:34तो अब आप लोगों के ऊपर है कि आपको अपनी जिंदगी कहां तक ले जानी है पुरुष की शिकायत पती की शिकायत माबाप की शिकायत विवस्था की शिकायत इतिहास से शिकायत परंपरा संसकार की शिकायत वो सारी शिकायते जायज हो सकती है लेकिन उन शिकायतों से
09:04और संघर्ष करना शुरू करते हैं, जिसे आजादी चाहिए, उसे संघर्ष करना पूरेगा.
09:09ये बहुत सुंदर बात आपने बोली है, और यकिनन जब भी इस तरह की परिस्थिती आए, तो खुद से पूछ लेना चाहिए, कि हमें अपनी जिन्दगी से क्या चाहिए.
09:22कई बार उंगली पकड़ के माबाप एक छोड तक पहुँचाते हैं, वहां से कोई और मिलता है, दूसरी छोड तक ले जाता है, बच्चा पैदा होने के बाद जिन्दगी महिलाओं की और बदल जाती है, तो जैसे जैसे महिलाओं की ये जो जीवन के चरण है, वो आगे ब�
09:52खुद से ये सवाल करें, ये सवाल इसलिए भी जरूरी है, और आचारी जी मैंने तो देखा है, जैसे हम लोग तो नौकरी करते हैं, अच्छी पोजिशन पर आ चुके हैं, लेकिन हाला कि इसके पीछे बहुत लंबा संघर्ष है, संघर्ष पीछे चूट जाते हैं, जब स
10:22खा, और घर में अगर किसी के भी, अगर हाउस वाइफ हैं, तो का जाता है, तुम करती क्या हो, दिन भर तो घर पे रहती हो, इस तरह का ताना दिया जाता है, जब कि सचा ही ये है, कि हम अगर एक दिन घर में खाना बनाने वाली, या जाड़ो पूछा करने वाली नहीं आ�
10:52महिला हो, ओफिस में काम करने वाली महिला हो, या यहाँ पर बैठी हुई महिलाएं या लड़किया या बेटियां हो, जी, मैंने घर में रहने वाली महिलाओं को पुरशों से ज्यादा काम करते हुए देखा है, मैंने बाहर काम करने वाली महिलाओं को घर में आ करके अपनी
11:22महिला को सब को खाना खिलाने के बाद, खुद खाते हुए देखा है, मैंने देखा है कि कही बार कैसे, अब तो ठीक है, लोगों के पास पैसा आ रहा है, लेकिन फिर भी भारत की बहुत बड़ी जनसंख्या है, अनुपात में, जहां पर बाई के और धोबी के पैसे बचाने क
11:52इसा भी हो जाए, मैंने ये सब होते हुए देखा है, मैं चाहूं तो अभी साहनभूती के तौर पर उन से बोल सकता हूँ कि तुम्हारे साथ बहुत बुरा हो रहा है, और उनकी हालत देखता हूँ तुम्हारे लिए रोना आ रहा है, पर ये बोलने से कुछ होगा क्या, व
12:22किसी पशु को बांध लेते हैं और उसमें अपना ही स्वारत देखा करते हैं, वैसा ही उसका हाल होता है, भारत के बहुत सारे घरों में यही हाल है, बहुत बुरा लगता है, लेकिन मैं पूछ रहा हूं कि सहानुभूती व्यक्त करने से कुछ होगा क्या, ये तो उसको भी प
12:52अनुभूती व्यक्त करने का समय गया, अब मैं उनसे दूसरा सवाल पूछना चाहता हूं, मैं पूछना चाहता हूं कि जब तुम्हारे काम की कदर नहीं, तो तुम कदर जताते क्यों नहीं?
13:05जहां तुम्हारे काम का कोई मुल्य नहीं तो तुम वो काम करे क्यों जा रहे हो
13:13कहीं ऐसा तो नहीं
13:16कि तुम्हारा अपना डर ही है जो तुम से वो काम करवा रहा है और जूठ मत बोलना कि प्रेम के नाते कर रहे हो
13:24क्योंकि ये तो कोई प्रेम होता नहीं जो सो तरह का अत्याचार और अन्याय बरदाश्ट कर ले
13:31तुम घर में हर तरह की उपेक्छा जेलते हो जो कि कई बार कुरूरता जैसी होती है
13:38तुम उसको जेलते हो और तुम्हारी हालत देख करके कोई भी थोड़ा समिधनशील आदमी हो तो रो पड़े
13:45तुम ये जो इतनी अपनी दुर्दशा घर में कराते हो जूट मत बोलो कि प्रेम के नाते कराते हो
13:51मत कहो कि मुझे परिवार से बड़ा प्रेम है इसलिए ये मैं सब अपनी दुर्दशा बरदाश्त करती हूँ
13:57मैं पूछ रहा हूँ कहीं ऐसा तो नहीं कि सिर्फ डर है जो तुमको तुम्हारा जायज हक मांगने नहीं देता
14:04और डर तो किसी हालत में सही नहीं हो सकता
14:21कि बिन डरे कैसे जीना है यही उनकी केंदर्य बात है तो आप ने गलत नहीं का उपनिशत बस यही
14:27सिखा रहे हैं कि बिना डर के कैसे जिया जा सकता है तो अगर आप ग्रहनी है और आप घर में सिर्फ डर की
14:35जासे खटती रहती हैं और डर और लालत स्वार्थ ये एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं बिना स्वार्थ के कभी डर होता नहीं तो चाहे आपको डर हो चाहे स्वार्थ हो वो एक ही बात है तो आप ग्रहनी हैं और आप अपने साथ सौतर है कि दुर्दशाएं सुईकार कर �
15:05आपका शोशन कर रहा है, कोई बाहरवाला नहीं, बाहरवाले को दोश दोगे तो बहुत होगा, अधिक से अधिक साहनुभूती मिल जाएगी, और साहनुभूती देने में मेरी कोई रूची नहीं है, साहनुभूती देने आले तो बहुत होते हैं, आके, अरे, अरे, बड़ा
15:35ये सब करने से जो घर में खट रहा है उसकी हालत में सुधार हो जाता है क्या वो तो बस घर में ये कर रहा है कि दिन बर आलू के पराठे और धनिया टमाटर की चटनी बना रहा है दूसरों के लिए और जिनके लिए पराठे और धनिया टमाटर की चटनी बन रही है वो खाप
16:05देती हैं, तुम ये अपने साथ करवा रही हो, तुम इंसान हो, तुम क्यों हो करवा रही हो अपने साथ ये, किसी दूसरे को दोश हम बिलकुल दे सकते हैं, पर दूसरे को दोश दे कि क्या मिलेगा, बोलो, हर आदमी अन्ततह, अपनी स्थिति के लिए और अपनी बहतरी के �
16:35तो अपनी जिम्मेदारी खुद उठाईए और देखिए आपको अपने लिए क्या करना है और थोड़ा बोलना भी सीखना होगा लगतार खटते जाने के मुकाबले थोड़ा हम किन चीजों से परिशान हैं क्या परसितियां हमारे सामने हैं ये घरवालों को बताना होगा
16:51चित्रा जी मुझे लगता है बोलती तो खूब है ये लेकिन बोलके ही रुक जाती है घर में जब महिला दुखी होती है तो बोलती तो बहुत है और जो घर के बाकी लोग होते हैं उसको बोलने देते हैं कहते हैं इसका बोलना कुकर की सीटी की तरह है प्रेशर रिलीज हो जा