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*श्रीमुख से लीलारसामृत*

*प्रेम रस मदिरा की रचना*
❝एक बार हम आसाम गये थे माथुर के यहाँ, वो टी स्टेट में मैनेजर था, गुवाहाटी में। वहाँ कोई था ही नहीं सत्संगी, जंगल में कोठी थी, मैनेजर सबसे बड़ा ऑफिसर होता है, और शहर भी बहुत दूर 100 मील, कोई गाँव नहीं कुछ नहीं, खेतों के बीच में कोठी बनी थी। तो फालतू बैठे रहते थे। अकेला वो था। वो चला जाय ऑफिस। बीबी अकेले घर में रहे, बच्चा वच्चा भी नहीं था उस समय, नया नया ब्याह हुआ था। फालतू बैठे रहने से, हमने कहा लाओ एक किताब लिख देते हैं। वहाँ नौ दिन रहे हम। नौ दिन रहे और नौ दिन में एक हजार पद लिख दिये। एक हजार पाँच छः पद कम थे, सद्गुरु माधुरी नहीं लिखा था। यहाँ लोग पीछे पड़े तब सद्गुरु माधुरी बनाया। सब तरह के पद लिखे हैं सरल और कठिन ऐसे कि बड़े-बड़े साहित्यकार और विद्वान् चकरा जायें ऐसे पद भी हैं मदिरा में। जैसे राधा माधुरी में हैं।❞

लली-दृग छवि लखि कवि भरमाये । (श्रीराधा माधुरी, पद संख्या 40)

जियत न मरत न जिय तन भात। (विरह माधुरी, पद संख्या 102)

_*- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज*_

*_स्त्रोत: साधन साध्य, मार्च 2019_*
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