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  • 1 year ago
"श्राप या वरदान" is a captivating Hindi animated movie that will delight and inspire young viewers. Join us on a journey through the world of karma, where actions have consequences and good deeds are rewarded. This moral story teaches valuable lessons about responsibility, kindness, and the importance of making positive choices. With vibrant animation and a heartwarming narrative, "श्राप या वरदान" is a must-watch for families and children of all ages.

Watch now and discover the power of karma!

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Transcript
00:00निराशमा तो ये माराज, भगवान के कार देर है, अन्धेर नहीं।
00:07हाँ, क्या करूँ महामंची जी, अब तो दिल की यही पीड़ा असेनिय हो गई है।
00:15अपनी पीड़ा तो मैं सेहन भी कर जाओंगा, लेकिन महराणी की चहरे को देखकर लगता है,
00:22कि जैसे मैं उनका गुनहगार हूँ।
00:26दिल चोटा मत किजिये महाराज, मुझे पूरा विश्वास है, कि शीगरे एक ननास रासकुमार इस मेल की शोबा बढ़ाएगा।
00:34मंतरी जी, ये जूटी तसली मुझे पिछले दस वर्षों से मिल रही है,
00:40लेकिन बाब बनने का सौभाग मैं अभी तक नहीं पा सका।
00:44हमारे साधी को हो जाना है, जिमाल बाब ने पर आपको बहुत प्रिश्वास नहीं आचा जाना है।
00:52जो महाराज की बाब पर अलग हो जाना है,
00:56अमारे सादी को हुए बारा बर्स बीच चुके हैं। अब तो तास्य अभी मुझे सक्के निगाहों से देखती हैं। और ये समझती है कि मैं सायद कभी मा बन ही नहीं सकती।
01:26महराणी, तुम्हें देख कर हमें ऐसा लगता है कि जैसे हम आपके गुणएगार हैं। तुम्हारे चहरे पर उदासी का कारण हमीं तो हैं।
01:50नहीं महराज, ऐसा मत कहिए। महराज, अगर आप चाहते कि मैं खुस नजर आओं, तो आपको मुझे एक वचन देना होगा। तुम्हारी खुशी के लिए हम कुछ भी करने को तयार हैं। बताओ, मैं तुम्हें क्या वचन दू। महराज, मैं चाहती हूँ कि आप दूसरा
02:20विभार कैसे संभव है। मैं ठीक कहती हूँ, महराज, ये बहुत सरूरी है कि इस राच्या के
02:28लिए एक वारिस और मुझे खेलने के लिए खिलोना चाहिए और वो खिलोना मुझे आपके दूसरी पत्णी
02:35नहीं मिल सकता है महराज। नहीं, मैं ऐसा हर गिज नहीं कर सकता, मैं दूसरा विभार नहीं करूँगा, चाहे मुझे हमेशा के लिए ही क्यों ना पुत्र रत्न से वंचित रहना पड़े।
02:49अभी उनकी पाते चल ही रही थी कि कक्ष में महामंत्री प्रवेश करते है और बोलते हैं।
02:58महाराज की जय हो। कहिए महामंत्री जी, कैसे आना हुआ? आपके लिए खुशकभरी लाए हूँ महाराज।
03:08खुशकभरी? कैसे खुशकभरी महामंत्री?
03:12महाराज, मुझे जानने को मिला है कि दक्षिन के जंगलों में एक महारीशी आये है।
03:19पता चला है कि वे महारीशी बहुत पोहचे हुए है।
03:23अगर महाराज स्वेम वहाँ जाकर महारीशी को अपना दुख सुनाए, तो मुझे पूरा विश्वास है कि वो आपका दुख अवश्य ही दूर कर देंगे।
03:36हम उन महारीशी के दर्शन करने के लिए चलेंगे महाराज।
03:40लेकिन महाराणी, आप ये क्यों भूलती है कि हम पहने भी कई रिशी मुनियों के पास जा चुके हैं, लेकिन फाइदा कहीं नहीं हुआ।
03:49फिर भी उनके पास जाने में क्या हर्ज है महाराज।
03:53हो सकते है भगवान हमारी सुन ले और महारिशी का अशिरबाद से हमें हमारी परिसानी का उपाई मिल जाए।
04:01और आखिर महाराज केसब राई को महाराणी स्नेलता की बात माननी ही पड़ी।
04:07हमारे यात्रा की त्यारी कीजिए महामंत्री जी, हम कल ही प्रस्थान करेंगे।
04:14जो आज्या महाराज।
04:15और अगले हे दिन महाराज केसब राई महाराणी के साथ दक्षिन की जंगलों की तरफ रवाना हो गए।
04:32सारा दिन के सपर्ग के पस्चात वो साम को महारिशी देबराज की कुटिया पर पूछे।
04:37आओ राजन, हमें मालुम था कि तुम अवश्य आओगे।
04:42ओ, महारिशी को पहले ही कैसे पता चल गया कि हम आ रहे हैं।
04:48अंदर चले आओ राजा केशब राई, आजाओ।
04:52ओ, वो तो हमारा नाम भी जानते हैं।
04:56आयुश्मान Bhav, आयँश्मान भव, हम जानते है राजन कि तुम कौन सा दुखणाले कर आ एहे हो।
05:15हम जानते हैं कि तुम कोन सा दुखणाले कर आ एह।
05:18हम कआ स्टाश पर जेऽवन साथ हूसलता रहे हैं।
05:25आप तो अन्तर यामी हें महारिशी! अन्तर यामी हैं।
05:30हमपर करपा कीजी महारिशी
05:32और अपने आश्वृबाद से महारानी की सूनी गोठ भर्दीजी।
05:36यो तुम्हारे भाग्यमें संतान योग नही हैं,
05:42लगेन हम तुम्हें संतान दे सकते हैं।
05:55आप पहील जायेगा राज्ञ्ञ्, लेकिन
05:59लेकिन क्या महारिशि?
06:02तुम्हें मिलने वाली संतान उधहार की हो गी
06:07यह आप क्या कह रहा है महारिशि ؟
06:11हाँ राज्ञ्ञ्ञ्, जो संतान तुम्हें मिलेगी
06:15उसकी अमर सिर्फ 20 वर्ष की हो गी
06:17यानि बीस वर्ष तक ही तुम संतान का सुख भोग पाओगे।
06:23ये आप कैसा वर्दान दे रहे हैं महारिशी।
06:26जब संतान जवान हो तो बाब की आखों के आगे उसकी मौत हो।
06:31नहीं नहीं महारिशी नहीं।
06:33इससे अच्छा तो मैं निपुता ही ठीक हूँ।
06:37लेकिन एक बाद सोचो राजन।
06:40ऐसे संतान पाकर तुम निसंतान तो नहीं कहलाओगे।
06:46आप ठीक कहे रहे हैं महारिशी।
06:48बेसक बीस वर्ष तक ही सही मैं पुत्रा का प्यार तो पा सकूंगी।
06:57स्मेलता के जीप के आगे केसब को भी हाँ करनी पड़ी।
07:01तस पस्चात महारिशी बोले,
07:05लो पुत्री इस जल को पी लो।
07:09वर्ष भमारते के साथ
07:28वक्त के मुताबिक माहरणी गर्फ स्टाँ को प्लाब थुई।
07:32बदाई हो महाराज, महाराज महाराणी की कोख हरी हो गई।
07:52हे भगवान समझ नहीं आ रहा कि बाप बनने की खुशी मनाओं या पुत्र की मोथ का शोक, जो की 20 वर्ष बाद ही मर जाएगा।
08:03लेकिन महाराणी स्नेलतार, जैसे महारेशी देबरास की बात को भूल गई थी, तभी तो वो खुशी से फूले नहीं समा रही थी।
08:13आज कितनी खुशी का दिन है भगवान, कि मेरे कोप में मेरा बच्चा पल रहे।
08:18और पूरे 9 महीने के पस्चात महाराणी ने एक पुत्रों को जन दिया, तो दासी ये सूप समाचार लेकर महाराज के पास जाती है और बोलती है।
08:34महाराज की जैय हो, महाराज हमारे राज्या का राजकुमार आया है।
08:41महाराणी कैसी है दासी?
08:44महाराणी बिलकुल सुस्त है महाराज
08:48हे भगवाण तेरा लाख-लाख शुक्र है।
08:54जन्म के साथ-साथ राजकुमार का नाम करण किया गीा और राजकुमार का नाम भिजय सिंग रखा गया.
09:00वक्त के साथ राजकुमार विजैसिंग बड़े होने लगे और जब राजकुमार विजैसिंग साथ बर्स का हुआ तो महाराज केसब ने उसके सिख्षा के लिए उसे गुरुकुल भेज दिया।
09:12देख रही हो महाराणी, आज राजकुमार साथ वर्ष का हो गया है। अब तेरह वर्षी रह गए हैं बाकी उसके जिन्दगी के। यही सोच सोच कर तो मैं मरा जा रहा हूँ।
09:36ऐसा मात कहिए है महाराज, मैं अपने पुत्रों को नहीं मरने दूँगी। देख लेना महाराज, हमारा पुत्र सेकड़ों साल तक जीएगा। यह एक मा बोल रही है कि वे यतरत को भी जानते थे कि ऐसा नहीं होगा।
10:06राजकुमार विजै सिंग, आज पांच वर्ष पश्चाद तुमने अपनी शिक्षा पोरी कर ले हैं। इसलिए जाओ और संसार में अपने पिता जी का नाम रोशन करो। जो आज्यां गुरुदेव। जाओ और वक्त आने पर अपने गुरुदक्षिना मैं सुहम मांग ल
10:37क्या मेरा लाल आ गया? मेरा, मेरा बेटा आ गया?
10:51प्रणाम माँ!
10:54सदा खुस रोहो, जो गुरुदेव में अपने पिता जी का नाम रोशन कर ले हैं।
11:00प्रणाम माँ!
11:02सदा खुस रोहो, जो गुरुदेव में अपने पिता जी का नाम रोशन कर ले हैं।
11:13प्रणाम पिता जी!
11:16ए भगवान, मैं इसे क्या अशिर्वात दू?
11:19मेरे बेटे को हमेशा खुश रखो भगवान, हमेशा खुश रखो।
11:24पिता श्री, मैंने अपनी शिक्षा पोरी कर ली है, इसलिए मैं चाहता हूँ कि आसपास के तमाम राज्यों और राजाओं को जीत कर आपके कदमों में डाल दू।
11:36लेकिन बेटे, अभी तुम बच्चे हो।
11:40योधा कभी बच्चे नहीं हुआ करते पिता श्री।
11:53जाओ पुत्र जाओ, और विजाई होकर लोटो। प्रणाम पिता श्री, मुझे आज्यां दीजे। विजाई भाव।
12:09और अपने फोज के साथ राजकमर बिजै सिंग बिजै अव्यान के लिए निकल पड़े। सबसे पहले उन्होंने सूरत गर पर अक्रमन किया।
12:20बोलो राजा सूरत सिंग हमारी दास्ता स्विकार करते हो या मौत। राजा सूरत सिंग का सेर काट सकता है लकिन जुप नहीं सकता। तो फिर लो सिर ना जुकाने की सजा।
12:39और राज कुमार ने उनके साथ यूद करके तलवार से उनकी गर्दन उड़ा दी। सूरत सिंग की दशा देखकर आसबास के कई राजाों ने केशबगर की दोस्ती स्विकार कर ली। हमें केशबगर के दास्ता स्विकार है।
12:56राजन इसमें ही आपकी भलाई है। आज जिसने भी विजय सिंग के सामने सिर उठाने की हिम्मत की है। उसका हाल सूरत सिंग की तरह हुआ है।
13:16प्रणाम पिताश्री प्रणाम
13:19सदा विजयी रोहो पुत्र
13:21आज से आप महराज नहीं पिताश्री आप है सम्राद केशव राय
13:28सम्राद केशव राय की जै
13:32सम्राद केशव राय की जै
13:37जाओ पुत्र जाओ मा के दर्शन कर लो
13:41जो आग्याँ पिताश्री
13:43जुप जुप जीओ बेटा अब मैं अपने पुत्र को अपने आखो से उज्छन नहीं होने दूँगी
13:56और विजयी महल में ही रहे कर अपने पिता के कारिया में हाथ बटाने लगा
14:01और वक्त बीटने के साथ साथ राजकुमार विजय सिंग अठारा वर्षक के हो गए कुछ दिन बाद
14:10महरास की जै हो
14:13कहो सूरेकांत क्या कहना चाहते हो
14:17महरास राजकुमार के गुरु क्रिपानात पढारे है
14:23ओ तो तुम जाओ और गुरुदेव को आधर सहित अतिती ग्रह में ले आओ हम अभी आते हैं
14:33और कुछ दिर बाद समराथ केसबराई ने अतिती ग्रह में प्रवेश किया
14:40आज हम अपने शस्त से अपने गुरु दक्षणा मांगने आए हैं समराथ
14:45आज हम अपने शस्त से अपने गुरु दक्षणा मांगने आए हैं समराथ
14:57मैं हाज़िर हूँ गुरु देव, आज्या कीजिये, मैं अपनी जान देकर भी आपको गुरु दक्षणा दूँगा
15:04लेकिन दक्षणा लेने से पहले हम तुमसे वचन चाहेंगे विजय सिंग्
15:10आप आज्या कीजिये गुरु देव, मैं आपकी हर आज्या का पालन करने का वचन देता हूँ
15:16विजय सिंग् मेरी एक ही पुत्री है सुनीता और वो विवाह योग्य हो गई है
15:22इसलिए मैं चाहता हूँ कि तुम सुनीता को पतनी के रूप में स्विकार करो और मुझे इस बोच से मुक्ते दिला दो
15:30लेकिन गुरु देव यी कैसे हो सकता है? क्यों नहीं हो सकता? सुनीता सुन्दर और सुशीर लड़की है
15:36वो हर तरह से तुम्हारे योग है, तो फिर क्यों नहीं हो सकता? क्या समस्य है? पताओ
15:42मेरे कहने का ये मतलब नहीं है गुरु देव, मैं तो
15:46विजा सिंग, बहाने बनाने की ज़रूत नहीं है, साफ साफ कहो, क्या कहना चाहते हो तुम
15:53आप, आप मेरी बात का बुरा मत मानिये गुरु देव, मैं आपकी बेटी से शादी नहीं कर सकता.
15:59तुम अपने बचन से फिर रहे हो विजा सिंग. ये बात नहीं है गुरु देव, दरसल
16:08अगर मैं आपकी बेटी से शादी कर लूँगा, तो कुछ दिन पशाद, कुछ दिन पशाद वो विदवा हो जाएगी.
16:17ये क्या कह रहे हो तुम विजा सिंग. ये क्या, क्या विजा सिंग अपनी उम्र के बारे में जानता है, इसे किछ ने बताया होगा?
16:25जी हां गुरुदेव, पृत्वी पर मेरी आयू सिर्फ दो वर्षों की रह गई है, और फिर उसके पशाद मैं वापस चला जाओंगा.
16:35कहाँ चले जाओंगे तुम? इसके लिए मुझे आपको पूरी बात बतानी पढ़ेगी.
16:40दरसल मैं मनुश्य नहीं हूं, बलकि मही देव हूं. देव राज इंद्र के दरबार में मैं एक मंत्री का अवतार रखता था. उस दिन इंद्र बोले,
16:56आज हमारा दिल बहुत उदास हो रहा है, इसलिए जाओं, मेनका और उर्वशी को बुला कर लाओ, हम अपना दिल बहलाना चाहते हैं. जो आज्यां देव राज, और मैं देव राज के आज्यां का पालन करने के लिए मेनका और उर्वशी के पास जा पहुचा,
17:20आज देव राज का मन उदास है, इसलिए उन्होंने आप दोनों को बुलाया है, और देव राज के आज्या से, दोनों सुन्द्रियां उनके दर्बार में हाजीर हो गई, आज इतना अच्छा नाचो, कि हमारे मन की सारी उदासी दूर हो जाए,
17:49जो आख्या देव राज।
17:51और दोनों देव राज की उदासी दूर करने में लग गई, उधर दोनों को निर्टे करते देख, मेरा मन खराब होने लगा था, और मैं सोचने लगा, वावावावावा, देव राज जब और जिसे चाहते हैं बुला लेते हैं, और एक हम है की, हाँ, नहीं, आज मैं ऐसा �
18:21दोनों मिसे किसी एक को पाकर ही रहूंगा।
18:30और निर्टे के पशाद देव राज ने मुझे मेन का और उर्वशी को वापस छोड़ कर आने का हुक्म दिया, और मैं उन्हे छोड़ने के लिए उनके साथ चल पड़ा,
18:42बास यही मौका है, इससे अच्छा मौका और कभी नहीं मिलेगा।
18:48बास, और मैंने तुरंती उर्वशी का हाथ पकड़ लिया।
18:53मही देव, ये क्या कर रहे हो आप?
18:56आज तो तुम्हें मेरा बनना ही पड़ेगा प्रिये।
18:59जानते हो ऐसा करने की तुम्हें क्या सजा मिल सकता है?
19:03आज मुझे कोई भी सजा तुम्हें पाने से नहीं रोख सकती।
19:08मैं अभी जाकर देवराज को सूचित करती हूँ।
19:18दुहाई है देवराज, दुहाई है।
19:20मेनका, क्या बात है? तुम इतनी घबराई हुई क्यों हूँ?
19:25और रोते रोते मेनका ने सारी बात के सुनाई.
19:29बात सुनकर देवराज को क्रोध आ गया और उन्होंने कहा,
19:33उस उद्दंड की इतनी हिम्मत, आज हम उसे उसके किये की सजा देंगे।
19:38जाओ, जाकर महिदेव को बंदी बनाकर हमारे सामने लेकर आओ।
19:58हमें तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी महिदेव, शमा करें देव, शमा कर देव, भूल हो गई हमसे, भूल हो गई।
20:04नहीं, जो नीच कृत्य तुमने किया है, वो शमा योगे नहीं है। इसलिए जाओ, हम तुमें शाप देते हैं कि तुम 20 वर्ष मृत्यो लोक में गुजार कर आओ। जाओ। नहीं, नहीं प्रभू, नहीं, इतनी कड़ी सजा मत दीजे, रहम कीजे, मुझ पर रहम कीजे।
20:34मृत्यो लोक में आ गया और सोचने लगा, हरे, कैसे काटूँगा मैं 20 वर्ष इस मृत्यो लोक में।
20:43और जब मुझे महारिशी देव जी के दर्शन हुए, तो वो बोले, मैं तुमें पैचान गिया मही देव।
20:51प्रणाम महारिशी, और महारिशी देव रस के पूछने पर मैंने उन्हें सारी बात बता दी, तद पशाथ मैंने कहा, अब आप ही पताईए महारिशी, मृत्यो लोक में 20 वर्ष कैसे गुजारूँगा मैं।
21:07अगर तुम चाहो तो तुम्हें पता भी नहीं चलेगा, और 20 वर्ष तुम्हारे गुजर भी जाएंगे, बोलो।
21:15सच में, पर वो कैसे होगा महारिशी?
21:20और महारिशी की आग्या नुसार, मैंने आपके घर में जन्म लिया।
21:25तो इसका मतलब यह है कि तुम मनुष्य नहीं, बलकि एक अभिसप्त देवता हो।
21:39हाँ गुरुदेव, मैं एक अभिसप्त देवता हूँ, और 2 वर्ष बाद मेरा श्राप पूरा हो जाएगा।
21:46अब आप ही बताये, मैं कैसे आपकी पुत्री से विवाह कर सकता हूँ।
21:51बताये, हाँ तुम ठीक कह रहे हो पुत्रू, ऐसी हालत में तुम मेरी पुत्री से विवाह भला कैसे कर सकते हो।
22:16क्या बात है पितासरी, आप उदास नजर आ रहे हो।
22:21राजकुमार विजै सिंग से तुम्हारी शादी नहीं हो सकती पुत्री।
22:26क्यों, क्या उन्होंने इंकार कर दिया।
22:30नहीं, ऐसी बात नहीं है, पर राजकुमार मरुष्य नहीं बलकी देवता है।
22:37बेसक, दो वर्ष के लिए ही सही, पर मैं राजकुमार विजै सिंग की पतनी बनने का कोरफ हासिल करूँगी।
22:46ये क्या कह रही हो पुत्री, ये जानते हुए भी कि विजै सिंग दो वर्ष पश्चाथ चला जाएगा, तुम उसकी पतनी बनने की बात कह रही हो।
22:56मैं ठीक कह रही हूँ पितास्री, आप ये संदेश उन्हें भिज़ुआ दीजिए।
23:02ठीक है पुत्री, अगर तुम यही चाहती हो, तो यही सही, मैं सुबह ही समराट केशब राय से बात करूँगा।
23:11और राजकुमार बिजै सिंग को आखिर सुनीता के जीत के आगे जुखना ही पड़ा, अगले पूर्णी मा को ही दोनों की साधी हो गई।
23:22बिवा के आगले दिन महाराणी बोली, बहु, यह तुम ने क्या किया, सब कुछ जानते हुए भी, तुम ने जानबूच कर मेरे बेटे से साधी कर ली।
23:34आप चिंता मत कीजिये राणी मा, एक सावीतरी थी, जिसने यमराज से अपने पती को मुक्त करवाय था, आब आप देखना, कि मेरे पती स्वर्ग लोग के सारे सोख भूल कर यही रहने की ठान लेंगे।
23:49फगवान करे, तुमारी वानी सत्य हो बहु।
24:04नात, देपराज इंद्र के दरबार में, आपने मेन का तुतो उलवसी का निर्त्या देखा था, अगर आज्या हो, तो मैं भी अपना निर्त्या की एक छलक दिखाऊँ।
24:18जरूर दिखाओ सुनीता।
24:19अरे वाह, तुम तो, तुम तो उलवसी का और मेन का से भी सुन्दर नुर्त्य करती हो सुनीता, क्या बात है, अती उत्तम।
24:42काफी देर तक, नुर्त्या करने के पस्चार, जब सुनीता ठक गई, तो राजकुमार बोला, बस प्रिये, बस बस बस, आराम कर लो, बहुत ठक गई होगी।
24:53नात, आप मेरा हाथ पकड़िये। क्यों, क्या बात है? आप बताईए, मेन का या उलवसी मुझसे ज्यादा सुन्दर है क्या? सच बताऊं, तो उन दोनों का रूप, तुम्हारे रूप के आगे कुछ भी नहीं है।
25:23और उलवसी का हात पकड़ने की, आप को सचा मिली थी, जबकी, मैंने तो स्वेम ापना हाथ आप
25:44कहे तो तुम ठीक रही हो सुनीता,
25:47लेकिन स्वर्गलोग के अपने कुछ नियम होते हैं,
25:50जिन्ने तोड़ने की सजा मिली थी।
25:53विजै सिंग की पात का बुरा नहीं माना सुनीता दे
25:56और अपना प्रयास चारी रखा।
26:02आखिर वो दिम भी आ गया,
26:05जिस दिन विजै सिंग को वापस स्वर्गलोग जाना था।
26:14आखिर वो दिम आ गया,
26:17जब मैं शाप मुक्त हो जाओंगा।
26:20इधर, इंद्रा लोक में इंद्रा बोले,
26:23आज महिदेव को लेने हम खुद जाएंगे,
26:26बहुत लंबी सजा काटी है उन्होंने।
26:30और देवराज इंद्रा,
26:32स्वेम प्रितिवी लोक की तरफ चल पड़े,
26:38उधर नीचे, महल के बहार विजै सिंग के साथ साथ,
26:41उनकी पत्नी सुनीता, समराट केसब राय,
26:44तथा महाराणी स्नेलता खड़ी थी।
26:49मुझे पूरा विश्वास है,
26:51कि देवराज इंद्रा, स्वेम मुझे लेने के लिए आएंगे।
26:54मत चा बेटा, हमें छोड़कर मत चा।
26:57हाँ, आप जरूर जाये,
27:00लेकिन एक बास सोच लीजिये,
27:03कि अगर फिर वहाँ आपने कोई दुस्ता की,
27:06तो पुनर आपको स्राप मिल जाएगा।
27:10वहाँ आप किसी का हाथ नहीं पकर सकते,
27:13जबकि यहाँ आपकी एक पत्नी है,
27:16वहाँ आपके उपर एक राजा है,
27:19और उसके बनाए कानून के अनुसर आपको चलना होगा।
27:22जबकि यहाँ आप स्वेम एक राजा है,
27:25और अपना कानून स्वेम बनाते हैं।
27:28आप खुछ सोचिए कि स्वर्ग बड़ा हुआ या ये मृत्यू लोग।
27:34स्वामी, इस स्वर्ग को छोड़कर मत चाहिए।
27:37जड़ा सोचिये, राणी माँ पर क्या गुजरेगी?
27:41पिताजी महराज का क्या हाल होगा?
27:43मत चाहिए स्वामी, मत चाहिए।
27:46ओ, देवराज मुझे लेने आप पहुंचे हैं।
27:55मही देव, आज तुम श्राप मुक्त होए, इसलिए मैं तुम्हे स्वयम लेने आया हूँ।
28:09शमा करें देवराज, मैं वापस स्वर्ग लोग में नहीं जाना चाहता।
28:15जो श्राप आपने मुझे दिया था, वही श्राप मेरे लिए एक वरदान बन गया।
28:22यह क्या कह रहे हो मही देव?
28:25मैं ठीक कह रहा हूँ देवराज, उस स्वर्ग लोग में सिर्फ उर्वशी का हाथ पकड़ने पर आपने मुझे श्राप दे दिया था,
28:34जब कि यहां मिरी पतनी हैं, आप इंद्र लोग के राजा हैं, जब कि मैं स्वयम यहां का राजा हूँ, इस हिसाच से तो यह मृत्यो लोग उस स्वर्ग से कई गुना अच्छा है।
28:50महिदेव, तुम स्वर्ग लोग का अपमान कर रहे हो, और इसकी सजा तुम्हें जरूर मिलेगी। जाओ, मैं तुम्हें श्राप देता हूँ, कि तुम जीवन भर इसी मृत्यो लोग में ही रहो।
29:03धन्यवाद देवराज, मैं स्वेम भी यही चाहता था, कि मैं जीवन भर एक अभिशप्त देवता बन कर ही रहूं।
29:13इंद्रदेप के वापस जाने के पस्चात, महाराज महाराणी और उसकी पत्नी सुनीता बहुत खुस हुए।
29:20अब तो खुश हो तुम, अब मैं कभी भी स्वर्ग लोग नहीं चाहूंगा।
29:27अप महान है स्वमी, अप महान है।
29:31इस तरह से मिजै सिंग के सब बर पर राज्य करते हुए सुक से जीवन व्यतीत करने लगा।

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