भारद्वाज आश्रम से निकलने के बाद प्रभु आगे बढ़े। जब नाविक निषादराज को श्रीराम के वापस आने का पता चला वो फटाफट इलाहाबाद में नाव से गंगा के दूसरे छोर पहुंच गया। निषाद से मिलने के लिए दूसरे छोर पर विमान वापस रोका गया। श्रीराम ने उसे गले लगाया और साथ अयोध्या चलने को कहा। निषाद को साथ लेकर श्रीराम का विमान नंदीग्राम पहुंचा। यहां हनुमान द्वारा पहले से भरत को दी सूचना के चलते काफी लोग पुष्पक विमान का इंतजार कर रहे थे।
विशेषज्ञों के अनुसार वहां भरत और बाकी लोग पहले से ही स्वागत के लिए थे। भरत दौड़कर भाई के गले लगे और दोनों के आंखों में आंसू आ गए। मिलाप के बाद भरत रामजी की खड़ाऊं हाथ में ले रथ पर बैठकर अयोध्या नगरी के अंदर चल दिए। यहां चारों तरफ दीपक जल रहे थे। जगह-जगह उनका अभिषेक हुआ। आरती हुई। पूरा रास्ता फूलों से पटा था। लोग खुशी के मारे नाच-गा रहे थे। दिवाली मना रहे थे। ये दुनिया की पहली दिवाली थी। तब से आज तक हर साल ये त्योहार धूमधाम से मन रहा है।
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