हम सभी जानते हैं कि लक्ष्मण ने अपने सुख कि चिंता किये बग़ैर किस प्रकार भगवान राम और देवी सीता के साथ वनवास पर चले गए. जबकि वनवास से लौटने के बाद उनके त्याग को हिन्दू इतिहास में कम श्रेय दिया गया. महाकाव्य रामायण में इस चरित्र के सम्बन्ध में कई उदाहरण मिलते हैं जबकि दूसरे पौराणिक कथाओं यह कम सराहे गए हैं.
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१ एक कथा के अनुसार, भगवान राम एक बार यम देव के साथ मुलाकात कर रहे थे जो गोपनीय होनी चाहिए थी.
२ यम देव ने भगवान राम से एक वचन माँगा कि जो भी कमरे में प्रवेश करे उसे मृत्यु दंड दिया जाए
३ उन्होंने लक्ष्मण को राम जी के कमरे कि निगरानी करने के लिए कहा ताकि कोई बात चीत में बाधा ना डाले
४ उसी समय, ऋषि दुर्वासा अयोध्या पधारे और भगवान राम के साथ मुलाकात की मांग की.
५ जब लक्ष्मण ने नम्रता पूर्वक ऋषि दुर्वासा को इंतज़ार करने के लिए कहा, वह गुस्सा हो गए और धमकी दी कि वो सारे अयोध्या को श्राप दे देंगे
६ अयोध्या को बचाने के लिए ऋषि दुर्वासा के शब्दों का मान रखने के लिए, लक्ष्मण ने वीरता से अपने जीवन का त्याग करने का फैसला किया
७. उन्होंने दरवाज़ा खोला और अपने भाई को दुर्वासा के आने की जानकारी दी और उनकी राम से मिलने की इच्छा बतायी.
८. कुछ ग्रंथो का दावा है कि यम ने भगवान राम पर जोर देकर उन्हें वनवास पर भेजने के लिए कहा जो दोनों भाइयों के लिए पीड़ादायक था
९ अपने भाई के शब्दों का मान रखते हुए , लक्ष्मण ने अयोध्या छोड़ी और सरयू नदी के वीरान किनारे पर चले गये.
१०. वही पर उन्होंने अपने जीवन को ध्यान में मग्न कर दिया और समाधी प्राप्त कर ली.
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