Hindi shayri
myhindishayri123.blogspot.in
कोई
सिर्फ दीवारों का ना हो घर कोई,
चलो ढूंढते है नया शहर कोई।
फिसलती जाती है रेत पैरों तले,
इम्तहाँ ले रहा है समंदर कोई।
काँटों के साथ भी फूल मुस्कुराते है,
मुझको भी सिखा दे ये हुनर कोई।
लोग अच्छे है फिर भी फासला रखना,
मीठा भी हो सकता है जहर कोई।
परिंदे खुद ही छू लेते हैं आसमाँ,
नहीं देता हैं उन्हें पर कोई।
हो गया हैं आसमाँ कितना खाली,
लगता हैं गिर गया हैं शज़र कोई।
हर्फ़ ज़िन्दगी के लिखना तो इस तरह,
पलटे बिना ही पन्ने पढ़ ले हर कोई।
कब तक बुलाते रहेंगे ये रस्ते मुझे,
ख़त्म क्यों नहीं होता सफर कोई।
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कोई
सिर्फ दीवारों का ना हो घर कोई,
चलो ढूंढते है नया शहर कोई।
फिसलती जाती है रेत पैरों तले,
इम्तहाँ ले रहा है समंदर कोई।
काँटों के साथ भी फूल मुस्कुराते है,
मुझको भी सिखा दे ये हुनर कोई।
लोग अच्छे है फिर भी फासला रखना,
मीठा भी हो सकता है जहर कोई।
परिंदे खुद ही छू लेते हैं आसमाँ,
नहीं देता हैं उन्हें पर कोई।
हो गया हैं आसमाँ कितना खाली,
लगता हैं गिर गया हैं शज़र कोई।
हर्फ़ ज़िन्दगी के लिखना तो इस तरह,
पलटे बिना ही पन्ने पढ़ ले हर कोई।
कब तक बुलाते रहेंगे ये रस्ते मुझे,
ख़त्म क्यों नहीं होता सफर कोई।
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