दिल लगाया था दोस्तों महीने ए बरसात में नफरत याद आते ही आंखे भीग जाती है रात में सिवाय बदनामी के क्या है दोस्तों महोबत में नहीं है महबूबा दोस्तों हमारी किस्मत में
आशिक पर ये जालिम जमाना सदा हंसा है वाह रे जालिम जमाने तू किसका हुआ तूने हर बार हर प्रेमी का दिल तोडा है खुदा के साथ इतिहास भी गवा है
दिल लगा के पछताए बहुत है महोबत ने दोस्तों हमें रुलाया बहुत है जालिम जमाने वालों क्यू सताते हो हमें हमें तो पहले ही उस बेवफा ने रुलाया बहुत है
महबूबा के मुस्कराने से खिल जाते है दिल आशिकों के दीवानों की आहों से टूट जाते थे जमाने वालों दरवाजे महलों के
दोस्तों वे दोस्त नही मिलते जिन्हें हम याद करते है हे भगवान क्यूँ रूठ जाते है वो जिन्हें हम प्यार करते है
प्यार के जलते जख्मों से मेरे दिल में उजाला है हर पल दिल ये कहता है वो बेवफा आने वाला है
ए हसीना तुम्हारे हुस्न का जवाब नही पा लें तुम्हे ऐसा हमारा नसीब नही आप तो वेसे ही नफरत करती हो आशिकों से कसम से दिल के आशिक होते खराब नही
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