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  • 9 years ago
ए मेरे कबूतरों E Mere Kabootron

Copyright@2016 Raja Sharma

ए मेरे कबूतरों
तुम कितने सुन्दर
समृद्ध, स्वतंत्र
और संतुष्ट हो

मैं अपने जलते पेट में
इक प्याली चाय डालकर
मजदूरी करने जाता हूँ
पत्थर तोड़ तोड़ कर
कितना पसीना बहाता हूँ

दिन को दो सुखी रोटियां
कभी प्याज़ कभी अचार से
खाके ही शक्ति पाता हूँ

हर शाम नोट मिलते हैं
कुछ फूल मनमे खिलते हैं
मैं राशन लेके आता हूँ
दिया कुटिया में फिर जलाता हूँ

देके दाने तुमें तुम्हारे हिस्से के
अपने हिस्से के खाता हूँ
थके शरीर को अपने
फेंक बिस्तर पे धीरे से
काली नींद में सो जाता हूँ

फिर नयी सुबह आती है
गुटरगूं मुझको जगाती है
मैं तुमको दाने देता हूँ
अपनी भी चाय लेता हूँ

जहाँ से शुरू हुवा था पहले
वहीँ पे खुद को पाता हूँ
चलते चलते दूर तक
मैं काम पे आ जाता हूँ

आज नोट मजदूरी का मिला
मैं जाके बनिए से मिला
ये नोट बंद हो गया
सन्देश तुमको ना मिला

मैं पत्थर को हो गया वहां
जाऊं तो अब जाऊं कहाँ
लेकर उस कागज़ के नोट को
घर खली हाथ आ लिया
इक था कटोरा चावल को
वो तुमको ही खिला दिया

कल फिर होगी एक सुबह
जाके शहर में देखेंगे
गाँव में कुछ समस्या है
शहर से राशन खरीदेंगे

क्या बात थी शहर की भी
मैं ही ना था अकेला गरीब
हज़ारों थे ले नोट हाथ में
किसी बड़े से घर के करीब

आज काम पर भी ना गया
सुबह से भूख रह गया

सुबह तो रोज होती है
जिंदगी भी उठती सोती है
मैं खाने दाने की चिंता मैं
पत्थर फुटाले जाता हूँ

जब भी कभी इस तरह
इन बड़े लोगों की दुनिया में
यूं सब कुछ अचानक रुक जाता है
मुझ गरीब की कुटिया में
तूफ़ान सा उठ जाता है

पर तुम ये चिंता मत करो
अपनी उड़ाने तुम भरो
सुदूर झरनों के पानी में
पर्वत के उस घने जंगल में
जाकर के विचरण तुम करो

मैं मुट्ठी भर दाने तो लाऊंगा
तुम सबको फिर से खिलाऊंगा
बस इन मुट्ठी भर दानो के लिए
जीवन को जीता जाऊँगा

ए मेरे कबूतरों
तुम कितने सुन्दर
समृद्ध, स्वतंत्र
और संतुष्ट हो

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