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  • 12 years ago
दंगे जिनके जख्म हमेशा ताजे रहते है. उन्हे बार-बार कुरेदा जा रहा है और ये कर रहे है हमारे गणमान्य नेता!

चाहे फिर वो 1984 का सिख विरोधी दंगा हो या 2002 का गुजरात दंगा या फिर 2013 का मुज़फ्फरनगर दंगा!

इन दंगो पर राजनीतिक दल रोटियाँ सेकने में लगे है. नही तो क्या ज़रूरत हा की दंगों के दर्द को बार-बार ताज़ा करके लोगों के दर्द को बढ़ाया जाए.

इसी मुद्दे पर देखिए हमारा खास कार्यक्रम "फ्रंट पेज"

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