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  • 6/17/2025
महाभारत भाग ३०.

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00:00अर्थबड़ी?
00:06कि अर्थब टहें रुब हो है
00:08अर्थबड़ी?
00:19अरय बैकING
00:21अर्थबड़के बाद रवचे
00:24अर्थबड़के
00:25अर्थबड़के
00:26आपके सेवत का कक्ष मुख्य द्वार से मिलाऊ भाई उराज्चिमा ताकि आपकी सेवा और इस भावन की बेखभाल कर सकते हैं
00:38परन्तु पूरोचंजी आप एक आधरणी और प्रतिष्टित यक्ती हैं
00:43सामने से ध्राताश्री के दर्शनार्थियों की धीड लगेगी
00:46आपको तो अपना कक्ष बिछवाड़ी की ओर रखना चाहिए था
00:50ताकि हमारे कारण आपको कोई कष्ट न हो
00:52कष्ट कैसा महादरी नंदन आप लोगों की सेवा करना तो मेरा सवभाग्य होगा
00:57अब मैं आग्या चाहता हूँ
01:00जानो प्रथम निकास को तब ग्रह करो प्रवेश
01:14सोच समझ लो विदुर का युक्ति युक्त आदेश
01:26युक्ति युक्त आदेश
01:32आपने ठीक कहा ब्रह कष्ट इस भवन के पीछी कोई द्वार है ही ने
01:40मुक्षे द्वार से सट के पुरोचल के कख्ष होनी का कोई और अर्थ तो हो यह नहीं सकता
01:48जबी काकश्री हमारे ध्यान चूहे के बिल्की और देगाए जो वन की आवसे स्रुक्सित रहता है
01:56कि अधार हमें भी बिल्खुद न चाहिए कि क्योंकि इस द्वान में तो अवश्री आगे जाए कि लड़ना है तो लड़ ही ने ऐसी दुविदा में जीना तो कोई जीना नहीं हुआ
02:12ना यदि यह उचितना होता तो काका श्री हमारा ध्यान चूहे के बिल्की और ना ले गए होते हैं कि जब तक मामा शकुनी को यह विश्वास ना होगा
02:26कि हम मारे गए तब तक इस बात का पता नहीं चलेगा कि वास्तव में वे चाहते क्या हैं और हां पुरोचन को तो इस बात की भनक में नहीं पढ़ने चाहिए कि हमें उसकी दुराभी संधी का पता है
02:41कि उन्हें ये सोच सोच कर आनन लेने दो कि हम उनके बनाये हुए इस लाक्षा ग्रह में फस गए है इसलिए रात धरम चुकने रहेंगे परन्तु दिन के समय घूमने फिरने और सैर सपाटे के लिए यूं निकलेंगे जैसे यह कुछ पता ही नहीं
03:03मेरा तो मन करता है कि उस बुद्धे पुरोचन की खोपड़ी में मुक्का मौर कर उसका सर गागर की भाती तोड़ डालू नहीं
03:13आक्रमन केवल तभी करना चाहिए जब उसके अतिरित कोई और मार्ग नहों
03:19आक्रमन को बचा जाना भी युद्ध की एक कला है शत्रु को ये समझने तो कि वो अपने बनाये हुए शडेंत्र में सफल हो गया है
03:30परन्तु हमें उसके लिए एक अनुभवी सुरंग खोदने वाले की आवश्यक्ता होगी
03:37परन्तु बुद्ध हम बार्नवत में खरोशेवाला अनुभविक खनिक कहां से लाएंगे माताश्री यदि काका श्री को यभभय है कि हम भाईयों को आप समेत इस लाक्षग्रय में चला कर भस्न पर देनी की यूचना है तो उनका भीजावा खनिक भी आताई होगा
04:07प्रणाम युव राज इस चुवे की क्या विशिष्टा है नागरिक ये बिल खोदने में बेजोड है यूव राज पिवन की आग में कौन सुरक्षित रह सकता है वन की आग से तो केवल चूहा ही सुरक्षित रहता है काकश्री काकश्री कैसे है
04:25खनिक ने युदिश्ठिर को केवल एक चुहा नहीं भेंट किया था उसने उस चुहे दान में छिपाकर विदुनीती भेंट की थी
04:39कि विजय श्री का मार्ग कभी कभार धर्ती के भीतर से होकर भी गुजरता है
04:48छल कपट तो निश्चय ही वीरों को शोभा नहीं देता
04:54परन्तु ये आवश्चक है कि रहस की बातें केवल भरोसे वालों को बताई जाएं
05:04तो खनिक द्वारा विदुर ने ये संदेशा भेजा कि ये व्यक्ति जो तुम्हारे सामने खड़ा है
05:16इसी चुहे की भाती अपने दांतों से धर्ती को कुतर कर तुम्हारे लिए इस लाक्षा ग्रह से निकलने का रास्ता बनाएगा
05:28तुम लोग चुपचाप निकल जाना और शर्यंद्रकारियों को यही सोचने देना कि वे सफल हो गए
05:40इस सफलता का नशा उन्हें सुला देगा और तुम उनकी पहुँच से दूर निकल सकोगे
05:50तुम्हारी सफलता का यही मार्ग है इसलिए खनिक को आग्या दो
06:00कि वो अपना कार आरंभ करे और तुम तब तक शत्रूं के घेरे में चैन से रहो
06:11काले पाक की चौदस तक जाग लो सैनिक फिर राजकुमार दुर्योधन तुमारे मूह मोतियों से भर देंगे
06:29यह बड़ा सावधानी का दिन है कि सीख्षन कुछ हो सकता है गुप्त्चर गंधार नरेश शकनी को यह समाचार दो
06:39कि यहां सब सुरक्षित है जो अग्या सब जागते रहो
06:43युवराज की जय हो क्या है दौरपाल अंग रक्षकों के सेना पती आपके दश्णों के अभिलाशी है युवराज
06:53अब वार्नावत में भला हमारे प्राणों का शत्रु कौन बेठा है कि अनुज दुर्योधन ने अंग रक्षकों की पूरी सन भीजदी है
07:02ठीक है बुलाओ जो आग्या युवराज प्रणाम युवराज तुम्हें क्या कश्ठ है सेना पती आपकी सुरक्षा मेरा दायत्व है युवराज
07:30अब यहां सिनापुर राज की सीमा के भीतर हमें अंग रक्षकों की क्या वशक्ता है सेना पती मैं तो आदेश का पालन कर रहा हूं युवराज जानता हूं जानता हूं तुम आदेशों का पालन किये जाओ परन्तु हर दिन मेरे सामने आकर ये जत लाने की आवशक्ता नह
08:00अग्या हूं महाराज क्या हमारे अनुज आखेट से लोटाए हैं अभी तक तो वो लोटे नहीं महाराज
08:30कि अग्या है
08:37कि अग्या है
08:42कि अग्या है
08:45कि अग्या
08:50कि अग्या
08:56मैं कोई सहाथा करूं खनिख
08:58क्या आप गदा युद में मुझे अपनी सहाथा करने देंगे कुमार
09:02मैं समझ गया
09:04मुझे कुदाल और थावरा चलाना नहीं आता
09:07गुरु द्रोनाचारिय जी और बिल्राम जी के ये शिश्य तुम्हारे काम में अनारी है
09:12कुदाल की एक अशुद चोट मेरे सारे किये कराय पर पानी फेर सकती है कुमार
09:17और विदुर जी ने कहा था कि इस सुरंग की सफलता पर हस्तिनापूर का भविश्य निर्वर
09:23यदि मैं सफल हुआ तो हस्तिनापूर है और यदि मैं असफल रहा तो हस्तिनापूर नहीं है
09:31और आपने तो ये देखी लिया है कि इस वार्तालाप में कितना समय बर्बाद हो गया और हमारे पास यदी कमी है तो वो समय ही की है
09:40मैं किशमा चाहता मतनी प्रणाम कुमार
09:46धर्म कर्म करता व्युजाद समय रहे कर जाएं
10:07समय भी इतने पर नहीं वही मनुझ पच्छता

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