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00:00Naa Sada Sinno Sada Sittada Niemna Siddra Jono Vyoma Paroyat
00:07Kimavari Vaha Kuhakasya Sharmanam Baha Kimasit Gahanam Gaviram
00:14Trishki Se Pehle Sat Nahi Tha
00:19Asat Bhi Nahi Antarish Bhi Nahi
00:25Aakash Bhi Nahi Tha
00:30Chipa Tha Kya Kahaan Kisne Dhaka Tha
00:37Us Pala To Aagam Atal Chal Bhi Kaha Tha
00:55Kishudho Han
00:56Kishudho Han
01:21a
01:27music
01:32and
01:46Isi ko nahi pata, nahi pata, nahi hai pata, nahi hai pata
01:55He indra soma mahi mawaan, shreshta karmwaan, tum dholo ne surya paa
02:14شروع کے ویدک آریا, جینے کے جوش میں ہی اتنے مگن تھے
02:18کہ انہوں نے آتما کی اور کم دھیان دیا
02:20سب سے اہم تصور تھا دھرم جو مذہب یا سمپردائے سے بڑھ کر زندگی نبھانے کا طرز تھا
02:29یعنی اپنے اور دوسروں کے پرتی ذمہ داریوں کو پورا کرنا
02:34سارا برہمان رتا کے نیموں پر قائم تھا اور دھرم اسی کا ایک حصہ تھا
02:40دھیرے دھیرے بھگوان کا وچار پنپا
02:44خیالوں نے عجیب اُران لی
02:46پرکرتی کے رہت سے سلجھانے کی کوشش کی گئی
02:50اور جگیاسہ کی بھاونہ اجاگر ہوئی
02:53ویدانت یعنی ویدکال کے ان تک آتے آتے اپنی شد کو شکل دی گئی
02:58آٹھویں صدی عیسیٰ پورو سے رچے گئے اپنی شدوں نے
03:03ہند آریہ چنتن کے وکاس کو کئی قدم آگے بڑھایا
03:07اس سمیہ تک آریہ کئی علاقوں میں بچ چکے تھے
03:11اور ان کی خوشحال تہزیب کی جڑیں پختہ ہو چکی تھی
03:15جب بڑے بڑے شہروں پر کیندریت راجیوں نے پرانے قبائلی سماج کی جگہ لینا شروع کیا
03:21تو مگد اور کوشل سامراجیوں نے اپنی مضبوط سیناؤں کی مدد سے
03:26برجی اور لچھوی جیسے گنسنگھوں کے وجود کو مٹانا شروع کر دیا
03:30اس بدلاؤ کا اثر ریتی رواجوں پر بھی ہوا
03:34نئی ناغرک سنسکرطی میں ہیتی ہر سماج کے پشوبالی پشودان اور اندان جیسے ویدک انوشتھانوں کے لیے کوئی جگہ نہیں رہی
03:43پروہتوں کے طور طریقوں اور ویدک دیوتاؤں پر بشواس کم ہوا
03:48ان کا مزاک تک بھی ہوڑایا جاتا
03:50لیکن اس کے باوجود
03:52اتیت سے پوری طرح کٹھنی کی کوشش نہیں کی گئی
03:56اتیت کو ترقی کی پہلی سیر ہی مانا گیا ہے
03:59اپنی شدوں میں آتما بودھ پر زور دیا گیا ہے
04:04جو خود کو اور برحم کو پانے کا سادھن ہے
04:07واشوش
04:11اچھا ہو اب اگر تم کچھ دان دھرم کر ڈالو
04:15اس سے روکہ پریہار ہوگا
04:17دان دھرم
04:20پر میں دوں کیا
04:24میرے پاس تو کچھ بھی نہیں
04:27جو دان کر سکو
04:29کر دو
04:30اس سے یدی
04:32روک سے مکت نہیں بھی ہو پاؤگے
04:34تو بھی سرگ پاؤگے
04:50روک سے مکت نہیں سکو
05:05Tell me your mouth.
05:10My son, my son, I get a good job.
05:16I don't know how much I can do.
05:21Okay.
05:25You're a good person.
05:30I've given all the cows.
05:32Come on, Ishmael.
05:46No, Chiketa.
05:48Take all the cows,
05:50which don't give blood.
05:53There are so many blood.
05:57Father, the cows don't give blood.
06:00The cows don't give blood,
06:02nor the cows don't give blood.
06:04Will they get blood?
06:07Don't forget.
06:08Where is the cow?
06:10Father, you're giving blood for the cows, right?
06:13So?
06:14So you give me the cows.
06:17Go away from here.
06:19Go away from here.
06:20Father, I want to go.
06:22Who will you give me?
06:24I say, go away from here.
06:26Father, tell me.
06:28Who will you give me the cows?
06:30You don't hear me.
06:32Go away.
06:33I don't want to see your head.
06:35Father, I want to go again.
06:37Who will you give me the cows?
06:39Who will you give me the cows?
06:41Who will you give?
06:43You don't want to know.
06:47So listen,
06:49I will give you the cows.
06:50I will give you the cows.
06:51Who will you give me the cows.
06:53Who will you give me the cows?
06:54I don't want to go I don't want to go
07:12A new year ago, new year ago, what could happen?
07:17Today the job of my life is full of my life.
07:22Those who were still alive are still today,
07:25those who were still alive are still not today.
07:29The human being has been living in the past few years.
07:34It is still coming back to the future.
07:42I am
08:12Maha Raja who bhrahmat sahti kya satkar nahi karta
08:17iska pverynhe loot jata hai
08:19iska bhavish mitjata hai
08:22us ki santhana us ki sampati sab kujh samab thoja tiie
08:26a
08:36Arne chi Keeta
08:39You are our own.
08:41We have no three days to do this.
08:47We are very sad.
08:51We have one day to do this.
08:57Three days to do this.
09:00You are my own.
09:02You must give me the power of the Pate, and you must be able to give me the power of the Pate.
09:11You must respect me.
09:12Yes, so.
09:14You are just a scientist.
09:17I am a scientist.
09:19Do you mind?
09:21नचिकेता, मैं स्वर्गी अगनी को जानता हूँ, ये अगनी अनन्त लोगों की सत्ता प्राप्त करने का साधन है, सत्ता का आधार है, सभी प्राणियों की रिदे गुफा में निवास करती हैं।
09:36नचिकेता, आज से ये अगनी तुम्हारे नाम से जानी जाएगी, इसे लोग नचिकेता अगनी कहकर पुकारेंगे, अब तीसरा वर मांगो।
09:51मनुश्य के मर जाने पर कुछ लोग कहते हैं कि वह है, तो कुछ कहते हैं वह नहीं है, मुझे बताईए सब क्या है।
10:02है और नहीं काई विबाद पुराने जमाने से ही चला रहा है, देवता भी नहीं जान पाए कि जीवन और मृत्तु का रहस्य क्या है।
10:13नचिकेता, तुम कोई दूसरा वर मांग लो, इस प्रश्न को हमारे लिए ही छोड़ दो।
10:22महराज, इस विशे के जानकार आप ही हैं, आप ही समझा सकते हैं, दूसरा कोई नहीं और इस वर के सामने दूसरा वर है भी तो नहीं।
10:31नचिकेता, तुम कोई और वर मांग लो, सौ सौ वर्शों की दिरघायू वाले पुत्र मांग लो, हाती घोड़े मांग लो, धरती मांग लो, चाहो तो अपने लिए दिरघायू मांग लो।
10:43नहीं माराज।
10:45तुम कुछ और मांग लो।
10:48मृत्यू लोक में इच्छाओं को पूरा करना असंभव हो।
10:54ऐसी कोई चीज मांग लो, हम दे देंगे।
10:57पर मृत्यू का रहस्य हमसे न पूछो।
11:01इच्छा पूरी होने का सुख कितनी देर ठिकेगा।
11:04जब जीवन ही इतना छोटा है, तो सुख कितना होगा।
11:07नहीं माराज, आप मुझे यही वर दीजिए।
11:10मृत्यू का रहस्य खोल कर समझाईए।
11:13नचिकेता, इसके दो ही रास्ते हैं।
11:18एक श्रे का आनंद का और दूसरा ख्षनिक सुख का।
11:26दोनों ही मनुष्य को आक्रिष्ट करते हैं।
11:29पर विचारवान मनुष्य, सभी दिष्टियों से सोच समझ कर,
11:35शणिस सुक को नहीं, श्रे को ही चुनता है।
11:39नचिकेता, तुमने सोचा है, समझा है।
11:44सुन्दर और प्रिय का गहराई से निरिक्षन किया है।
11:49और उन्हें त्याग दिया है।
11:53तुम धन और एश्वरे के मोजाल में नहीं फसे हो।
11:57जैसा कि बहुत से मनुष्य, उसमें डूपते हैं, और नश्ट हो जाते हैं।
12:03नचिकेता, मुझे बहुत संतोश है, कि तुम सक्ट में निष्ठा रखते हो।
12:12मैं काम ना करता हूँ, कि मुझे वैसा ही प्रश्न करता मिले, जैसा कि तुम हो।
12:19महराज, वो क्या है जो धर्म और अधर्म से अलग, कर्म और त्याक से परे, भूत और भवश्य के उस पार है।
12:27नचिकेता, जिस पद और लक्ष के महिमा वेद गाते हैं, जिसके लिए तपस्या की जाती है,
12:36जिसके लिए मनुश ब्रत अनुस्ठान करता है, गहन अध्यन करता है, वो एक ही शब्द में समाया हुआ है, वो शब्द है, ओम।
12:52यह शब्द ही ब्रम है, यही परम है, जो इसे जान लेता है, उसकी सारी च्छाएं पूरी हो जाती है।
13:05मुक्ति को प्राप्त करने का यह सबसे उंचा साधन है, सबसे बड़ी उपासना है, वो ग्यान सरूप आत्मा है, अजन्मा है, अमर है, सनातन है, नित्य है, पुरातन है।
13:23मृत्य के बाद शरीर की समाप्ती हो जाती है, पर वो सतत विद्धिमान रहता है।
13:31अगर मारने वाला सोचता है कि मैं मारता हूँ, और मरने वाला सोचता है कि मैं मर गया हूँ, तो दोनों ही ना समझ है।
13:43दोनों अज्याने मनुष्य के भीतर बैठा सनातन, न तु मारता है, न मरता है।
13:52नचकेता, अब मैं तुम्हें सनातन ब्रह्म का रहस्य बताता हूँ, आत्मा की उस अवस्था के बारे में बताता हूँ, जो मृत्य के बाद प्राप्त होती है।
14:06आत्मा माता के गर्ब में जाकर दुबारा नया शरीर पा सकती है, अपने पुर्वजन्म के ग्यान और कर्म के आधार पर पेड़ पौधों में भी जा सकती है, भले ही हम नीन में हो, पर ये आत्मा हमेशा जाकती रहती है, और हमारे लिए एक अद्भुत सपन की दुनिह र
14:36ते जो मैं ब्रह्म में ही अम्रित कहलाता है, समोची स्रिष्ट इसी ब्रह्म में स्थित है, इस से परे कुछ भी नहीं, जब विवेक शील मनिश्री को पता चलता है, कि इंद्रियां आत्मा से अलग हैं, इसका उदय और अस्त उसी पर निर्भर करता है, तो उसका शोग जा
15:06है मन, मन से उची है बुद्धि, बुद्धि से महान है आत्मा, और आत्मा से उचा है अव्यक्त, और अव्यक्त से भी बहुत बड़ा है पुरुश, वो पुरुश जो सर्वव्यापी है, उसका न कोई चिन्न है, ना आकार, ना कोई लक्षन,
15:31मरणशील मनुष, जब इसे जान लेता है, तो उसे मुक्ति पिन जाती है, इसी को अमरत्व कहते है,
15:43उपनिशद आधारित हैं तहकी के जजबे पर, जहन की जद जहद पर, हकीकत के सुराग की जुश्त जुपर,
16:04हवा एक जगे क्यूं नहीं रहती, बहती क्यूं है, इनसान के दिमाग को आराम क्यूं नहीं मिलता,
16:14पानी क्यूं और किस चीज की खोज में बहता है, उसका बहाव घड़ी भर के लिए भी क्यूं नहीं रुख सकता,
16:21मगर इस तलाश में एक बड़पन है, ये तलाश माहौल पर, जहन की फतेह की निशानी है, एक स्तुती में सूर्य देव को यूं मुखातिब किया गया है,
16:36तेजो मैं गौरवशाली सूर्य, मैं वही हूँ जिसने तुम्हें ये बनाया है, इसमें कितना आत्म विश्वास है,
16:50उपनिशद में सवाल है, स्रिष्टी क्या है, वो कहां से आई है, वो कहां जाके विलीन हो जाएगी,
16:56और जवाब ये, कि वो स्वयम्भू है, स्वाधीन जन्म लेती है, स्वाधीन उसकी स्थिती है, और स्वाधीन बिले हो जाती है,
17:10उपनिशद खुद पुरोहितवाद और रूरिवादी अनुष्ठान के खिलाफ थे,
17:15लेकिन उपनिशद के सिधान्तों का उस समय के अवाम पर कोई खास असर नहीं पड़ा,
17:21इस तरह जन्ता और बुद्धी जीवियों का दिमागी फासला और भी बढ़ गया,
17:26नतीज़ा था कई नई विचार धाराओं का जन्द,
17:30नास्तिक्ता और पदार्थवाद की एक जबरदस्ट लहर,
17:35उपनिशदों के बाद उभरने वाले पदार्थवाद का तमाम साहिते अब हमारे पास नहीं है,
17:41इसका जिक्र सिर्फ उन्हीं किताबों में मिलता है,
17:44जिनमें इसकी निंदा की गई है और इसे गलत ठहराया गया है।
18:14धर्ती, वायू, तेज, जल और आकाशी के वल ऐसे तत्तु हैं जिन से श्रष्टी बनी है।
18:20मनुश्य का पुर्शार्थ अर्थ और काम है।
18:23ये सब कुछ वाजस्पती ने लिखा और चारवाग को सौब दिया।
18:27और चारवाग ने स्तंत्र को अपने शिश्यों की सहायता से प्रचारित और प्रसारित किया।
18:33तो लोग क्यों संसार के सक्फुन को तयाग देती हैं।
18:45क्यूं वैं जानभूज कर अपने आप को कश्ट देती।
18:52क्योंकि वैं मूर्ख होते हैं।
18:58foreign
19:05foreign
19:10foreign
19:17foreign
19:22foreign
19:27ुश्रामिया प्रॉषमिया प्रॉंगाफिकाशन यही होता है वत्स।
19:30सारे वेद पाखन्द है एद बली और हवन में वस्तों को सोहा करने से स्वर्घ प्राप्त होता है
19:38कि तो उन पेडू की राक से फल क्यों नहीं निकलते जो जंगल की आग में जल जाते हैं
19:44ुदि बली का पशु सीधा स्वर्ग पहुँचता है तो लोग अपने माता-पिता की बली क्यों नहीं चढ़ाते।
19:52ुदि पिंद्रजान से मृत आत्माता पोश्चन होता है तो तेल डालने से बुजी हुई बाती जल क्यों नहीं उरती।
20:02इसी तरह का एक और संप्रदाय था आजीवी का जिसका बौधों और जैनियों से अक्सर मत भेद रहता था।
20:14ये लोग नियती वादी थे। इनके गुरु मकाली गोशाला के अनुसार सारा जीवन नियती के आधार पर ही चलता है।
20:22आदमी की अपनी इच्छा से कुछ नहीं होता, भाग्य का दर्जा सबसे उंचा है।
20:26किसी व्यक्ति या दूसरों के द्वारा किया गया कोई भी कर्म ऐसा नहीं है।
20:34जो की मनुष्य के पुनर जन्म को प्रभावित करता हो।
20:38कोई भी मानविय कर्म, शक्ति, वीर्ता, शौरिय, सहश्णूता या मानविय साहस ऐसा नहीं है।
20:49जो जीवन में मनुष्य की नियती को प्रभावित कर सके।
20:54अपरिपक्व कर्म से फलकी प्राप्ती का प्रिश्णी नहीं उठता।
20:59और ना अथक कर्म से ही।
21:02जो सदाचार, प्रणी, तपस्या और पवत्रता से ही परिपक्व हो गया हो।
21:10संसार एक नपने के समान अपने सुख, दुख और निरधारत लक्ष से ना पा जा सकता है।
21:19जिस तरह एक डोरी की गैंद को भैंकने पर वो अपनी पून लंबाई में खुल जाती है।
21:28उसी तरह मूर्ख और बुद्धिमान एक ही मार्ख को ग्रहन करते हुए अपने दुखों का अंत करते हैं।
21:37सवमी जी आपका हमारे लिए अंति मुद्देश क्या है।
21:40नहीं कुछ है होता, और कुछ भी न होना, तो ना जो खुशी से
22:09कबाईली समाज की परंपराओं से जुड़े हुए गोशाला पर उस समय के अंतिम महान कबाईली गनराज व्रजी संग के पतन का बहुत गहरा असर हुआ।
22:29वो सरवनाज की बात करने लगा। दरसल उसके लिए व्रज्जियों के बिखरने का मतलब था एक आदिम परंपरा का तूटना।
22:37गोशाला अपना मानसिक संतुलन खो बैठा और पागलपन के आलम में मर गया।
22:47हाला के बौध और जैन संप्रदाय एक हद तक वैदिक धर्म से ही उपचे थे लेकिन दोनों मत उससे अलग माने जाने लेगे।
23:01उन्होंने वेदों की सत्ता को नकारा और परंब्रह्म के अस्तित्व को मानने से इनकार कर दिया।
23:09दोनोंने अहिंसा पर जोड़ दिया और ब्रह्मचारी भिक्षुओं की परंपरा को अपनाया।
23:16उनके तर्ज फिकर में एक हद तक यथारतवाद और तरकनीती है।
23:23जैन धर्म का एक मूल सिधानत ये है कि सत्य सापेक्ष होता है।
23:30जैन मत में नैतिकता पर जोड़ दिया गया है जो इस दुनिया तक महदूद है।
23:37जिसका स्वर्ग नर्क से कोई तालुक नहीं है जिसमें विचार और जीवन दोनों में त्याग पर खास जोड़ दिया गया है।
23:45एक हद तक भारतिय संस्कृती पर जैन धर्म ने भी उतना ही गहरा असर छोड़ा जितना के बौत धर्म ने।
23:59भारत के तमाम धर्मों की तुलना में जैन धर्म ने हमेशा से अहिंसा और साद्गी पर अधिक जोड़ दिया है।
24:06धर्ती, जल, हवा, अगनी पेड और पौधे, घास फूस, पत्ते, कीडे मकोडे, प्राणी हैं सब, सब जीवित प्राणी है।
24:22वे जो गोबर में उगते हैं, जल में पलते हैं, अंडे से उभरते और गर्ब से निकलते हैं, प्राणी हैं, जीवित प्राणी है।
24:36जानो सजनो, जानो के सब को जीना है, सुख पाना है, जीवन के अमरित को पीना है, प्राणी को कश्ट न दो, दोगे तो स्वेम तुम भी कश्ट पाओगे, क्योंकि एक दिन ऐसा भी आना है, तुमको भी उनमें ही जन्म पाना है।
24:56जीने दो, प्राणी को जीने दो, प्राण लिये जीने दो, जीवन के अमरित को पीने दो।
25:26जीवन के निरवान की प्राप्ती हुई। उन्होंने करीब 30 साल तक अपने सिध्धानतों की शिक्षा दी और दिगंबरों के एक संयमी संग की स्थापना की, जिसमें उन्हें आम जनता का भरपूर समर्थन मिला।
25:38जैन धर्म से मिलने वाले सबक को एक जुमले में यूँ बयान किया जा सकता है।
25:43वास्तविक जीव पदार्थ में उलजी आत्मा है। पदार्थ से मुक्ती पाने पर ही जीव को मोक्ष मिल सकता है।
25:50foreign
26:00foreign
26:06foreign
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26:20How is this?
26:22How is this?
26:24How is this?
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26:38This is the first day of 2488.
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26:44This, the second day,
27:06they are friends.
27:10Ma-baap ne unhae aisho aram me pala posa unha par duch dard ki chaya bhi nahi pardne li
27:16Lekin aisa kub tuk rehta?
27:19Ketetey hain ke jab unhaunne sansar mein duch, gharibhi, aur mritiyu ko dekha
27:27Tho wuh bhout beechain huye
27:29Chena roko, wuh kya hai?
27:44Dekhta toh admi ki tere hai, porske balt safed hai, daant nahi hai, gaal thans kaya hai, peet jhuk gai hai, yee kaisa manushya hai?
27:54Eek budha manushya hai, yee eek lambe samehe se jiwit hai, isi liye thak gaya hai, yubraaj
28:01Par isme nirasha ki baat nahi hai, eek na eek din hum sabhi budhe hoongi
28:06Saab budhe ho jayenge?
28:08Yashodhra, tum, aur mir sabhi yuva saathi?
28:11Aur mahi bhi eek din, uske saman dikhnye lagun ga?
28:15Haan, yubraaj, har kisi ki yahi niyati hai.
28:24Haan, haan, haan…
28:29Haan, haan…
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28:56But now, we can see that this man can reach every single person.
29:01સ્વામી, મૃત્યુ જીવન કાંથ
29:26જબ બરાપે ઔર દરબલતાકે કારણ
29:29શરિર ઔરધીક નહી ચલપ�તાતતો વો મર જાતા કઈ રોગોંં કારણ ભી શરિર નશ્ટ હો જાતા પરિસમે આશચરીકી
29:59યે કોણે મણુશ્ય યે દેવતાતા જો વાંં શાંતા જો વાં શાંતાં જોવાં શાંતા જેસાં શાંતાં જેસા�
30:29ઇસામીતી સ્વા યેસાં જેસાતી કાણ્ય ફیસેસેઘ ભાંતીત જાંતીયથવે
30:30foreign
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