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  • 2 days ago

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Transcript
00:00अस्ठाई है तो बस तलास
00:02चिरकाल से विस्थापित वे जानते हैं
00:06घर कभी अस्ठाई नहीं होते
00:08अस्ठाई है तो बस घर की तलास
00:11हर पल हर मोड हर सफर में
00:15फिर वह कागज हो या काँज
00:17मिट्टी हो या धूल का एक کंड
00:20जहां जरासी उमीध टिकी हो
00:23वहां रहा जा सकता है
00:25वे ही जानते हैं घर का असली अर्थ
00:28चार दिवारे नहीं बलकि वह जगा
00:31जहां दिल डर से मुक्त होकर एक बार अपना कह सके
00:37विस्थापन ने उन्हें सिखाया है कि खर बनते नहीं गड़े जाते हैं
00:43इस मृतियों से रिष्टों से और उननली सी रोसनी से जहां अंधेरों में भी बुझती नहीं
00:51इसलिए वे चलते जाते हैं तूटे राश्तों पर ठकी निगाहों के साथ
00:58क्यूंकि तलास हैं उनके लिए खर है और उमीद उनका दरवाजा
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