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00:00मैं आपके बार आई थी, मैं बोटर चिल में निपले शी, मैं मुझे को लेकर तर अपना रहता हूँ
00:06कि ते रूट यहाँ पर ठिक तक नहीं, तो फिर मैंने एक जगा में पीन-चार वर मैंने गुए
00:14तो फिर मैंने देखी कि गुटी से नहीं होगा, तो इस गुटी दूर में रखकर मैं दोर दोर कर चलिया, कि वो शॉर्ट इस रूट था
00:22सूफी कहानी है, हम लोगों ने भी जम्स फॉम दा वर्ल्ड में डिसकस करी थी
00:28सूफी कहानी है, मालो में क्या कहती है, विए नदी जा रही है, उसके रास्ते में रिखिस्तान आ गया, अब नदी को पहुचना कहा है?
00:41सागर तक अब नदी ने जित पकड़ ली कि मैं तो सागर तक पहुंचूंगी ध्रेगिस्तान से बुज़र करके और नदी बने बने
00:51तो नदी ऐसे फल होई जा रही है क्योंकि वो जो ध्रेगिस्तान है बहुत बड़ा है वो नदी को पूरा खा जिता है सोख लेता है
00:59तो तब एक आवाज आती आसमान से वो गहती पागल तुझे सागर तक पहुचना है न यहां उन्हें तो मिठ जा पूरति मिठ जाओंगी तो पहुचेगा कौन पूरते कही बार
01:12पहुचने का तरीक यह होता है कि मिठ जाए, गुलती मुझे नहीं समझ में आ रहा है, यह क्या बात है? मुझे ही पहुचने में ही मिठ जाओं!
01:19जाओ, भाब बन जाओ, भाब बादल बनेगी, और बादल तुझे रिगिस्तान के पार ले जाएगा, तु सागर पहुंच जाएगी, तो लचीलापन इस हद तक होना चाहिए, कि मिठने को भी तैयार हो जाओ,
01:39अगर मन्जिल से प्यार है, तो मन्जिल के लिए मिठेंग है क्यों नहीं, मन्जिल से इस कदर प्यार होना चाहिए, कि वहाँ पहुंचने के लिए रास्ता बदलना तो स्विकार है, रूप बदलना भी स्विकार है, देह बदलना भी स्विकार है, इस हर्थ में कि पहले उसकी
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