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00:00:00यह बहुत बड़ा योगदान मात्मा वुद्ध का, बोले कोई जीव नहीं है, यह एक होता है जो घुसता है जो निकलता वुद्धन का कुछनहीं निकलता, तब अनात्मा आपके भीतर कोई ऐसा नहीं है जिसे कहें कि यह रहा जीव, भारत ने बुद्ध से बदला लिया, उ
00:00:30कौन सी चड़िया को फिर मैं हूं कौन वो जो 12 निदान की दूसरी कड़ी है वहां पता चलता है मैं हूं कौन
00:00:38इतिहास आपको बौधों के पतन के बहुत कारण बताएगा पर जो मूल कारणों समझेगा वही कारण है जिस कारण से अद्वैत वेदान्त भारत में कभी जड़ नहीं जमा पाया
00:00:49मुद्ध भी वही बात बोल रहे हैं जो अद्वैत वेदान्त बोलता है क्या वो आदमी अपनी पूरी जिन्दगी महनत करता रहा दूसरों को बचाने के लिए
00:00:58ऐसे लोग जब कोई बात बिलकुल जाते जाते बोले तो उसे बहुत खास ध्यान देना चाहिए
00:01:06जैसे अपनी जिन्दगी का उन्होंने पूरा सार इन शब्दों में डाल दिया हूँ इसे महा परिनर्वान सुत्र बोलते है
00:01:13शुन्यता सब्तते दस्वाँ चंद
00:01:22दस्वे चंद को समझना है तो थोड़ा पीछे से जाना पड़ेगा
00:01:31क्योंकि यह चंद
00:01:35आधारित है पीछे की बातों पर
00:01:40उस सात्वे सुत्र में आजार नागारजुन कहते हैं कि
00:01:48एक के बिना अनेक नहीं अनेक के बिना एक नहीं
00:01:55अतर जो कुछ भी
00:01:56किसी दूसरे पर ही अनिवार रोप से आधारित है
00:02:03उसकी अपनी कोई सत्ता या संग्या हो नहीं सत्ती
00:02:11यह सात्वा सुत्र था
00:02:13उसी पर आगे आ करके जो नौवा सुत्र है
00:02:21उसमें कहते हैं कि शाष्वत अशाष्वत कुछ नहीं
00:02:26यह हमने अभी पिछले सत्र में बात करी थे
00:02:28सुख दुख कुछ नहीं, आत्मान आत्मा कुछ नहीं, शुची अशुची कुछ नहीं
00:02:33और कोई भी ऐसी चीज जिसका विपरीत संभव है, वो वास्तव में है ही नहीं
00:02:44क्योंकि वो तो प्रतीत हो रही है कि ऐसी है
00:02:50पर जहां उसका होना प्रतीत हो रहा है, वहां वास्तव में उसका होना है
00:02:57जो आपको प्रतीत नहीं हो रहा है
00:02:59उधारण के लिए शुचिता की कोई अधारणा हो नहीं सकती बिना अशुचिता के
00:03:07सुख आपको जब प्रतीत हो रहा होता है
00:03:11तो बस इसलिए क्योंकि उसकी पीछे दुख छुपा होता है
00:03:16पीछे भी आगे भी
00:03:18यह पीछे आगे की बात अभी और विस्तार से हम समझेंगे
00:03:22जब संस्कारों पर आच्चर्चा करेंगे आगे
00:03:25तो विपर्याय संभव नहीं है
00:03:32विपर्यास संभव नहीं है
00:03:34यह बात पिछले सूत्र में कह दी थी
00:03:38देर देर सब एकदम स्पष्ट हो जाएगा
00:03:41जैसे खुला आस्मान हो अभी सुनते रहिए
00:03:44विपर्यास क्या होता है अच्छे से सुझिए
00:03:49किसी भी चीज की जगह उसके विपरीत का होना विपर्याय कहलाता है
00:03:59तो बहुत बार इसी लिए विपर्याय को माया के पर्याय की तरह भी प्रित करते है
00:04:08जो चीज जहां लग रही है
00:04:12वहां उस चीज की जगह उसका विपरीत मौजूद है
00:04:16इसको विपरियाय बोलते है
00:04:18या जहां जिसकी प्रतीते हो रही है
00:04:24वहां उसके विपरीत की उपस्थित भी अनिवारे रूप से है
00:04:30इसको विपरियाय बोलते है
00:04:32व्यूतिक्रम
00:04:38उल्टा पुल्टा होना
00:04:41विप्रीतता
00:04:45ये विपरिया होता है
00:04:52ठीक है
00:04:53विपरिया सिर्फ
00:05:02कब हो सकता है न
00:05:04जब एक वस्तु हो और उससे दूसरी विपरियत वस्तु हो
00:05:12एक हो और उससे दूसरा विपरियत हो
00:05:19का हो और खा हो
00:05:22और आपने का को खा समझ लिया
00:05:25तब हम कहेंगे कि विपर्याय है
00:05:26तब हम कहेंगे विपर्याय होता है
00:05:31पर अगर का और खा एक ही हो
00:05:34बस देखने वाले को भ्रहम हो रहाएगी
00:05:36अलग-अलग है तो क्या विपर्याय भी होता है
00:05:38कोई विपरिया भी है क्या
00:05:42पिछले सुत्र का समापन हुआ था ये कह करके कि विपरिया भी शुन्य है मिथ्या है
00:05:52क्योंकि विपरिया के होने के लिए भी विपरीतों का होना आवश्यक है
00:05:57और प्रतीत्य समुदपात का सिध्धान्त कहता है कि विपरीत वास्तों में एक दूसरे से भिन्न होते ही नहीं है
00:06:04उनका समुदपादन होता है
00:06:06उनका समुदय होता है
00:06:11वो एक साथ ही खड़े होते हैं
00:06:16तो उन्हें विपरीत क्यों बोल रहे हो
00:06:18ये थोड़ी कहोगे कि छाया व्यक्ति की विपरीत होती है
00:06:22ये थोड़ी कहोगे कि सिक्य का एक चेहरा उसके दूसरे चेहरे के विपरीत होता है
00:06:31वो तो पूरक है एक दूसरे के
00:06:34और एक हो तो दूसरा हो गई होगा
00:06:39एक है तो दूसरा होगा
00:06:44एक अपनी हस्ती के लिए दूसरे पराश्रित है
00:06:47उन्हें विपरीत कैसे बोल दे
00:06:48सुख हो नहीं सकता जब तक दुख ना हो
00:06:51दुख हो नहीं सकता जब तक सुख ना हो
00:06:54दिन हो नहीं सकता जब तक रात ना हो
00:06:56रात नहीं हो सकती अगर दिन नहीं हुआ था तो
00:06:58इन्हें विपरीत कैसे बोल दे
00:07:00तुम बिना सर्दी के गर्मी लाके दिखाओ
00:07:05और बिना गर्मी के सर्दी लाके दिखादो
00:07:13कोशिश करोगी रात हो और दिन नहों
00:07:19हो नहीं सकता नो
00:07:36आपका होना आपके ना होने पर आशरित है
00:07:39क्या आप हो सकते हैं अगर कोई जगह ऐसी न हो जहां आप नहीं है
00:07:44आप सिर्फ इसलिए क्योंकि एक सीमा है जिसके बाद आप नहीं है
00:07:49आप सिर्फ इसलिए हैं क्योंकि एक सीमा है जिसके बाद आप नहीं है ठीक वो सीमा आप ऐते देख सकते हो ना इसके बाद मैं नहीं हूँ मैं माने दे हैं इसके बाद मैं नहीं हूँ इसलिए मैं हूँ चुकि मैं नहीं हूँ इसलिए मैं हूँ यदे आप हैं हैं हैं हैं और
00:08:19विपरीत नहीं है तो फिर आप भी नहीं है
00:08:20तो विपरिया संभव नहीं है
00:08:27क्योंकि ये दोनों जो विपरीत लग रहे हैं विपरीत नहीं है
00:08:33एक दूसरे को परिभाशित कर रहा है जो दूसरे की परिभाशा हो
00:08:36उसे दूसरे का विपरीत कैसे बोल दें
00:08:38तो कुछ भी जो आपको अनुभव में आ सकता है जो आपको प्रतीत हो सकता है
00:08:48वो वास्तव में अपने आप में कोई संपूर्ण सत्ता नहीं रखता
00:08:56आपका कोई भी अनुभव हमेशा अपने से विपरीत अनुभव पर आशरित होता है
00:09:08और अम यह नहीं कह सकते कि विपरीध को हटा दो तो जो आपको अनुभव हो रहा है वो बचा रह जाएगा ये हो नहीं सकता आप दुख को हटा देंगे सुख नहीं बचने वाला दुख आता कर कोई सुख बचा के दिखा दे
00:09:24तो सुख और दुख दोनों फिर एक हैं
00:09:32विपरियाय है नहीं
00:09:34दोनों में भेद बस प्रतीत होता है
00:09:36भेद है नहीं
00:09:37ये दोनों तो नीचे से जुड़े हुए है
00:09:39एक उठता ही दूसरे के पीट पे चड़के है
00:09:42फिर दूसरा पहले के पीट पे चड़ जाता है
00:09:46सरकस में ऐसा खेल दिखाते थे वो
00:09:50दो होते थे वो ऐसे ऐसे गोल गोल घूम रहे होते थे
00:09:55दोनों ने एक दूसरे को ऐसे पंजों से पकड़ रखा होता था
00:09:59हाथ से और पाओं के पंजे भी उन्होंने आप उसमें सटा रखे होते थे
00:10:04और वो ऐसे गोला बना करके
00:10:07फर्ष पर चकरी खाना शुरू कर देते थे
00:10:10आपके लिए पता करना मुश्क्किल जाता था कि
00:10:13कौन किस पर चड़ा हुआ है
00:10:14अब तक आप बोलते थे यह उपर आला नीचे आले पर चड़ा हुआ है
00:10:17तब तक नीचे आला उपर आले पे चड़ जाता तो गोल-गोल घूम रहे है
00:10:20और उनका गोलाकार घूमना बंद हो जाएगा अगर दोनों में से एक भी हट गया
00:10:25हाँ एक समय पर आप बिल्कुल बोल सकते हो कि मुझे एक लग रहा है जो उपर चड़ा हुआ है
00:10:33और अगर किसी कारण से किसी दोश से आपकी आँख हैसी हो गए यह कि बस उपर आले को ही देख पाती है
00:10:43तो आपको ऐसा आभास हो जाएगा भ्रह्म हो जाएगा मुझ हो जाएगा
00:10:49कि बस उपर वाला है और उसकी सुतंतर सत्ता है
00:10:53लेकिन जिनको पूरा दिखाई देगा वो कहेंगे उपर वाला है क्योंकि वो नीचे वाले पर चढ़ा हुआ है
00:10:58और उपर वाले का नीचे वाले पर चढ़ना कोई घटना नहीं है
00:11:04बलकि बहाव है, प्रवाह है, प्रक्रिया है
00:11:08एक शण में ऐसा लग रहा है, जैसे तस्वीर खीच दी गई हो, कि उपर आला नीचे आले पर चढ़ा हुआ है
00:11:15जितनी देर में तुम कहोगे भी, कि उपर उपर नीचे नीचे, उतनी देर में नीचे उपर और उपर नीचे
00:11:20जितनी देर में कुछ बोलोगे उतनी देर में जो बोल रहे हो गलत हो जाएगा
00:11:27तो विपरिया भी संभव नहीं है
00:11:34माया की हवा निकाल दी
00:11:36विपरिया माने माया
00:11:38माया कहां से होगी
00:11:40माया का तो मतलब होता है
00:11:42जो है नहीं उसको
00:11:44हुआ जानना
00:11:46अरे आप जो भी जान रहे हो कि है
00:11:49और जो आपको लग रहे हैं नहीं है
00:11:51ये दोनों एक ही है
00:11:52वास्तव में भेद है नहीं
00:11:56बहुत आगे की बात
00:11:58बहुत बहुत आगे की बात
00:12:00बहुत ध्यान से सुन रहे होंगे
00:12:05और जो बहुत तटस्त होके सुन सकते हैं
00:12:08उनको ही ये बात समझ में आईगी भेद है नहीं जब भेद नहीं है तो फिर आज के सूत्र में प्रवेश करते हुए आचारे कहते हैं कि फिर तो अविद्या भी असंभव है
00:12:22क्योंकि मैं को होने के लिए भेद चाहिए मैं कभी अकेला तो नहीं होता ना मैं बाहर किसी एक पर आशरित होता है और मैं जिस पर आशरित है यही बोलकर आशरित है कि मैं यह हूँ माने यह नहीं हूँ मैं लड़का हूँ माने में लड़की नहीं हूँ भई मैं बुढ़ा ह
00:12:52में इसमाये हुए हैं, तो मैं क्या बोलेगा?
00:12:55मैंको अपने होने के
00:12:56लिए इतनी बोलना परयापत नहीं होता कि
00:12:58मैं कुछ हूँ, कुछ में हमेशा
00:13:00ये भाव छुपा हुआ है कि
00:13:02जो बाकी सब कुछ है
00:13:03वो मैं नहीं हूँ
00:13:05अगर मैं हूँ तो मैं खा
00:13:08पता चले
00:13:22तो एक ही चीज के दो नाम है, कभी एक नाम से वो चीज पता चलती है, कभी उसका एक चेहरा दिखता है, कभी दूसरे नाम से, कभी दूसरा चेहरा दिखता है, तो मैं कहां बचेगा, मैं कहां बचेगा, बहुत व्यवहारिक बात है, घबरा मत जाएगा कि ये तो दर्शन ज
00:13:52जगत के बारे में आपके भ्रम मिट जाएं तो आप भी मिट जाएंगे
00:14:04आप तभी तक बचे रह सकते हो जब तक आप भ्रमित हो माने मूर्ख हो
00:14:08जिस दिन मूर्खता मिट गई उस दिन मूर्ख भी मिट जाएगा
00:14:22विपर्यास जरूरी है अविद्या के लिए
00:14:33अविद्या का क्या अर्थ होता है
00:14:48सत्य को वहां खोजना जहां वो नहीं है
00:14:51हम कहते हैं प्रक्रति में आत्मा को खोजना ही अविद्या है
00:14:55हम कहते हैं प्रक्रति में आत्मा खोजना है वो चीज वहाँ है ही नहीं आप वहाँ खोजना ही अविद्या है
00:15:00प्रक्रती में खोजा तभी जाएगा न
00:15:21कहीं 50 चीजे हो तो उसमें एक छीज खोजी जा सकती है
00:15:25जहां सबकुछ समरस हो
00:15:27होमोगीनियस हो वहां क्या खोजोगे
00:15:28जहां इधर देखो तो भी वई है, उधर देखो तो भी वई है, उधर देखो तो भी वई है, उधर देखो तो भी वई है, वहाँ खोजोगे कैसे, कि इधर को भी देखोगे वही चीज है, तो कुछ नया तो मिली नहीं सकता, तो खोज वेर्थ हो गई, तो प्रकृति में आत
00:15:58मेरा ख्याल ये है कि ये वस्तु इस वस्तु से अलग है क्योंकि ये क्या है कॉमल है ये कठोर है ये सफेध है ये काली है ये वस्तु क्या है सफेध है ये वस्तु क्या है ये वस्तु कैसी है ये वस्तु कैसी है
00:16:13इसमें कोई विद्योत संचार
00:16:17इसमें विद्योत संचार
00:16:19तो ये दोनों मुझे कैसी लग रही है
00:16:23जब अलग लगेंगी तो यहां से निराश हो करके मैं यहां आ सकता हूँ
00:16:28मैं कहूंगा यहां नहीं मिला पर यहां मिल सकता है क्योंकि यह जगा
00:16:30इसे अविद्या बोलते हैं
00:16:33अगर मुझे दिख गया कि ये और ये एक हैं
00:16:35तो यहां नहीं मिला तो फिर
00:16:37यहां भी नहीं मिलेगा यहां भी नहीं मिलेगा
00:16:39मैं मुक्त हो गया
00:16:40एक जगह नहीं मिला तो फिर कहीं नहीं मिलेगा
00:16:43अगर मुझे दिख जाएगी सारी जगहें उस एक जगह से भिनन नहीं है
00:16:46विपरिया है इसको इसको अलग जानना और विपरिया इसे अविद्या उत्पन होती है
00:16:55क्योंकि अगर यह दोनों अलग हैं तो मैं आत्मा को यहां खो जूँँगा और यहां जब जटका लगेगा हार मिलेगी तो मैं यहां खो जूँँगा और यह क्या है फिर
00:17:02ये इस से भी अलग है तो फिर यहां खो जूँगा और ये क्या है फिर
00:17:07ये सबसे अलग है उसके बाद उस कुरसी पर खो जूँगा फिर इस कुरसी पर इस कुरसी पर
00:17:12कितनी कुरसी आएं दुनिया में
00:17:13अनंत
00:17:15तो मेरी खोज भी फिर क्या रहेगी
00:17:18और जीवन का क्या हो जाएगा
00:17:21अंत
00:17:22खोज अनंत
00:17:24जीवन का अंत
00:17:26ठंठन गोपाल
00:17:29खोज तब रुख जाती है
00:17:35जब इसमें ही
00:17:37पूरी प्रक्रति दिख जाती है
00:17:39जो यह है वही यह है
00:17:42यह है यह है अरे
00:17:43जो यहां हुआ वही तो अब यहां होगा
00:17:46तो इसलिए उपनिशद आपसे क्या बोलते है
00:17:48जोर से बोल दिया करो
00:17:51घबराओ मत
00:17:51फिर फुस पुस पुस आ रहे है
00:17:54कौन बोल रहे है
00:17:55फिर फुस पुस पुस आ रहे है
00:17:59जोर से बोलो
00:18:02याद करो
00:18:05याद करो
00:18:07जो हुआ था
00:18:08याद करो
00:18:09जो हुआ था याद करो
00:18:11जो हुआ था वही हो रहा है पागल
00:18:13तुम कुछ बदल नहीं पाए हो
00:18:15बेहोशी की धारा है जो बह रही है
00:18:19वही बह रही थी
00:18:20वही बह रही है बस पहले कैसी थी
00:18:23सफेद सफेद कोमल कोमल
00:18:25अब कैसी है काली काली
00:18:27कठोर कठोर याद करो लेकिन ठीक से
00:18:29याद करोगे तो सब याद आएगा इसमें और इसमें कोई अंतर नहीं है जैसी देख जा इसमें कोई अंतर नहीं खोज रूप गई अब कैसे खोज होगे कैसे खोज होगे
00:18:38एक आदमी था
00:18:42वो एक के बाद एक दौर खटखटाई जा रहा था
00:18:45खटखटाई जा रहा था
00:18:47निश्चित ही
00:18:49उसकी माननता क्या थी
00:18:51कि ये सब दौर
00:18:54अलग अलग घरों के है
00:18:55उस पागल को थोड़ी दूर ले जाकर
00:18:58थोड़ा उपर ले जाकर के दिखाया गया
00:19:00कि एक बड़ा महल है
00:19:03और उसी के ये सब दौर है
00:19:04सब दौर एक ही महल के है
00:19:07उसका खटटाना बंद हो गया
00:19:09क्यों बंद हो गया
00:19:09अगर एक का कोई जवाब नहीं आया
00:19:13तो दूसरे का भी कैसे आयेगा
00:19:14सारे दौर
00:19:17किसी एक ही प्रांगण में खुल रहे है
00:19:21अगर एक को खटटाने से कुछ नहीं मिला तो
00:19:26सब दौरों के पीछे जगह स्थान
00:19:32एक ही है
00:19:33यह ऐसा है कि यहाँ पर यह दो दर्वाजे है
00:19:37यहाँ से ज़ाका तो यह कोई नहीं दिखा
00:19:38तो बोले नहीं होता सकता है
00:19:41अब की बार वहाँ से ज़ाकेंगे
00:19:43अब वहाँ से ज़ाका तो दिख गया
00:19:44ऐसा हो सकता है
00:19:45यह होगा कि यहाँ से प्रवेश किया
00:19:48यहाँ कोई नहीं था
00:19:50अब वहाँ से घुसे
00:19:51तो यहाँ पर पांच लोग दिख गया
00:19:54ऐसा हो सकता है क्या
00:19:55अब हमें यह दिखाई नहीं देता
00:19:56कि दोनों दौर एक ही जगए प्रवेश्च कर राइंगे हमें लगता है यह सब कक्ष अलग अलग है
00:20:06यह अलग अलग अलग कुछ नहीं है ना कारजुन करे रहे विपर्या सम्भव नहीं है
00:20:11जो विपरीत हैं वो आपस में जुड़े हुए है
00:20:19आगे का दर्वाजा पीछे का दर्वाजा बता वो पीछे का क्यों कहला रहा है
00:20:22क्योंकि आगे क्यों कहला रहा है
00:20:24अगर ये नहोता तो उसे कोई बोलता पीछे का दर्वाजा एक ही दर्वाजा है
00:20:30कमरे में एक ही दर्वाजा और आप किसी को बोलो पीछे के दर्वाजे से जाना चाटा मारेगा
00:20:35बोलो दर्वाजा एक है और यह बोल रहे है पीछे के दर्वाजे से जाना
00:20:39आपको लेगा बड़ी गलती होगी
00:20:42अगली बार आप उसको बोलोगे ऐसा करना आगे के दर्वाजे से जाना
00:20:44इस बार दो चाटा मारेगा
00:20:46बोलोगे दर्वाजा एक है और बोलोगे आगे के दर्वाजे से जाना
00:20:49पर यहां पर आप बोलोगे पीछे से जाओ तो बात समझ में आती है क्योंकि, पीछे का है, लेकिन ये जो भेद है, ये ऊपर ही है, असली बात ही है कि ये दोनों एक दूसरे पर आश्रिस हैं, और दोनों में से कीसे ही प्रवेश करो, स्थान एक ही है, तो विपरिया भी जू
00:21:19क्योंकि माया तो भेद पर आशरित है वो भेद होते ही नहीं प्रक्रति में प्रक्रति में कुछ भी किसी दूसरी चीज से भिन नहीं है किस अर्थ में भिन नहीं है कि गुणा गुणे शुवर्तंत कुछ किसी दूसरी चीज से भिन नहीं है आप भिनता तलाश रहे हो आप क्
00:21:49अधिए कि यता कहां है सत्थि न यहां यहां है तो पूरी प्रक्रते में
00:21:54जो कुछ है वह एक बराबर अब क्या घरना है । सुख्त क्या हो गया एक बराबर को काला गोगोरा क्या हो
00:22:01गया
00:22:19कि आई बात कुछ
00:22:21क्या समझ में आया है
00:22:25हमारे लिए जो इसमें समझने आली बात है
00:22:28नजार जुन साब तो वहां से बोल रहे है
00:22:31पर जो इसमें से हमें सीखना है
00:22:32इस से पहले कि किसी चीज से जुड़ो
00:22:37ये पूछो अपने आप से
00:22:40कि वो चीज आपको जैसी लग रही है
00:22:42क्या वो वैसी है या आपको लग रही है
00:22:44हमारे सारे कदम भेद पर आधारित होते हैं
00:22:54भेद पर
00:22:55अपने आप से पूछा करो भेद है भी
00:22:57भेद है भी या बस मुझे लग रहा है
00:23:01और बहुत इसमें
00:23:05साधारण नुस्खें हैं सूत्रें
00:23:07जिन से पकड़ा जा सकता है
00:23:08एक चीज यैसी आपको लग रही है
00:23:10दो-चार से सलहा मशुरा कर लो
00:23:11तुम्हे भी वैसी लग रही है क्या
00:23:13मैं नहीं कह रहा है उनको जैसी लग रही है
00:23:15ठीक लग रही है पर ये तो दिख जाएगा
00:23:17कि आपको जैसी लग रही है उससे विपरीत भी
00:23:19आकलन और अनुभव होते हैं
00:23:21इतना तो दिख जाएगा
00:23:22इससे थोड़ी सौम्मिता आती है
00:23:26इससे जो मन है थोड़ा सईयत होता है
00:23:29सोबर होता है
00:23:30नहीं तो बड़ी उत्तेजना चड़ जाती है
00:23:32आपको लगता है नजाने क्या मिल गए आफ लातून
00:23:34दो चार और से पूछो कि ये जो मुझे मिल गया
00:23:37तुझे कैसा लग रहा है
00:23:38आपको दिखा ही देगा उनमें कोई उत्तेजना नहीं
00:23:40उनके लिए चीज साधारण है
00:23:42तो आपको थोड़ा पता लगेगा
00:23:44कि जो आपको प्रतीत हो रहा है वो वैसा है नहीं
00:23:46बस आपको प्रतीत हो रहा है
00:23:49बात समझ भारी
00:23:52माने भेद किसने पैदा करा है
00:23:54आपने वस्तु में भेद नहीं है
00:23:57वस्तु में भेद नहीं है
00:23:59आप भेद पैदा कर रहे हो
00:24:01आप क्यों भेद पैदा कर रहे हो
00:24:02आपको आत्मा की तलाश है
00:24:06आपको सत्य की तलाश है
00:24:07बहुत धभाशा हैं बोले तो आपको निर्वान की तलाश है
00:24:10आपको निर्वान की तलाश है
00:24:15इसलिए जहां कहीं आपको आधी ती ही भी आशा दिख रही है निर्वान की
00:24:20वहाँ आप पूरा एक महल खड़ा कर ले रहे हो छवियों का कि ये रा
00:24:23यही तो है
00:24:25यही तो है
00:24:27प्यासे को उतनी दूर एक घड़ा दिख गया
00:24:37आप घड़े के अंदर क्या उसे नहीं दिखा
00:24:38वो ही नाचना शुरू कर दिया उसने
00:24:41बोला हो गया
00:24:42तो कि वो इतना प्यासा है
00:24:45कि वो इस संभावना को स्विकार ही नहीं करेगा
00:24:51कि घड़ा खाली है
00:24:53वो इतना प्यासा है
00:24:57कि उसके लिए ये मानने जैसी बात ही नहीं है कि घड़ा तो मिल गया पर खाली है
00:25:03वो दूर से ही नाचेगा मिल गया सब होगे बहुत बढ़िया
00:25:08फिर भागे का घड़े के पास जाएगा चाटेगा कुछ नहीं पाएगा
00:25:17प्यास और बढ़ जाएगी प्यास जब बढ़ती है और तो उसके ब्रहमित होने की संभावना भी और इस बार तो घड़े को देख करके वो नाचा था
00:25:26अगली बार तो हो सकता है खाली परात पड़ी और खाली प्लेट वो उसको देखके नाचने लेगे कि पानी मिल गया
00:25:33जो जितना अपूर्ण होगा वो उतना विक्षिप्थ होगा आपकी अपूर्णता आपकी विक्षिप्थता एक अनुपात में बढ़ते हैं अपूर्णता मने क्या आत्मग्यान का अभाव
00:25:46आत्मग्यान की जितनी कमी रहेगी विक्षिप्थता उतनी बढ़ेगी
00:25:55तो हमने आज बात करी साथवे सूतर की फिर हमने नौवे सूतर की बात करी
00:26:08दसवे सूतर पर आज हम हैं बीच में था आठवा सूतर आठवा सूतर के विशा में था
00:26:13आप सब लोग उत प्रत्युशा में साथ हैं कि नहीं है
00:26:24आठवा सूतर किस बारे में था
00:26:26द्वादश निदान
00:26:28तो द्वादश निदान में पहला ही निदान क्या होता है अविद्या
00:26:33आज हमें समझाया जा रहा है कि अविद्या भी जनित होती है विपरिया से
00:26:42और विपरिया खुद एक जूट है
00:26:44बौध दर्शन में जूट नहीं बोलते हैं
00:26:47क्या बोलते हैं जो कुछ जूट होता उसको
00:26:48शून्य
00:26:49माया, मिथ्या, जूट
00:26:52इसको वहाँ बोलते हैं शून्य
00:26:54तो यह विपरेया खुद शून्य है
00:26:56द्वादश निदान
00:26:58में जो पहला ही निदान है
00:27:00वो पूरी एक शंकला है ना, बारा की, इसमें से दो किसमे आते थे, अतीत में, फिर आठ किसमें आते हैं, और दो किसमें आते थे, तो शुरुवात ही किस से हो रही थी? अविद्या से, तो पहले तो कहा कि यह जो द्वादश निदान है, इसको देखो, इससे दुखुत्पन
00:27:30हो रहा है उसकी शुरुवात ही अपने आप में मिथ्या है शुन्य है क्योंकि उसकी शुरुवात ही अविद्या से है
00:27:37अविद्या का अर्थ है मेरा होना जब कोई खंड है ही नहीं मैं जिससे जुड़ सकूँ
00:27:48तो बताओ मैं कैसे हो जाओंगा मुझे होने के लिए टुकड़ा चाहिए एक टुकड़ा जो अलग हो बाकियों से विशेश हो अलग हो यूनीक हो डिस्टिंक्ट हो
00:27:59यहां तो जो कुछ है वो दूसरे से बिलकुल एक है
00:28:05तो बताओ मैं कहां से आऊं
00:28:07मैं को होने के लिए कुछ चाहिए न जो दूसरे जैसा नहीं हो
00:28:12अगर जो कुछ है वो बिलकुल दूसरे जैसा है बस थोड़ा अलग लगता है
00:28:16तो मैं जुड़ू कि से सब कुछ तो एक है
00:28:19फिर तो बस यह हो सकता है कि मैं जिससे जुड़ा हूँ
00:28:21वो दूसरे से अलग लगता है
00:28:23वैसे ही मैं भी पिर यह कह सकता हूँ
00:28:25कि मैं बस लगता हूँ
00:28:26मैं जिससे जुड़ा हूँ वो दूसरे से बस अलग
00:28:29लगता है
00:28:31तो मैं भी वो हूँ जो बस लगता है
00:28:34है नहीं लगता है
00:28:37है नहीं लगता है
00:28:38आप कैसे होगे अगर आपको पता चले
00:28:42आप और कुरसी एक हो बताओ आप कहा हो
00:28:44आप और कुरसी एक हो अब बताओ आप कहा हो
00:28:49कोई जगह होनी चाहिए ने जहाँ आप समाप्तो कुर्सी शुरू होती है
00:28:54पता चले आप और कुर्सी एक हो तो आप कहा हो
00:28:57और जो बात बस जीवन के अनुभव से बौध्धों ने कह दी
00:29:04उसको विज्ञान आज प्रेयोग से प्रमान से पिकार कर रहा है
00:29:12उन्हें का आपके भीतर भी कुछ ऐसा नहीं है जिसको मैं बोला जा सके
00:29:19तो जीवात्मा को बुध्ध ने खारिज किया ये बड़ा भारी उनका योगदान
00:29:23बोले आप उपर से लेके नीचे तक मास हो हड़ी हो रसायन हो
00:29:28आपके भीतर कोई ऐसा नहीं है जिसे कहें कि ये रहा जीव
00:29:31कि ये रहा जीव का पिंड़ा और उसके दिन दर वैठा ये जीव अप अप
00:29:36अल्डिया जीव को और जब मौत होई तो जीव
00:29:40उड़ गया वह है ही नहीं
00:29:44ये बहुत बड़ा योगदान महात्मा बुद्ध का बोले कोई जीव नहीं है
00:29:49उपर से लेके नीचे तक केमिकल भरे हुए है हाँ कोई जीव इव कुछ नहीं है
00:29:53हाल तु में अफवा न फैलाओ कि अंदर कोई जीव बैठा हुआ है
00:29:58तुम्हारे में अंदर कोई जीव नहीं है तुम उपर से लेके नीचे तक बस क्या हो पदार्थ
00:30:02तुम जिस कुरसी पर बैठे हो वो भी क्या है
00:30:04तो बताओ तुम कहां खत्म और कुरसी कहां शुरू
00:30:06जब तुम भी पदार्थ और कुरसी भी पदार्थ तो तुम कहां खत्म और कुरसी कहां शुरू बताओ
00:30:13और जब कोई सीमा ही नहीं जहां पर तुम खत्म हो कुरसी शुरू तो तुम कहां हो फिर
00:30:20तुम तो तभी हो सकते हो न जब तुम अलग और कुरसी अलग
00:30:25अगर तुम और कुरसी एक ही निकले
00:30:26देह के तल पर, पदार्थ के तल पर
00:30:28तो बताओ तुम का हूँ
00:30:29मुझे होने के लिए विभिन्नता चाहिए
00:30:33डिस्टिंक्शन चाहिए
00:30:34बाउंडरी चाहिए
00:30:36वो है नहीं क्योंकि पदार्थ और पदार्थ तो
00:30:38पदार्थ और पदार्थ तो
00:30:41गुणा गुणेश
00:30:42सब एक है
00:30:44जब पदार्थ और पदार्थ एक है
00:30:46तो मैं औरी कुरसी भी तो फिर
00:30:47तो मैं कहा हूँ
00:30:49मैं कहा हूँ
00:30:54नहीं पर मैं उठके जा सकता हूँ
00:30:59कुरसी उठके नहीं जा सकती
00:31:00वो तुमारे गुण है
00:31:02कुरसी का अपना गुण है
00:31:04जो काम कुरसी कर सकती हो तुम नहीं कर सकते
00:31:06तुम दावा कर रहे हो कि तुम उठके जा सकते हो
00:31:08कुरसी दावा कर रहे हो 100 साल तक ऐसी बैठी रह सकती है
00:31:10जो कुरसी कर सकती हो तुम करके दिखा दो
00:31:12फिर भी हो सकता है
00:31:15कि ऐसी कुर्सी बना दी जाए
00:31:18जो तुम्हारी तरह है उठ करके चलने फिरने लगे
00:31:22पर नहीं हो सकता कि ऐसा इंसान बना दिया जाए
00:31:24जो कुर्सी की तरह 200 साल तक एक जगे जम कर बैठा रहे
00:31:27तुम बताओ उंतर के
00:31:30पर हम अलगे ना उठ सकते हैं बात कर सकते हैं
00:31:37यह तुम्हारा गुणा तुम बात कर सकते हैं, कुरसी का गुणा है क्यों बात?
00:31:41नहीं कर सकती है, तुम अपने गुण में खेल रहे हैं, कुरसी अपने गुण में खेल रहे हैं, बताओ तुम में और कुरसी में अंतर क्या है?
00:31:45नहीं कुछ तो होगा अंतर
00:31:51नहीं कुछ तो होगा
00:31:57कोई अंतर नहीं है
00:32:05मामला सुनने
00:32:07और सुनने सुनते जुन्नू लाल सुनन अपड़ गा
00:32:12कोई अंतर नहीं है
00:32:15सुन्न बना सन्नाटा
00:32:25कोई अंतर नहीं
00:32:28अब क्या करें
00:32:31कुछ नहीं करो
00:32:34तुम हो कहा कुछ करने के लिए
00:32:35अभी भी यही पूछ रहे हो जैसे कि
00:32:38तुम तो
00:32:39कुछ नहीं करो
00:32:42मिल गई मुक्ती जाओ आश करो
00:32:44नहीं पर आश करें मने
00:32:46जब कुछ नहीं कर रहे हो तो उसको आश बोलते है
00:32:49जब आश भी नहीं कर रहे
00:32:53तो उसको आश बोलते हैं
00:32:54वरना आश करना तो बड़ा भारी बोज हो जाता है
00:32:56देखते हैं नहीं, कॉर्पोरेटर गरा में लोग को एक दिन की छुट्टी मिलती है तनाव से मर जाते हैं उस दिन
00:33:02पुलते हैं एक दिन की मिली है, इसका करना क्या है
00:33:05और पल-पल ये दिन बीटता जा रहा है
00:33:08साल में बड़ी मुश्किल से चार दिन की निकाली है छुटी स्यादा तो मिलती भी नहीं
00:33:13और चार दिन को पूरा चूस लेना है
00:33:16और एक एक पल जो बीतरा है वो चार दिनों की धरोहर से कुछ खिसा करा है
00:33:21हाई हाई जितना तना उन चार दिनों में होता है
00:33:24उतना तो साधारण दिनों में भी नहीं होता था
00:33:28क्या करें
00:33:39तुम हो नहीं कुछ करने के लिए
00:33:44तो फिर मैं हूं कौन
00:33:46वो जो द्वादश निदान की दूसरी कड़ी है
00:33:50वहाँ पता चलता है मैं हूं कौन
00:33:52जो तुम हो
00:33:54बने जो तुम घ्रमवश हो
00:33:57जो तुम भूल से बने बैठे हो
00:34:01तो दूसरी कड़ी क्या है द्वादश निदान की
00:34:05संसकार
00:34:06कि अविद्ध्या से आते हैं संसकार
00:34:11जब बुद्ध जा रहे थे
00:34:18उन्होंने आखिरी बात
00:34:21जो अपने शिश्यों से बोली
00:34:24उसको महापरिनिर्वान सूत्र बोलते हैं
00:34:28महापरिनिर्वान सूत्र
00:34:30उन्होंने कहा
00:34:33वो सब कुछ
00:34:37जो संसकारित है
00:34:40वो विनाश शील है
00:34:43जो कुछ भी संसकारित है
00:34:47उसके फेर में मत पढ़ना
00:34:49तुम बस अपनी मुक्ति के लिए प्रयास करो
00:34:56संसकारित वस्तूओं के लिए प्रयास करना
00:35:06जीवन का नाश है
00:35:09क्योंकि जो कुछ संसकारित है
00:35:11खुद उसका ही नाश होता है
00:35:14तो तुम्हारा प्रयास मात्र अपनी मुक्ति की देशा में होना चाहिए
00:35:19ये बुद्ध के आखरी वचन है
00:35:21उनके शिश्यों से
00:35:25महापरिनिर्वान सूत्र
00:35:27जाते जाते भी संसकार की बात कर गए
00:35:30संसकार
00:35:31बोले संसकार से बचना
00:35:32उस समय की भाषा में
00:35:38बुद्ध की भाषा में संखार कहते है
00:35:40पाली में संखार
00:35:41संस्कृत में संसकार
00:35:43क्या है संसकार
00:35:47बहुत रोचक चीज़ है
00:35:50बहुत रोचक चीज़ है
00:35:51अगर मैं को समझना है
00:35:52कि मैं कहां से आता है जूठा मैं
00:35:55जो स्वयम को कहता है कि है पर
00:35:57जिसको बुद्ध ने खारिज कर दिया बोलके
00:35:59कि भक अनात्मा
00:36:00अपने आपको क्या बोलता रहता है मैं क्या हूँ
00:36:03आत्मा
00:36:04और महात्मा बुद्ध उसको क्या बोले
00:36:07निकले आँ से बरखास्त
00:36:09निरस्त क्या है तू तू अनात्मा है तू है नहीं पर वो बनता कहां से है उसको बुद्ध बताते हैं वो संसकारों से बनता है और बहुत रोचक है हमने कहा संसकार कैसे
00:36:23संसकारों के दो पक्ष होते हैं एक निश्क्री और एक सक्रिय
00:36:39निश्क्री पक्ष क्या होता है जहां आपने कुछ नहीं करा और अपने आप पदार्थ पर पदार्थ जमा होता गया प्रक्रति के नियमों और सैयोग के अनुसार
00:36:57प्रक्रति के नियमों और सैयोग के अनुसार पदार्थ पर पदार्थ जमा होता गया सैयोग क्या है ये पड़ा था इस पर कुछ धूल पड़ गई फिर इस पर चूहा चड़ गया तो चूहे ने इसको गिरा दिया तो ऐसे ही गिर गया यहां आ गया ठीक है ये सब सैयोग चल
00:37:27धूल जम रही है धूल जम रही है तो धूल जमती गई जमती गई तो ये दोने चिपक गए आपस में
00:37:35ये सब होता है न दो चीजें बहुत दिनों तक एक पड़ी रहे है तो क्या होगा उचिपक जाती है
00:37:39ये अभी निश्क्रिय पक्ष चल रहा है संसकारों का पदार्थ पदार्थ के साथ बस क्या कर रहा है प्रक्रतिक के नियमा नुसार क्रिया कर रहा है ये प्रक्रतिक के नियम है और क्रिया चल रही है ये संसकार है ये संसकार है किसी ने प्रयास नहीं करा किसी की साजिश नही
00:38:09पढ़ती गई और नियम क्या है कि बहुत सारी पढ़ेगी और बहुत समय बीतेगा और उसमें कुछ नमी भी आ करके अगर जुड जाएगी तो जो धूल है वो सक्त पढ़ जाएगी
00:38:19धूल जो है पड़बडके पड़बड़के और साथ में नमी पाके आरदरता वह ऐसे सक्त पड़ जाएगी जैसे की सीमेंट बनता जा रहा हूँ
00:38:29तो यह सब चिपकता जाएगा, अब यह सब चिपक जाता है
00:38:32और यह सब जब हो रहा है, तो अभी तो किसी का दावा भी नहीं है
00:38:36कि मैंने किया, तो इसको संसकारों का निश्क्रिय पक्ष बोलते हैं
00:38:40क्योंकि अभी तो कोई दावेदार भी नहीं पैदा हुआ
00:38:42कुछ दावेदार नहीं प्यादा हुआ
00:38:48उसके बाद फिर लेकिन एक पल ऐसा आता है
00:38:52जब ये सब जो ही कठा हो गया है
00:38:54कुछ नियम से और कुछ सही योग से
00:38:59ये बोल उठता है मैं
00:39:01ये क्या बोला
00:39:03और ये मैं बिलकुल उसी तरीके से बोलेगा
00:39:07जिस तरीके से ये सारा भानुमत्ती का कुन्बा जुड़ा है
00:39:10और ये कुन्बा सब में अलग अलग तरीके से जुड़ता है
00:39:13तो मैं भी फिर अलग अलग नाम लेके अपने आपको बुलाता है
00:39:19यहाँ पे मैं स्याम
00:39:22वहाँ पे क्या मैं कुछ और नाम
00:39:26वहां मैं कुछ और नाम
00:39:28क्योंकि यह सब जो जुड़े थे
00:39:29इसी को आगे बढ़ाओके तो दौदेश निदान में
00:39:32जो गर्भ में पूरी प्रक्रिया थी
00:39:34वो याद आएगी
00:39:36यह लगभग वैसी ही बात है
00:39:37कि गर्भ में पहले जब दो कोशिकाई
00:39:40मिलती है तो वहां मामला
00:39:42निश्क्रिया है वहां मैं बोलने वाला कोई नहीं है
00:39:44फिर एक दिन वो सब जो
00:39:46सामगरी इकठा हुई है वो क्या बोलने लग जाती है
00:39:48मै
00:39:48मै
00:39:51तो संसकार
00:39:54निश्क्रिय रूप से
00:39:56इकठा होते हैं और फिर सक्रिय हो जाते हैं
00:39:59अब सक्री हो गए
00:40:02अब आपको मिलेंगे
00:40:03संस्कार इन एक्षन
00:40:05जो मामला पहले पैसिव था
00:40:10वो अब एक्टिव हो गया
00:40:11क्योंकि अब उसने क्या बोल दिया
00:40:13पदात इकठा हो करके
00:40:16क्या बोलने लग गया
00:40:17मैं
00:40:18और मैं वो बोलेगा
00:40:22उसी अनुसार जैसे वो
00:40:23इकठा हुआ है
00:40:25विज्ञान जब आगे बढ़ता जाएगा
00:40:29तो हम ये तक बताने में
00:40:32सक्षम हो जाएंगे
00:40:33कि
00:40:37आप के जो
00:40:40निश्क्रिय भीतर बैठे हुए है
00:40:43जीन्स जो आपकी जयाविक सामगरी है
00:40:45उसके कारण
00:40:47आप जीवन में किस किस तरह के
00:40:49निरणे लेंगे संभावना किस की ज्यादा है
00:40:51बताया जा सकता है
00:40:53क्योंकि
00:40:58सक्रिय रूप से मैं जो कुछ करता है
00:41:01वो आश्रित होता है
00:41:02निश्क्रिय रूप से जो कुछ उसके साथ हुआ है
00:41:05इसी कौम कहते हैं
00:41:09कि आपके भविष्ट का निरधारन तो सहाब आपका भूत कर रहा है
00:41:11आपकी चेतना का निरधारन तो
00:41:16आपका जड़ पदार्थ कर रहा है
00:41:18कई बर बात करते हैं
00:41:20कि तुम बोलते हो कि ये तो मेरी चेतना है
00:41:22ये मेरा चुनाओ है
00:41:23अरे न तुम्हारी चेतना न तुम्हारा चुना हो तो तुम्हारा शरीर है
00:41:26जिसको तुम अपनी चेतना बोल रहे हो तुम्हारा जड़ शरीर है
00:41:31पर तुमको लग रहा है तो मैंने चुना तुमने नहीं चुना तुम्हारे शरीर ने चुना
00:41:34तुम तो खामखा श्रेले ने खड़े हो गए हो
00:41:37संसकार
00:41:41इतनी रोचक और इतनी जबरदस्त बात होते हैं संसकार
00:41:46कि बुद्ध अपने आखरी क्षण में भी जो आखरी सलाह दे करके गए अपने शिश्यों को
00:41:51वो ये थी संसकारों से बचना
00:41:53वो तुम्हें बताते नहीं कि वो मात्र संयोग से इकठा हुए है
00:42:00तुम्हें ऐसा लगता है तुमने किया
00:42:03जो तुम्हारे भीतर जड़ है वो तुम्हारी दृष्टी में चेतन हो जाता है
00:42:09जो वास्ताव में निश्क्रिय है वो मैं के माध्यम से सक्रिय हो जाता है
00:42:13बचना इन से
00:42:17सब कुछ कौन कर रहा है संसकार कर रहे है
00:42:22मैं फिर क्या है बस संसकार
00:42:25बस संसकार
00:42:26उसकी अपनी कोई प्थक हस्ती नहीं है
00:42:31chemical reactions में आपने पढ़ा होगा
00:42:37दो ही रसायन हो जो क्रिया कर रहे हो आपस में
00:42:43उसमें थोड़ा सा आप दबाव बढ़ा दीजिए
00:42:44प्रिशर
00:42:45reactants होई है
00:42:47resultant अलग हो जाता है
00:42:50बढ़ा है कि नहीं बढ़ा है
00:42:54hydrogen है oxygen है
00:42:57इस्थितियां एक रखो तो H2O बनेगा
00:43:00इस्थितियां बदल दो तो H2O2 बन जाता है
00:43:02यह संसकार है
00:43:05आप जीवन भड़ समझ नहीं पाएंगे
00:43:11कि आप H2O2 क्यों है
00:43:13क्योंकि बहुत एक स्थितियां
00:43:16आपके उपर अलग काम कर रही थी
00:43:18जो इस समझ जाए कि
00:43:20हो H2O2 क्यों है
00:43:21वो मुक्त हो गया यही निर्वान है
00:43:22वो ना आप H2O रहा ना H2O2 रहा
00:43:25वो सबसे एक साथ मुक्त हो गया
00:43:26लोहा है और ऑक्सीजन है
00:43:33एक स्थिति में अगर यह क्रिया करें
00:43:36तो फेरस ऑक्साइड बनता है
00:43:37दूसरी में करें तो फेरिक ऑक्साइड बन जाता है
00:43:39और स्थितियां और ज़्यादा कुछ नहीं होती
00:43:45केटलिस्ट अलग मिल गया
00:43:48तापमान अलग मिल गया
00:43:52समय अलग मिल गया
00:43:54ट्रिशर दबाव अलग मिल गया
00:43:56यही होता है और कुछ नहीं
00:44:02हमारे भीतर भी यही सब चल रहा है बस
00:44:04तो जिन्होंने जीवन को समझने में
00:44:14अपना पूरा जीवन लगा दिया
00:44:16वो बहुत करीब पहुँच रहे हैं
00:44:20जीवन का स्रोज जानने के भी
00:44:21कि किस तरीके से प्रोटीन से और अमीनो एसिड से
00:44:26सबसे पहले वो उठा था जिसमें बोला था मै
00:44:29कैसे जो निश्क्रिय था वो पहली बार सक्रिय हुआ था
00:44:34क्या उसमें कोई दैविय हस्तक्षेप हुआ था
00:44:41कि कोई देवता उतरे थे कोई
00:44:44metaphysical intervention था और उन्होंने पदार्थ को कहा था
00:44:48be conscious ना कुछ नहीं
00:44:51पदार्थ की ही जैसे एक स्थित होती हो एक
00:44:58configuration होता हो जो कहलाता है
00:45:01consciousness all consciousness is material
00:45:07that's why freedom is freedom from consciousness
00:45:14साधारन consciousness normal dualistic consciousness
00:45:23साधारन consciousness में मैं होता हूँ और कोई होता है
00:45:27इसको तो हम बोलते हैं I am conscious of that
00:45:28और ये आई ही क्या है जड़ है तो I am conscious of that
00:45:33बोलतने से पहले ही गलत हो गई न बात
00:45:35मैं उसके विशय में चेतन हूँ और मैं ही क्या है
00:45:42मैं ही जड़ है और मैं बोल रहा हूँ मैं जड़ पदार्थ को देख रहा हूँ
00:45:46जब मैं कहा रहा हूँ मैं जड़ पदार्थ को देख रहा हूँ
00:45:48मैं दिवार को देख रहा हूँ
00:45:50इसमें मेरा भाव क्या है
00:45:53मैं चेतन हूँ दीवार
00:45:54अब पता चले मैं ही दीवार हूँ
00:45:57दीवार बराबर मैं भी जड़ूँ
00:45:58तो कौन किसको देख रहा है
00:45:59मैं दीवार को देख रहा हूँ
00:46:04एक सब्जेक्ट एक अब्जेक्ट है
00:46:05सब्जेक्ट का दंभ क्या है
00:46:11मैं छेतन हूँ
00:46:13और object
00:46:14पता चला subject खुद object है अब क्या होगा
00:46:18ये संसकारों का काम होता है
00:46:20कि वो जो वास्तव में
00:46:22एक object मात्र है
00:46:23उसमें ये भाव भर देते हैं
00:46:26कि वो subject है
00:46:27यहाँ पर होता है
00:46:30the subject object inversion
00:46:32या flip
00:46:33object object object और वो अचानक से बन गया
00:46:36subject बन गया माने क्या बोल दिया उसने
00:46:38मैं
00:46:40object object object object object
00:46:45अचानक क्या बन गया वो
00:46:46और subject बनते ही क्या बोल रहा है वो
00:46:48object object object
00:46:49मैं तो subject हूँ
00:46:53object ये सब है
00:46:55जब इस समझने में दिक्कत आए
00:47:00तो या तो बिलकुल
00:47:01evolution में पीछे चले जाओ
00:47:03अफरीका की कोई
00:47:06गर्म सी जगह है
00:47:08backwaters जैसी जगह
00:47:11किसी नदी के पास कोई बड़ा जलाश है
00:47:15जहां इतनी जोर से सूरज तपरा है
00:47:20कि उसमें जो minerals हैं जो सामगरी है
00:47:24वो concentrate हो गया है
00:47:25पानी आप उड़ाते जाएं तो जो
00:47:29अंदर दर्वे होता है वो गाढ़ा हो जाता है न तो ऐसी एक जगह बन गई है
00:47:34अब उसके भीतर
00:47:36amino acids और बहुत लंबे लंबे जो polymer chains हैं
00:47:40उनका concentration बढ़ गया है
00:47:42बहुत सारे minerals हैं अफ्रीका है और बहुत सारी sunlight है
00:47:48और बहुत लंबा समय उपलब दे लाखो करोडो सालों का
00:47:51वो जो polymers हैं वो और complex होते जाते हैं होते जाते हैं होते जाते हैं होते जाते हैं
00:47:57और एक दिन वो क्या बोल पड़ते हैं हैं हैं अब यही बात मा के गर्भ में देखो
00:48:08पहला हफता है वो बोल रहा है मैं कुछ नहीं जैसे ये नाखून वैसे भीतर
00:48:15पहला महीना है वो बोल रहा है कुछ कुछ नहीं अभी वो भी वही है
00:48:20अमीनो एसेड पॉलीमर वही है भीतर भी और फिर एक दिन आता है कुछ पक्का नहीं कह सकते अभी
00:48:29इसी पर भहस बहुत छड़ी हुई है कि किस महीने से पहले के गर्भपात को अवैद माना जाए
00:48:35कहते हैं कि जब हम कह दें कि उसमें अब मैं भाव आ गया है उसके बाद बच्चा नहीं मारना चाहिए
00:48:42उसके पहले मार दो तो मार दो ये एक तरह की बहस चल रही है
00:48:46तो कुछ पक्का नहीं कि किस महीने में है पर कोई कहता है तीसरा महीना कोई कहता है पांचवा महीना
00:49:05तो वही जो अफ्रीका के उस जलाशय में हो रहा था वो आज भी मा के पेट में भी जलाशय होता है और उसमें भी यह अनुमान लगाया जा रहा है कि मिनरल्स का जो पूरा एक सूप बनता है
00:49:23वो लगभग वही है जो स्रिष्टी के आरंभ में अफ्रीका में बना था जैसे वहां पर फिर लाइफ पैदा हुई थी स्रिष्टी उत्पन हुई थी वैसे ही बिलकुल उसी का रेप्लिका मागे पेट में होता है और फिर वहां लाइफ पैदा होती है
00:49:40वा समझ रहे हुँ दे कॉंपोजीशन वो जो अंदर होता है अम्नियॉटिक फ्लूइड उसका शायद वही है जो बिलकुल इवॉल्यूशन के आरंभ में था जहां से वो छोटे छोटे जनतू सब पैदा होने शुरू हुए थे
00:49:56सिंगल सेड
00:49:58लेकिन मामलाल रेदे के तो यही है कि बोला तो पॉलीमर नहीं मैं है कोई चिडिया नहीं आई थी बाबा अब हातना बुद्ध ने चिडिया मार दी
00:50:16लोग कहते हैं आहिंसक कैसे हुए हम इतने दिनों से चिडिया उड़ा रहे थे कहते हैं मा के पेट में चिडिया घुजा करती है और जो बढ़व मरता चिडिया उड़ जाती है
00:50:27भारत का एक बहुत बड़ा अंद्विश्वास तोड़ दिया था बुद्ध ने
00:50:57और जो हमारे अंदविश्वासों को तोड़ता है न हम भले उसको उपर-उपर से ग्यानी भी मान ले पर भीतर हम कहीं न कहीं बदला लेने की ताक में रहते हैं भारत ने बुद्ध से बदला लिया उन्हें भारत से बेदखल कर दिया दुनिया भर में बुद्ध छा गए भा
00:51:27और यह नहीं कि बुद्ध कोई बिल्कुल नई बात बोल रहे हैं दो बात बुद्ध बोल रहे हैं वो बात बुद्ध से पहले उपनिशत बोल चुके हैं गीता बोल चुके हैं विदान चिल्ला चिल्ला के यही बात बोल रहा है कि आत्मा से बड़ा सत्य दूसरा नहीं और
00:51:57चिडिया नहीं होती
00:51:59तो नहीं होती
00:52:01और उसी चिडिया के दंपे
00:52:04तुमने कितनी सारी मूर्खताइं फैला रखी है
00:52:06सारी जाति प्रथा तुमने उस चिडिया के दंपी तो चला रखी है
00:52:09सारक कर्मकांड तुमने यही बोलके चला रखा है
00:52:12स्वर्ग नर्क का सारा खेल तुमने यही बोल के चला रखा है कि यहां चडिया उठेगी तो जाके कहां बैठ जाएगी स्वर्ग में
00:52:18और कोई आके बोल रहा महराज मैं अच्छा खाथा पढ़ा लिखा आदमी हूँ
00:52:22मुझे सम्मान क्यों नहीं दिया जा रहा है मुझे पद्विया क्यों नहीं दिया रहा है पैसा क्यों नहीं दिया जा रहा है
00:52:28क्योंकि तेरे पिछले जनम के करम गंदें तो नीची जात में प्याता हुआ है चिडिया के नाम पे देखो तुमने कितना शोषण फैला रखा था बुद्ध ने चिडिया ही मार दी
00:52:35नहीं चलेगा
00:52:37मैं इतने सारे आपके हिसाब से पंडिच जी दानपुन्य करता हूं सब करता हूं फिर भी मुझे कुछ मिलता क्यों नहीं
00:52:49मिलेगा, तेरी चड़िया को मिलेगा, कम मिलेगा, अगले जनम में मिलेगा, तो तु इस जनम में बस दानपुन्य करा जा, अगले जनम में मिलेगा तुझे, और दानपुन्य का क्या मतलब है, पंडित जी करें दानपुन्य, दानपुन्य का यह मतलब, मैं हूँ तो दानप�
00:53:19मैं क्या थी चिडिया जिसको हम जूट मूठी बोल रहे थे
00:53:27हो आत्मा जीवात्मा बोल रहे हैं आत्मा बुद्ध ने का जिसको तुम आत्मा वोलते हैं जूट
00:53:34वो शून्य, अनात्मा, अनात्मा का सिद्धान, जिसको तुम आत्मा बोल रहे हैं, वैसा कुछ है नहीं
00:53:40तुछ में आ रही है बात
00:53:49इतिहास आपको बौध्धों के पतन के बहुत कारण बताएगा
00:54:04पर जो मूल कारणों समझिएगा
00:54:06बौध्धों के पतन का लगभग वही कारण है, जिस कारण से अद्वैत वेदान्त भारत में कभी जड़ नहीं जमा पाया
00:54:18बौध्ध भी वही बात बोल रहे हैं, जो अद्वैत वेदान्त बोलता है, क्या?
00:54:26तुम जड़ पदार्थ भर हो, अहंकार गलत नहीं है, अहंकार जूट है
00:54:35अहंकार कोई नेतिक समस्या नहीं है, अ�हंकार एक अपिस्टरमोलॉजिकल लाइ है
00:54:47अहंकार के साथ समस्या ethical नहीं, onתological है
00:54:51हम कहते हैं अरे हंकार मत करो इतना, कोई करेगा कैसे हंकार, हंकार तो कुछ होता ही नहीं
00:54:59है इच्च नहीं, तो समस्या ethical नहीं है, existential है
00:55:04को बोले बड़े अहंकारी हो
00:55:07तो क्या
00:55:08अहंकार तो
00:55:09एई नहीं तो अहंकारी कैसे
00:55:12पर हम अहंकार को नैतिक समस्या मानते है
00:55:14हम कहते हैं
00:55:15it's bad to be egoistic
00:55:18the thing is you cannot be egoistic
00:55:20because there is nothing called the ego
00:55:21nobody can be egoistic
00:55:29न तुम न मैं
00:55:34जूठे के घर
00:55:36आप सोच मैं आरी बात
00:55:40बड़े बुरे आदमी हो
00:55:44बुरे कैसे होंगे हम तो
00:55:46और बुरे ना होने का
00:55:51एक ही तरीका है
00:55:52तुम होना ही बंद कर दो
00:55:54जिसे बुरा ना होना हो
00:55:55वो होना बंद कर दे
00:55:57जो है
00:55:59वो अच्छा या बुरा नहीं हो सकता
00:56:02जो है वो सिर्फ बुरा ही होगा
00:56:04तो जब हम अहम को ऐसे खारिज करते हैं
00:56:17कि अहम अविद्या पर आश्रित है
00:56:19तो हम कहते हैं
00:56:21कि ये अहम का
00:56:22epistemological repudiation हुआ
00:56:25epistemology क्या होती है ज्यान का स्रोत
00:56:28तुमने क्या माना था बाहर क्या है
00:56:30खंड खंड � और एक हंड से
00:56:32तुम जा करके जुड गए थे
00:56:33तो ये एक तरीका है
00:56:36अंकार के जूठ को
00:56:38प्रदरशित करने का
00:56:40तक्त्व मीमान सा
00:56:49ग्यान मीमान सा
00:56:51ग्यान मीमान सा, primology
00:56:53कि तुम जो ग्यान
00:56:55सच मान रहे हो, सच है भी क्या
00:56:57अपने ग्यान को बार बार परखना
00:56:59इसको बोलते हैं
00:57:01Epistemology, मैं जिस्टीस को सच मान रहा हूँ
00:57:03सच है भी क्या, ग्यान मी मान सा
00:57:05जैसे पूछा करता हूँ
00:57:14आप आके बोलते हूँ ऐसा है
00:57:15तो मैं बार बार पूछता हूँ
00:57:15How do you know, तो मैं कैसे पता
00:57:17मैंने मुझे बार बार सुना है न
00:57:21तो मैं कैसे पता, यह मैं क्या कर रहा हूँ
00:57:24यह मैं तुम्हारे सामने एक
00:57:26Epistemological
00:57:28Query या Barrier
00:57:32या Test रख रहा हूँ
00:57:35तुम्हें कैसे पता
00:57:36तुम इतने भरोसे से बोल रहे हो
00:57:38यह सिर्फ तुम्हारी माननता है
00:57:40तुम्हें पता नहीं है
00:57:42तुमने बस माना है
00:57:44संसकार समझ में आरी यह बात
00:57:52पीछे से आया चुप चाप
00:57:54और एक दिन अगड़ाई लेके बोलता है
00:57:57मैं हूँ
00:57:59और मैं हूँ तो कभी बोला ही नहीं जाता
00:58:00मैं हमेशा कुछ हूँ
00:58:02मैं यह हूँ मैं वह हूँ पूरे यकीन से
00:58:05जी मैं तो यह हूँ
00:58:08बिना यह समझे कि पीछे से बस माल इकठा हुआ
00:58:10जैसे कुड़ा फेकर गया हो कहीं पे
00:58:14और एक दिन पता चले कि उसमें से बहुत सारा बैक्टिरिया पैदा हो गया
00:58:18ऐसे हम पैदा होते हैं
00:58:20पूरा इकठा हो रहा हो रहा हो रहा देखा है
00:58:22माल इकठा होता रहता होता रहता होता रहता फिर उसमें
00:58:26तरह तरह है कि पदार्थ और जीवजन तो खड़े हो जाते हैं
00:58:29वैसे हम खड़े होते हैं
00:58:31उड़े ही से खड़े होते हैं
00:58:34जो
00:58:37गाढ़े दरव्य का पूल था
00:58:44जिसमें से जिन्दगी पैदा हुई अफरीका में
00:58:47वो बहुत खुश्बू तो नहीं मार रहा होगा
00:58:49मा के पेट में भी दरव्य होता है
00:58:53बहुत खुश्बू नहीं मार रहा होता है
00:58:54बच्चा ऐसे ही होता है अंदर
00:58:57तो ऐसे ही हम पैदा हुए है
00:59:05जैसे मैंने कहा कि कूडा ही कठा हो जाओ फिर उसमें से बैक्टीरिया फंगस निकल पड़े
00:59:11तो वैसे ही शास्त्र कहते हैं माता पिता की धूल से तुम पैदा हुए उनकी गंदगी से रज से
00:59:17तुम रज से पैदा हुए हो
00:59:21कूडा था उस कूडे से ऐसे यह बैक्टीरिया पैदा हो गया और वो बोल रहा है मैं मनुष्य हूँ मैं श्रेष्ट हूँ
00:59:30अब तो मितने ही श्रेष्ट हो तो वो जो श्रेष्ट पदार जिससे पैदा हुए हो उसको यहां बाल पी क्यों नहीं लगाते ऐसे करके
00:59:43और साथ में कुछ प्रार्थना वगे रखिया करो तब तो जाके हाथ दोते और चिछी गंदा लग गया और उसी से खड़े हो गया हूँ
00:59:52अब बुल रहे हूँ मैं यह हूँ मैं वो हूँ मैं सिकंदर महान हूँ
00:59:55पुरान लोगों ने तो कोई लाग लपेट नहीं करूँ सीधे बोला रज
01:00:03रज माने गंदगी
01:00:05रज गंदगी
01:00:10वही गंदगी जब मा के गर्भ से बह रही होती है तो उसको बोलते है वो रजस्वला है
01:00:17menstruation वो रजस्वला है रज गंदगी बह रही है
01:00:25वही रज पिताक से भी होती
01:00:28पिता का रजकन
01:00:28बहुत सारी गंदगी एक ज़एक अठा हो
01:00:32उसमें से बैक्टिरिया निकल पड़ा
01:00:34कहीं गंदगी पड़ी हो और उसपे पानी और डाल दो
01:00:38और धूब डाल दो बहुत सारी
01:00:40जैसे बरसातों में होता है
01:00:41कड़ी धूब भी होती और खूब पानी भी होता है
01:00:43तो वहाँ पर क्या पाते हो क्या निकल पड़ा
01:00:45कमाम तरह के जिवानूं की टानूं आ जाते हैं वो हम है
01:00:50वो जो गाढ़े द्रव्यों का कॉंसेंट्रेट था
01:00:58वो भी ऐसा ही था
01:01:00वहाँ भी धूब भी खूब थी अफ्रीका में
01:01:02मॉश्चर भी खूब था और मिनरल्स भी खूब थे
01:01:05तो उससे लाइफ पैदा हो गई
01:01:07वैसे ही मा के पेट में होता है
01:01:09गर्मी भी खूब होती है बॉड़ी टेंपरिचर
01:01:11मिनरल्स भी खूब होते हैं
01:01:14तमाम तरीके केमिकल्स की सप्लाई होती रहती है
01:01:16उससे हम खड़े हो जाते हैं
01:01:19और फिर हम क्या बोलते हैं
01:01:25हम है नहीं हम महान है
01:01:28तो इसी लिए 12 निदान में
01:01:38आठ निदान तो पैदा होने के वक्त के ही बताई है
01:01:44क्या रहें ये एक के बाद एक तुम्हारे साथ जो गर्भ में हो रहा है
01:01:49वो बंधन ही बढ़ रहे है
01:01:50पैदा होने के बाद तो बस दो बोलते हैं क्या
01:01:56जरामरण जाते
01:02:01जाते और जरामरण
01:02:04पैदा होने के बाद आठ कहा है यहां पेट में एक के बाद एक तुम्हारे गर्भ में बंधन ही बढ़ रहे हैं
01:02:12तो इसलिए यह लोकसत्य है कि बच्चा पैदा हुआ बधाई गाओ
01:02:17जुन्होंने जाना उन्होंने यही कहा एक और पैदा हो गया बंधन जहिलने को
01:02:23एक और पैदा हो गया बंधन जहिलने को
01:02:27कुछ हारी यह बात समझों है
01:02:40यह सब सिकंदर महानी है
01:02:44तब यह तो मुझे बहुत समझ में नहीं आता
01:02:47कोई यह कर रहे हैं प्रणाम यह वो मुझे पता ना मैं कौन हूँ
01:02:51तुम प्रणाम करने चले आए
01:02:53हम सब रजस्तानी है
01:03:01सब रज के रहने वाले हैं
01:03:05रज से पैदा हुए रज में ही रहते हैं
01:03:08रज में ही बिखर जाएंगे
01:03:21लगभग यही भाव उनमें रहता है
01:03:26जो अवधूत का जीवन स्विकार करते हैं
01:03:31और जिनको हम आजकल अगहोरियों के नाम से जानते हैं
01:03:36कहते हैं हम भूली नहीं सकते हैं कि हम यही है
01:03:39जो बातें तुमको गंदी लगती हैं हमें पता है
01:03:46वो हमारा पत्थे हैं
01:03:52तो तुम जूटे हो जो तुम कहते हो यह साफ करो
01:03:54हम धूल में लोटते हैं
01:03:55हम उसी धूल को ऐसे लेके माथे पे मलते हैं
01:04:00तुम अपने आपको जन्मा समझते हो
01:04:04हम कहते हैं जो तुम्हारा जन्म है यह जड है
01:04:09तो इसलिए हम लाशों के पास बैठा करते है
01:04:11तुमको इस मानव देय में बहुत पवित्रता
01:04:17और महानता दिखा ही पड़ती है
01:04:19हम जानते हैं कुछ नहीं जड़् पदारत है
01:04:21तो हम लाश खा लेते हैं, मुर्दे को खा लेंगे
01:04:24आप नैतिक आधार पर इन बातों से सहमत असहमत कुछ भी हो सकते हैं
01:04:30पर समझी है कि वो कहना क्या चाह रहे हैं
01:04:33तो गह रहे हैं यह रही धूल, धूल माने रज
01:04:38और हम यहाँ पर भभूत या तिलक नहीं मलते
01:04:42हम क्या मलते हैं, धूल उठाते हैं, धूल ऐसे मलते हैं
01:04:45मुलते हैं, जाओ तुम होगे बड़े पवित्र
01:04:47जाओ अपनी पवित्रता दिखाओ अपने मंदिरों में
01:04:50और मंदिरों में तुम यहाँ पर कह रहे हो कि यह पवित्र राख है वो लगाऊंगा
01:04:54कोई चंदन लगा रहा है
01:04:55कोई अलग तरीके के टीके लगा रहा है
01:04:56मुल रहे हम जानते हैं न हम क्या है
01:04:58असलियत क्या है
01:04:59तो ऐसे चलते हूँ ऐसे धूल उठाते है
01:05:01और धूल भी नहीं
01:05:03शमशान की राख
01:05:04शमशान की राख दो जहां कोई मरा हो
01:05:08वो राख दो
01:05:08और वो राख लेके पूर
01:05:10खलते हैं न हल्दी मलना है
01:05:13न कुमकुम मलना है
01:05:14न चंदन लगाना है
01:05:16न रोली ये सब
01:05:17तुम क्या जूट दिखा रहे हैं दुनिया को
01:05:19असलियत क्या है
01:05:21ये मुर्दे की राख
01:05:22वो मुर्दे की राख ली और ये मली
01:05:24यह सच्चा ही है, हम इसको भूलना नहीं चाहते है
01:05:29रज
01:05:33करने मतलग जाना
01:05:37कोई फैशन नहीं बताया जा रहा है न या
01:05:40कोई भरोसा नहीं
01:05:47इंस्टाग्राम पर लाइक्स के लिए कुछ भी कर लोगे
01:05:49फैश्टेग अगोरी
01:05:53सबसंस्कारों में
01:06:19एक चीज़ की आवश्यक्ता रहती है
01:06:23कुछ ऐसा जिस पर
01:06:27निर्भर हुआ जा सके
01:06:28अचारे कह रहे हैं कि
01:06:32अगर दिख जाए कि जिस पर भी निर्भर होगे
01:06:34वो दूसरे से भिन्न नहीं है
01:06:37तो तुम किसी पर निर्भर नहीं हो सकते
01:06:39तो अविद्या कटी तो संसकार भी कटे
01:06:42अविद्या मने ये सोचना कि वो दूसरे से अलग है
01:06:46अविद्या कटी तो संसकार कटे और संसकार कटे
01:06:49तो द्वादश निदान के आगे की जो पूरी श्रंग खलाया है
01:06:51वो पूरी वहीं पर समापत हो गई
01:06:53तो कह रहे हैं कि आगे के फिर अंग संभव नहीं है
01:07:00कुल मिलाकर बात ज्यान की है
01:07:04इतना देख लो बस कि इस दुनिया में जो कुछ भी है वो एक ही तत्त्तो है
01:07:19सब चीजें एक ही हैं किस अर्थ में सत्य उनमें से किसी में भी नहीं है
01:07:24वही बात जो महात्मा बुद्ध की आखरी थी
01:07:26बेटा ये सब चीजें विनष्ट होती हैं बचना इन से
01:07:31वो आदमी अपनी पूरी जिन्दगी मेहनत करता रहा दूसरों को बचाने के लिए
01:07:37ऐसे लोग जब कोई बात बिलकुल जाते जाते बोले तो उसे बहुत खास ध्यान देना चाहिए
01:07:45जैसे अपनी जिन्दगी का उन्होंने पूरा सार इन शब्दों में डाल दिया हूँ
01:07:51इसे महा परिनिर्वान सूत्र बोलते है
01:07:52बोलते हैं वो जो कुछ भी संसकारित है माने बना है वो मिटेगा
01:08:03उससे बचना सिर्फ और सिर्फ निर्वान पर माने मुक्ते पर अपना ध्यान लगाना
01:08:09जो बना है वो मिटता है उसमें फसना मत
01:08:15आखरी बचन
01:08:17तुमारे जीवन का उदेश संसकारित वस्तुओं की प्राप्तियादी नहीं है
01:08:33संसकार क्या है यही जान लो जो संसकारों की उत्पत्ति को जान गया
01:08:42वो सब संसकारों से निवरत हो जाता है
01:08:47तो हम कौन है
01:08:54हम एक तरीके से वो हैं जिनके पास दुनिया की सबसे बुरी ताकत है
01:08:59दुनिया की सबसे बुरी ताकत क्या है भर्म पैदा करना
01:09:02हम वो हैं जो अपने शरीरों के माध्यम से पदार्थ में यह भर्म पैदा कर सकते हैं
01:09:07कि वो चेतन है
01:09:09दो व्यक्ति हैं
01:09:11एक नर एक मादा
01:09:12ये दोनों मिल करके
01:09:13पदार्थ में ये भ्रम पैदा कर देंगे
01:09:16वो चेतन है
01:09:16उसको क्या बोलते हैं शिशु
01:09:18शिशु की क्या परिभाशा है
01:09:20पदार्थ जिसमें भ्रम पैदा कर दिया गया है
01:09:23कि वो चेतन है
01:09:25और ये काम सिर्फ मनुष्य कर सकता है
01:09:27ये काम सिर्फ एक नर और मादा मिलके कर सकते है
01:09:29मनुष्यों के पास ही अतिघातक शक्ति है
01:09:32जो सबसे बड़ा दुश्कृत्त है दुनिया का
01:09:38वो यह यह कि तुम पदार्थ में व्यर्थ ही ये भ्रहम भर दो
01:09:41कि वो चेतन है
01:09:43और ये काम मात्र दो मनुष्य कर सकते हैं मिलके
01:09:47अब तो खेर एक मनुष्यों भी कर सकता है वे ज्यान तरक्की कर गया
01:09:49पर माने मनुष्ये ही कर सकता है
01:09:51आप बहुत साहित्य को निर्मम होकर समझेंगे
01:10:05तो कह रहे हैं कि तुम्हारे सामने जो शुशु पड़ा हुआ है
01:10:07ये जानते उनक्या है
01:10:08कि तुमने कुछ बहुत अविचित्र कर दिया है वो है
01:10:14पदार्थ है और उसमें तुमने ये संस्कार डाल दिया
01:10:19शारिरिक जैविक संस्कार डाल दिया
01:10:21कि वो जीवित है
01:10:23और अब इस संसकार के कारण ये बहुत समय तक दुख भोगेगा
01:10:29नहीं तो वो क्या था बस
01:10:32पदार्थ
01:10:35इतागे शरीर में कुछ पदार्थ था
01:10:39माता के शरीर में कुछ पदार्थ था
01:10:40दोनों अपने पदार्थ पड़े रहते बह जाते
01:10:42पर तुमने उन दोनों पदार्थों का
01:10:44तुरिशना के कारण संयोग करा दिया
01:10:46और लोग ये आ गया
01:10:47अब ये पूरे जीवन दुख भोगेगा
01:10:50नहीं तो पदार्थ पदार्थ रहा आता
01:10:54पितागी रज पितागी रज रही आती
01:10:56मातागी रज मातागी रही रही आती
01:11:12रही होगी
01:11:12माफी मांगे लेते हैं
01:11:18क्या कर सकते हैं
01:11:20इक ऐसी बाते हो रही हैं आप
01:11:26बच्चे तो भगवान का रूप होते हैं
01:11:39अब क्या करें
01:11:40अब कुछ नहीं करें
01:11:42ही तर तो भेदा नहीं
01:11:53पाहर का थैर में
01:11:57ही तर तो भेदा नहीं
01:12:04पाहर का थैर में
01:12:09जो भेदी तर लखी पर हैं
01:12:15बीतर बाहर थैरे सादो
01:12:20तर बाहर थैरे संगी सवार थी
01:12:31तुब तुम्हे रहते तो
01:12:34बाहर के संगी सवार थी
01:12:41तुब तुम्हे रहते तो
01:12:45कहें कबीर परमारती
01:12:51तुक सुक सदा हजूर रे सादो
01:12:58तुक सुक सदा हजूर
01:13:03कबीरा खड़ा बाजार में
01:13:09मांगे सब की खैर
01:13:14कबीरा खड़ा बाजार में
01:13:20मांगे सब की खैर
01:13:25ना काहूं से दोस्ती
01:13:30ना काहूं से वैर रे सादो
01:13:36ना काहूं से वैर
01:13:41जल में बसे कुपूर दनी
01:13:46जन्दा बसे आकास
01:13:52जल में बसे कुपूर दनी
01:13:57जन्दा बसे आकास
01:14:02जैसी चस की भावना
01:14:08सोता ही के पास रे सादो
01:14:13सोता ही के पास
01:14:22जन्दा बसे आकास
01:14:30जन्दा बसे आकास
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