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पहाड़ों, जंगलों और पर्यावरण को लेकर मोदी सरकार की नीयत क्या है, यह किसी से छिपी नहीं है। 'एक पेड़ मां के नाम' जैसा बड़ा भावुक जुमला फेंकने वाले जहां-तहा जंगलों को तोहफे में बांटते फिर रहे हैं। अरावली की पहाड़ियों की परिभाषा बदलने का काम भी इसी का हिस्सा है। पत्रकार उपेंद्र स्वामी की खास रिपोर्ट।
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00:00भारत में नाम बदलना और काम बदलना हर समस्या का समधान है
00:08पहले पहाड़ों का काम था जंगलों को बचा कर आबु हवा को साफ रखना
00:13लेकिन आप पहाड़ों का काम जंगल बचाने की बज़ाए पत्थरों की खाने पैदा करना कर दीजिए
00:19तो अवैद खरनन की जवाब देई का सारा जंजट ही खत्मा
00:23हमने अरावली की पहाड़ेओं के साथ ठीक यही काम किया है
00:29लेकिन अरावली ही क्यों हम अपने सारे देश के जंगलों के साथ यही काम कर रहे हैं
00:37नमस्कार दोस्तों विबाद भाशा के सब गोलमाल है काईकरम में आपका स्वागत है
00:53ठीक उन दिनों जब देश की सर्वोच अडालत दिल्ली एन सियार में प्रदोशन पर सुनवाई कर रही थी
01:01और यह कह रही थी इस मसले पर साल के दो-तिन महिने ही क्यों
01:07पूरे साल भर ध्यान देने की जरूरत है
01:09ठीक उसी समय सरकार दिल्ली की आबो हवा को एक तरफ से बचाने का काम करने वाली
01:16अरावली पहाडियों की परिभाशा ही बदलने का काम कर रही थी
01:19बड़े शातिर तरीके से उसने यह तै कर दिया
01:23कि अरावली की केवल 100 मिटर से ज़्यादा उचाई वाली पहाडियां ही अर अरावली की पहाडियां मानी जाएंगी
01:30जिने खरन से हिफाज़त मिल सकेगी
01:33बाकी उससे छोटी तमाम पहाडियों को खोद खोद कर पत्थर निकाल निकाल कर सपाट मैदान में तबदील करने
01:42बहु मनजिला इमारते खड़ी करने की छूट रहेगी
01:46हैरान करने वाली बात यह है कि केंजरी ये पद्यावरण मंत्राले के एक पैमल द्वारा की गई इन सिफारिशों को
01:53बीती 20 नवंबर को सुप्रीम कोट ने मंजूर कर लिया
01:56उसी सुप्रीम कोट ने जो पिछले कई सालों से अरावली पहाडियों में खनन के खिलाफ याचिकाओं की सुनवाई कर रहा था
02:05और गाहे बेगाई हर्याना वा राजिस्थान की सरकारों को अरावली में माइनिंग के लिए लाइन हाजिर भी करता रहा है
02:12अब आप कह सकते हैं कि उसने एक ही जटके में अपनी ही तमाम सुनवाईयों, लोगों की अपीलों और पर्यावरण जानकारों की दलिलों पर एक साथ पानी फिर दिया
02:26और भी बड़ी बात यह है कि पर्यावरण मंत्राले के पैनल ने वन सर्विक्षन विभाग यानि फॉरे सर्विय आफ इंडिया की आपत्यों के बावजूद या सिफारिशे दी है
02:37अब आप किताबों में पढ़ते रहिए कि डेड़ अरब साल से भी ज़्यादा पुरानी 670 किलोमेटर लंबी अरावली पर्वतमाला देश के सबसे पुरानी पर्वतमाला है
02:47जाहिर है कि कुछ सालों बाद आप उसे केवल इतिहास की किताबों में ही देखने ही पढ़ेंगे
02:52क्योंकि जो पर्वतमाला डेड़ अरब साल से धरती पर बनी हुई थी
02:57वह हमारे लालच के आगे कुछ ही वक्त की मेमान है
03:01फॉरेस सर्वे के आकड़े बताते हैं कि अरावली पर्वतमाला में 12,081 पहाड़ियां है
03:08जिन में से 8.7 फीजदी पहाड़ी ही 100 मिटर से अधिक उची है
03:13अरावली पहाड़ों की परिभाशा बदलने का मतलब हुआ
03:16कि अब 91.3 फीजदी पहाड़ियों में खनन किया जा सकता है
03:20यह दिगर बात है कि इन कारवे फीजदी में से बहुत कुछ पहले ही खान माफियां के हापों साफ की जा चुकी है
03:27अब उन्हें आधिकारिक सर्टिफिकेट मिल जाएगा
03:30अरावली के कई लागों पर खनन माफिया की नजर है
03:34लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी
03:37कि 2010 से ही तमाम सरकारी या कोट नीव्त विसेशग्यों का ध्यान वसारा जोर
03:44अरावली को बचाने से ज़दा अरावली की परिभाशा दय करने पर ही है
03:49ताकि देखा जा सके कि किस किस हिस्से को अरावली की परिभाशा से बाहर करके
03:55खनन के हवाले किया जा सकता है
03:58जाहिर है लोग हैरान है कि जो सुप्रीम कोट दिल्ली NCR के प्रदुशन को लेकर
04:05इतना होहला कर रहा है वह क्या सोच रहा था
04:09क्या अरावली पहाड़wen के काटने से दिल्ली का प्रदुशन कम हो जाएगा
04:14फिर भ़ला दिल्ली का 7-9पीस दी कारबन सोखने वाली पहाड़यों को
04:20काटने की पर्मिशन उसने क्यों दे दी है
04:22हर्यणा में जहां भी अरावली की पहाड़यों में खनन किया गया है
04:28वहाँ भूजल का इस तर हर साल एक मिटर तक गिर रहा है
04:32अब क्या होगा?
04:33इसे शक ये मताते हैं कि अरावली की उची पहाड़ियां PM 2.5 जैसे हलके प्रदूश्कों को रोकती है
04:40लेकिन छोटी पहाड़ियां भी रेत व भारी प्रदूश्कों को हवा के भाव से रोकती है
04:46अरावली की पहाड़ियों को एक विंड बेरियर के तोर पर माना जाता है
04:50जो पश्चिमी राजिस्तान में पसरे थार के रेगिस्तान को आगे बढ़ने से रोकता है
04:56अब वह बेरियर खत्म हो जाएगा
04:58और ध्यान रहे रेगिस्तान ने पाउं पसारे
05:02तो वह केवल दिल्ली पहुँचकर रुक नहीं जाएगा
05:05बलकि गंगा यमुनार नर्मदा के मैदानों तक भी तपिश पहुँचाएगा
05:09फिरा बंजर जमीनों नष्ट होती खेती बढ़ते प्रदूर्शन और जलवायू परिवर्तन का रोना रूते रहिएगा
05:17चोगी तब कुछ नहीं बदला जा सकेगा
05:20इतना ही नहीं निचली पहाडियां जंगलों को भी बचा कर रगती हैं
05:24अरावली की इन निचली पहाडियों में दिल्ली से लेकर दक्षन राजिस्थान में उदैपूर बांसवड़ा तर कई जंगल पस रहे हैं
05:32अब उन सब पर खत्रा मंट राएगा
05:34दिल्ली वालों को तो बहुत अच्छी तरह से पता है
05:37उनके सबसे नजदीक की दो टाइगर रिजर्व सरिस्का और अरंठंबोर इनी अरावली पहाड़यों में बसे है
05:43खनन की छूट मिल गई तो अरावली के उन जंगलों का क्या होगा
05:48जो किसी सैंक्चूरी के दायरे में नहीं आते हैं
05:51क्योंकि सैंक्चूरी के चारों तरफ खनन होने लगा
05:53तो जानवरों की आवा जाये के कॉरिडोर खत्म हो जाएंगे
05:57इस खनन का असर देर सबेर सैंक्चूरी के भीतर के जंगलों पर भी पड़ेगा
06:03क्योंकि आसपास पेड़ कतने से भूजल का इस्तर गिरेगा प्राक्रतिक जंगल सूखेंगे
06:10लेकिन क्या वाकई किसी को अरावली के चिंता है
06:13अब आप कह सकते हैं कि जब हस्देव जैसे दुरलब जंगलों की या ग्रेट निकुबार जैसे पाकिजा इलाकों की चिंता सरकार को नहीं हुई
06:22तो अरावली की क्यों होगी यह सच है
06:25यह सच इसलिए है कि परिभाशा बदलने का काम केवल अरावली के सिलसले में ही नहीं हुआ है
06:31हमने तो जंगलों की ही परिभाशा बदल दी है
06:34इसलिए एक तरफ तो धड़ा धड़ देश भर में जंगल काटे जा रहे है
06:39सरकार के खास दोस्तों को उनके पसंदिदा प्रोजेक्ट के लिए तोफे में दिये जा रहे है
06:45वहीं कागजों पर हमारा फॉरेस्ट कवर कम नहीं हो रहा
06:49क्योंकि अब हमने जंगलों की भी परिभाशा बदल कर
06:52उसमें सारवजने बगीचों और यहां तक के चाय कॉफी बागानों को भी शामिल कर लिया है
06:59पेडों के छोटे जुर्मुट भी अब जंगल में शामिल किये जाने लगे है
07:03परियावर मामलों पर लिखने वाले पत्रकार एम राशेखर बताते हैं कि
07:07फॉरेस्ट सर्वे के अनुसार वेश का 20 फीसली से ज़्यादा हिस्सा वन अच्छा दित है
07:13लेकिन इन आंकडों में वन का मतलब क्या है
07:16क्या यह सारे जंगल वा इकोसिस्टम दे पाने में सक्षम है जो जीवन के लिए जरूरी है
07:22जैसे कि ऑक्सिजन वा पानी
07:24माना यह जा रहा है कि इस काम के जंगल का हिस्सा तो 10 फीसली से ज़्यादा बिल्कुल नहीं है
07:30या शायद उससे भी कम
07:32पध्यावरन मामलों पर लिखने वाली लेब साइट कार्बन कॉपी के लिए
07:36पिछली दिनों अपने लेक में राश्यकर ने बताया था
07:39कि बहरादून स्थित फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया
07:44यानि FSI के अनुसार देश का फॉरेस्ट कवर 1987 में
07:496,42,401 वर किलोमेटर से बढ़कर
07:542023 में 7,15,342 वर किलोमेटर हो गया
07:59तो और इस हिसाब से देश के भावलिक शेत्रफल का
08:0221 फीजदी से कुछ जबा हिस्सा वन आच्छा दित है
08:06लेकिन राश्यकर की रिपोर्ट के अनुसार बाके विसेशग्य इन आकडों से सहमत नहीं है
08:11हैजराबाद इस्थित सरकारी रिमोर्ट सेंसिंग सेंटर के मताबिक
08:15देश का फॉरेस्ट कवर ना केवल FSI के दावे से 45,000 वर्ग किलोमेटर कम है
08:23बलकि देश में फॉरेस्ट कवर बढ़ नहीं रहा उल्टे घट रहा है
08:28अमरिका इस्तित ग्लोबल फॉरेस्ट वाश के अनुसार भी भारत का वन आच्छा दित शेत्र
08:34FSI के आकड़ों से बहुत कम महस 4,4,000 वर्ग किलोमेटर है
08:39यानि देश के भॉगलिक शेत्रफल का मात्र 15 फीस दी
08:44यह भी सच है कि जंगलों से खिलवार का या सिलसला पिछे 10-11 सालों में तेज हुआ है
08:49और बाकायदा कानून बना कर हो रहा है
08:52जैसे 2023 का वन संदिक्षन संशोदन अधीनियम जिसमें तमाम प्रोजेक्टों के फॉरेस्ट कलियरेंस को एक तरह से मजाग बना दिया गया है
09:01इससे पहले 2020 में Environmental Impact Assessment नियम हो और 2018 में Coastal Regulation John Act में भी नियम लगाता लचिले किये जाते रहे है
09:12अब आप इस प्रष्ट भूमें अरावली के फैसले को देखिए और देश में स्तितियां सुधारने के बजाए परिभाशा हैं बदलने के प्रवधित की और देखिए
09:21और यह भी समझे कि हमारे व्यवस्थाओं की बातों में कितना विरुदाभास है
09:27मैं यह आपको अरावली पर सुप्रीम कोर्ट की हरी जंडी के बाद से पिछले कुछ दिनों की घटराओं के उधारन भी पेश करता हूँ
09:37सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पारदीवाला ने हर्याना में भाजपा दफ्तर तक की सड़क चौड़ी करने के लिए
09:4440 पेड़ों को काटने पर अधिकारियों के आड़े हाथ हो ले लिया
09:48देके रावली का क्या
09:50उधर राजिस्थान में दुस्ता हस देखिए
09:53कि भीलवडा जीले में कोईला माफिया ने सरकारी अधिकारियों के साथ मिली भिखत करके
09:59रातों रात दो सो भीगा जमीन में से सारे पीड सफाचर कर डाले
10:05ऐसे ही खबार आए कि 36 गड में भाजपा सरकार ने लेमुरू वन भूमी अडानी को सौपने के सिफारिश कर दी है
10:121742 सेक्टेर लेमुरू वन भूमी जो जमीन आदिवासियों हाथियों और पर्यावरन के लिए संदक्षित थी
10:20आज कॉर्पोरेट के हवाले की जा रही है
10:2336 गड में ही अडानी को सौप दिये गए हस्देव के जंगलों के बारे में तो हम सब जानते ही है
10:29देश के सबसे विविद्धा भरे एकोसिस्टम को तमाम वीरोजों के बावजूद आखिरकार नश्ट कर दिया रहा
10:37तमाम चिंताओं के बावजूद ग्रेट निकोबार को भी क्या हम बचा सकते हैं
10:43इसकी कोई उम्मीद नहीं नज़र आ रही
10:45निकोबार में 130 वर किलोमेटर में बेहद अनूठे रेंट फॉरिस्ट
10:50उनमें लगे 10 लाख पेड वहां के खास वन्य संपदा वजीव
10:55कई ऐसी किसमें जिनके बारे में दुन्या को पता ही नहीं
10:59इन सब को नश्ट होने के जोखिम में हम डाल रहे हैं
11:03दरसल एम राजशेखर ने कार्बन कॉपी के लिए एक अन्य रिपोर्ट में कहा है
11:09कि साल 2017 तक भारत में महस 34,000 वर किलोमेटर ही अच्छुते जंगल बचे थे
11:15इन में से 660 वर किलोमेटर अच्छुते जंगल निकुबार
11:20उसमें से भी मुख्यतया ग्रेट निकुबार में बचे थे
11:24जब डराने वाली बात यह है कि अब तीन चरणों में इस द्वीब के सारे जंगलों को काट डालने की योजना है
11:31एक अन्य खबर में मध्यपदेश के सिंगरॉली से दैनिक भासकर ने रिपोर्ट की
11:36कि वहाँ एहमदाबाद के अब्ध्योग पती के लिए 6 लाख पेड़ काटे जा रहे है
11:42लोगों ने इसका विरोध किया तो उल्टे 6-6 लोगों पर केस कर दिया गया
11:47यह एक अन्तहीन सा सिलसला है जोकि फेहरिस्थ लंबी है
11:52कुछ निजी हीतों के चक्कर में देश के जंगलों और उनसे जुड़े एकोसिस्टम को कुर्बान किया जा रहा है
11:59ऐसे में भला आवरावली को बचाने की सुद्ध इसको पड़ी है
12:03ऐसा नहीं है कई जगों पर लोग विरोध तो कर रहे हैं
12:09जैसे कि ये खबर जिसके नुसार गंगोत्री इलाके में
12:12साथ हजार देवदार पेड़ों को बचाने के लिए चिपको जैसा अमदूलन करने की योजना है
12:18और उससले में आज हरशिल से भैरव गाटी के बीच एक हजार लोग पेड़ों को रक्षा सुत्र बांद रहे हैं
12:25लेकिन इन सारी कोशिशों विरोधों का कोई असर पड़े तब तक यही सही
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