रक्षा के क्षेत्र में नए-नए इनोवेशन हो रहे हैं. इसी कड़ी में DRDO को बड़ी सफलता मिली है. इसने कम्यूनिकेशन का स्वेदेशी सिस्टम डेवलप किया है. जिसका उपयोग वहां किया जा सकता है. जहां मोबाइल और सैटेलाइट नेटवर्क नहीं हो. या फिर इन नेटवर्क के हैक होने का खतरा हो. डिजास्टर के वक्त जब सारे कम्यूनिकेशन सिस्टम फेल हो जाते हैं , CTCS काम करेगा. इस कम्यूनिकेशन सिस्टम में ऊंचे-ऊचे पहाड़ भी रुकावट नहीं बनेंगे. इस सिस्टम को देहरादून स्थित DRDO की DEAL ने डेवलप किया है.आइये जान लेते है कि आखिर क्या है CTCS टेक्नोलॉजी ? इसका पूरा नाम कॉम्पैक्ट ट्रांसहोराइजन संचार प्रणाली है. जो एक पोर्टेबल कम्यूनिकेशन टर्मिनल है. वायुमंडल के ट्रोपोस्फीयर लेयर के जरिए रेडियो पाथ का इस्तेमाल करता है. जो पहाड़ी इलाकों में भी वायरलेस लिंक बनाने की क्षमता देता है. आपदा की स्थिति में भी काम करता है. इसके थ्रू भरोसेमंद IP नेटवर्क कनेक्टिविटी बनती है. इसमें AI इनेबल्ड CTCS लिंक प्रेडिक्शन सॉफ्टवेयर भी इंटीग्रेटेड है. सेटअप करना आसान है. आसानी से एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है.हिमालयन क्षेत्र में सबसे ज्यादा आपदाओं का सामना करना पड़ता है. सबसे ज्यादा लैंड स्लाइड और एवलांच इस रिजन में आते हैं. इस वक्त संचार को कोई साधन नहीं होता. ऐसे में डीआरडीओ का ये सिस्टम कम्यूनिकेशन का काम कर सकता है.CTCS टेक्नोलॉजी का लगातार दुर्गम क्षेत्रों में परीक्षण किया जा रहा है. जहां पर जाना मुश्किल है. इसी के चलते मिनिस्ट्री ऑफ़ होम, आर्मी और नेवी के द्वारा DRDO के इस CTCS सिस्टम की सबसे ज्यादा डिमांड है.फिलहाल डीआरडीओ के द्वारा डेवलप इस कम्यूनिकेशन सिस्टम का ट्रायल गुजरात में किया गया. इसके अलावा देहरादून में भी लगातार अलग-अलग जगहों पर इसका परीक्षण चल रहा है.
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