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Transcript
00:00जनम जनम के पाप मिटे मुक्ति का यही उपाए
00:16पापा कुण शाय का दशी की गाथा सुनो सुना
00:26गाथा सुनो सुना
00:56कशन माह की शुकल पक्ष को एका दश जो आए
01:14जिधी विधान से भग्म नाभता पूजन जो कर पाए
01:19किसने किसको कही सुनाई सुन लो ज्यान लगाए
01:25जिस जिसने ये कथा सुनी वो अब सादर कर जाए
01:31कही किष्ण भगवान ने युधिश्चिर को थी सुनाई
01:45हर्म राज युधिश्चिर ने ये सुनी थी चित लगाए
01:51जिसके सुनने से प्राणी के पाप नश्ट हो जाए
01:56पतीत पाविन पापा कुशा एका दश कहलाए
02:02पापा कुशा एका दश के प्रत कर दे जो प्राणी
02:19धोर तपस्या का फल मिलता ये भगवान की वाणी
02:24जै जै जै भगवान जरुड़ भग कर लो इन्हें प्राणाब
02:30सब ती रख का फल मिलता है जब लो हरी का नाव
02:49सर्ग मोख्ष और अनधन देता रत है पुन्यवान
03:10अनधन वैभव सुक सम्रिद्धि का मिलता वरदान
03:17अपनी चरण लगाते चतुरभुज जखते भगत कमान
03:22पीड़ी दर पीड़ी तर जाए प्रत है ये इक नमान
03:28इस एका दखिदान करे जो वो हरी के मन भाते
03:42सभी न होती दुरगती उनकी ले सब सदगती पाते
03:48छमता के अनसार जो उनने गर्म कमाते
03:53उनकी डूबी नईया भगवन भव से पार लगाते
03:59जिन का धान नहीं भगती में वो सब बड़े अभागे
04:16हरी का धान करे जो उनकी सोई किसमत जागे
04:21जो भी कठा सुनेगा उसके रोग दोश सब भागे
04:27भगवन बोले सुनो युधिश्चिर खठा कहूं मैं आगे
04:33लुधिश्चिर ऑफवन बोले सोई किसमत वप दोश जागे
04:38एक समय बिन्धे बरवत पर एक बहेलिया रहता
05:08जो धन नाम से चर्चित था वो दुश कर्मों में रहता
05:14पाप कर्म हिसा और हत्या दूट पाट भी करता
05:19करता था अप राध बड़े वो दया भाब ना करता
05:25समय भीत ता गया बुढ़ापा उसके उपर छाया
05:39चलना पाता था एक पगभी निर्बल हो गई काया
05:45ताकत और अभिमान ना रहा आम ना आई काया
05:51अन्ति समय जब यमदूतों का उसे बुलावा आया
06:07आप पहुचे यमदूत महा बोले हम तल आएंगे
06:13होगा अन्तिम दिबस्त में हम संग ले कर जाएंगे
06:19मृत्यू के डर से वो पापी मन ही मन घब राया
06:24नर्त भोगने के डर ने अब उसको बहुत सताया
06:49हो गया वो भैभीत का अपने लगा थडर के मारे
07:05जा पहुचा महरशी अंगिरा के आश्रम के दारे
07:11गिर के महरशी के चरियों में करने लगा पुकार
07:17कहने लगा है रिश्वर मेरा कर देना उधार
07:23मैंने अपना सारा जीवन पाप करम ही किये हैं
07:37मेक करम से धूर रहा मैं सब को कश्ट दिये हैं
07:42भोग न होगा नर्त मुझे और मिलेंगी आतनाए
07:48ऐसा कोई जतन करो की मुख्ष मुझे मिल जाए
07:53बोले महरशी सुन ले को धन भात ये जान लगाए
08:10पापा तुन शाय का दशिका रत है एक उपाए
08:16विधी विधान से पापा तुन शाय रत जो तू कर जाए
08:21पापों से मुख्ष भी हो तेरी मुख्ष जे मिल जाए
08:27जाए
08:33सुन कर वचन महरशी के उसने संगल को उठाया
08:39सुन कर वचन महरशी के उसने संगल को उठाया
09:03बोला रिशिवर आभारी हूँ मारग मुझे बतलाया
09:08सुबह सबेरे उठा बहे लिया करने रत की तयारी
09:14धूप दीप फलका ना दी ले आया समगली सारी
09:20भग की भाव उस मन में उसने हरी का जान लगाया
09:34विधी विधान से रत करने के नियम को भी अपनाया
09:39मोन रहा वो कुछ ना बोला रत के नियम को माना
09:45करी प्राथना मुझे को कबुजी अपनी शरण लगाना
10:02अगले दिन जब आ पहुँचे जम दूदू से लेने को
10:07आगे ना बढ़ पाया कोई रोधन को जूने को
10:13जान लगाये पापा कुशा रत करता वो दीखा
10:19भूज रहा था नाम वहाँ पर पद्म ना भुश्री हरी का
10:24भूज रहा भूज्ड भूज लगाँ
10:30लोट गए यम लोग सभी वो बेखा चमत कार
11:00पापा तुम शावरत है ऐसा वृत्यू भी माने हार
11:05पाप कटे और मोक्ष मिले चरणों में करो प्रणाम
11:11जै जै जै बैकुंत धाम जै जै जै श्री हरी नाम
11:16जै जै श्री हरी का नाम
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