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00:00जेन साधिका थी, तो इतने से जो अपने बुद्ध थे, वो लिये लिये फिरती थी, कहते थी मेरे बुद्ध, मेरे बुद्ध, और इधर उधर जाए और उसको अपना आचल में छुपाए हुए, इतने से बुद्ध उसने बनाये थे, क्यूट, और उनको अपना लिये लिये
00:30तमाम बड़ी बड़ी मूर्तियां बुद्ध की, ये मूर्ति, ये मूर्ति, ये मूर्ति, तो उसने प्रवेश किया वहां का जो केंदर ये कक्ष था उसमें, भीमकाय बुद्ध खड़े हुए, इधर भी, उधर भी, उधर भी, और खड़े ही भर नहीं हुए हैं, उनको बड
01:00तो उसने ये देखा, फिर उसने अपने बुद्ध को देखा, मेरी ये तो कलत बात है, ऐसे कैसे होगे है, ये नहीं चलेगा, तो वो मौका देखके ऐसे समय आई फिर वहाँ पर जब कोई नहीं था, तो उसने वहाँ जाकर के एकदम बीचों बीच अपने छोटू रख दिये
01:30लगा दी, और सब फूल उनके आसपास कर दिये, कौन है ये, मेरे बुद्ध, ये करके वो अपना बढ़िया, सोने चली गई, अब इनको सही स्थान मिला है, आती है सुबह लोट आट की तो क्या देखती है, वो पूरे काले हो चुके, बुद्ध का मुह भर ही नहीं, पूर
02:00बड़ी प्रतिमा है, उसके नीचे थोड़ी अगर बत्ती लगा दो तो चल जाता है, छोटी सी चीज उसमें बहुत सारी आपी लगा दोगे, तो कारवन सूट वो जाकर जम गया, तो वहाँ पर जो थोड़े बुद्धी भिक्षू थे, उन्होंने देखा, वो मुस्कुरा
02:30तो बुद्ध तो नहीं था, लेकिन इस घटना से सीख लोगी, तो उसमें है, समच्वारी बात, जहां बुद्ध मेरे बुद्ध बन गए, वहां बुद्ध से कुछ भी सीखने की समभावना समापत जाती है
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