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  • 13 hours ago

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00:00नदी सागर में कुछ भी ला रही हो, सागर सागर ही रहता है
00:04वो उसको अपनी पहचान नहीं बनने देता
00:08न सागर की हस्ती बदल जाती है नदी से
00:12न सागर की प्रक्रते सागर का लहराना निर्धारित होता है नदी से
00:18वो सब को अलिंगन में ले रहा है और कह रहा है
00:30कर्मनेता नहीं होता है
00:31उसका मतलब बस ये होता है
00:34कि करूँगा खूब करूँगा
00:36लेकिन हमें बंधनों की इतनी आदत है
00:39कि अगर कोई कहता है कि
00:40बंधनों में काम मत करो
00:42तो हमें सुनाई देता है काम मत करो
00:43कृष्ण कह रहे हैं
00:46कि कामना वासना हंता मंता में मत जी हो तो हमें सुनाई क्या दे रहा है मत जी हो गुरू भूल भूलाईया के अंदर ही होता है यह भूल भूलाईया है और बाहर निकलने का दर्वाजा भी इसी के अंदर ही अब यह तुम्हारे उपर है कि तुम उसके किस सिरे से नाता बनाते
01:16चुकी है उसके बीच में और संसार के बीच में वैसा ही रिलेशन होता है जैसा सागर और नदी का होता है नदी कुछ भी डाल सकती है उसके अंदर और अगर चाहे तो कुछ भी निकाल भी सकती है लेकिन सागर में कोई reaction नहीं देखने को मिलता उसे कोई फरक नहीं पड़ता क
01:46है तो वो कैसे डिसाइड कर सकते हैं कि रियक्शन कि बातों पर करना है या नहीं करना है क्योंकि असल माइने में तो इलेजिबल भी वही है रियक्ट करने के लिए जो भी संसार में हो रहा है तो एक जो मौरल कमपस होता है या फिर सही और गलत के बीच में क्या सही है क्या गल
02:16react बहुत जादा किया है और हर चीज़ पर किया है वो जब समय के बारे में काल के बारे में पढ़ रहा था तो उन्होंने
02:23redemption के point of view से सारे दोहे कहें हैं कि अब तो इतनी उमर हो चुकी है अब तो पढ़ लो या फिर अब तो संसार से जाने वाले हो अब तो हरी का नाम ले लो इस तरीके की बाते कही हैं कि वरना redeem कर लो आखरी समय में तो redeem कर लो जब animal cruelty की बात होती है तो वो बिलकुल क्या सही है क्य
02:53और मुक्त होना या फिर उचीच इतना होने में जब कहते हैं कि कोई फरक नहीं पड़ता उस इंसान को तो वो कौन से फरक की बात हो रही है वहाँ पर कि किन चीज़ों पर उसको फरक नहीं पड़ता है या किसी भी कोई भी चीज़ों के जिस पर फरक नहीं पड़ेगा उन
03:23नदी सागर में कुछ भी ला रही हो, सागर सागर ही रहता है
03:29न सागर की हस्ती बदल जाती है नदी से, न सागर की प्रक्रते सागर का लहराना निर्धारित होता है नदी से
03:42कि जो कुछ आ रहा है वो आपको बदल नहीं देता आप रहते हो और आप रहते हुए अपनी मुक्ति से अपनी स्वच्छंदता में आप जो करो वो आप करते रहते हो
04:09यह थोड़ी का जा रहा है कि आप कुछ भी नहीं करते हो आप जो भी करते हो वो प्रभावित हो कर नहीं करते हो करने को कौन रोकर आया
04:18आपने कहा कि कोई मुक्त भी हो जाए तो भी उसका शरीर तो यहीं रहेगा
04:25अरे शरीर थोड़ी चलता है
04:26शरीर तन चलता है मन से और मन चलता है अहम से
04:32जब अहम आत्मा हो गया तो मन भी आत्मा से चलेगा
04:37और मन आत्मा से चलेगा तो तन भी आत्मा से चलेगा
04:40दिखिए
04:45संसार से अप्रभावित अच्छूते होने का अर्थ निश्क्रेता या अकर्मन्यता नहीं होता है
04:53उसका मतलब बस ये होता है कि करूँगा खूब करूँगा
04:58आज के शलोक में भी कृष्ण कह रहे हैं कि वो चलता रहता है
05:02ये थोड़ी कहा है कि वो रुक जाता है
05:04चरती चलता तो है ही काम तो करता ही है
05:09मुक्त होकर काम करता है
05:13लेकिन हमें बंधनों की इतनी आदत है
05:16कि अगर कोई कहता है कि बंधनों में काम मत करो
05:21तो हमें सुनाई देता है काम मत करो
05:22कृष्ण कह रहे हैं भाई बंधनों में काम मत करो तो हमें सुनाई क्या दे रहा है कि कामना वासना हंता मंता में मत जीओ तो हमें सुनाई क्या दे रहा है मत जीओ
05:38ये तो हमारी आदत का तकाज़ा है इसमें कृष्ण बचारे क्या करें
05:44अरे सागर को नदियों को आगोश में लेना है सब का स्वागत करना है
05:54सब को ठिकाना देना है नहीं वो विरोध कर रहा किसी का भी
05:59लेकिन वो नदियों को ये अधिकार भी थोड़ी दे रहा है कि आओ और सर पे चड़ जाओ सागरी बन जाओ
06:05वो कहा रहा है मैं महा सागर नदियां सब है छोटे छोटे बच्चे हैं खिलोने आ जाओ तुम भी आओ ले लो हमारा कुछ नहीं जाता
06:11लेकिन हम करेंगे तो वही न जो हम हैं सागर का कृत्य सागर समान होना है नदी समान नहीं होना है बस ये मुक्ति का मतलब है
06:24मुक्ति का मतलब ये नहीं है कि किसी को छूना नहीं है नदी से कहना है दूरट
06:31मैं पुरुष हूँ तू प्रक्रतिय आगी भरष्ट करने बारबर चली आती है तू भी आ जाती है नजाने कितनी सारी तो तुम हो
06:38कोई धर से घुसरी कोई धर से घुसरी छोटी बड़ी लंबी चोड़ी हरी काली नीली पीली हर रंकी होती है आ जाती है किसी को मना नहीं कर रहा है
06:46वो सब को अलिंगन में ले रहा है और कह रहा है तुम सब भी आ जाओ तो भी मैं तो रहूँगा सागरी
06:52हाँ तुम मुझसे रिष्टा बना सकती हो तुम क्या तो मैं सरिता हूं मैं सागर के लिए हूं तुम को जो रिष्टा मुझसे बनाना है बना लो लेकिन मैं सागर हूं मैं असंबंधित रहता हूं यह आत्मा की पहचान असंबध है वो असंग है वो अद्वायत है वो नहीं क
07:22मिल गए तुमसे अपनी हस्ती खोदी
07:24कभी सुना है कि सागर नदी हो गया
07:27अरे नदी
07:30का सौभाग्य है
07:33नदी की
07:35गति का अंत है कि नदी सागर
07:37हो जाए
07:37नदी का धर्म है सागर हो जाना
07:41और सागर का इतना ही धर्म है कि
07:43कि जब नदी आये तो उसको सुईकार कर लेना कोई विरोध न करना यहां बरावरी का खेल नहीं चलता कि नदी सागर हो गए इसागर नदी हो गया अर उल्टा बहने लग गया सोचो सागर नदीयों में उल्टा बहने लग जाए हमारा क्या होगा
07:56हम नदीयों में बाढ़ा जाए गड़बड हो जाएगी नदी सम्हाल ही नहीं सकती न सागर को
08:01दोनों में अगर कोई पारस्परिक संबंध है भी
08:07कोई बराबरी की बात करो भी कि दोनों तरफ से धर्म क्या है
08:10तो नदी का क्या धर्म है
08:11कि वो जाएगी सागर मिलेगी ये सब करेगी यो करेगी अपना
08:15सागर का क्या है कह रहा है मैं अनन्त हूँ
08:17मैं अनंत हूँ
08:20और मैं अधिक्षदे कितने ही कर सकता हूँ
08:22कि अनंत होते हुए भी
08:23अपने दौार जो सांत है
08:27जो सीमित है
08:30मैं उसके लिए भी अपने दौार
08:32निर्बाद खोले रखो
08:34सब नदियां आओ
08:35आओ बारिशों तुम भी आओ
08:37लोगों को आना है
08:38इतनी सब प्रजातियां क्या क्या नहीं सागर्म है
08:40सब के लिए मैं उपलब्ध हूँ
08:42यह उपलब्धता ही धर्म है
08:44अनंत का
08:46अनंत का धर्म है वो उपलब्ध है
08:50और पूरी तरह उपलब्ध है वो बेशर्ट उपलब्ध है
08:52नदी का धर्म है कि जो उपलब्ध है उसको तुम अपने लिए उपलब्ध कराओ वो उसकी ओर से उपलब्ध है सागर तो सागर कितनी नदियां होती है वो खो जाती है रेगस्तानों में सागर तक कभी पहुँचती नहीं नदी का क्या धर्म है जो उपलब्ध है उस तक तु
09:22अब जो कर रहे हैं उन दीया कर रहे हैं और तमाम तरह के नाले भी हैं दुनिया जो कचघाला के डाल रहे हैं आप तो मैं कुछ हूँ नहीं इसागर क्या को होते हैं वो कर रहा है उन कामों का नदियों कुछ पता ही सब नहीं follows 2
09:38आत्मा करती ये कृड़ा प्रकृति को क्या पता लेकिन हम ये सब नहीं जानते हम आत्मा नहीं है हम अहम है तो हम वही गतिविधी जानते हैं जो हम में प्रतिक्रिया स्वरूप होती है प्रकृति के
09:53तो आप reaction शब्द का इसलिए बार-बार इस्तेमाल कर रहे हैं
09:58क्योंकि आज तक हमने जिंदगी जी ही वही है
10:00एक प्रतिक्रिआ में हमने जिंदगी जी है
10:03कुछ होआ तो हमने भी पलट करके कुछ किया
10:07कुछ होआ तो हमने ही पलट कुछ किया
10:10और जो हो रहा हो का हो रहा हो प्रक्रति में हो रहा है अब सच्चा ही तो है कि हम महान आत्मा है जिसके सामने प्रक्रति बड़ी छोटी बात है कोई बहुत विवस्ता नहीं है कि कुछ हो रहा है तो तुम पलट के कुछ करो इसका मतलब यह नहीं कि तुम कुछ नहीं करो इसक
10:40से गतिविधिस से कोई लेना ही देना नहीं है
10:42इसमें होती है फिर्शान
10:44ये मौज की बात है
10:45कि अब मैं
10:49विवश नहीं हूँ
10:51कि सामने से
10:56गोली आई तो इधर से भी गोली चलेगी
10:58सामने से गाली आई तो इधर से भी गाली चलेगी
11:00भीतर से
11:08भूख उठी है तो बुद्धि भोजनी तलाशेगी मैं मजबूर नहीं हूं प्रकृति अपना काम करती है मैं स्वागत कर रहा हूं प्रकृति का मुझे उसमें बंधन डालने की बाधा डालने की कोई अब मजबूरी नहीं है प्रकृति नदियां सब अपना काम कर रही है हम �
11:38तो फिर होता सवंदर रहा हूं हम बहुत कुछ करेंगे लेकिन अपनी स्वाधिनता में करेंगे हम प्रकृति के आधीन होकर नहीं करेंगे हम स्वा के माने आत्मा के आधीन होकर अपनी स्वाधिनता में करते हैं स्वाधिनता में करने का मतलब न करना नहीं होता स्वाधिन
12:08कर दिया तो देखो कितना उसने घोर कर्म कर डाला जब मुक्त नहीं था तो रियाक्शन दे रहा था किसको दे रहा था
12:16अपने भाव को दगर रहा था अब उसके भीतर से मौ भै आ सकती यह सब भाव उठ रहे थे और जो संसकार थे वो भी सब प्राकृति की ना बहर से आये हैं सब संसकार उठ रहे थे भीतर से कि यह हो जाएगा वो हो जाएगा
12:33स्वर्ग नर्ग के तमाम लफड़े हो जाएगे समाज में दोश अराजकता आ जाएगा यह सब सोच रहा था यह सब प्रतिक्रियाएं थी श्री कृष्ण ने उसको प्रतिक्रियाओं से मुक्त कर दिया प्रक्रति से मुक्त कर दिया जब आप प्रक्रति से मुक्त हो जाते ह
13:03निर्देशित होकर या प्रकृति को प्रतिक्रिया देकर जब आप कोई काम करते हो तो काम लुंजपुंजी होता है, हलका फुलका
13:11थोड़ा में होती करते हो, जाद थोड़ी कुछ करते हो
13:17भई किसी ने आपको थपड मारा तो आप पलगे दो थपड मार दोगे
13:21छे सो थपड थोड़ी मारते हो
13:23किसी ने आपका 10 रुपया लूटा, आप उसके 20 लिए उट लेते हो, यही तो करते हो
13:29तो प्रतिक्रिया में आप जो भी करते हो सीमिती होता है
13:32आप के तो जितना प्रकृति ने करा, मैं उसी अनुपात में मैं भी कुछ कर दूँगा
13:36कोई मेरे लिए बहुत भला है, तो मैं भी उसके लिए वो जितना भला था
13:41उससे 20 प्रतिशत कम नहीं, तो 20 प्रतिशत ज्यादा भला हो जाओंगा
13:45तो उसमें एक अनुपात निर्धारेत रोता हो, सीमा होती है
13:47और जब आप बिना किसी विवश्ता के, बिना किसी प्रतिक्रिया के कुछ करते हो
13:56तो वो अनन्ठ आत्मा से निकलती है चीज, वो अनन्ठ ही होती है, उसको रोका नहीं आ सकता
14:01अनन्ठ है तो उसका कोई अन्ठ नहीं कर पाएगा सानी से
14:02जंत नहीं कर पाएगा ऐसे आत्मी को रोकना बहुत मुश्किल है जो मझबूर होकर या किसी प्रतिक्रिया के कारण न लड़ रहा हो न चल रहा हो एसे को नहीं रोक पाऊगे क्योंकि आप उसकी गति का कारण नहीं तलाश पाऊगे न किसी चीज को रोकने के लिए उसका कार
14:32नहीं है उसके आत्मा है आत्मा कारण नहीं होती है आत्मा अकारण होती है जो व्यक्तिक किसी लालच पर चल रहा है किसी वजह पर चल रहा है बहुत दूर तक नहीं चल पाएगा उसके चलने की वजह प्राक्रतिक है सीमित है वो वजह कभी न कभी चुक जाएगी वो व्य
15:02और जो बोध उपर चल रहा है उसका चलना अनन्थ होगा उधारण देता हूँ
15:20अंग्रेज भारत पर च्छाय हुए हैं और आपको पसंद नहीं आता कि कोई आप पे चड़ा हुआ है तो आपने कहा आजादी
15:28अगर आजादी की आपकी मांग सिर्फ एक प्रतिक्रिया है अंग्रेजों के आधिपत्य की
15:36अंग्रेजों ने आप पर अधिकार कर लिया और जब कोई आप पर अधिकार करता है तो प्रतिक्रिया तो उठती है न गुस्सा उठता है विरोधाता है
15:46तो आपने प्रतिक्रिया करी
15:48तो आप बहुत जल्दी संदुष्ट हो जाएंगे
15:50आपका जो विद्रो है बहुत आगे तक नहीं जाएगा
15:52देश को आजादी मिलेगी आपका विद्रो समापत हो जाएगा
15:54ज्यादा तर करांतिकारी
15:561947 के बाद कही नजर नहीं आते
15:58समझ में हारी बात
16:01लेकिन जिनको मुक्ति चाहिए थी
16:04वो नहीं रुके 47 के बाद भी
16:05क्योंकि एक चीज होती है
16:09कि वो मेरे घर में घुसाया मैं उसे अपने घर से निकाल दूँ
16:12वो मेरे घर में घुसाया मैं उसे अपने घर से निकाल दिया
16:15मेरा विद्रो समाप्त हो गया
16:18लेकिन जो मुक्ति के पिपासू है
16:23उनका थोड़ी समाप्त हो गया
16:24उनका तो फिर चलता रहता है
16:25लगातार चलता है
16:26वो कहते हैं राजनेतिक आजादी
16:30तो बस एक मील का पत्थर है
16:32हमें तो बहुत दूर तक जाना है
16:33हमें तो पूर्ण मुक्ति चाहिए
16:36छोटी आजादी से काम नहीं चलेगा
16:38पूरी आजादी चाहिए
16:40अब पूरी आजादी में तो फिर पता नहीं
16:42और क्या क्या क्या क्या क्या आ जाता है
16:44वो एक अनंत प्रेयोजना भ्यान है बहुत बड़ा
16:46और इसी लिए जो बड़े से बड़े क्रांतिकारी हुए है
16:55उनका लक्ष मात्र राजनैतिक स्वतंतरता नहीं था
17:00वो मनुष्य मात्र की मुक्ति के प्रार्थी थे
17:11उन्होंने ये नहीं कहा था कि अंग्रेज बस यहां से चले जाए
17:15यूनियन जाए खट गया तिरंगा आ गया तो काम खतम हो गया नहीं बहुत
17:19लंबा काम है बहुत दूर तक जाना है कि अचार जी मेरा प्रश्ण यह था
17:30कि जैसे हमारी जैसे मच्चा पैदा हुआ तो उसकी एक कलपना मतलब चेतना के निमता
17:38स्तर पर पैदा हुआ फिर जी वो प्रकृति में रहा है ठीक है और फिर उसको आत्म आत्मग्यान चाहिए तो वह भी उसको प्रकृत में ही मिलना है गुरू के माद्धिम से तो यह सब एक जैसे हम कहतें कि कलपना मात्रे तो कहीं यह गुरू भी कलपना मात्र नहीं है यह �
18:08पहचान यह होती है कि वो कलपना कार को कभी परेशान नहीं करती है वो कलपना कार की हस्ती पर ही कभी सवाल नहीं खड़ा करती है आपका सपना कितना भी भयाना को सपने में आपको दिखा जा रहा है कि पूरी दुनिया आपको ठग रही है आपको सब बुद्धू बना रह
18:38भ्रम के देश में आ गया हूँ जहां
18:41जिस चीज को छूरा हूँ वही नकली है
18:44जिस चीज को छूरा हूँ
18:45वही एक माया जाल जैसा है बस
18:49लेकिन उस सपने में
18:55हर चीज को कितना भी भ्रम आप देख लें
19:00आप ये कभी भी नहीं देख पाएंगे सपने में
19:03कि ये सपना ही भ्राम है
19:04कल्पना ऐसी होती है
19:07कल्पना आपको अगर बहुत डरा भी देती है
19:12तो भी ये कहकर कभी नहीं डराती है
19:16कि ये डर ही जूटा है
19:21डरो
19:23सब कुछ जूट है
19:24सब कुछ कल्पित है
19:28और जो कुछ कल्पित है हम कह रहे हैं
19:31उसकी पहचान यह है कि वो कल्पना करने वाले को
19:34और कुछ भी बोल दे यह कभी नहीं बोलता कि तुम सिर्फ कल्पना कर रहे हो
19:39कोई सपना आप से यह नहीं कहता उठ जाओ
19:43होग跳 시작
19:46कभी कि सपना आपसे कह रहा होग अरे तुम सपना
19:48देखरो चलो उठो सपने में और कुछ भी हो सकता है ये कभी नहीं
20:05हो कलपना की इस दुनिया में बिल्कुर ठीक है कि ये दुनिया पूरी कलपेत है
20:09कल्पना की इस दुनिया में अगर कोई ऐसा मिल जाता है जो ये बता देता है कि ये सब कुछ कल्पना है उसको आप देख लिजे कि उसको आप कल्पना के अंदर का मानना चाहते है या बाहर का
20:20लोग फस्ते रहें इस सवाल पर उसको कल्पना के अंदर का माने की बाहर का माने
20:27तो हुश्यार लोगों ने समाधान दिया बोले ऐसा करो उसको आधा अंदर का आधा बाहर का मान लो
20:34आए कि है तो दोनों ही
20:36इस बात से भी इंकार नहीं कर सकते कि वो इसी कल्पित दुनिया का है इसी मायावी प्रक्रतिका है वो इंकार तो करी नहीं सकते
20:43लेकिन ये भी इंकार नहीं कर सकते
20:46कि वो इससे बाहर भी ले जाता है
20:48तो उसको दोनों मान लो
20:49उसको तुम पुल की तरह मान लो
20:50जिसका एक सिरा इधर है एक सिरा उधर है
20:52वो दोनों तरफ का है
20:54अब ये तुम्हारे उपर है
20:57कि तुम उसके किस सिरे से नाता बनाते हो
20:59गुरु बिलकुल मायावी होता है, भ्रामक होता है
21:03इसी नकली दुनिया में वो भी एक नकली शखस होता है
21:08अगर तुम्हें उसके नकली छोर से ही नाता रखना है
21:15तो वो नकली ही है भाई
21:16पुल का एक छोर
21:20हमेशा उस तरफ होता है, जिदर आप खड़े हैं
21:22कि नहीं
21:24आपको अगर उसके उसी छोर से नाता रखना
21:26जिदर आप खड़े हैं
21:27तो पुल निश्चित रूप से वेर्थ है
21:29बेकार है, किसी काम का नहीं है
21:31अभी तो आप के उपर है
21:33कि गुरू के किस छोर से आप से रिष्टा बनाया है गुरू का एक छोर है वो बिलकुल वैसे ही जैसे आप हो आप उसी से रिष्टा बनाये रहो तो बागे आपको ये दोहाई देने की और शिकायत करने की पूरी आजादी मिलेगे कि गुरू धोखा दे गया अब पता नहीं
22:03पर ही पड़ा हुआ है
22:05तुम वहीं पर जाके बैट जाओ फिर बोलो सीड़ी ने उपर नहीं पहुँचाया
22:08सीड़ी ने मना करा था
22:09लेकिन तुम्हें सीड़ी के
22:12उसी
22:12पाइदान से नाता रखना था जो बिलकुल
22:16जमीन पर है
22:16सीड़ी का वही सोपान
22:19तुम्हारा मन भागया जो बिलकुल पार्थिव है
22:22एक्तम जमीन से टिका हुआ है
22:24तो इसमें सीड़ी का दोश है या तुम्हारा पता नहीं
22:26पहुच में आरी ये बात
22:30ये भूल-भूलईया है
22:32और बाहर निकलने का दर्वाजा भी इसी के अंदर ही है
22:39जिन्होंने गुरू की बात करी है
22:44उन्होंने कहा है कि गुरू है तो भूल-भूलईया के अंदर ही
22:47और वो ऐसा दर्वाजा है जो खुलता बाहर की तरफ है
22:50इस बात के लिए आप उसको दोश दे सकते हो
22:55या यही कहकर आप उसका हैसान मान सकते हो
22:58एक बड़ा भारी दर्वाजा हो जो आजादी में खुलता हो
23:02वो आपके किस काम का अगरो दर्वाजा भूल-भूलईया में नहीं है
23:06आप तो भूल-भूलईया में हो ना
23:07आप जहां फसे हुए हो आपको दर्वाजा उस वहीं पर चाहिए ना
23:13या कहीं और चाहिए फसे आप भूल भूलाईया में हो
23:15और आप तारीफे कर रहे हो इंडिया गेट की लखनव की भूल भूलाईया में फसे हो
23:24और तारीफे किसकी कर रहे हो दिल्ली के इंडिया गेट की तुम्हारे कोई काम आएगा वो
23:30है बड़ा भारी विशाल क्या दर्शनी है
23:33तुम्हारे कौन सा आएगा दर्वाजा काम
23:37जो भूल भूलिया के अंदर ही हो
23:38गुरु भूल भूलिया के अंदर ही होता है
23:40तो बिल्कुल कह सकते हो
23:43कि वो भी माया का ही हिस्सा है
23:44बिल्कुल माया का हिस्सा है
23:45लेकिन उमाया का एक विशिष्ट हिस्सा है
23:47जिसका अगर तुमने सदुपयोग कर लिया तो तुम्हें माया के बाहर भी ले जाएगा
23:52सदुपयोग नहीं करा तू बिलकुल माया के अंदर कई है
23:56भूल भूल या में पता नहीं कितने दर्वाजे होते हैं ना जाने कितने दर्वाजे हैं तुम उस खास विशिष्ट दर्वाजे की उपेक्षा कर सकते हो बिलकुल जो बाहर को खुलता है बाकी दर्वाजों को तुम आजमाते रहो तो गुरू की उपेक्षा करी जा सकती है �
24:26जैसा है हमारे जैसा नहीं होता तो हमारा हाथ कैसे बगड़ता है हमारे जैसा नहीं होता तो हमारी बात कैसे समझता हमारे जैसा नहीं होता तो हम उससे रिष्टा कैसे बनाते सीड़ी का एक सिरा अगर जमीन पर नहीं होता तो हम सीड़ी पर चड़ने की शुरुआत भी कैसे
24:56तो हमारे उपर है कि हम रिष्टा क्या बनाना चाहते हैं कि सही रिष्टा बनाओगे तो काम आ जाएगा तो रिष्टा बनाओगे तो तुम्हें शिकायत का सामान मिल जाएगा
25:08इसका मतलब यह कैसे रखते हैं कि अपने माध्यम से खुद को जो यह बात आपने कही थी पहले खुद के माध्यम से प्रकृति एक मुक्ति को पाना चाहती है तो यह उसी दिशा में जा रहा है
25:28अहम मुक्त होना चाहता है और प्रकृति आहम की ही छाया है तो ठीक जैसे तुम्हारे भीतर
25:38मुक्ति के दर्वाजे हैं वैसे ही दुनिया में भी मुक्ति के तमाम दर्वाजे हैं
25:45हम कह सकते हैं कि जो कभीरदाजी के सुलोक है गुरु गोविन दो खड़े काके लागुपा यहां बैठता है कि गुरु इस हो रहे है प्रकृत में ही है और गोविन तक लिके जा रहा है
26:00अब जिनको उध्रत कह रहे हो उन्होंने उन्होंने कहा है तो ठीक ही कहा होगा ना मैं कौन होता हूँ कहने वाला कि हम कह सकते हैं कि नहीं कह सकते हैं
26:11सहाब बोल गए हैं तो ठीक ही बोल गए होंगे मैं उसमें अपनी राए क्या दूँ
26:15नहीं बस यह बात थोड़ा सब्सक्राइब लगती है कि कलपणा में ही हम एक ऐसी चीज पा रहे हैं जो हमें आत्मज्ञान के और ले जा रहे हैं तो वो अरे तुम कुछ नहीं कर पा रहे हो वो होता है
26:28तुम में अगर ललक होती है उपर उठने की तो तुम पुल का उपयोग कर लेते हो या सीड़ी का उपयोग कर लेते हो वो तुम्हारे उपर है पुल भी उपलब्द है सीड़ी भी उपलब्द है ना करो उपयोग तो सीड़ी जमीन पर ही सजावट की एक चीज बन जाएगी ह
26:58पान थे उस पे कडाही चिम्टा और ढोल रख दिया है और एक सूटकेस सजा दिया है कह रहे हो इसको तो मैं इस्तिमाल कर रहा हूँ अलमारी की तरह है शेल्व्स हैं ये सीडिया नहीं है ये क्या है ये सामान रखने की शेल्व्स है उसको आप रख दीजिए तो गुरू का �
27:28भी न रहे आपने उसको सामान रखने की वस्तु बना लिया ये सब भी कर सकते है ये तो आपके उपर है कि आप में ललक कितनी है मुक्त होने की आप में अगर ललक है तो सीडियां आपको उपलब्ध हो जाएंगी को ते ना वेंद बलो बलो बलो वेंद अगर स्टूड़े
27:58धन्यवाला जाएंगी
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