00:01शान्ती अपने दो बेटों, अर्नव और आरुष की साथ शान्ती से जीवन बिता रही थी
00:07लेकिन शान्ती के पती सुहन से उसकी कभी कबार थोड़ी अन्डन हो जाती थी
00:12एक दिन शान्ती रोज की तरह सुबह का खाना बना रही थी, तभी दरवाजे की घंटी बजी, घंटी की आवाज सुनकर पुद्ध दरवाजी की और जाती हुए कहती है
00:21आरे आती हूँ आती हूँ कौन है सबर करो
00:24शांती दर्वाजा खोलती है तो देखती है कि उसके जेट मोहंदास सामने खड़े होते हैं
00:31वो सक पका कर अपना घुंगट करती है और पैर शुकर कहती है
00:35आये आये जेट जी
00:37कैसी हो शांती
00:39जी मैं तो बिल्कुल ठीक हूँ सब आपकी महरबानी है भाई साब
00:43शांती और मोहंदास की बाते सुनकर शांती का पती सुहन और उसकी दोनों बेटे बहार आ जाते हैं
00:50अरे भाईया राम राम कैसे हो आप
00:52राम राम भाई
00:54अरे शांती ऐसे खड़ी-गड़ी क्या देख रही हो
00:57चाय कॉफी कुछ लेकर आओ भाईया आए
00:59शांती तेजी से रसोई की और आगे बढ़ती हुए कहती है
01:03अरे मेरी माँ गेट खुलने के चकर में मेरे तो चावल ही जल गए
01:06वो दोड़ी-दोड़ी रसोई में जाती है और देखती है कि सारी चावल जल गए है
01:11वो दुबारा चावल बनाने में लग जाती है इतने में सुहन आवाज लगाता है
01:15अरे शांती तुमारे चावल का रोना खत्म हो गया हो तो चाई लिया आओ
01:20जी लाती हो अभी
01:22शांती जल्दी जल्दी चाय बनाती है और मोहंदास को चाय देती है
01:26सब एक दुसरे की खैर ख़बर पूछते हुए चाय पीते हैं
01:30चाय खत्म होती ही मोहंदास शांती के और देखते हुए मजाक में कहते हैं
01:35शांती, अब तुम्हारी चाय में दम नहीं रहा, अब हमें चाय बनाने वाली बदलने पड़ेगी, ये कैसे मुम्किन होगा जेट जी, घर और बाहर का सारा काम मुझे ही करना पड़ता है, और कभी-कभी जल्दी-जल्दी की चकर में काम भी गड़ जाते हैं, जैसे आज चा
02:05रिष्टे की बात सुनकर कहते हैं, अब ठीक है, बात चलाईए न भाया, पर पहले लड़की के बारे में कुछ बताईए तो सही, हाँ हाँ भाई साहब, लड़की कैसी है, परिवार कैसा है, कहा के रहने वाले हैं, दखो परिवार तो बहुत अच्छा है, पर वे दोनों ल
02:35सकी और गाउं में रहती है, लेकिन दोनों है बहुत कुपसूरत, अगर तुम सबको देखते ही पसंद आ जाये तो मेरा नाम बदल दे ना, हाँ पर तो हम आके मोन कर बरुजा कर सकते हैं वैया, आप आगे बात चलाईए, हम शादी करने को तयार हैं, कुछी दिन में अर्न
03:05मंजरी घर के काम कर रही थी कि अचानक शांती उसे आवाज लगाती है, बड़ी बहु, ओ बड़ी बहु, मंजरी जल्दी यहां आओ, मंजरी जल्दी जल्दी शांती के पास जाती है, बेटा मेरे पैर दबा दे बहुत दर्द हो रहा है, जी माजी बस बरतन दो कर आती हू
03:35चोटी बहू, ओ चोटी बहू
03:38तनुजा थोड़ी तेर से आराम से चल कर आती है
03:42जी माजी, आपने बुलाया मुझे, आपको कोई काम था क्या
03:46तुछ काम कर रही है या
03:50शांती की बात काटते हुए तनुजा बोलती है
03:53कुछ नहीं मा, फोन पर अपने घर पर बात कर रही थी
03:56अरे बात में बात कर रही है, अपने घर वालों से
03:59पहले जा के बरतन दो ले
04:00तनुजा मुझे बनाते हुए अपनी जिठानी के और दीखती है
04:04और मन ही मन कहती है
04:05ये महारानी वहाँ बैठी है, ये नहीं कि बर्तन दोले, मैंने इतनी पढ़ाई बर्तन दोने के लिए की थी क्या
04:12तनुजा दाद पीसकर वहाँ से चली जाती है, अगले दिन सब दफतर चले जाते हैं, तबी डाक्या चिठी लाता है
04:19शांती चिठी लेकर मंजरी से कहती है, बड़ी बहु, जरा छोटी बहु को बुलाना, एक चिठी आई है, मेरी तो आखे कमजोर है, तो मुझसे पढ़ा नहीं ही जाएगा
04:30मंजरी तनुजा की पास जाकर कहती है, तनुजा तुम्हें माजी बुला रही है
04:36मुझ पर हुकम मत चलाओ, काम बताओ काम
04:39अरे मैंने तुम पर कहां हुकम चलाया, और हुकम चला भी दूँगी तो क्या हुआ, तुम तो मेरी छोटी बहन की तरह हो न
04:47तुम जैसी अनपढ जाहिल और गाउं की गवार मेरी बहन नहीं हो सकती
04:51बिचारी मंजरी, तनुजा की बात सुनकर अपना सा मू लेकर रह गई
04:57कुछ चिठी आई है, माजी तुमसे पढ़वाना चाहती है, बस इसलिए बुला रही है
05:02मुझ तेड़ा करके, तनुजा मंजरी का मजाग बनाती हुए कहती है
05:07हन पढ़ कहीं की
05:08तनुजा का ऐसा बरताओ देखकर, बड़ी बहु बहुत दुखी होती है
05:13तनुजा को अपनी पढ़ाई का घमंड इतना हो गया, कि अब वो घर के कोई काम नहीं करती
05:18और अपनी जिठानी का मजाग बनाती रहती
05:21तनुजा का ये बरताओ, अब उसकी सास को भी नजर आने लगा था
05:25एक दिन शान्ती ने अपनी बड़ी बहु से कहा
05:27मंजरी, तनुजा हर समय तुम्हारा मजाक उड़ाती है, तुम्हें गुस्ता नहीं आता क्या
05:33आता तो है माजी, लेकिन मैं क्या करूँ
05:36जब भी उसे कुछ बोलती हूँ, वो और भी जली-कटी बाते मुझे सुना कर चली जाती है
05:41मैं उसे अपनी छोटी बेहन की तरफ प्यार करती हूँ, लेकिन उसके दिल में मेरे लिए कोई इज़त नहीं
05:47बहु तुने वो कहावत सुनी है?
05:50मंजरी अपनी सास का इशारा समझ जाती है, वो अपनी देवरानी को सबक सिखाने की ठान लेती है
06:02और एक दिन शान्ती अपनी दोनों बहु के साथ बैठी थी, तो शान्ती अपनी बड़ी बहु से पूछती है
06:08अरे बहु शाम होने को है, कुछ सोचा है, क्या बनेगा खाने में?
06:14माजी मेरे तुसर में बहुत दर्द है आज, मेरी प्यारी देवरानी ही कुछ अंगरी जी खाना बना कर खिलाएगी
06:21सुना है पड़े लिखी लोग अंगरी जी खाना बहुत अच्छा बनाते हैं
06:25क्यों तनुजा?
06:27इतना कहकर मंजरी अपनी सास के और देख कर मुस्करा दी
06:30तनुजा अपनी तारीफ सुनकर बहुत खुश हो गई
06:33इतने मैं शान्ती कहती है
06:34ये तो सच बात है जोटी बहु
06:37ये तो मैंने भी सुना है
06:38हम भी पक गए हैं बड़ी बहु के हाथ का खाना खाखा कर
06:42तनुजा तुम्हारी मा भी तो तुम्हारे खाने की बहुत तारीफ करती है
06:46आज हमें बिखिला दो कुछ अच्छा सा बना कर
06:49शान्ती की बात सुनकर जोटी बहु और आसमान पर चड़ गई
06:54पर उसे ये कहां पता था कि उसकी सास और जिठानी उसे सबक सिखाना चाहती है
06:59तनुजा अपनी तारीफ सुनकर खुश तो बहुत होती है पर सोचने लगती है
07:03मुझी तो कैसा भी खाना बनाना नहीं आता अब मैं क्या करूँगी
07:07अगर मैंने इनको सच बता दिया तो मेरी सारी इज़त मिट्टी में मिल जाएगी
07:11अर चोटी बहु क्या सोच रही हो खिलाओगी न अपने हाथ का अंग्रेजी खाना
07:18चोटी बहु हां में सर हिला देती है अचानक से उसकी दिमाग में एक आइडिया आता है
07:24मैं इंटरनेट से देखकर कुछ बना लेती हूँ
07:27मेरी वावाही पूरे घर में हो जाएगी मुझी कांसा रोज रोज बनाना है
07:31माजी आज आप सबको ऐसा खाना खिलाओंगी ऐसा खाना खिलाओंगी कि
07:36इतने में शान्ती चोटी बहु की टांग खिशती वह कहती है
07:40कि पता नहीं कैसा खाना खिलाओगी ए उपर वाले हमारी रक्षा करना
07:46इतना बोलकर शांती और वंजरी दोनों जोर-जोर से हसने लगते हैं
07:52अब तनुजा रसोई घर में चली जाती है और खानी की तैयारी करने लगती है
07:55पर उसे रसोई घर की चीजों के बारे में तो कुछ नहीं पता
07:59जैसे तैसे सारी चीज़े निकालती है और इंटरनेट पर देखकर खाना मनाती है
08:04कुछी देर में सब लोग घर आ जाते हैं
08:07अरे सुनते हो आज का खाना हमारी चोटी बहु बना रही है
08:11अरे वाँ आज तो फिर कुछ अंग्रेजी खाना घाने को मिलेगा
08:15कुछी देर में खाना बन जाता है तो चोटी बहु सब का खाना लगा देती है
08:19इतने में बड़ी बहु कहती है
08:21क्या बात है देवरानी जी आज तो बहुत अच्छी खुश्बू आ रही है
08:25ये बात तो सही कही बड़ी बहु तो ने
08:28खुश्बू पच्छी है
08:30ऐसे खुश्बू तो मेरे खाने में भी नहीं आती
08:32सब मिलकर छोटी बहु की बहुत तारीफ करते हैं
08:36और छोटी बहु साथ वे आसमान पर बैट जाती है
08:39अब सभी खाना खाते है
08:40जल्दी जल्दी दो
08:43अब तो मुँ में पानी आ रहा है
08:45हाँ हाँ मुझसे भी नहीं रुका जा रहा
08:48जैसे ही सोहन एक निवाला खाता है
08:51तो उसकी आँखों से पानी आने लगता है
08:53ये देखकर शांती सोहन से पूछती है
08:55क्या हुआ जी?
08:58खाना इतना अच्छा बना है कि आँखों से पानी आ गया
09:01सोहन चुप रहता है
09:03और धीरे धीरे से खाना शुरू कर देता है
09:05इतने में सोहन छोटी बहु से कहता है
09:07बेटी तुम भी तो खाओ
09:09तुम क्यों रुकी हो
09:10खाना सच में बहुत अच्छा है
09:11ये कहकर सोहन जोर से हस देता है, फिर सब खाना खाने लगते हैं, लिकिन खाने में नमक और मिर्च तेज हो गई थी, तनू जासे कोई कुछ नहीं बोलता, बल्कि उसे भी खाने को कहते हैं, जैसे ही छोटी बहु खाना खाती है, वो पानी पानी कहकर चिलाती है
09:27पानी, इसमें तो पानी
09:31ये खाना तो सच में इतना अच्छा बना है
09:35कि हमारे साथ साथ देवरानी जी भी इसके स्वात को कभी नहीं भूल पाएंगी
09:39सही कहा पहुँ
09:40तनुजा को अपनी गलती का एसास हुआ
09:43और उसने अपनी सास से कहा
09:46माजी, ये मेरी गलती नहीं है
09:49इंटरनेट पर दिखाया था कि चार चमच नमक और मिर्ष डालने है
09:53अब मंजरी को भी मौका मिल गया
09:55और उसने तनुजा पर तंज कसा
09:57नाच न जाने आंगन टेड़ा
10:00हर जगह अपनी पढ़ाई दिखाती हो
10:03दूसरों का मजाक उड़ाती हो
10:05हब पता चला ना
10:06हर चीज में पढ़ाई काम नहीं आती
10:08और तुम तु शहर में रही हो
10:11तुमें तो मुझसे भी अच्छा खाना बनाना आना चाहिए ना
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