02:06रिखे ने अपने संग्रहाले कुहुकी में रखे वादियंत्रों की महत्ता उनके परातन इस्तेमाल के साथ उसे बजा कर भी दिखाया
02:14मेरे पास है वादियंत्रे भीए सिकार करने के वादियंत्र, सिकार से बचने के लिए
02:30बाड़ी के रखवाली करने के लिए घूमरा, कूकी, सिस्री, टेंडोर, हूलकी, भेर, चरह, चटका, तुर्रा, तुर्ना, हिरकी, इस तरह मतब फरक्का, अब तरह तरह के सब नाम है
02:55ठाड़का है, चटकोला है, खनखना है, मादर है, मादरी है, बाजा है, हुलकी है, टिमकी है, माडिया ढोल है, पूरिया ढोल है, दफड़ा है, दाहक है, इस तरह तरह के सब वादियंत्र हैं, 211 प्रकार के
03:13रिखी, क्षत्रिये के मुताबिक उनके 45 वर्षों की महनत अब पुस्तक के रूप में सामने आई है, वर्षों से आदिवासी अंचलों में घूम घूम कर दुरलब लोकवाद्यों का संग्रह करने वाले रिखी और उनकी पत्नी अनपूर्णा की ये खोज यात्रा, अब 36 �
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