एक समय था जब बिहार की राजनीति अपने ही बोझ तले दब गई थी। समाजवाद की बातें ज़रूर थीं, लेकिन ज़मीनी सच्चाई में जातीय वर्चस्व, भ्रष्टाचार और अपराध का असर बढ़ता गया। बिहार धीरे-धीरे राजनीतिक उथल-पुथल और प्रशासनिक अस्थिरता का प्रतीक बन गया। इसी पृष्ठभूमि में नीतीश कुमार का उभार हुआ — एक ऐसे नेता, जिन्होंने परिवारवाद और दिखावे से दूर रहकर, सादगी और प्रशासनिक अनुशासन को राजनीति का केंद्र बनाया। उनकी पहचान रही है — साफ़-सुथरी छवि और जवाबदेही पर आधारित शासन।
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