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बिहार का खूनी अतीत! जब डाकू 'सरकार' बन देते थे फरमान, देखें फुटानीबाज़
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00:01अंग्रेजों की गुलामी के लंबे दोर के बाद आखिर कारदेश आजाद हो चुका था
00:06राजे रजवारों के दिन लग चुके थे
00:11लोग तंत्र का सपना नेताओं से लेकर जनता की आँखों तैर रहा था
00:17एक ऐसी शासन व्यवस्था जिसमें शासक और जनता के बीच का फर्द मिटने वाला था
00:25इसके लिए जरूरी था चुनाओं और चुनाओं कराने के लिए जरूरी थी मद्दाता सूच
00:33पर तप नमबदाता सूची थी ना पहचान पत्र और ना ही वोटरों का कोई रिकॉर्ड
00:42आजादी अपने साथ बटवारा लेकर भी आई थी लाखों लोग विस्था पिते
00:50ना कोई पहचान पत्र ना कोई दस्तावेस सबसे बड़ा मसला तो ये था कि चुनाओं में वोट कौन डालेगा
00:57क्योंकि अंग्रेजों ने गुलाम भारत में वोट का अधिकार हर किसी को नहीं दिया था
01:04धर्म, शिक्षा, संपत्ती और लिंग के आधार पर लोगों को वोट डालने से वन्चित रखा गया था
01:11तब वोटर लिस्ट में महिलाओं के नाम तक नहीं लिखे जाते थी
01:15बलकि तब महिलाओं के नाम के आगे बस फलां की पत्पि और फलां की बेटी लिखा जाता था
01:22इन सारी मुश्किलों के बीच आजाद भारत के पहले चुनाओ आयोक के सामने सबसे बड़ी चुनाओती देश में पहला चुनाओ कराना था
01:34और ये जिम्मेदारी सौपी गए देश के पहले चुनाओ आयोक सुकुमार सेंग
01:40चुनाओ आयोक को पहला चुनाओ कराने के लिए शूनने से शुरुवात करनी थी वक्त लगा पर तयारी जारे जाए
01:49तैह हुआ कि आजाद भारत में हर व्यस को वोट का अधिकार होगा
01:55महिलाएं किसी की पत्नी या बेटी के नाम पर नहीं बलकि अपने नाम से वोट डालेंगी
02:01आजादी के बाद अगले चार सानों तक देश को पहले चुनाओ का इंतिजार करना पड़ा
02:07और फिर आखिर कार वो दिन आहीं गया
02:1125 अक्तूबर 1951 यही वो एतिहासिक तारे हो थी
02:17जब आजाद हिंदोस्तान के 20 करोड से ज्यादा हिंदोस्तानियों ने पहली बार खुद के लिए वोट डाला
02:24तब पेटियों में सिर्फ वोट नहीं गिरे थे बलकि गिरी थी 200 साल की बेबसी
02:31तूटी थी पहचान की बेड़िया
02:34पहली बार किसी की बीवी या बेटी नहीं बलकि सुनीता, सुशीला, रुक्मन, रुखसाना, मर्यम वोट डाल रही थे
02:44देश का पहला चुनाओ बेहत सादगी के साथ पूरा हुआ
02:52तब चुनावी परचार डुक्डुगी बजाकर किया जाता था
02:56और नेता, बैल गाड़े और साइकल पर बैटकर चुनावी परचार प्या करती थी
03:02लोक सभा के लिए हुए इस पहले चुनाओं के अगले ही साल
03:074 फरवरी से 24 फरवरी 1952 के बीच
03:11बिहार विधान सभा के 276 सीटों के लिए पहली बार चुनाओं हुआ
03:16पहले चुनाओं की काम्यावी ने विस्टन चर्चिल जैसे बड़ बोले नेताओं की
03:21उन दम भरे बयानों का जवाब दे दिया कि भारत में लोक तंतर कभी पनप नहीं सकता
03:27यह हिंदुस्तान की जनता की ताकत है और देश को सम्विधान देने वाले नेताओं की सोच कर नतीज़ा
03:34कि लोक तंतर आज भी काइब है
03:37लेकिन जनता का जनता के लिए जनता के द्वारा की चुनावी बेवस्ता कैसे पाँच साल बाद ही बाहु बलियों का बाहु बलियों के लिए बाहु बलियों के द्वारा पदलती चली है
03:50इसे जानने के लिए आपको हम लेकर चलते हैं बिहार
03:57जहांकि वैशाली से दुनिया को पहली गणतंत्रवाली शासन व्यवस्था का संदेश मिला था
04:04अब 1957 का साल आ चुका था देश में दूसरी बार चुनाओ होना था
04:10तब पूरे देश का चुनाओ एक साथ हुआ करता था
04:14शत्तावन में बिहार विधान सभा के लिए दूसरी बार चुनाओ हुआ
04:18और यही वो साल था जिसने पहली बार राजनीती में मसल पावन बूत कैप्चरिंग वोटरों को थंकाने
04:26और चुबरन चुनाओ जीतने की ऐसी बुनियात रखे जिससे आज 68 साल बात में बिहार उबर नहीं पाया
04:34उल्टे इस मामले आगे ही पड़ता गया
04:39बिहार में फुटानी बाज उन्हें कहते हैं जो खुद को बढ़ा चढ़ा कर पेश करते हैं
04:52रॉब छाड़ते हैं दिखावा करते हैं तींगे मारते हैं यह चुबनेवादी बातें करते हैं
04:58यानि यहां का हर अपराथी और पाहूबली भुटानी बाज यह सेवान में मौजूद जीरादेई रेलवे स्टेशन हैं
05:15इसी रेलवे स्टेशन से तीन अलग-अलग लोग तीन अलग-अलग वक्त दिल्ली के लिए ट्रेन पकड़ते हैं
05:22पहला शक्स जो दिल्ली पहुचता है वो देश का राश्चुपती बनता है राश्चुपती भवन में पहुचता है
05:28राजेंदर बाप यानि डॉक्टर राजेंदर प्रशाथ दूसरा शक्स इसी देरादेई से दिल्ली जाकर उसी राश्चुपती भवन को बेच देता है अपनी कलाकारी से नाम था नटवरलार मिस्टर नटवरलार तीसरा शक्स इसी जगह से दिल्ली पहुँचकर सीधे लो�
05:58पहारों के जरिये इन तीन रास्तों की कहानी को समझ लीजे बिहार के इसी सरजमीन जीरादेई में मौझूद यदेश के पहले राश्चुपती डॉक्टर राजेंदर प्रशाथ का घर है गांधी जी के बेहत करीबी और चंपारन आंदोलन में गांधी जी के साथ साथ रह
06:28देश के पहले राश्चुपती बूलकर जीरादेई में राजेंदर बाबू के इसी घर से फक्त दो किलोमेटर की दूरी पर ये खंधर कभी घर हुआ करता था
06:45इस घर का एक लड़का भी इसी रेलवे स्टेशन से दिल्ली पहुंचता है पर उसे राजनीती में कोई दिल्चस्पी नहीं थी इसलिए न उसे विधान सभा जाना था न लोक सभा और नहीं राश्चुपती भवन वो तो इन सब को बेचने के लिए घर से निकला था उसने
07:15जेंदर बाबू के सरकारी घर राश्चुपती भवन को भी उसने पेच डाला था बिहार के इसी जीरादेई से निकलने वाले उस लड़के का नाम नटवरलाल था
07:26एक ऐसा नाम जो मुहावरा बन गया साल में 52 हफ़ते हैं ताश में 52 पत्ते और उन्होंने अपने 52 नाम रखे लेकिन एक नाम जिससे आज भी उन्हे जाना जाता है वो एक ही है नटवरलाल मिस्टर नटवरलाल सिवान के जिरादेई में ये वही घर है जहां मिथिलेश कु
07:56देश के पूरे चुनाव को ही ठग लेते।
08:26बिहार में राजनीती में अपराधियों या अपराधियों की राजनीती को समझने के लिए इससे बेहतर मिसाल और इससे अच्छी प्रियोक शाला कोई और हो ही नहीं सकती।
08:56और जो अपराधियों वही नेता बनने की योग उमीद वा है।
09:03ऐसा नहीं है कि ऐसा सिर्फ बिहार में होता है पर जिस तरह से ये बिहार में होता है वैसा देश में शायदी कहीं देखने को मिलता है।
09:13अपराधियों के लिए बिहार में राजनीती एक ऐसा रास्ता है जो धन के साथ ताकत भी दिलाता है।
09:19यहां राजनीती एक इंडस्ट्री है यह इंडस्ट्री अपराधियों को पैसा भी दिलाता है सरकारी सुविधाएं भी और कानून के शिकंगे से बच निकलने की कैरिंटी भी देता है।
09:31इसलिए बिहार चुनाओं में यह फुटानी बाज हमेशा जरूरी होते हैं।
09:37नेताओं और राजनीतिक पाठियों को हमेशा इनकी जरूरत पड़ती है।
09:41कभी नेताओं की चुनावी जीत का साधन रहे। यह फुटानी बाज आगे चलकर खुद ही विधान सभा और लोक सभा तक में पहुँच गए।
09:50पर यह सब कुछ हुआ कैसे हैं। तो इसे समझने के लिए आपको अब लिये चलते हैं पश्मी चंपारन।
09:57यह वही चंपारन है जिसके पूर्वी इलाके से महात्मा गांधी ने सत्यग्रह और अहिंसा के सिध्धानतों का हिंदोस्तान की जमीन पर पहला प्रियोग किया था।
10:132017 में गांधी जीतिया गुवाई में बिहार के इसी चंपारन जिले में तिनकठिया प्रथा खत्म करने के लिए चंपारन सत्यग्रह शुरू हुआ था।
10:23असव में तिनकठिया प्रथा के तहर तब किसानों को अपनी जमीन पर एक तिहाई हिस्से पर नील की खेटी करने के लिए मजबूर किया जाता था।
10:44गांधी जी के यहां आने के बाद अंग्रेजों को छुपना पड़ा और 118 में इस प्रथा को खत्म कर दिया था।
10:51इस एक आन्दोलन की काम्याभी आजादी के लिए आगे के आन्दोलन का एक रास्ता बिखाया यही वो आन्दोलन था जिसके नीक पर आजादी मुझे जनता को इनसान होने का संवैधानिक अधिकार दिया।
11:06मगर इसे ही सिलाके का इतिहास कहेंगे या फिर इत्दफाक आज ना तो यहाँ गांधी है नहीं अहिंसा और ना कोई आन्दोलन
11:23सत्तर और अस्ती का दशक आते आते यहाँ गांधी की जगा गन्ने लेगे अहिंसा की जगा हिंसा में और आन्दोलन की जगा अपराद में
11:36चुनाओ ठीक ठाक रहा, शायद लोगों के लिए भी नया तजरूबा था, लेकिन इसके बाद बूत कब जाने का सलसला शुरू हो गया, लेकिन कहते हैं कि चुनाओ में डाकवों के इंट्री पहली बार असी के दशक में इसी गंड़क नदी से हुई, इस तदी के आसपास के
12:06विधान सबार लोक सबार में पहुंच सकते हैं, तो फिर वो खुद क्यों नहीं, और बस वहीं से, बाद में यही अपरादी और डाकू भी सीथे चुनाओ करने लगे, बिहार की राजधानी पटना से करीब 200 किलो मिटर तूम, ये इलाका तब बारूत के धेर पर बैठा थ
12:36साथ पूरा गाउं सड़क पर उतराएं, और एक साथ ट्रिगर दबा दें, तो मीलों तक कोलियों की घूंच के साथ साथ, पल भर में सैक रो लाशे बिच जाएं, किसी एक इलाके में मौत का इतना बड़ा जखीरा, पूरे हिंदुस्तान में शायद ही किसी और इलाके में �
13:06जमिंदारों के जो पोशित गुंडे थे, वो लोक तंत्र के इस दौर में डाकू बन गए, कल तक वो जमिंदार के गुंडे थे, और बाद में वो अब दस्व के कवर में चले गए, जो जमिंदार फिर राजनीती में चले आए, और राजनीती में आकर कि आप देखें, कि �
13:36रूपसपूर मास के लिए
13:38रूपसपूर में जब संथालों की हत्या हो गई थी
13:42सामोई की हत्या हो गई थी
13:43तो he was arrested
13:44आप बताएंगे कि मास किलिग को लेकर
13:47देश की किसी दूसरे किसी और सूबे में
13:48कोई स्पिकर गिरफतार हुआओ मास किलिग के लिए
13:51अपराध को लेकर कि जंबल परसिध है तो जहां अपराध होगा वो चंबल हो गया तो इसको मीनी चंबल नाम दे दिया गया थोड़ा और वे जाता था चंबल टू हो जाता ही।
14:21आपाराद नहीं लेकिन फिर भी बदनाम है यहां का जो अपराद था वो एक अलग स्वरूप का अपराद था जैसे अपराद के पीछे सूरी से होता था कि समपत्ती लूट परत होता यहां जो अपराद हुआ उसमें समपती छोड़कर आदमी को उठाकर लिए चल जाते मतल�
14:51कि अपका अनप्यत्य का जो आपड़ात का जो गराब था उसमें दिन में आप जो है चार बीचे का बाद घर से निकलना लोग तो दुर्वल्भात
15:06निकल नहीं सकते थे याप इद दो आ जाने हैं शकते थे दीन वे भी जाने में लोगों को डर लगता था जैता वैं
15:14उसमें तो रात का कौन को है आज तो इस्तिती दूछरी है बदला हुई यह बहुत ज़्यदा तेकि उसमें आप राध चरम सिवा इस लिए था कि लेभी के लिए चिठी आती थी आप राधी जो है आप बड़े सवकार हैं तब को आप चिठी भेद दिया मोहर लगा दिया कि म
15:44तो आपका अपको लिया कर ट्रचर की आ जाता था आप अपसे पैसा जम इलता था तो आप रहोती मिलता था था तक छुट कब ला मिलती थी जू इन इनकल लागा है और गंड़क नदी के आसपास में किसानों के खेतियां है चंपारन जाए नाम से Gemb army चंबल नाम से जाना �
16:14है या नाव के सहारे होकर करके या चचरापूल भा उस वकूत सखर से बऑई को इस बिजाया करते थे तो अपराधियों की इतना
16:22मौनोबल भड़ा था क्वा दोडा करके छीनलिया करते फ्�े एक अलाओ दीन डांखू हुआ करते थे बहुत मतलौ
16:28अज भी उस जमाने के अपराधी जो थे दकायत जो थे आज भी बहुत किसानों के खेतियों को नोगों ने अपने मुठी मेले करके अपने दिबंगता के उस पे लेकर के आज भी अपनी खेति करते हैं दियारा छेटरों में आज भी उनकी जमीने नहीं है यहां का situation था उस वक
16:58अपराद की यहां प्रिष्ट में दो तरह की रही है प्रिष्ट में चमपारण में और खाथ और से बगहां पुलिस जिला में यहां एक मजबूरी में हुए अपराद कर में और दूसरा सौखिया हुए
17:13तो सौखिया में यह प्रोफेशन्चल पड़ा की मेरी बात लोग माने मैं जो कहूं सो हो जो कभी जमाने में यहां जो जमिंदार लोग करते थे उनके जगाँ पर यह अपराद करमी आ गए दियारा से दियारा के लोगों का खेत हड़प लेना जोत लेना उनका गन्ना हड़�
17:43वो अस्ती का ही दशक था जब बिहार में राजनी की खतरना करवट ले रहे थे जंगल पहाद लिहार और दियारा के लाखों ताकतवर कमजोरों की समी और उनकी खेती लूट रहे थे और उन्हें पनाहते रहे थे वो ने था जिने जंताने लोग तंदर की बहरेदारी सोप
18:13उठाले दिया मीनी चंबल कह जाने वाले पश्मी चंपारन के इस इलाके में कोई बागी बनकर डगैती डालने लगा तो कईयों ने डगैतों का सामना करने के लिए हथियार उठाले
18:25स्यासत का पहिया कुछ ऐसा घूम रहा था
18:29कि हात्यार उठाने वाले दोनों हाथों को पता ही नहीं था
18:33कि कब और कैसे वो लोगतंद्र के पहरेदारों की मुठ्धी में कैद होते चलेगा
18:38लेकिन नेताओं का साथ पाकर बाग्यों का बल पढ़ गया
18:45क्योंकि कई नेताओं ने जन्ता के प्रती अपनी जिम्मेदारी के खुला दे
18:49और चुनाओं जीतने के लिए डगैतों का इस्तेमाल करने रहे
18:53आगे चलकर नेताओं की खिद्मत करने वाले कई डाकों जन्ता के मुफ़तार बन गये
19:08जो सौखिया में जो लोग हुए जैसे राधा जादो उनके भतिजा चुम्मन जादो नेमा जादो पत्थर सिंग चावान पत्थर सिंग चावान मीं मजबूरी में उठाया वो पलिस से आया था वो हुमगट का जबान था एही खरफोकरा कर आने वाला था
19:28तो वो हुआ और फिर आपको धुरूप मला रामचंदर चौधरी ऐसे तमाम लोग जो हुए उनको और आयनितिक सनक्षण पराप्त हुआ
19:40तो मुखिया से लेकर के पश्वी चंपारण में दो संसद्थी जयत्र है एक जो बेतियां के नाम से जना जाता है उस च्छट्र के जो संसद हुआ थे ति कांग्रेस के जमाने में वो बिहार के सीमभी
19:55है उनको कहता है संबानिया के दार पढंडेंजी विः के शीम रह में तो उन पर आरूप लगता है कि उन्हों
20:04संटक्षार प्रदान किया आप जैसे लच्छन के नाम से लगिया सथन के नाम से जाना गिया वो सभी उनको वो संटक्षार देते
20:16काफी दियरा का बिल्ट उनके संसदिय च्छत्र में था, तो ऐसा आरूप लगा कि वो सनक्षंड देते हैं, और पुलिस की भी एक कहनी थी, पुलिस भी मानती थी कि सनक्षंड, अब राकी जब राजनितिक जो मालिक हैं, जो देश चला रहे हैं, राज चला रहे हैं, जब व
20:46साधन के रूप में इनका उपियोग होता थे, जैसे माली जी मेरे पास से एक साधन चार पहिया वाहन, कहीं जाना है तो उसको लेके माहिया, उसी तरह से उनको चुनाव जीतना है, तो अपराधियों का उलोग सायोग लेते थे, उनके मादम से बूत होगर एक कबजा कर ये
21:16तो उससे पहले राजनीद का अपराधिकरान या अपराध में राजनीद नहीं था, जो भी था इन डायरिक परुक शुरूप से था, इसके बाद ये प्रत्यक शुरूप से होने लगा और अपराध ही लोग उनको छोड़ करके खुद जाने लगा
21:28अगर नेताओं को सरचस प्राप्त नहीं होता तो एक बब पटना से फर्मान नहीं जारी होता है, लोगों को फर्मान होता था कि यह करना है, इसको मार देना है, इसको इकर देना है, फर्मान होता था उस समय, नाम नहीं आता था, लेकिन राजनीदी पूरा दबाव था उन
21:58अपराधी ताकत के बल पर लोगों डराता था धमकाता था उटरों को लुभाता था एक बर बोल दिया तुमको फ़ला को देना तो अगर मैं नहीं देता हूं तो मेरी जान चिल जाएगे मेरे बच्चे मारे जाएंगे मैं मारा जाओंगा आज की सिची यह सर काई पैसों पर स
22:28करते हैं को ख़रिद करके आ उसका ही कर लेता है अपना गरीब लोग हैं दोर पे चाहिए खाने पीन के लिए रोजगार उनके पास आज भी बहुत सारोग जिनके पस रोजगार नहीं है वाहिए
22:48अबके डैपिंग, रंगडारी, जब्रनवसूली, लूड और डाका जनी तर्चा पहुंची थे पश्मी चंपारन के अलावा रोहतास का पहाड़ी इलाका कैमूर, मुंगेर, भागलपुर, बेगुसराय के गंगा से घिरे द्यारा के इलाके डाकों के पनाहगा बनते जा रह
23:18सतर से और नव्य का इतिहांस, यह तो हम लोग अंग्रेज के जमाने में ही अपराद के चलते हैं, जोगापटी को इनर सिटी ओफ क्राइम कहा गया, सुरुवात तो ही सोती है, लेकिन जो एकदम बंदू की जो गूंज गूंजी चंपारन में, वो केदार पांडे के जमाने
23:48कुछ और रहा है, सतर से नव्य तक की बीच में, सतर की आसपास में एक अपराद कर्मी होता था जोगापटी का गामा, जो जिसके काल अंतर में लक्षन, सतन और वगर वगर जितने लू सब इसके सागिर दे थे, और गामा के बाद हुआ मुसलिम, और मुसलिम से सब सने हु
24:18बनिया और बदनामी चोर वाली जो बात है ना, तो सुर्वात बिहार से ही हुआ, इसलिए बिहार बदनाम हुआ सो आज तक उसके उपर बदनुमा दाग लगा ही, अच्छा दाग होगा तो उसको धोलने में समय लेग, लेकिन अगर खराब दाग लग जाए तो बहुत दीन
24:48नर संगहार हुई थी आपका, अच्छानवे में जो है, नौरंग्या दोन में, उससे में 15 थारून नीदोस लोगों का हत्या किया गया था, अपरा अगियों द्वारा, और उसके बाद, आपका बथुवरिया जो है, तेरे आदिमी की जो है, आपका हत्या हुआ था, उससे म
25:18वहाँ हत्या हुई थी, लोगों का घर जला दिया गया था, वहाँ आप राधियों का मने रन बसेरा कहा जा, मने मिनी चंबल का रन बसेरा जो है, बथुडिये में था, जो लोग जानते हैं कि ये क्रिमिलन लहा है, आज राजनीत में आका अपनी छवी को धूल लिया है, त
25:48सारे लोगों दर्वाजेब बंध हो जाया करते थे, मसूं बच्चे अपने घरों से नहीं नहीं निकलते थे, बुढे जवान नहीं निकलते थे, अगर निकल गए तो डर ये था कि फिर हमारे बाप, हमारी माँ घर आएंगी, वापस की नहीं आएंगी, इसका डर लगा रह
26:18इसी चंपारण की जमीन ने आजादी के बाद असी के दशक में नेताओं को चुनाओं जीतने का एक रास्ता दिखाया वो रास्ता था ठुटानी बाजू यानि अपराजियों को हत्यार बनाकर चुनाओं जीतने का
26:48यह वो दौर था जब पहली बार बिहार में ठोक के हिसाब से डाकवों को चुनाओं मैदान में नेता अपने साथ लेकर उतरे थे पद्दूक और वैलिट का खेड यहीं से शुरू हुआ था
27:03वो ते दस बारक में जाते थे और गाऑन के लोग अगर आते थे उसाँ से भेड़ तो पर कप्लस खता देथे ते यह पोलिंद पर पर लेते टे उटरों
27:29कि अगर यह लोग नहीं रहेंगे तो उस पर चड़ करके हमारा पोस्टर कौन लगाएगा
27:58इनका रहना जरूरी है तो ही बात कि इस टाइब लोग रहेंगे तभी इन लोग काम चलेगा इन लोग की दुकान चलेगा
28:05अपराधियों जब यह देखे कि बाई मालनी ये मेरे चलते दोसरा कोई विधान सभा लोग सभा पोँच सकता है तो मैं क्यों नहीं पोँच सकता है तो उनको साइड करके अपने आगे बढ़े और उसी दबावा उसी दर पर भई दखा करके अपने आपको वक्लिया राज वि
28:35के कहने पर डाकों सिर्फ बूत नहीं लूटा करते थे बलकि बाखायदा खुला यानि ओपन लेटर लिखकर गाओं गाओं में बठवाते थे इस लेटर में हुक्म होता था कि किस पार्टी के किस उमीदवार को इस बार बोड देना है लेटर के नीचे किसी टाकू का नाम �
29:05फर्मान उनका एक आदमी आया आचाहें रात में पूरी टीम आई और उस गाओं के किनारे खड़ाओं करें चाहें गाओं में एक साइड से इधर से गया इधर से निकल गया फर्मान जारी गद यह फला आदमी को कलसुबा ओट देना है कलसुबा ओट देने अगर कोई जा�
29:35व्रेण सब्सकार करें उस्वागोशित है इस वागोशित लिए सरकार यहा क्या अपराधी होते ती उस समय यही चलता था यहीं होता था
29:44तब तो तो ठीक पर घल्टी से कहीं हार गया तो फिर गाओं के गाओं को डाकू अपने निशाने पर ले ले लेती
30:03पाय काम इंद गोध लूटना और लोगों को अजरा काना त्थ भम्काना की फलाजमी कोड़ेना
30:23कि ये काम वो लोग करते थे एक फ़ला ऍदमी को या फलाज्टी कोड़ेना है
30:28हमें चेड़ी पनी टेंग मानने का तो अजाम ही होता
30:31था लेकिन को यह ऐसा नहीं था जो नहीं माने साब लोग मान जाते थे इतनी-सहंता हुश्व में किसीं नहीं नहीं थी जो Non
30:40मानलि लगवक्अओं जाते अगर कोई नहीं माना तो अगर उनका अदमी जीत गया तो माना नहीं माना को escaped
30:47करने को उस में इतना डिजटल सब जीट नहीं था जीत गया हो गया चलो भाई हमारा फरमान कारुकर हो गया हार गया तब उसका अंजाम बूरा होता
30:55हारने बाद उसका अंजाम बुरा होता था गाउं में आग लगा देना गाउंवा लोग पख़गे पीतना सामोही क्रूप से नरसंगार करना ये सब ही काम यह होगा
31:04राजनीती और अपरात की इस इस इलाके में ऐसी जुगलबंदी हो चुपी थी कि सिस्टम हार चुका था
31:11कानून विवस्था नाम की चड़िया यहां की जमीन और आस्मान को खाली कर चुकी थी
31:16शाम छोड़ी दोपहर के शाम में तब्दीर होने से पहले ही लोग घरों में खुद को बंद कर लेते थे
31:23इसी जंगल राज के बीच 1985 प्रधान मंतरी राजीव गांधी चुनावी परचार की जब यहां पहुंचे तब भीर ने आवास लगाए हम जीना चाहते हैं
31:42हिंसा हमें मार रही है हमें भैसे बचाएं तब राजी गांधी ने लोगों से वादा किया था कि नई सरकार बनते ही इस पूरे जिले को भै मुक्त कर देंगे
31:54इसी के बाद इसी मीनी चंबल को डाकों और अपराजीों से मुक्त करने के लिए आपरेशन ड़्ाक पैंठर चलाया गया
32:01इस आपरेशन के शुरू होने के बाद धीरे धीरे मीनी चंबल की तस्वीर बदलनी शुरू हो गया
32:13बहुत से डाकू मारेगे, बहुत से यहां से लक्ती नेपाल सीमा में जाकर छुब गया
32:18कुछ ने खाकी पहन कर, पहले से खाकी पहने नेताओं का धामन ठाम लिया
32:23बैसे तब तक दोख पतल चुका था
32:26खिड्नेटिंग और फिरौती का शहरी करन हो चुका था
32:29अब पतना समेथ बिहार के बागी छोटे बड़े शहरों के अपरादियों ने डाकूँ से यह काम अपने हाथों में ले लिया था
32:37डाकू जब खतम हुए तो नकसल साए नकसल से फिर भिरंत हुई शासन की तो इस तरह से जब आप देखेंगे कि अपराद के जितने सारे आयाम है
32:52वो बिहार में सबसे देश के सबसे बड़े सुबे से ज़्यादा बढ़के हैं यहाँ पे
32:58सत्तर के खत्म होते होते और असी के शुरुआत का लगभक यह वही दोर था जब बिहार में चुनावी सियासत ने यहां के खेतों की मिट्टी में खून मिलाने का काम भी किया
33:11अमेरी गरीबी उच नीच जातपात की ऐसी लकीरें खींचती गए कि जगा जगा फिजाओं में बदले की हवा खुल गए
33:20इस नाइनसाफी ने एक तरफ मावादियों को दलितों और घुमी हीनों का मसीह बनने का मौका दे दिया
33:26तो दूसरी तरफ उची जाती के जमीनदारों को इस बगावत को कुचलने का
33:31नतीज़ा ये हुआ क्याने वाले वक्त में बिहार अंगिनत नरसंगहार का कवाह बन बैठा
33:36सामोही खत्याकान की यहाँ जड़ी सी लग गए बारा बथानी टोला
33:41लक्ष्वनपूर बात है सेनारी मिया को हर घटना जैसे एक दूसरे का जवाब बदला यह जवाब अक्सर रात के अंधेरे में गोलियों से दिया जाता था और बिहार की जमीन जहां तहां रून से लाल होती जा रही थी
33:56मास किलिंग मतलब दलिल चक बगहरा सूची बनाने लगें तो मैं फिर कह रहा हूँ कि पूरे देश में नमबर वन होगा बिहार मास किलिंग में और मैं उस घटना को आज भी नहीं भूल पाता हूँ
34:13दलिल चक बगहरा में जब साट शब लासे एक कतार से पड़ी हुई थी क्या कोई शोले फिल्म बनाएगा जो ठाकूर के पूरे खांदान को खतम कर दिया
34:24साट लासें बगहर सर के नकसल उसको सर उतार सर कलम करके भाग चुके थे सिर्फ उनके बॉड़ी से उनके शरीर से पता चल रहा था कि ये कौन है
34:36पिहार की राजधानी पटना से करीब साट किलोमेटर दूर एक छोटा सा गाउं था बेल्ची
34:47सत्रा माई 1977 की रात गाउं में कयामत उतर आई थी
34:51पूरा गाउं जब कहरी नीन में सो रहा था
34:53तभी कुछ दबंग लोग हत्यारों के साथ उस गाउं में ताखिर हो उन्होंने चुन चुन कर कुछ घरों में दस्तक दी और लोगों को बाहर खींच लिया
35:02हमलावरों ने गाउं के ग्यारह दलित मजदूरों को जिन्दा आख के हावाले कर दिया था
35:07अगली सुभा गाउं में राख हो चुके इनसानों की अच्चली लाशें पड़ी थी
35:19तब इस नरसंगहार ने पूरे देश को सन्ने कर दिया था
35:23प्रदान मंतरी इंद्रागांदी खुद मौके पर पहुँची थी
35:26यही जगड़ा जातिय नफरत में बदल गया इसे एक नरसंगहार नहीं बिहार जाती बनाम जाती की कहान शुरू करती थी
35:41तलेल चक पगाउरा नरसंगहार 1987
35:4710 जून 1987 की रात थी बिहार के गया जिले के बगाउरा घाउंब
35:53बंदूकों से लैस मौवादी कॉमिनिस सेंटर MCC के हत्यार बंद दस्ते ने चुन चुन कर राजपूतों के घरों से उन्हें बाहर निकाला
36:02खेतों में लेगा और उन्हें गोली मारने के बाद उनके जिस्म के हिस्से को काटा और तों और बच्चों तक को नहीं छोड़ा
36:12बाद में जब लाशों के गिंती हुई तो ये गिंती प्यालीस लाशों पर जाकर खत्म
36:18जाने से पहले हमलावर एइलान कर गए कि अब हर जुल्म का जवाब हत्यार से मिलेगा
36:25रनवीर सेना का चन्व उनीस सो चौरानवे
36:32नब्वे का दशक आते आते बिहार के कई गाउं लाल जंडों से पढ़ चुके थे
36:39नकसली संगटन M.C.C. और B.W.G. गरीब दलितों और पिछडे तपकों में अपनी पैट पना चुके थे
36:46नौजवानों पर खास तोर पर इनका असर हो रहा था
36:49नतीज़ तर भूमिहार और राजपूद जमीनदार अब खुद को असुरक्षित महसूस कर ले ले उसे डर और खौफ के चलते उस दौर में भूमिहार पिसानों ने अपनी एक निजी सेना बनाए नाम रखा रनवीर सेना ये नाम दर असल रनवीर बाबा से लिया गया था
37:19अधिर रनवीर सेना थुद आतंग की पहचान बन गई इनका एक ही नारा था जो हमारे खिलाफ है वो मारा जाए रनवीर सेना के जन्म के साथ ही अब खेर और खूनी हो चुका था
37:31बारा नरसंगहार उनी सो बानवी रणवीर सेना बन जाने के बाद मौवादी ठान चुके थे यवींट का जवाब पत्थर से दिया जाएगा
37:52बारा और तेरह फरवरी उनी सो बानवी की रात थी बारा गाओं में संगनाटा नसरा था तब ही M.C.C. के गरीब सो नक सलियों को बारा गाओं को चारों का चारों तरफ से खेड लिया फिर वही ही जो पहले भी हो चुका था
38:05लोगों को घरों से निकाला गया, पाहर खींजा गया, उनके गले रेड बिटानी गया
38:10इस नरसंगहार में कुल 40 भूमिहारों का कतल आउंपूर था
38:14बारा नरसंगहार के चार साल बाद ही, रणवीर सेना ने वही भ्यानक कहानी दोराई
38:30भोधपूर जिले के बठानी टोला गाओं में उस रात आयामत उत्री थी
38:3411 जुलाई 1996 की रात लगभग 200 हत्यार बंद लोगों ने गाओं बठानी टोला पर ठावा बोल दिया
38:4221 लोगों को घरों से निकाल निकाल कर कोणी मारी गए यह रणवीर सेना के बदले की पहली पिश्ट थी
38:49लक्षोण पुर्बा थे 1997
38:58रणवीर सेना और मावादियों के वीक दुश्मनी की खाई और कहरी होती जा रही थी
39:06सरकार खामोश पैठी थी
39:081 दिसंबर 1997 की रात रणवीर सेना के हमलावरों में बठानी टोला गाओं पर इस बार ठावा बोला था
39:15ये बिहार के सबसे खूनी नरसंगहार में से एक था
39:19कुल 58 लोगों का कतले आम हुआ और घरों को आग लगा दी गए
39:23इस नरसंगहार को बाद में रास्टरी शर्म कहा गया था
39:27शंकर बिहार के जहानाबाद में 25 जनवरी 1999 की रात
39:39शंकर बिहार के गाओं वाले जब कहरी नीन में सो रहे थे तभी आचानक गोलियों की आवाज से पूरा गाओं तहल उड़ा
39:46रनवीड सेना ने फिर अपना खूनी खेल खेला था इस नरसंगहार में 22 दलितों को माढ़ा रा गया
39:56सेनारी नरसंगहार 1999
40:02शंकर बिहा के जख्म भी भरे भी नहीं थे कि फिर एक नरसंगहार हो गया
40:0818 मार्च 1999 की रात मौवादियों सेनारी गाओं में धावा बोल कर 40 लोगों को एक साथ कतार में खड़ा कर उनका गलब काट दिया
40:19मियापुर नरसंगहार साल 2000
40:31MCC और रनवीर सेना की खूनी जंग को 23 साल भी चुके थे
40:37बियार के और अंगाबाद के मियापुर गाओं में 16 जून 2000 को रनवीर सेना ने फिर धावा बोला
40:43इस बार भी घरों से लोगों को खीच खीच कर कतार में खड़ा किया गया
40:48फिर ठीक मावादियों के ही अंदाज में हर एक का गला काटकर उन्हें मार दिया गया
40:54उस दिल मियापुर में कुल 35 लाशें गिनी थी
40:57बिहार अब एक साथ कई मोर्चों पर अपराद से घिरा था
41:07नेताओं की उदासीं ता अपरादियों के होसले लगातार बढ़ा रही थी
41:11अब उनमें इतना होसला आ चुका था कि सीधे नेताओं से ही सौधा करना शुरू कर चुके थे
41:17सोधा पावर के बदले पावर का
41:19यानि चुनाओं में नेता अपरादियों के पावर का इस्तमाल करें
41:23और बदले में सियासतदान उन्हें कानून के शिकंजे से बचने की ताकत दें
41:28पश्मी चंपारन के डगैतों और जाती नरसंगार के बाद
41:32अब भी बिहार को बहुत कुछ देखना पागी था
41:36अब ना समाजवाद है ना समयवाद है और ना पूजीवाद है
41:50अब जो एक ही वाद है कि भाई चलो ज्यादा से ज्यादा पैसा इंवेस्ट करो
41:55और प्रोफेशनल बेवसाह हो गया है राजीत का बेवसाही करण हो गया है
42:00और वह बेवसाही करण में अपराधी भी आ रहे हैं अच्छे भी आ रहे हैं
42:05तो अच्छे लोगों के लिए परसामी है
42:07अच्छे लूग ठीक नहीं पार है राइडीत में अच्छा लोग नहीं आना चाह रहा है अब इसको यह मानता है कि नहीं मेरे लाइक नहीं है अच्छे लूग भाग रहे हैं जो यह देश के लिए बढ़िया चीज़ नहीं है
42:19कहानी यहां भी खत्म हो जाती तो भी शायद बहुत कुछ नहीं बिगड़ता क्योंकि असी के दौर के आपराधिक प्रिस्ट भूमी वाले वैसे नेताओं का दौर बहुत लंबा नहीं चला लेकिन आगे चलकर जो कुछ भी हुआ उसने अपराध का ऐसा लोग तंत्री करन कि
42:49पुटानी बास
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