00:21आर्थिक स्थिती इच्छा पूर्टी हो सब की ऐसी व्यवस्था उसके साथ साथ ही समूह के प्रति और सुर्ष्टी के प्रति करतव ये बुद्धिय और अपने पन का साक्षातकार व्यक्तियों में जगाने की शक्ति हमारी इस दुर्ष्टी में है
00:38सहस्त्रो वर्षों तक विश्व में इस दुर्ष्टी के आधार पर हमने एक सुन्दर समूरुद्ध शान्ति पूर्ण परसपर संबंधों को पहिचानने वाला और
00:53मनुष्य और सुर्ष्टी का मनुष्य और समूह का सहयोगी जीवन ऐसे प्रस्ठापित किया था
01:01आज विश्व के आवश्यक्ताओं की पूर्तिक करते हुए उनकी समस्याओं का निरास करने का शाश्वत निजान देने वाली एक नई रचना को विश्व आवश्यक मान रहा है भारत से अपेक्षा कर रहे हैं और नियती शायत यही कार्य हम भारत वासियों से चाहती है कि ह
01:31संग सव साल से इस सारा चिंतन इन सब महापुरुषों का चिंतन लेकर संग का चिंतन नया नहीं है वो अपनी दुर्ष्टी के आधार पर अपने हाँ परंपरा से चलने माला आज तक आया हुआ यहां तक चिंतन है उस चिंतन को लेकर संग सव साल से काम कर रहा है
01:53समाज जीवन के विभिनायाँ में
01:56संगटोनों में
01:58संस्थाओं में
01:59स्थानियस तर पर भी
02:01व्यक्तिगत पहल से भी
02:03स्वयम सेवक सक्रिय है
02:05समाज जीवन में सक्रिय
02:07ऐसे अनेक सजणों के साथ भी
02:09सहयोग और समवाद
02:11स्वयम्शोकों का चलते रहता है
02:12ुश्वक्ति विवस्था में परिवर्तन तो आवश्यक है
02:33विनाष टालना है तो अनिवारी है परंतु हम एक विपरीत विवस्था में इतने आगे बढ़ गए
02:40सारी दुनिया आगे चली गई हम भी आगे चले गए
02:45अब एकदब अगर पीछे मुड़ेंगे तो गाड़ी उलट जाएगी
02:51इसलिए इस गती से आगे बढ़ते बढ़ते हुए धीरे धीरे छोटे छोटे कंब कदमों से हमको मूड़ना पड़ेगा एक लंबा मोड लेके पीछे आना पड़ेगा
03:05देशकाल परिस्थिति का ध्यान रखते हुए हम अपनी समग्र और एकात्म दुष्टी के आधार पर अपना स्वयम का विकास पथ बनाकर विश्व के सामने यशस्वी उधारन रखेंगे तब इस व्यवस्था का परिवर्तन प्रारम होगा
03:27अर्था और काम के पीछे अंदियों कर भाग रही दुनिया को धर्म की दुष्टी देने पड़ेगी वो धर्मय पूजा नहीं है वो धर्मय खानपान रिती रिवाज नहीं है वो धर्मय इसके परे सब को जोडने वाला सब को उन्नत करने वाला सब को साथ लेकर चलने वाल
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