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  • 6 weeks ago

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00:00पुरुष बेवकूफी करते रहें वही बेवकूफियां आप भी दोहराएं तो आप आधुनिक नहीं हो गई
00:04पुरुष चालाकी करकर के दहेज वसूलते रहें हैं आप भी किसी की कलाई मरोड की एलिमनी वसूलें तो आप आधुनिक नहीं हो गई
00:13और आचारी जी ने बता दिया कि ये घर का काम तो ऐसा ही होता है तो वो भी नहीं करूँगी अब
00:17बाहर का काम तो कभी कुछ करती ही नहीं थी पूरी जिंदगी
00:21तो अब वो घर का काम भी नहीं करती है
00:23मैडम जी भहुत मॉडर्न है
00:27क्या है वो पहमेनिश्ट औगेरा है
00:30किसी की नहीं सुनती
00:32आधुनिक्ता का मतलब यह नहीं
00:34किसी की नहीं सुनना
00:35आधुनिक्ता का मतलब है विवेक
00:36पता होना चाहिए किसकी सुननी है
00:38और किसकी नहीं सुननी है
00:40जिंदगी से भागिये मत
00:43दूसरे पर दोश डाल डाल करके
00:46ये जिम्मेदार है ये जिम्मेदार है
00:49आप अपनी जिंदगी अपने हाथों में लीजिए
00:51परिपक को होने के नाते अपनी जिम्मेदारी समाल लिए
00:55लड़िए
00:57आधुनिक अधुना से आता है अधुना माने
01:04अधुनावने अभी अभी जो तथियों में जीता है वो आधुनिक है जो सत्य का सम्मान करता है वो आधुनिक है
01:17जो अतीत का कुडा नहीं ढो रहा हूँ जो मुर्खता से मुक्त है
01:26चाहे वह मुर्खता Pरंपरा की हों चाहे शरीर की हो जो मुक्त है वह आधुनिक हे
01:33पुरुष बेवकूफी करते रहे हैं वही बेवकूफियां आप भी दोराएं तो आप आधुनिक नहीं हो गई
01:45पुरुष रिष्टों में शोशक रहे हैं कठोर रहे हैं आप भी रिष्टों में शोशक हो जाएं कठोर हो जाएं तो आप आधुनिक नहीं हो गई
02:03पुरुष चालाकी करकर के और कलाईयां उमेठ उमेठ के दहेज वसूलते रहे हैं
02:15आप भी किसी की कलाई मरोड की एलिमनी वसूलें तो आप आधुनिक नहीं हो गई
02:19बात समझ में आ रही है ये टिट फॉर टैट वाला मामला आपको आधुनिक नहीं बना देगा
02:33पहले इस तरी के शरीर की कमजोरी का इस्तिमाल करके पुरुष कहता था कि क्योंकि तब बहुत ज़्यादा
02:48एनरजी का कोई सोर्स होता नहीं था तो मस्कुलर एनरजी बड़ी बात होती थी मस्कुलर एनरजी पुरुष के पास ज्यादा है
02:55तो इस तरी को कह सकता था कि तुम ये छोटे मोटे काम करो, बड़े काम खेत के हैं, वो मैं करता हूँ
03:00तुम घर कैसा फाइफाई करो, खाना ना बनाओ, ये छोटी एनर्जी के काम है, बड़ी एनर्जी का काम है, हल चलाना वो मैं करूँगा
03:07तो इस तरी के शरीर का इस्तेमाल करके पुरुश उसको दबा लेता था, उस पर च्छा जाता था
03:21अब आधुनिक्ता के नाम पर आप अपने शरीर को हतियार की तरह इस्तेमाल करो, वेपनाईज करो
03:30क्योंकि वासना के तल पर पुरुशों को ज़्यादा आसानी से उत्तेजित किया जा सकता है, इस्तेमाल करके तुझको दबा दूँगी, तो यह आधुनिक्ता नहीं हो गई
03:53और यह आधुनिक्ता के नाम पर खूब चल रहा है, सेक्शुलिटी का वेपनाईजेशन, शरीर को हतियार की तरह इस्तेमाल करो
04:04जुकेगा, बंदा जुकेगा, कैसे नहीं जुकेगा, सेक्सी बॉड़ी दिखाऊंगी जुकेगा, और फिर मैं जो चाहूंगी करेगा
04:14मुझे पैसे चाहिए होंगे, पैसे भी देगा, इज़द भी देगा, ताकत भी देगा, सब देगा, यह शरीर नहीं है, यह हतियार है
04:24और यही पहले मेरी कमजोरी थी, लायबिलिटी थी, अब यही मेरा वेपन है
04:29यह आधुनिक्ता नहीं है
04:36यह तो जो पुराना ही काम चल रहा था, वही चल रहा है, बस सिख्का पलट दिया आपने
04:46पाशविक इचला रहा है, क्या कि अब आप सिख्के को ऐसे पलट दिया है
04:51आप गीता पढ़ती हो
05:00आप खुद भी मुक्त जीओ और दूसरे को भी मुक्त दो
05:04यह आधो निकता है
05:05ना किसी से डरेंगे ना किसी को डराएंगे
05:11ना किसी से दबते हैं ना किसी को दबाएंगे
05:14यह आधो निकता है
05:15हाँ
05:21प्रेम है अगर और सच्चाई है अगर तो ज़रूरत पड़ी तो जान भी दे देंगे लेकिन डर के नहीं दब के नहीं
05:37जितना परंपरा से कोई इस्तरी करती आई है दूसरे के लिए हम उससे ज्यादा भी कर सकते हैं
05:44अधोने कोने का ये मतलब नहीं ये किसी दूसरे के लिए कुछ नहीं करना जितना आश्टा कोता आया है ये तो छोड़ो कि उसकी बराबरी करेंगे
05:52हम उससे ज्यादा भी कर सकते हैं किसी दूसरे के लिए लेकिन सिर्फ बोध में करेंगे प्रेम में करेंगे
05:58किसी ऐसे उद्देश्य के लिए करेंगे
06:02जो इस लायक है कि उसके सामने सर जुका सको
06:05सेवा करना कोई हीन बात नहीं होती है
06:16पर सेवा करने में और दासता करने में अंतर होता है
06:24पुछ में आ रही ये बात
06:25मुक्ति का मतलब अपने हिसाब से अपने स्वार्थ के लिए
06:33किसी आधुनिक विचारधारा का या प्राचीन ग्रंथ का अर्थ कर लेना नहीं होता
06:40मुझसे आकर कुछ बोलते हैं बोलते हैं देखिए
06:47बाकी सब बढ़ियां बहुत अच्छा है मैं चात्र हूँ आपका गीता में लेकिन मेरी पत्नी जी जिनने मैं नहीं जोड़ा था
06:57वो बाहर का काम तो कभी कुछ करती ही नहीं थी पूरी जिन्दगी कभी जिन्दगी में उन्होंने बाहर कुछ करा नहीं और कुछ हट तक मैं भी जिम्मेदार हूँ
07:07मैंने भी ना उनको और पढ़ाया ना प्रेरित करा कि तुम जाओ बाहर नौकरी वेरा करो, तो बाहर नौकरी करना, तो कभी है यही नहीं समी करण में, हाँ घर का काम वो कुछ कर लिया करती थी, तो अब वो घर का काम भी नहीं करती, यह उन्होंने गीता का अर्थ समझा है,
07:37यह तो मेरे मथ्य मध डाल देना.
07:50मैं तो संघरशव में उतरने के लिए बोलता हूँ न, मैं सीमाओ, कुछ चुनौती देने के लिए बोलता हूँ, मैं कहता हूँ निकलो संघरश करो,
07:58या मैं कहता हूँ कि और ज्यादा आराम करो
08:02और जिन्हें जिन्दगी में अच्छा होना होता है
08:08वो भले ही जान भी जाएं कि तत्थ है कि कोई
08:12किसी दूसरे ने हमारा नुकसान करा है
08:14पर वो बहुत दिनों तक दूसरे को दोश देते नहीं बैठे रहते
08:17वो कहते हटाओ अब जो हुआ से हुआ मुझे तो अपनी जिन्दगी जीनी है
08:22मुझे देखना है कि मैं आगे कैसे बढ़ूँ
08:24वो यहीं नहीं कहते रहेंगे कि पति देओ तुम्हारी हो जैसे
08:28मैं पढ़ लिख नहीं पाई
08:30अठारा की थी तभी तुम मुझे उठा लाए और उन्निस की थी तो बच्चा कर दिया
08:35तो तुम्हारी हो जैसे ही मैं ऐसी रह गई हूँ तो अब तो मुझे ढो
08:39तुमने यह सब कराया ना तो अब तो मुझे ढो
08:43और आचारी जी ने बता दिया कि ये घर का काम तो ऐसा ही होता है तो वह भी नहीं करूंगी अब
08:48नहीं
08:52ठीक है एक सीमा तक पता होना चाहिए कि जो काम हुआ उसका कारण क्या है किसी का दोश पता भी चल जाए
09:03तो हो गया पता चल गया अब आगे तो अपनी सुन्दगी जीनी है ना पतिदेव नहीं पढ़ाया तो खुद पढ़िये
09:11जीता का संदेश संघर्ष का है दोशा रोपन का नहीं है
09:15पिता ने नौकरी नहीं करवाई तो अब बाहर निकलिये करिये
09:24और नौकरी से मेरा अर्थ मातर ये नहीं होता कि पैसा खुद कवाने लगो
09:30हालनकि वूभी ज़रुरी है
09:31नौकरी से मेरा अर्थ होता है
09:32जीवन को कुछ तो तुम अच्छा उद्देश ये दो
09:37खालतू कि नौकरी करने के लिए भी नहीं क्या रहा हूं
09:39कि जाके मुचल खाने में नौकरी कर ली
09:42लड़िये
09:47जिन्दगी से भागिये मत
09:50दूसरे पर दोश डाल डाल करके
09:53ये जिम्मेदार है ये जिम्मेदार है
09:55और हो सकता है आप जूट ना बोल रही हो
09:58बिलकुल हो सकता है कि आपके पती जिम्मेदार हो
10:00पिता जिम्मेदार हो, भाई जिम्मेदार हो, परंपरा जिम्मेदार हो, समाज जिम्मेदार हो, ये सब जिम्मेदार हो सकते हैं बिलकुल, बिलकुल हो सकता है कि इन्होंने आपका नुकसान किया है, एक दम हो सकता है, लेकिन इनको दोश देते रहने से कुछ नहीं होने वाल
10:30आम तोर पर दूसरे पर दोश लगाया भी जाता है मुआवज़े की मांग पे
10:39किसी को बहुत बोले ना कि तुम जिम्मेदार तुम में जिम्मेदार उसको ऐसे सुनो मुआवज़ा दो
10:45भीतर यह जो मांग आ जाती है मुआवज़ा उगाने की इस मांग को छोड़िये
11:00गरिमा आत्मसम्मान बहुत बड़ी चीज होते हैं मुआवज़े की जिन्दगी जीओगे तो आत्मसम्मान खो बैठोगे
11:13बुरा लग रहा है यही है पुरूश है ना
11:25आज इसके असली रंग सामने आई गया है
11:32आज आचारे जी नहीं एक पुरुश बोल रहा है
11:39भेड की खाल में भेडिया आई गया सामने और वो भी एक ब्राह्मन पुरुश
11:49तुम्ही लोगों की बनाई मनुवादी विवस्था थी जिसने इस्त्रियों का सदा दमन करा
11:57अरे क्या वो ही नहीं सकता कि ये मन में ना आए
12:06तो क्या करना है जिन्दगी पर बस दूसरों पर इलजाम डालते रहना है
12:17और कहना है तुमने मेरा बहुत बुरा कराया है चलो मुआफ़जा दो मुआफ़जा दो ये ही करना है
12:23इसमें कोई गरिमा है ये आपको बहुत भीतर से खोखला बना देगी चीज़
12:31और भूलियेगा नहीं
12:42स्ट्रॉंग होने का मतलब आक्रामक होना नहीं होता
12:47आपको निश्चित रूप से एक मजबूत मनुष्य होना है पर मजबूती इसमें नहीं है
12:52कि अरे बहुत तेज तर्रार है बचके चलना जपकते रैप्टा मारती है
13:01यह कौन सी मजबूती है आक्रामकता तो डर को इंगित करती है जो जितना डरा हुआ होता है वो बाहर से उतना जादा तेज तर्रार बनने की कोशिश करता है
13:15मेडम ची भहुत मॉडर्न है क्या है वो फ्रेमिनिस्ट और गेरा है किसी की नहीं सुनती जो किसी की नहीं सुने वो कोई अच्छा आदमी है
13:30बोलो जो किसी की नहीं सुनता फिरो गीता की भी कैसे सुनेगा
13:36आधुनिक्ता का मतलब यह नहीं किसी की नहीं सुनना आधुनिक्ता का मतलब है विवेक पता होना चाहिए किसकी सुननी है और किसकी नहीं सुननी है
13:46किसी ने मेरे साथ बुरा किया
13:54अगर मैं एक बहतर इनसान बनी हूँ
13:59तो मैं कहूंगी शमा जा
14:04जा
14:06मैं अपनी उर्जा इन ख्यालों में नहीं जला सकती की बदला कैसे लूँ
14:13और नहीं लगातार गलानी में जल सकती हूँ कि देखो मेरे साथ
14:20कितना बुरा हुआ कितना बुरा हुआ क्षमा जाओ
14:23मुझे मेरी जिन्दगी देखने दो मुझे आज जीने दो
14:27मुझे समझने दो मुझे आज क्या करना है
14:29मुझे हिसाब बराबर नहीं करना है
14:31मुझे एक नया हिसाब तैयार करना है
14:37एक नया हिसाब तैयार करिए
14:41आप लोगों की वजह से
14:46मुझे पर लांचन लगनी लगे है
14:48ते रहें कि ये
14:52अब जो कई कई हजार
14:56ये सब महिलाएं आपके साथ
14:57आप नहीं बिगाड़ा है
14:59और ये अभी कल की ही बात है
15:02शाम को
15:03एका परिचित महिला थी उन्होंने आकर कहा
15:06बहुत बहुत सुनती हूँ आपको ऐसा है
15:10फिर अपनी सोसाइटी के बताएं कि आज सुबह ही
15:12प्रसूती के समय एक महिला की मृत्ती हो गई
15:14बहुती है उसी वक्त मुझे याद आया जो आपने कहा था
15:17ये जो पूरा फंक्षन होता है बर्थ का
15:19ये क्यों जरूरी है कि इस तरीके शरीर के भीतर ही किंद्रित रहे
15:23जब इसमें इतना खतरा होता और इसमें इतने तरीके के शारीरिक बर्डन आ जाते हैं
15:31बोली मुझे उस सब याद आ रहा था तो धन्यवाद अगरा दिया ये सब करा फिर बोलती है लेकिन एक बात बोलनी है क्या क्या बोली है डाटा करिये
15:39जो डाटने लाइक होगा उसे डाट भी देंगे अब मैं सब को एक जैसा तो नहीं सोच सकता कि सब महिला है तुमाने
15:48सब महिला ही एक जैसी हो गई कोई कोई सब अलग अलग होते हैं जहां जरूरत होगी वहां कुछ बोल भी दूँगा
15:53अब आपने आज सवाल ऐसा पूछ लिया कि जरूरत आ गई तो बोल दिया
16:01अरे यार जो काम एक अच्छे इनसान को शोभा नहीं देता
16:10जो काम इस लायक नहीं है कि एक अच्छा इनसान उसे करे
16:14कोई महिला वो काम करेगी तो वो काम अच्छा हो जाएगा
16:19बोलो न पर हम सोचते हैं कि कई बार ऐसा हो जाता है
16:30हम सोचते हैं कि मैं महिला हूँ तो मुझे कुछ खास अधिकार है
16:34ऐसे नहीं मैं ऐसा कर सकती हूँ
16:43और पुरुशों ने भी जिन्हों ने क्योंकि महिलाओं के अधिकारों के लिए ज्यादा संघर्ष पुरुशों नहीं करा है
16:53बेटी के लिए अक्सर मा से ज्यादा बाप करके दिखाता है
17:00जहां होता है कुछ जहां नहीं होता हूँ तो कुछ नहीं होता
17:02पर मा से ज्यादा कई बार बाप सोचता है कि बेटी को कैसे आगे बढ़ाएं
17:08तो उसमें यह हो जाता है कि घर में बेटी है और बेटा है
17:13तो बाप बेटी का बहुत पक्ष लेना शुरू कर देता है
17:17वो तो इसलिए लेता है क्योंकि उसको पता होता है कि उसके लिए खतरे कितने बड़े बड़े हैं
17:23तो इस कारण वो बीटी को थोड़ा ज्यादा लाड़ दे देता है
17:27पर बीटी आप बिगड सकती है
17:34इसलिए नहीं है कि फिर वो
17:40रोल रिवर्सल कर ले कि पहले मुझे
17:47गुंडों ने परिशान कर रहा था तो अब मैं गुंडी बन जाऊंगी
17:53कुछ समझ में आरही है बात
17:58भला इंसान बनिये
18:05स्त्री पुरुष पीछे छोड़िये
18:08अचारेशी प्रणाम
18:16सर मेरा यह कोश्चन है इसी से रिलेटेड कि कठोड़ता डर और बदलाव यह तीनों जैसे एक साथ ही चलते हैं कि जब बदलाव की बात आती है तो महिलाए बहुत जल्दी बदलाव स्युकार कर लेती बच्पन से अगर देखा जाए तो बच्ची ही रहती है वो और अगर
18:46कोन सा डर रहता है च्पन गया पर COM फोच चलते रहते हैं लेकिन यहीं जब बदलाव पुरुश को करना होता है तो फीकार वह & थी क्यों रहती है कि वह बदलाव तो मेंगर यह थी बदलाव को
19:06कहीं कोई अच्छी रहा है, अच्छा कुछ उन्हें करना है जीवन में तो वो नहीं करना जहाते है।
19:13तो इक कौन सर डर रहता है उनको, वो बात समझ नहीं आती मुझे।
19:22यह तो बहुत अपने जन्रलाइज कर दिया।
19:26लेकिन महिलाओं को जिस तरह के बदलाव सुईकार करने पड़ते हैं, वो हम समझ पा रहे हैं।
19:38पुरुष भी बदलाव सुईकार करते हैं पर वो दूसरे तरह के बदलाव होते हैं।
19:44उदारण के लिए पुरुष देश बदलना सुईकार कर लेगा।
19:47पुरुष कहेगा कि मैं जा रहा हूँ, मैं पंजाब हरियाना का था, मैं जा रहा हूँ, मैं अब केनेडा में रहूँगा क्योंकि वहाँ मेरे लिए भैतर भाविश्व है, वो उस्तुभी कार कर लेता है
19:56पर ये बात कम से कम उसने अपने निरने से करी होती है भले ही उसका निरने उसकी अपनी कामना से आ रहा हो
20:05वो देश बदल लेता है वहां उसकी अपनी कामना होती है लड़की को बच्पन से ही पता होता है उसे घर बदलना पड़ेगा
20:13यह सबसे बड़ा बदलाव होता है जो उसकी जिन्दगी में आता है कि उसको उखाड करके अब उसके घर से उखाड के उसे दूसरी जगे पर फेंक दिया यह आता है
20:22तो यह जो बदलाव स्वीकार करने वाली बात है यह आवश्यक रूप से कोई अच्छी बात नहीं है
20:30कि लड़कियां बदलाव स्वीकार कर लेती है इसमें से आधी तो मरता क्या ना करता वाली बात है
20:36नहीं स्विकार करोगी तो क्या होगा तुम्हें कहा जा रहा है कि घर छोड़ दो विदाई हो गई जाओ उधर नहीं जाओगी तो मावा भी निकाल देंगे
20:43इसमें आपके पास विकल्प थोड़ी है कि मैं बदलाव नहीं स्विकार करना है
20:49बेटी है
20:51दो तीन बेटियां कर ली थी बेटे की चाहत में अब वो पैदा हुआ है तो वो राजकुमार है तो तीनों बेहने मिलके उसको पाले और जरा सी भी उसकी रोने की आवाज आ गई तो तीनों बेहने थपड़ खाएंगी
21:06अब यह तुम स्विकार नहीं करोगी तो क्या करोगी थपड़ खाओगी तो ऐसा नहीं है कि महिलाएं बड़े प्रेम से और बड़ी स्विक्षा से बदलाव स्विकार करती हैं मजबूरी में स्विकार करती हैं महिलाएं मजबूरी में स्विकार करती हैं पुरुष कामना म
21:36शायद वो बहतरी के लिए स्विकार करती है।
22:06पर पड़ गया, वहां से कुछ और हो गया, पती के हाँ चली गई, पती ने कहा कि नहीं मुझे विदेश मिल रहा है, तो विदेश भी चली गई, अपना क्या है? अपना क्या है? उसकी अपनी जिंदगी, अपनी हस्ती तो होती नहीं है न? तो बदलाव स्विकार कर लेना, मै
22:36तो आप अभी दास ही बने हुए हो, और बेगर्स कांट बी चूजर्स, तो आपको बोला गया, आप यहां जाओ, यहां जाओ, यहां जाओ, जहां जाने को बोला गया, आप चले गए, और पुरुष अपनी कामनाओं का दास है, महिला अपनी परिस्थितियों की दास है, प
23:06तो कुछ बदल थोड़े ही रहा है, भीतर की जो गुलामी है, जो दासता है, वो तो वैसी की वैसी है, सारे बदलाव बाहर हो रहे हैं, सारे बदलाव बाहर हो रहे हैं, क्या भीतर क्या बदला है, तो यह आप जो कहरें लड़कियां बदलाव सुगार कर लेती हैं, कोई बद
23:36आज कहा गया नहीं रास्ता बदलो तो मुधर जाओ ठनी मार्केट वहाँ दे चीजें ले करके आओ चवणी का ठनी हो गया दाएं का बाय हो गया पर क्या सच्छ बदला कुछ
23:46क्या नहीं बदला मैं कल भी गुलाम थी मैं आज भी गुलाम हूँ तो कुछ नहीं बदला यही बात प्रुशों पर भी लागू होती है आज इस नौकरी में थे कल उस नौकरी में जा रहे है घर की महिला बहुत नहीं जम रही तो बाहर भी कहीं कुछ कर रहे हैं ऐसा लग रह
24:16ब्रामक होते हैं, बाहरी बदलावों से यह नहीं समझना चाहिए कि कुछ बदल रहा है, भीतर हमारे जो ठोस अहंकार बैठा होता है, वो नहीं बदलता, इस्त्री के मामलों में ज्यादा तर वो अहंकार मजबूरी का रूप ले लेता है, I am a helpless victim, और पुरुष के मामली में �
24:46I am a desirous achiever, और इस के इंदर से वो अपनी स्थितियां बदलती पाती रहती है, और वो पाता है उसकी भी बाहरी स्थितियां बदल रही है, बाहर बाहर बदल रहा है, भीतर जो कुछ है वो थोड़ी बदल रहा है, तो महिलाएं अपने आपको इस बात का श्रेय तो कदापी
25:16आप कहते हो हवाई मुझे जहां उड़ा कर ले जा रही है, मैं तो उड़ गई, हाँ, कुछ साथ में सुईधाई मिल जाती है, उड़ जाने से, कुछ साथ में उड़ जाने से सुईधाई मिल जाती है, बदलाओ हमें चाहिए, भीतरी, और उस भीतरी बदलाओ, कि आसपास
25:46बदल रही हैं चाहे घर बदल रहा है शहर बदल रहा है कपड़े बदल रहे हैं पर भीतर कुछ नहीं बदल रहा है तो सब बेकार है
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