00:00कुछ आपेदस्ति उसका गोद में बेटना बड़ता था, कहाना लेने के, एक दिल, हमको नाओं में ले गया, और आपार मुझ में, कापड़ा भरके, हमारा माँ अमसे पूछता रहा, क्या हुआ, लंगडा क्यो रहा है, कुछ नहीं बोला,
00:25क्या बोलता, कुछ समझा नहीं नुट्या, एक तुछ बार और शारकर का गोद में बढ़ना पड़ा, बना करा तो, गाओ का बरा लोग का अच्छा नहीं लगता था, और शारका से जहागरा करके, कमाई बनने ही गढ़ना चाता था था ना,
00:50हम शारकर को देखता था न, जाम जाता था, हिल नहीं बाता था,
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