- 5 months ago
श्री ब्रम्हा विष्णु महेश ख़ुद पुत्र के रूप में सती अनुसुइया को प्राप्त होते हैं क्योंकि अनुसुइया के प्रेम और भक्ति शक्ति से काफ़ी प्रभावित होकर फस गए थे I
श्री ब्रह्मा विष्णु महेश ऐसा कहने से लगता है जैसे यह तीन अलग-अलग देव अथवा शक्तियां हैं परंतु यह सत्य नहीं है वास्तव में यह तीनों एक ही शक्ति के तीन रूप हैं असल में एक ही परम ब्रह्म परमात्मा है जिसकी इच्छा अथवा संकल्प से इस जगत की सृष्टि होती है उस सृष्टि का पालन होता है और फिर उसी सृष्टि का संघार हो जाता है एकमत ए भी है कि सारा संसार एक माया है यह उत्पत्ति का पालन या फिर सारा नाटक केवल माया का भ्रम है जैसे स्वप्न में देखा हुआ सत्य नहीं होता उसी प्रकार यह सारा संसार मिथ्या है केवल स्वप्न मात्र है |
माता अनसुइया के ममता की मोह त्याग पुत्र चंद्रमा देवलोक चले जाते हैं सभी दुःखी हो जाते हैं अनुसुइया के आँखों में पानी भर आता है कैसे अपने पुत्र से दूर हो गया ?
श्री ब्रह्मा विष्णु महेश ऐसा कहने से लगता है जैसे यह तीन अलग-अलग देव अथवा शक्तियां हैं परंतु यह सत्य नहीं है वास्तव में यह तीनों एक ही शक्ति के तीन रूप हैं असल में एक ही परम ब्रह्म परमात्मा है जिसकी इच्छा अथवा संकल्प से इस जगत की सृष्टि होती है उस सृष्टि का पालन होता है और फिर उसी सृष्टि का संघार हो जाता है एकमत ए भी है कि सारा संसार एक माया है यह उत्पत्ति का पालन या फिर सारा नाटक केवल माया का भ्रम है जैसे स्वप्न में देखा हुआ सत्य नहीं होता उसी प्रकार यह सारा संसार मिथ्या है केवल स्वप्न मात्र है |
श्री ब्रह्मा विष्णु महेश ऐसा कहने से लगता है जैसे यह तीन अलग-अलग देव अथवा शक्तियां हैं परंतु यह सत्य नहीं है वास्तव में यह तीनों एक ही शक्ति के तीन रूप हैं असल में एक ही परम ब्रह्म परमात्मा है जिसकी इच्छा अथवा संकल्प से इस जगत की सृष्टि होती है उस सृष्टि का पालन होता है और फिर उसी सृष्टि का संघार हो जाता है एकमत ए भी है कि सारा संसार एक माया है यह उत्पत्ति का पालन या फिर सारा नाटक केवल माया का भ्रम है जैसे स्वप्न में देखा हुआ सत्य नहीं होता उसी प्रकार यह सारा संसार मिथ्या है केवल स्वप्न मात्र है |
माता अनसुइया के ममता की मोह त्याग पुत्र चंद्रमा देवलोक चले जाते हैं सभी दुःखी हो जाते हैं अनुसुइया के आँखों में पानी भर आता है कैसे अपने पुत्र से दूर हो गया ?
श्री ब्रह्मा विष्णु महेश ऐसा कहने से लगता है जैसे यह तीन अलग-अलग देव अथवा शक्तियां हैं परंतु यह सत्य नहीं है वास्तव में यह तीनों एक ही शक्ति के तीन रूप हैं असल में एक ही परम ब्रह्म परमात्मा है जिसकी इच्छा अथवा संकल्प से इस जगत की सृष्टि होती है उस सृष्टि का पालन होता है और फिर उसी सृष्टि का संघार हो जाता है एकमत ए भी है कि सारा संसार एक माया है यह उत्पत्ति का पालन या फिर सारा नाटक केवल माया का भ्रम है जैसे स्वप्न में देखा हुआ सत्य नहीं होता उसी प्रकार यह सारा संसार मिथ्या है केवल स्वप्न मात्र है |
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00:00महामंत्री जी महराज आप हमारा संदेश लेकर आश्रम में जाईए हम महारिशी अत्री और देवी अनुसुया को आदर सहित अपनी राज्य सभा में देखना चाहते हैं
00:20परंतुराजन तुम्हेने यहां क्यों बुलाना चाहते हो अपनी मनोकामना की पूर्थी के लिए मनोकामना जो सती सूर्य को उद्य होने की आज्या दे सकती है प्रह्मा विश्णु महेश को बालत बना सकती है वो क्या मुझे अमरत्त नहीं दिला सकती
00:42करते हैं बार्षी अत्री और देवियन उसुया को हमारी मनोकामना पूरी करने के लिए यहां आहीं होगा अहीं हो।
00:56महराज क्रतिवेरिय तुम्हारी बातों में अहंकार का प्रदर्शन हो रहा है और शक्ति का अहंकार विनाश को निमंत्रन देता है इस प्रकार उनके प्रती एहम भाव दिखाना और स्वार्थ पूरुण विवहार करना शुब लक्षन नहीं है
01:13क्षमा करें राजगुरु व्रद्धा वस्था के कारण आपको पापपुर्ण की चिंता सताने लगी है परन्तु धन और राजगुरु पत का लालच आप छोड़ नहीं पा रहे हैं
01:26मेरे विचार में आपको यह सब छोड़ छाड़कर सन्यास ले लेना चाहिए
01:35वह भी राजगुरु को यह मेरा नहीं इस राजगुरु पत का पत का अपमान है ऐसी समय इस पद्धा त्या करता हूं
01:54थिकार है थिकार है रायन तुमारे शासन पर है खहरो राजगुरु
02:02राजा कृतवीर ने अपने राज में विद्रो को कभी पर अपने नहीं दिया है मश्मती के इस राज में विद्रो का एक ही दंड है
02:16मृत्यु दंड हाँ मृत्यु दंड है
02:19राजगुरु
02:25हूँ
02:43भाला विनाश, निश्चे ते राजन, निश्चे ते राजन, निश्चे ते राजन
02:53भाग्या अवती दीधी आई है, अनुसुईया की बोद भराई है
03:14आती ही रिशी को बढ़ाई है, सजनी की बोद भराई है
03:28मोद बनाने के दिन आए, अनुसुईया को लिना दमाए, दीत बड़ी सुख दाई है
03:42अनुसुईया की बोद भराई है
03:49अनुसुईया की बोद भराई है
04:17कि यह क्या कर रही है देवी कि अपने परब्रह्म का आशिरवाद ले रहे हूं स्वामी कि आप तो तीनों लोकों को आशिरवाद देंगी
04:30प्राणियों से लेकर देवता तक आपके चरणों में शीष चुकाएंगे
04:38भगवान की लीला को शत्षत प्रणाम कहां आपकी गोज सुनी थी और अब जब जीवन में पहली वार मा बनने जा रही है तो किसकी मा स्वैम परमेश्वर की मा
04:57मैं तो सोच कर ही गदगद हो जाता हूं गुरुदेव राजदूत आपके लिए महाराजा कृत्वीर का संदेश लाया है महाराजा कृत्वीर का संदीश लाया है
05:14और हमें कितनी प्रतिक्ष्या करने होगी आप हमें अत्री रिशी का आश्रम बताईए कहां है हम स्वैम जाकर महाराज का संदेशन को दे देंगे
05:34अत्री गुरुदेव पधार है
05:39महाराज कृत्वीर के महामंत्री का गणाम स्विकार किजे महरेशी तुम्हारा कल्यान हो महामंत्री यह आश्रम तुम्हारे महाराज की सीमा में तो नहीं है
06:03फिर भारिशी आपकी कीर्टी और यश आपकी साधना और तपस्या आपका ज्यान और आपका करम भी तो सीमाओं को तोड़कर आगे निकल गया है
06:13कि देवी अनुसिया के सतीत्व के जैजैकार ने हमारे महाराज को इतना अकर्शित किया है कि उन्होंने आप दोनों पती पत्नी को अपनी राजसवा में आने का निमंत्रन दिया है
06:25कि पढ़ो क्या संदेश भेजा है महाराज देश
06:37कि महरशी अत्री और देवी अनुसुया को महराज कृतिवीर का प्रणाम
06:49कि उन्हें मेरा आशीरवाद देना अवश्य महरशी हमारी परम इच्छा है कि आप भी हमारे सामराज्जी में आकर अपना आश्रम स्थाफित करें
06:58कि और अपने मायवी शक्तियों से हमें और हमारे राज्जी को लाब उठाने का अवसर दें हमारी राज्य सभा में आपका आशन कुछ स्थान पर होगा हमारी प्रार्थना मान कर आप हमें अनुग्रहित करेंगे ऐसी आशा ही नहीं हमारा विश्वास है कृतिवेर महराज
07:28मेरा आश्रवाद देते हुए कहना कि जो साधू होते हैं उनका आश्रण विचित्र होता है वो सांसारिक नहीं होते हैं वो चिंतन करने वाले होते हैं वो किसी बंधन में नहीं बनते हैं वो चाहे लक्ष्मी का हो या माया का जो साधक होते हैं उन्हें भी किसी राज्य की �
07:58सुचंद बोलते हैं, सुचंद सोचते हैं
08:03किसी की भी आधीनता हमें कभी स्विकार नहीं होगी
08:06उनसे कहना शासन सत्ता के मत से उन्होंने जो हमें निवंतरन भेजा है
08:12वो हमारी प्रकृति के अनुकोल नहीं है
08:15उनके इस निवंतरण को हम उनका अहंकार और अपना अपमान समझते हैं
08:20जाओ
08:22हमारे राजदूद का निरादर हमारा निरादर है
08:31और हम ये गदापी सहन नहीं कर सकते
08:34उन्हें अपने तब पर अभिमान है
08:38तो हम भी हम भी निरंकुष राजा हैं
08:41निरंकुष राजा, वो अपनी इच्छा से नहीं आएंगे, तो हम उन्हें आश्रम से उठा लाएंगे, हाँ, महामंत्री, जी महाराज, सेने को वादेश दू, हम अत्री आश्रम को दुस्त करने जा रहे हैं, दुस्त करने, हाँ,
09:03चला दू, राख कर डालो,
09:11हाई हाई हाई या प्रॉ।
09:23चला चला थाई हा और्री आश्रम से भ semester दCalका हएगो simplified Lic to the
09:27देश्रम से फुरास talkієं और राएंगे al से देखे, हम दुस्त करने दो да secure the time,
09:32याई हम चलाएंगे é जाएर प्र कवा घ्टा से लींत ब
09:41सार्थी ठक आगे ले चलो, आश्रम कियो
10:11कि बुरुदेम महराज गृत्वीर किसे ना ने गौशाला जला ढली गौए भाग रही है और वो आश्रमों को जलाते हुए यहां ही आ रहा है
10:29रक्षा कीजिए गुदेम रक्षा कीजिए
10:41वहीं पेरुक जाओ
10:49हाँ अब आए
11:02हमें रोकने का साहस तीनों लोकों में कोई नहीं कर सकता जटाधारी तुम ने यह तो साहस कैसे किया
11:09जानते हो हम कौन हैं जो भी हो तुम राजा नहीं हो सकते राजा अर्श्रमों और तपवन की रक्षा करता है उनका विनाश नहीं करता
11:25और जो गउवों लौमन मलो और थुपस्यों को तृस्त करता है और इसल्बस को जलाता है
11:34पर्शियों का ध्यान भंग करता है वो अपने विनाश को ब sword करता है राजा गघ्रदuju का विनाश नहीं हो
11:43सकता सेनिको आश्रम को जलाकर राख कर दो
11:47अन्यासी होते हुए माया का प्रयोक करता है हाँ
12:05तु जानता नहीं हम कितने बड़े माया भी है
12:09अजान प्रयोक करता है
12:39अजान प्रयोक करता है
13:09अजान प्रयोक करता है
13:16करता है
13:19अजान प्रयोक करता है यह मत समझ हम तेरी माया से भैभीत होकर लोट जाएंगे राजा कृत्वीर जो निश्चय कर लेता है उसे पूरा किये बिना नहीं लोटता हाँ
13:36अजान प्रयोक कर नहीं जाओगे तो तुम्हें प्रयों मग्यानियों के दंड का भोग भोग ना होगा
13:46हम राजा है राजा अरे दंड देने का अधिकार किवल हमें है हमें तुम जैसे आश्रम वासियों को नहीं
13:56हम तेरी स्थे को बनात ले जाएंगे हम देखते हैं कौन रोकता है हमें हाँ
14:04कृतवीर्य अपने शक्ति पर अपने बल पर इतना घमंड इतना अहंकार जिंद्रशी मुन्यों के तपोबल पर राज्य की सुरक्षा निर्वर होती है उनका इतना भैंकर अपमान हाँ
14:25कृतवीर्य मैं प्रम्हपुत्रात्रई तुए श्राप देता हूं ये शक्ति और बल के खारण तुम उन्मत और दुराचारी होकर इस पवित्राश्रम में आतंक मचा रहे हो रिश्य मुनी प्राम्मणों और तपस्यों के सामने शक्ति का घ्रास पर प्रदर्शन कर रहे हो
14:55एक ब्राम्मण ही तुम्हारे जैसे आस्वी प्रवर्तिवाले शत्रियों का बिलाश करेगा इस प्रिथ्वी को शत्रिविहीन कर देगा
15:04कि अध्री तुम्हारे दुस्साहस का इतना भयंकर उत्पर दोंगा कि तीनों लोग कापते रह जाएंगे
15:27सार्थे नत को पापस ने चलो
15:39प्रणाम पिताश्री प्रणाम जगतपालत
15:46प्रणाम महादेव
15:52आज आप बहुत चिंतित दिखाई दे रहे हैं देवर्शी
16:04हाँ इसी कारण तो आज हमारे कानों को देवर्शी नारत का नारायन नारायन सुनने को नहीं मिला
16:12यह सब यह सब आपके मनमुहक रूप के कारण हुआ है प्रभू आपका साक्षात होते ही मैं आपके रूप
16:22पर ऐसा मोहित हुआ ऐसा मोहित हुआ कि वाने मूँख हो गई और जीवा हिलना भूल गई नहीं मादें नहीं इन्हें दंडित मत कीजिएगा अन्यथा यह भैके मारे लड़ खड़ा कर कुछ का कुछ बोलने लगेगी
16:39हुआ हुआ हुआ हुआ है त्रिदेव यह नारद आप से ख्षम्ह प्रार्थी है प्रभू मैं प्रित्वी लोग पर अधर्म और अन्याय के बढ़ते हुए प्रभाव को रोकने की प्रार्थना लेकर उपस्तित हुआ हूँ
17:03कि यदि आपने शिग रही उस प्रभाव को निश्प्रव नहीं किया तो प्रित्वी पापों के बोज को नहीं सहन कर पाएगी पभू
17:14और है त्रिदेवू यदि इस्थिती ऐसी ही रही तो प्रित्वी वासियों का परमेश्वर पर से विश्वा से उड़ जाएगा वो यहीं सोचेंगे कि क्रित्वीर जैसे असुरों से अब उनकी रक्षा को नहीं कर सकता
17:31कि इसलिए है जगत नियंताओं महा सती अनुसुया को आपके दियेवे वर्दान के भलिभूत होने का समय आ गया है
17:42कि स्रिश्टी कल्यान के लिए अब आप अवतार लीजिये प्रभू अवतार लीजिये अवतार लीजिये ब्रह्मुदेव
17:51अब अगरम हें अब अपार लीजिये जगन्नात है अब आप अब गली जिये थाder लीजिये अगaran
18:05अबर था था था था था था था है तो था था था 15
18:12सब्सक्राइब तरफ्ड देव से तेजिक आया
18:28अनस्या के तन में समाया
18:42दर्तात्रय के गुणलिये सारे उत्र रूप में वेश्णु पधारे
18:56दर्तात्र रूप में वेश्णु पधारे दुर्वासा के दुर्वासा के रूप में शंकर
19:16रिश्व के घर आए रिश्वन कर
19:24तीनों भगवान सती अंसुया का लाड़ प्यार पाकर पलने लगे ब्रम्ह लोग शिवसागर और कैलास को छोड़ रिशी आश्रम में पलने वाले भगवान प्रसंद थे और माता की ममता का आनंद ले रहे थे
19:38दुर्वासा सभाव से ही क्रोजी था वह बात बात पर अपने भाईयों से जगर पड़ता उनकी खेलने की चीजे छीन लेता और जब
19:48माता अन्सुया उन्हें समझाती तो दुर्वासा बजायक श्मा मांगने के अपने जिद पर अड़ा लगता यह बात माता अन्सुया को अच्छी न लगती
19:57क्यों हमेशे लड़ते रहते हों अपने जेश्ट घ्रताओं से ऐसा बेवार तुम्हें शोभा नहीं देता है चलो इनसे शमा लांगो मैं शमा नहीं मांगोंगा दोश उसका है पुत्र अपने सुभाव बदलो बदलो अपने सुभाव पुत्र
20:16स्वामी अब मेरा कारे संपूर्ण हुआ आप इन तीनों को शिक्षा प्रदान करें अवश्य देवी जब व्रत और ज्यान के शिक्षा प्रात करते हुए तीनों बड़े हुए युवा अवस्था में आकर जेश्ठ पुत्र चंद्रमस को अपने लोग की याद सताने लगी
20:46और उन्होंने माता अंसुया से अपनी एक्षा प्रकट की मा मैं यहां पिथी लोग में नहीं रहने चाहता हूं मैं ब्रह्मा लोग जाना चाहता हूं कभी नहीं
21:01कोई कभी अपने होटों से इस आश्रम को छोड़कर जाने की बात मियूमत करना
21:05पंप अमिये सोचा भी कैसे क्या नहीं मिलता तुम्हें किस पदार्थ की कमी हे अश्रम में कोई कमी नहीं है माताश्रीuchen
21:16प्रांतु मेरा मन महर्शी क्या आपने अभी तक अपने पुत्रों को मन के बारे में कोई �शिक्षा नहीं दी है माताश्री
21:35आज जो तुम्हें आश्रम से दूर ले जाना चाहता है तो क्या यूही सारा जन्म भठतते रहोगे
21:47मैं पने से कभी नहीं कहूंगी तुम्हें तुम इस आश्रम से कहीं नहीं जाओगे
21:54जाओ तीनों जाके सो जाओ ब्राता उठकर यग्ग के लिए समिधाय लेने जाना है तुम्हें
22:01कि पराम माता श्री कि पराम माता श्री कि आपके मुख मंडल पर सोच की रेखा है साफ दिखाई दे रहे हैं
22:22कि रात में माता श्री द्वारा डाटे जाने का प्रभाव आई है मेरा मन बहुत फिचलित है मैं रात भर सो भी नहीं पाया यहां प्रित्वी लोग पर मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा है ब्राता श्री माता श्री यदि आपके आश्रम छोड़कर जाने में प्रसंद �
22:52लिएवरे आपको धो खाल देना हुआ लुएं से धोखा मैं रहाCal देना हुआ नहीं तो नुझ गρηफुर देना हुए था धो
23:06हैंगे यदि कहीं भी जाने का प्रेत नी किया तुम आपको शॉप दे दूँगा ना रायन ना रायन ना रायन राम देवर्शी
23:18कि प्रभु इस लोक में मुझे कोई ऐसा स्थान बता दीजिए जहां जाकर मैं अपना मुझे चुपा सकूं
23:25कि भगवन आप क्यों मुझे लज्जित कर रहे हैं मैं मैं आपका भग्त हूं मुझे आपका अश्रुवा चाहिए देवर्शी आप जैसे ज्ञानी को क्या ये ज्ञान देना पड़ेगा कि हम तीनों इससमें मनुश्य के आउतार हैं मुझे अपने क्रोधा उतार के दर्शन म
23:55देखिए देखिए मेरा रोम रोम कैसे काप रहा है प्रभू अपनी किरपाद रिष्टी मुझे पर बनाए रखिए दिवर्शी आप तो सभी प्राणियों के देवताओं के शुबचिन तक हैं सभी आप पर स्नेह रखते हैं आपके दर्शन पाते ही सभी के मुख मंडल पर
24:25कच समस्ते हैं हां सभीota समस्ते नाराय थे कद कि इस करिए जैसे आपके इच्छा प्रभू जैसे आपके इच्छा कििन्तु प्रभू आप भले ही मनुष ऑतार में किन्तु मैं आपका सत्रम जानता हूँ आत्तह आप मुझे अपना आश्रवाद दीजिए
24:45हे तिर देवो आपका ये भक्त आपकी सेवा करना चाहता है अता यग्य के लिए समिधाय मैं उठा लेता हूं उसकी कोई आवशक्ता नहीं है दिवर्शी अगर आपको सहायता करनी है तो भराताश्री चंद्रमा की कीजिए ये ब्रह्म लोक लोट जाना चाहते हैं और इसे त
25:15इस विशय में सोचिए नारायन नारायन अच्छा अब समझ में आई सारी बात मैं भी कहूं मैं यहां क्यों आया अवश्य आप तीनों की दीवी प्रेणा ही मुझे आपके सम्नुखी चलाई है आपकी लीला को प्रणाम प्रभू प्रणाम आप भी क्या-क्या काम कराते हैं
25:45नारायन नारायन प्रणाम भावी मां कल्यान मस्तू प्रसाद लीजे देवरिशी आँ हाँ मेरा सवभाग्य ओहो जैहो तेवरिशी
26:13आप नारायन का जितना जाप करते हैं लगता है एक दिल सुयम ही नारायन बन जाएंगे
26:18नारायन नारायन भावी मां आप स्पष्ट कह दीजे ना कि मैं आपके आश्रम से बाहर चला जाओ
26:26ना रायन ना रायन मुझसे ऐसी कौन सी भूलो गई भावी मा जो आप मुझे बता कर नहीं जता कर मेरे कान खिच रही है लाइए जगत माता मुझे अपने चर्णों की धूली से अपने मस्तक को सुशोभित कर ले ने दीजिये
26:44चलिए कुछ तो पाप धुले चलता हूं ना रायन ना रायन भावी मा कहते हैं और भावी मा का तनिक सा चुटकी लेना जहन नहीं कर सकते क्या
27:05चुटके क्या आप चाहे तो अपने वात से लिके जितने भी थपड मेरे मूँ पर मार लें किन्तु उपहास में भी मुझे अपने से बड़ा मत बनाईए
27:18आप मेरी भावी मा है भावी मा और एक बेटा मा से कभी बड़ा नहीं होता
27:24यह क्या देवर जी आपको इस प्रकार भावुक देखकर आपके भक्त क्या सोचेंगे
27:36वे आपके इस भीगी आखों वाले रूप से अपरचित हैं उन्हें तो आपका आखें मटकाते हुए और हसते हुए ना राया ना रायन बोलने वाला रूपी आनंदित करता है
27:50यह भावनाओं का खेल आप हम प्रत्वी वासियों के लिए ही रहने दीजिए
27:55कैसे स्मरण हुआ है हमारा देवर रिशी आपके इस आश्रम में तो सभी भक्तों के इश्य विराजमान है देवी
28:11उनके दर्शनु के भिलाशा हमें इस आश्र में खीच लाई प्रभू ने तो वामन अवतार में तीन पगों में प्रित्वी आकाश पाताल माप लिये थे
28:23किन्तु आपने तो एक ही वर्दान में भ्रम्भा विश्नु महेश को अपने में समोल लिया भाविमा नहारायन नहारायण
28:33है आपके औरी प्रशंसा करने आए हैं नहीं नहिं मैं तीनों तो बाहर है वह भाविमा उनके वार्शन तो बाहर
28:46का रहा हूं अब मैं उनकी एक प्रार्थना लेकर आपके पास आया हूं क्यों उन्हें उससे प्रातना करते हुए संकोच आता है क्या जब बालक थे तो कुछ भी बोल सकते थे किन्तों अब युवक हो गया है ना वो चाहते क्या है वो भाभी माँ
29:04कि यदि प्रित्वी स्वार्ग और पाताल मिलकर तिनों एक ही लोग हुआ तो मुझे कोई आश्यर नहीं होगा और यदि देवी लक्ष्मी देवी पार्वति और देवी सरसुती दत्ता त्रे दुर्वासा और चंद्र के लिए मनुश्या उतार लेना चाहें तो वो तो उन्ह
29:34ये भी सभाव इखे देवरिशी इसमें क्या क्या क्या कहा अपने देवरिशी वे तीनों अपने लोग लौट जाना चाहते हैं तीनों नहीं केवल चंद्र चंद्र ब्रह्म लोग लौट जाना चाहते हैं माते नहीं ये समभाब नहीं मैंने उसे पहले ही कहा था ये नहीं ह
30:04कि जगत नियंताओं आप भस गए अब तो आप ममता के ऐसे बंधन में बंद गए हो जो कभी तूटने वाला नहीं नहाराएड नहाराएड
30:22हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ
30:52झाल झाल
31:22प्राव प्राव देख
31:52यह क्या माताश्री आप किसे प्रणाम कर रहे हैं परब्रह्म परमात्मा को परंतु माता का स्थान परब्रह्म से भी उंचा होता है माताश्री क्या इसलिए परब्रह्म परमात्मा अजन्मा है नहीं माताश्री परब्रह्म ने तो माता का सुख अनुभव ही नहीं किया इसलि
32:22कि हम जगत को यह संकेत देना चाहते थे कि परमेश्वर से भी शेष्ट कोई है तो वो है माता
32:30क्योंकि अजन्में परमेश्वर को जर्म देने की क्षमता केवल माता में ही है
32:40नारायण नारायण आप धन्य है प्रभो आप धन्य है हाँ मां मां से बड़ा इस स्रिष्टी में कोई नहीं है
32:56माता से ही स्रिष्टी है हम तीनों का कर्तव्य और स्वरूप माता में ही समा गया है
33:03सुर हो या असुर दैत्य हो या देवता दानव हो या मानव माता हर किसी के लिए पूजनिय है वंदनिय है क्योंकि माता ही माता पिता और धाता है
33:23जो कोई भी अपनी माता की पूजा करता है तो उसे परमपिता ब्रह्मदेव भगवान विश्णु महादेव शिवशंकर इन तीनों देवों की पूजा का पुन्य मिलता है
33:40कि इसलिए क्या आप तीनों अपनी माथा का अत्याग करके अपने अपने लोक लॉट जाना चाहते हैं
33:48अन्सुया देवी आप तो परम ज्यानी है भावूख होना आपको शोभा नहीं देता
34:10आप तो जानती हैं जब जब जिस जिस कारे के लिए प्रिथ्वी लोग पर आउतार हुए हैं वो कारे पूरा होते ही प्रिथ्वी लोग छोड़ देते हैं
34:22चंद्रमा तो परब्रम्ह का सात्वी गुन है जो सदा ही उपर रहता है
34:33कि यही कारण है कि तुम्हारा चंद्रमा ब्रम्ह लोग जाना चाहता है तो प्रिथ्वी लोग पर रही नहीं सकता अतह देवी
34:47कि आप अपने जेश्ट पुत चंद्र को अपनी माता के बंधन से मुक्त करके उसे ब्रम्ह लोग जाने की अनुमती दे दें
34:57जाओ पुत्र जाओ तुम्हें मैंने अनुमती दी मैंने तुम्हें अपनी ममता के बंधन से मुक्त किया
35:19जाओ देवलोग जाके अपनी इक्छा की पूर्थी करो तुम्हें तुम्हारी मा का अशिरवाद है जाओ पुत्र
35:29जह जारी मैंने नाओ तुम्हें में तुम्हें युम्हें मता का अनुम्हारी मा की है
35:47जाओ पुम्हें प्हूर्थारा जाओ
35:52हुआ हुआ हुआ है
36:22जाना जग कल्यान को मात मुझे मत रोक
36:43माग विदाई चंद्रमाँ चला ब्रहम के लोक
36:52चला ब्रहम के लोक
36:57सूर्य देव वो देखो महर्शी अत्री का पुत्रा आ रहा है
37:04सूर्य देव वो देखो महर्शी अत्री का पुत्रा आ रहा है
37:11सूर्य देव वो देखो महर्शी अत्री का पुत्रा आ रहा है
37:22सूर्य देखो महर्शी अत्री का पुत्रा रहा है
37:29सूर्य देखो महर्शी अत्री का पुत्रा आ रहा है
37:47आई भी पिता को प्रेनाम