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  • 2 months ago
उज्जैन में क्या चिता की राख से भस्म आरती होती है? देखें अद्भुत, विश्वसनीय, अकल्पनीय

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00:00सत्ति से जो शिंगार करता हूँ वो महाकाल है
00:13जो समय को बानते हैं वो बगवान महाकाल है
00:43हर हर महाँ पे वो बूलो प्यारे
00:52बाबा महाकाल जो है वो राजा दिराज है वो ब्रह्मान के नायक है
00:57काल यानि समय काल यानि मृत्यू कहते हैं काल के आगे किसी के नहीं चलती
01:19तब सोचिए महाकाल के आगे किसी की क्या हैसियत
01:23नमस्कार मैं हूँ श्वेता सिंग और आज उन्हीं महाकाल के अध्भुत अविश्वस्निय अकल्पनिय संसार में आपको लिये चलते हैं
01:33क्या आप जानते हैं कि क्यूं ये मान्यता है कि कोई अधिकारी कोई मंत्री उज्जैन नगरी में रात नहीं बिता सकता
01:40क्या आप जानते हैं क्यूं भस्न से शिंगार किया जाता है महादेव का और क्यूं महाकाल की राजसी सवारी में वर्दी धारियों का अनुशासित परेड होता है
01:52और विश्वस्निय सवालों के और कल्पनिय जवाबों के साथ चलिए अद्भुत महाकाल लोग अज़िए
02:04कि अज़िए
02:09कि अज़िए
02:12कि अज़िए
02:14महाकाल महाकाल प्यारे
02:21जो राह इंसानी देह का अंतिम सत्य है वो क्यूं बना महाकाल का श्रिंगा है
02:41क्यूं हर दिन की शुरुवात महादेव को भस्न के स्नान से होती है
02:46कि अज़िए
02:52कि
02:54कि
02:58अज़िए
03:00कि
03:02अज़िए
03:04कि अज़िए
03:06अज़िए
03:08अज़िए
03:10अज़िए
03:12कि
03:14अज़िए
03:16अज़िए
03:18अज़िए
03:20कि
03:22अज़िए
03:24अज़िए
03:26कि
03:28कि
03:30कि
03:32कि
03:34कोई भी शासक
03:35उज़िए
03:36में रात को नहीं रुक सकता
03:38कि
03:40अवंति का उज़िए
03:42के अंदर
03:43केवल राजा है
03:44तो वह महाकाल है
03:48क्यूं उज़िए
03:49को ही महाकाल की धरती माना गया
03:51क्यूं महाकाल है उज़िए
03:53के शाश्वत राजा
03:55क्यूं सावन के महीने में
04:05आज भी मंदर से बाहर निकलते हैं महाकाल
04:08और शान से निकलती है उनकी वो सवारी
04:11जिसमें प्रशासन के सिपाही उनकी सेवा में साथ चलते हैं
04:14पक्वान महाकाल
04:17राजा सुरुप के अंदर बग्त लोकों को धरसन देते हैं
04:20जब कुछ में नहीं था तब शिव थे जब कुछ नहीं होगा
04:49तब शिव होगे
04:50आज अद्भुत और विश्वसनिय और कल्पनिय में हम आपको देवाधिदेव महादेव
04:57जो आदी भी है अनन्त भी जो भोले नाथ है तो रुद्र रूप भी जो काल के स्वामी है
05:04उन महाकाल के आलोक एक संसार लिये चलते हैं
05:19नमामी शमी शानर निर्वान रूपम विभुम व्याप कम ब्रम्व वेद स्वरूपम
05:25यानि मैं शिव भगवान को नमन करती हूँ जो निर्वान रूप हैं सर्व व्यापी हैं ब्रम्व और वेद स्वरूप हैं
05:32शिव रुद्राष्ट कम की रचना गोस्वामी तुलसिदास ने की थी जिसमें भगवान शिव के अलग-अलग रूप और गुण का वर्णन है
05:55आर्ती की अद्भूत परंपरा है
06:25जो विश्व के विश्वनात वो यहां रुद्र है जो संसार में महादेव वो यहां प्रलेंकारी है जिन्हें दुनिया शिव शंकर के रूप में पूझती है वो यहां प्रचंड है काल के भी काल महाकाल है
06:55रात्री के तीसरे पहर जब पूरी दुनिया सो रही होती है तब उज्जेन में महाकाल की नगरी जागती है
07:04ये वो समय होता है जब ब्रह्म मुहूर्त में ब्रह्मांड की सकरात्मक उर्जा सर्वाधिक सक्रिय होती है
07:11इसी पवित्र समय में पट खुलते हैं महाकाल के
07:17और प्रारंब होती है महाकाल के अद्भुट श्रिंगार के साथ भस मारती
07:26महाकाल को पहले पवित्र गंगाजल से स्नान कराया जाता है
07:31फिर दूद, दही, घी, शहेज, शक्कर से स्नान संपन्न होता है
07:47स्नान के पश्चात प्रारंब होती है महादेव के रूप श्रिंगार की प्रक्रिया
08:07प्रति दिन महादेव को एक नया रूप धारण कराया जाता है
08:11और इसकी भी एक अद्भुत मान्यता है
08:17बाबा महाकाल निराकार और साकार दोनों रूप है
08:34इसलिए बाबा महाकाल निराकार से साकार रूप धारण करते हैं
08:38साकार रूप अरताशिव से शंकर बनते हैं
08:41तो जब संकर बनते हैं तो बाबा महाकाल के अलग-अलग सरूप में सिंगार किये जाते हैं
08:46कभी बाबान महाकाल मन महस की रूप में सिंगार देते हैं तो कभी उमा महस की रूप में कभी अर्दनागेसर की रूप में सिंगार होता है
08:53जब हम सिंगार करने बिढ़ते हैं मंदिर का जो पुजारी परिवार तो पहले से यह नहीं देता कि क्या सिंगार करना है
08:59जैसा बाबा महाकाल हाथ चला देता है बैसा बाबा महाकाल का सिंगार हो जाता है
09:04ये माना जाता है कि महाकाल के प्रतिदिन परिवर्तित होने वाले रूप
09:09स्रिष्टी के चक्र में निरंतर होने वाले परिवर्तन के प्रतीक होते है
09:13आमधारणा ये भी है कि महाकाल अपने भक्तों को अलग-अलग रूपों में दर्शन देते हैं
09:19और हर रूप के साथ एक अलग संदेश और आशीरवाद होता है
09:23जिसे महाशिवरात्री में महाकाल का श्रिंगार दूले के रूप में किया जाता है
09:28जबकि सावन के महीने में राजा धिराज की तरह और दोनों का अर्थ और महत्व अलग-अलग है
09:34जब पुजारी सिंगार करने के लिए चालू करता है तो उसके मन में जो भगवान भाव दे देता है
09:41वही भाव सिंगार के अंदर आ जाते हैं कभी राजा के रूप में आ जाते हैं कभी अहनेवान ची के रूप में आ जाते हैं
09:47कभी योगी के रूप में आ जाते हैं कभी भगवान शिव के साथ में माता पारवती विराजमान हो जाती है
09:52ये उस समय जो पहुना आती है उसी पर बाबा का सिंगार चालू हो जाता है
09:57पेले से किसी परकार का इसमें यह नहीं रेता है कि आज हम जाकर यह बनाएंगे
10:01या यह सुरूप होगा बाबा का क्यों बहुत सुरूप होगा
10:03महाकाल जब रूप धारण कर लेते हैं फिर शुरू होती है भस्म आरती
10:11अखिर क्यूं होती है महाकाल की भस्म से आरती
10:21सिर्फ उजयन जोतिरलिंग में ही क्यूं होती है भस्म आरती
10:25यह भस्म आरती होती है या भस्म से महाकाल का प्रथम स्नान
10:30भस्म आर्थी में प्रयोग होने वाली राख कहां से आती है?
10:36क्या चिता की राख से महाकाल की भस्म आर्थी की जाती है?
10:39और जैसी की मानिता है, क्यूं महलाओं को भस्म आर्थी देखना वर्जित है?
10:52महाकाल शम्शान वासी है
10:54महाकाल की आर्दी जब भस्म से की जाती है तो ये संदेश होता है संसार की लश्वर्टा का और देह के राख से अंतिम संबंध का
11:03मृत्यू के देवता होने के नाते अगर हम देखे तो इस चराचर ब्रह्मांड का अंतिम सत्य क्या है कोई भी वस्तू हो कोई भी वेवस्ता हो उसकी अंतिम गति क्या होती है बस्म होना है जो अंतिम सत्य है उसको जो धारन करता है वो शिव है तो बाबा महाकाल चुकि मृत्
11:33महादेव की उपासना में अभिशेक का महत्व बड़ा होता है इस शब्द को इस संदर्ब में देखें तो मतलब होता है पवित्र जल से स्नान कराना पौरानिक कथा यह है कि समुद्र मंथन के समय जो विश निकला उसे भगवान शिव ने ग्रहन किया था जिससे उनका शरीर �
12:03तब से अलग-अलग सामगरी से उनके अभिशेक की परंपरा है वैसे तो अलग-अलग जोतिर लिंगो में अभिशेक की विधी एक समान रहती है पर केवल महाकालेश्वर की भस्म सनान या भस्म आर्थी की परंपरा है
12:18बारज यूतिर लिंगो में केवल उज्जेन में ही महादेव महाकाल रूप में विराजमान है और इसके पीछे पौरानिक मान्यता है
12:31भगवती महासती को जो लेकर के भगवान महाकाल रूप में हो गई थी
12:53और भगवान श्यूजी ने महाकाल को भगवती सती का अपने मस्तक पे धारन किया था
13:01अपने शरीर के उपर धारन किया था
13:04देत के वद के लिए ब्रामर बच्चों के रक्षारत जो बाभा के भक्त थे उनकी रक्षा के लिए बाभावा यहाँ पर प्रगट हुए थे
13:11काफी आकोशित भाव से प्रगट हुए थे कि ये चोटे बच्चों का वद करने जा रहा है
13:16तो इसलिए फिर हुकार भरी और काल रूप में प्रगट हुए और उसका वद किया
13:21और फिर यहां पर वो भगवन महाकाल के रूप में अस्थापित हो गए
13:24कई लोगों का मानना है कि महाकाल भस्म से स्नान करते हैं
13:35लेकिन अगर पूरी प्रक्रिया को देखा जाए तो महाकाल का स्नान श्रिंगार से पहली ही हो जाता है
13:40और श्रिंगार के पश्चात भस्म के साथ आरती होती है जिसे भस्म आरती कहा जाता है
13:46महाकाल से मृत्यु पर विजय के साथ जीवन में मंगल का अशीरवाद भक लेते हैं
13:54इसी कारण से इसे मंगला आरती भी कहा जाता है
14:16ये कहा जाता है कि प्राचीन काल में अखंड ब्रह्मचारियों या साधो संतों की चिता की राक से महाकाल की भस्म आरती होती थी
14:29लेकिन समय के साथ भगवान की आरती के लिए मनुश्यों की चिता के राक का प्रयोग अतार्किक लगने लगा इसे रोक दिया गया
14:38अब जिस राक का प्रयोग होता है उसे पीपल, शमी, पलाश, बरगद, अमलताश, बेर के पेड़ों की लकड़ी और कपिला गाय के कंडों को जला कर प्राप्त किया जाता है
14:50इसे लौकिक भस्म भी कहा जाता है
14:52बाबा महाकालेश्वर की जो भस्म है वो यहाँ पे शुद्ध गाय के गोबर से निर्मित होती है
15:12ना कि कोई ठिता की होती है
15:14मानिता ये है कि महाकाल स्नान के समय दिगंबर रूप में होते है
15:24और उन्हें उस रूप में महिलाओं को देखنا उचित नहीं माना जाता
15:29दूसरे ये भी विवस्ता है कि महाकाल के स्नान, श्रिंगार और भस्म आरती के समय अधो वस्त्र ही पहना जाता है
15:36यानि सिर्फ कमर से नीचे बिना सिला वस्त्र यही कारण है कि पुजारी केवल धोती धारण करते हैं भस्म आर्ती के समय
15:43जब भगवान को भस्म अर्पन होता है तब भगवान निराकार रूप में व्याप्त होते हैं
16:06उस समय महिलाओं को उस स्वरूप का दर्शन निशेत किया गया है
16:10भस्म चड़ते समय मंदिर प्रांगण में भी यही कहा जाता है कि महिलाओं अपना घूंगट अत्वा पटधारन करें जिस से उस निराकार स्वरूप को ना देखें
16:23परन्तु भस्म आर्ती एवं प्राता मंगला आर्ती के दर्शन महिलाओं कर सकती हैं
16:40भस्म यानी अंत और अंत यानी मृत्यू और जब अंत की प्रतीक ये भस्म महा काल का श्रिंगार बनती है
16:51तो ये केवल उनकी अराधना नहीं मृत्यू का उत्सब बन जाता है
16:56शिव आदी यानी प्रारंभ भी है और अंत यानी समापन भी है
17:16भस्म आरती आदी से अंत तक की ऐसी अद्भुत यात्रा है जो धर्ती पर कहीं और देखने को नहीं मिलती है
17:46आस्था श्रद्धा और भक्ती के भाव के अलावा महाकाल एक ऐसे रहस्य की और भी अनादिकाल से संकेत दे रहे हैं
18:08जो अद्भुत अविश्वस्निय अकल्पनिय है महाकाल को उजयन का शाश्वत राजा माना जाता है उनके समक्ष किसी के नहीं चलती
18:18यहां से जुड़ता है एक और मानिता का सिरा जिस कारण कहते हैं कि सदियों सदियों से सत्ता की किसे भी नुमाइंदे ने महाकाल की नगरी में रात नहीं बिताई
18:29पर क्या वाकई
18:30क्यूं कहा जाता है कि महाकाल की नगरी में कोई राजा या शासक रात्री विश्राम नहीं कर सकता
18:44इस मानिता के पीछे क्या कारण है कि अगर कोई राजा कोई मंत्री उज्जैन नगरी में रात को रुका
18:51तो या तो उसकी सत्ता चली जाएगी या उसकी आखाल रुध्य हो जाएगी
18:56उजैन में महाकाल ही राजा है और इसलिए सदियों पुरानी मानिता है
19:09कि कोई भी यहां राजा की हैसियत से रात को नहीं रुख सकता
19:13क्या सचमुच में यहाँ पर कोई भी राजा रात्री विश्राम नहीं कर सकता है
19:21बिलकुल सत्य है
19:22यह प्रता भी जो थी यहाँ विक्रम का जो राज्य था
19:26विक्रम राज्य करते थे उसके पहले एक प्रता थी
19:30कि जो भी राजा बनेगा उसकी मृत्यू निश्चित है
19:33और उसकी मृत्यू निश्चित होने के कारण
19:36जब वो राजा विक्रम का नंबर आया
19:39वो एक छोटे से आदमी थे
19:41तब उनका भी नंबर इसमें आया
19:42तब उन्होंने इस विवस्ता को समाप्त करने का संकल पलिया
19:46और उन्होंने फिर ये विवस्ता को समाप्त की
19:49कि राजा कोई भी व्यक्ती रहे
19:51गादी खाली रहेगी
19:52केवल राजी के रूप में उसका नाम से लेगा
19:55और राजा विक्रम की गादी के नाम से ये गादी होगी तो यहाँ विक्रम सम्वत भी चलता है और विक्रम को भी माना गया और विक्रम ने इस प्रथा को बंद किया लेकिन आज भी ये प्रथा है कि अवंतिका उज्जेन के अंदर केवल राजा है तो वो माकाल है
20:10ये परंपरा इस हद तक निभाई जाती है कि उजैन नगर निगम क्षेत्र में कोई भी प्रतान मंत्री मुख्य मंत्री यहां तक की डीम नहीं रुके लेकिन मौजूदा मुख्य मंत्री मोहन यादव ने इस परंपरा को बदला
20:26जब डॉक्तर बोहन यादव यहां पर आए हैं जो कि यहीं करने वाले हैं लोग यहां पर थोड़ा सा उचाहित होकर आपको घेर भी लेते हैं मुझे लगता है कि सबसे परिचाय आपका होगा नाम नाम से उज्जेन में छोटे से बड़े हुए और इंदोर उज्जेन अलग
20:56मोहन यादव उज्जेन के ही रहने वाले हैं और उनका घर नगर निगम क्षेत्र में पढ़ता है मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद जब वो उज्जेन गए तो उन्होंने इस परंपरा को तोड़ा और इसका बेहत दिल्चस्प कारण उन्होंने बताया
21:26मैं समझनी सकता हूं कि इसमें कोई गलत बात है और आतीत के काल में भी ऐसे जवाला नहरू जब आये थे 1956 में जब विशुद्या लेकि सुबरारम के वो दो दिन रहे थे डक्टर राजन प्रसाद जी आ रहे हैं बाद में भी लोग रहे हैं तो मैं तो उसी सिलसले में और ह
21:56चतुराई के कारण ये मान्यता बनी या फिर इसे किसी और रूप में समझना होगा हमने इसे समझने का प्रयास किया
22:05परिधी और उज्जेन की बढ़ी भी हो सकती है नगर निगम के हिसाब से लेकिन हमारी महाकाल की और अध्याक्मिक द्रश्टि से हमारे भगवान महाकाल का जो ध्वज होता जो शिकर के उपर उसकी जहां तक परच्छे जाती है उसको हम भगवान महाकाल की परिधी मानते ह
22:35का ही उज्जेन का शासन है यानि जहां तक ध्वज की छाया वहां तक महाकाल की राजसी माया क्यूंकि महाकाल केवल उज्जेन नहीं स्रिष्टी के नियनता है
22:46राजा मंदिर से निकल कर नगर भ्रमन पर निकलते हैं
22:52और जब निकलते हैं तो सारे सांसारिक पद और प्रतिष्ठाएं गौन हो जाती
22:58श्रावण मास के हर सोमवार को प्रचंड आस्था के बीच महाकाल की सवारी उज्जेन में निकलती
23:05और वो द्रिश्य अद्बुत होता है
23:07हम आपको महाकाल की इस सवारी में अपने साथ लिए चलते हैं
23:24जहाँ पैर रखने की जगे नहीं बच्चती वहाँ कण कण में महाकाल के प्रतियास्था का सैलाब उमड़ता है
23:31हर किसी को ये अनुभव होता है कि विशाल भीड में भले वो महाकाल को न देख पाए
23:40लेकिन महाकाल उन्हें देख रहे हैं
23:43उनकी आस्था को ग्रहण कर रहे हैं
23:4515-20 साल होग है हमको बाबा के दर्शन करते करते
23:52चेतन निवीर हनुमान के यहां से देखते बाबा दर्शन देते बहुत बड़ी है
23:56दस साल से आ रहे हैं पेदल महाकाल दर्शन करने के बहुत प्यारा रूप है उनका
24:01उनके दर्शन होते ही हमारी सब ठकान उतार जाती है
24:05महाकाल के प्रती अद्भुत आस्थाउ जैन की उर्जा है जो लोगों की सांसों में और आचरण में बसती है
24:27डमडम डमरू जाल मृदंग के साथ जब महाकाल की सवारी निकलती है तो वो अद्भुत होती है
24:34संसार में ऐसी भक्ति कहीं और नहीं मिलती
24:39इस समय वहाँ उपस्थित हजारों लोगों के मन को पढ़ पाना मुश्किल नहीं होता
24:44उनकी आखे उनके भाव सब कह देते हैं
24:48होती आनन्द आ है और बाबा तो सबको हमारे उजेन के महाकाल के राजा है
25:03और हम धन्य होते हैं उनके दर्शन पाकर
25:06मैं तो फाइप एयर की थी जब से देखते आ रही हूँ
25:09और मेरी 50 एज है
25:10कई-कई दिन पहले से महाकाल के नगर भ्रह्मन की तैयारियां शुरू हो जाती
25:32अलग-अलग लोग अलग-अलग तरे से भक्ति भाव को प्रकट करने के लिए रूप थारण करते हैं
25:38इन्हें देखिए ये शैलेंद्र व्यास है
25:41एक स्कूल के प्रिंसिपल लेकिन महादेव के प्रतिश रधा के वशीभूत ये दशकों से महाकाल की सवारी का हिस्सा बन रहे हैं
25:49वो भी एक अलग रूप धारण करके
26:08मंगल कलश लहराते हुए आनंद और मस्ती के द्वार पर तोड़न द्वार सजाते हुए दिखाई दे रहे हैं
26:16महाकाल उजयन के राजा है और जब इस रूप में निकलते हैं तो प्रिशासन की तरफ से उन्हें सलामी दी जाती है
26:29प्रिशासन महाकाल की सवारी की व्यवस्था राजा की तरह ही करता है
26:34महाकाल की सवारी सावन में ही निकलती है और सिर्फ सोमवार के दिन ही निकलती है
26:57पर ऐसा क्यूं होता है इसके भी कई आध्यात में कारण
27:04सावन के महीने को आध्यात्मे कूर्जा के तौर पर फवित्र माना जाता है
27:16क्योंकि इसमें वायू मंडल भी स्वच्च रहता है
27:19लेकिन बार महीनों में क्यूं सावन ही पसंद है महाकाल को
27:24इसके पीछे कई पौराणिक मान्यताएं भी है
27:28अपने कंठ में जब उन्होंने विश्को धारन किया था
27:35उनका सरीर जुवलन सीलता का प्रभाव उनके उपर अत्याधिक हुआ
27:41जिसके कारण चंद्रमा ने उनको सांत करने के लिए उसके मस्तिक्स पे धारन हुए
27:47परंतु फिर भी उनकी ज्वलनता सांत नहीं हुई
27:51तब मा पारवती ने प्रार्थना की स्रिष्टी से और स्रिष्टी में जलवर्षा के प्रभाव से
27:58संपून रूप से हरियाली ब्याप्त हुई
28:01इस हरियाली के प्रभाव से भगवान की जोलन सीलता शीग्र सांत हुई और भगवान प्रसन्न होकर प्रत्यक वर्ष श्रावन मास में संपून श्रिष्टी पर केलास से निकल कर विचरन करते हैं
28:14सोम यानी चंद्रमा वार यानी दिवस यानी चंद्रमा का दिवस महाकाल ने चंद्रमा को सर पर धारण किया है
28:32जिसके कारण ये दिवस बेहत पवित्र माना जाता है न केवल सावन में बलकी हर महीं
28:38कहते हैं कि महाराजा भोज ने 11 सदी में महाकाल की सवारी की परंपरा शुरू की थी
28:47इसके बाद सिंधिया राजाओं ने इस परंपरा को और विस्तार दिया
28:51आज भी उसी वैभाव और शान के साथ महाकाल की सवारी निकलती है
28:57मंदिर परिसर से पालकी में आगे हाथी पर सवार होकर
29:01महाकाल की सवारी में वैसे तो कई वाद्य यंत्रो होते हैं
29:14लेकिन डमरू का विशेश प्रयोग और महत्व होता है
29:17और इसका सीधा संबन महाकाल की महिमा से
29:20इनसान के मन को चंचल कहा जाता है
29:29किसी बंदर की तरह जो कभी इधर कभी उधर भटकता है
29:32लेकिन वो डमरू की आवाज पर मदारी के इशारे परनास्ता है
29:35शिव मन को नियंच्रित करने की पेड़ना देते हैं
29:39और डमरू की डम डम उसी का प्रतीक है
29:41अद्भूत पौराणिक और मद्यकालीन परंपराओं की अविश्वस्निय संगम होती है ये यात्रा
29:53हाथी, घोडे, तलवार भाज, मद्यकालीन समय का प्रतिनिधित्व करते हैं
30:03तो भूत, पिशाच, गणफ, पौराणिक मानिताओं का सजीब चित्रण करते प्रतीत होते हैं
30:09और अंत में ये वो घड़ी होती है जब खुद कालों के काल महाकाल निकल रहे होते हैं सड़कों पर
30:23ऐसा भी संसार में कहीं और नहीं होता
30:27श्री महाकालेश्वर मंदिर की महिमा प्राचीन काल से चली आ रही है
30:35यहाँ पर महाकाल में काल के अर्थ को भी समझना आवश्चक है
30:39काल का अर्थ होता है समय
30:41काल का अर्थ मृत्यू भी है
30:44कालों के काल है महाकाल पर वो उज्जैन में ही क्यों स्थापित है
30:48उज्जेन के ही राजा महाकाल को क्यों माना जाता है
30:53उज्जेन यानि वो अध्भुद धर्ती जहां स्वयम प्रकट हुए महाकाल
31:05हमारे यहाँ 24 तत्तों की चर्चा की गई है
31:12और उसमें मूल जो दो तत्तों दर्शाये गए हैं वो प्रकृती और पुरुश है
31:16प्रकृती वो है जिसे हम देख सकते हैं जो एक विस्तारवादी है
31:20जो फैलाव करती है उसे हम प्रकृती कहते हैं और जो परमचेतना है उसे हम पुरुश कहते हैं
31:25कि यहां केंद्र में भगवान उस पुरुस्तत्य को एक लिंग के रूप में एक पिंड के रूप में अस्थाफित किया गया और उसके चारों तरफ जलेरी है जलेरी गौर आप ध्यान से देखेंगे तो उत्तर की तरफ से जलेरी का प्रारम होता है जो कि बहुत पतला होता है
31:55उज्जैन यानि वो धर्ती जो प्रित्वी की नाभी मानी गई जहां से दुनिया का विज्ञान और गणनाय चलती रही है
32:04उज्जैन को प्रित्वी के नाभी नेवल ऑफ दी अर्थ क्यों कहा जागा देखें क्या है कि उज्जैन का प्राचीन समय पर जो महत्तु था वो खगोली गणना के साफ से काफी महत्पून था
32:21महत्पून के से साफ से था एक तो उज्जैन करक्रेखा पर उस समय इस्थिती थी अभी थोड़ा सा परिव्यतन हो गया है और दूफरी बात क्या है कि जो समय की गणना होती थी जो जीरो देशांतर जो अभी ग्रिन विच को मानते हैं या भारत के लिए सालेव यासी डिक्
32:51मारा जितना भी रासीया की इस्थिती है वो राशियों की इस्थिती हम युक्वेटर से साले नौ डिग्री उत्तर और साले नो डिग्री दस दोनों तरफ है तो इसका मतलब क्या है कि अगर करक्रेखा पर होगा तो ऑपजर्बेशन हम एक पर्पेंडिकुलर सर की उप़र क
33:21उज्जैन यानि वो धर्ती जहां से समय अपनी गती तय करके चलना शुरू करता है
33:34उज्जैन से होकर जैसा हम सब जानते हैं कि करक रेखा गुजरती है
33:44इसलिए उज्जैन से ही बहुत सारी जोतिशिय गड़नाएं भी की जाती थी
33:50और उज्जैन को जब पूरी पृत्वी के समकष रख करके देखा गया
33:55और करक रेखा के परिप्रेक्ष में देखा गया
33:58तो देखा गया कि उज्जैन से जो दुनिया का गडित है
34:03ग्रहों की स्थिती है, दुनिया भर की जो चेतनाएं हैं उनको अच्छी तरह समझा जा सकता है
34:23उजयन का कण कण अध्भूत है, उजयन का चपा चपा अविश्वस निया है, उजयन से जुड़ा हर रहस्य अकल्प निया है
34:33अध्भूत है कि दुनिया में जब समय को मानने का कोई एक तैम नियम नहीं था, तब से उजयन दुनिया को सटीक समय बता रहा है
34:43निश्चित रूफ से उजयन प्राचीन समय में कालगाड़ना की महतपूर्ण अगरी रही है
34:51हम देखते हैं विक्मादित के नौरतनों में बरा महिर जो प्रिफिद्ध खगोल बेचता है
34:57वो एक बात ऐसे खगोल बेचता है जिसमें हमारे तीन पक्ष होते हैं जोतिसके
35:03जिसमें गड़ेत, फलेत और होरा जिसमें तीनों में उन्होंने ग्रंथ लिखे हुए हैं
35:08बर्तमान अगर हम वेज साला देखते हैं तो इसका निर्मान 1719 में जैपूर के महराजा सवाई राजा जैसिंग्दुती द्वारा किया गया है
35:16यह पहली वेज साला है जो उन्होंने बनाई है इसके बाद दिल्ली, जैपूर, मत्राबनारा सब बाद में बनी है पहली वेज साला वो जैन में बनी है
35:24विक्रमा दित्य चक्रवर्ती समराड थे
35:37शक्सामराज्य को जब उन्होंने पराजित किया
35:40तो उस समय से समय की गणना के लिए विक्रम समवच शुरू किया
35:45इसमें दिन, सप्ता और महीने की गणना सूर्य और चंद्रमा की गति के आधार पर की गई
35:50जो आज भी भारत की मान्य परंपरा है
35:53मान्यता है कि विक्रमा दित्य ने भी एक वेद्शाला बनाई थी
35:56जिसने उज्जैन को विश्व में जोतिश के प्रमुख शहर के तौर पर स्थापित किया
36:00वो राजा अपनी नाम से समझ चला सकता है
36:08जो प्रजा का जितना भी कर्ज हो वो उसको चुका दे
36:12और ये विक्रमा दिखते के ऐसे राजा रहे हैं कि जिन्होंने वो फब चुका के
36:18और प्रजा के कल्यान में जिस प्रकार से कार किया
36:21कि वो अधिक्रित हुए कि अपने नाम से समबत चला सकें
36:24समय की गणना से जुड़ा उजयन का इतिहास और प्रित्वी पर उजयन जिस जगे स्थित है
36:38समझ में आता है कि यही वो कारण हो कि महादेव उजयन की भूमी पर महाताल के रूप में स्थापित है
36:45महाकाल शिवलिंग दक्षिण मुखी है और ऐसा कोई शिवलिंग नहीं पाया जाता
36:53उजयन में महाकाल का दक्षिण मुखी होना कोई सयोग नहीं है
36:57बलकि सनातन धर्म की ऐसी व्यवस्ता है जो आदिकाल से चलिया रही है
37:02और इसका सीधा संबंध महाकाल की महमास है
37:15मान्यताओं में दक्षिन दिशा, मृत्यू के देवता, यम्राज की मानी जाती है।
37:20अब अगर मान्यताओं का गूर अर्थ समझें, तो समझना मुश्किल नहीं कि कालूं के काल, महा काल, यम्राज की ओर दृष्टी रखे हुए।
37:29और जो भग महा काल के समख शर्जी लगाते हैं, उसका क्या प्रभाव रहता होगा।
37:59वो इसलिए भी है कि काल का नियंत्रन, काल यदि अपनी सिमा छोड़ दे, तो प्रलाई प्रलाई है, तो उसके उपर नियंत्रन रखना, भगवान महा काल उसके उपर नियंत्रन रखे हुए है।
38:29की सर्था चलती है, लहाजा ये भी माना जाता है कि जो उनकी शरण में आ चुका होता है, उसकी मृत्यू और मोक्ष दोनों का निर्णे महा काल लेते हैं, और यमराज को उसका अनुपालन करना होता है।
38:41जो भी बाबा महा काल का दर्शन करता है, तो उसकी अकाल मृत्यू नहीं होती है, उसकी पीछे जो एक भाव है।
38:51हमारे हाँ परंपरा रही है, हमारे घरों में पहले पूर्वज कहा करते थे, कि दक्षिन की तरफ पैयर करके नहीं सोना चाही है।
39:21मृत्यू कि दिशा मानी गई है भगवान महाकाल का जो गर्वगरे हे वो दक्षिन मुखी कि तू जो रखोंकी की का सबस्क्राइब और मॱत्यू का जो देवता है जो काल का जिसकर आअधकी के दृशन में unicorn
39:36कस अध्राव
39:49क्योंकि भय से मुप्त हो जाता है।
40:19कि दिलेंदे पर बेल से स्वता अलग हो जाती है वैसे ही अम्रत्यु के बंधन से मुक्त हो जाएं लेकिन अम्रत्यु से नहीं।
40:23सनातन मान्यता है कि जब किसी पूर्ड़ू का संकर चाता है तो उसे महामृत्युन जय मंत्र के जाब की सलाह दी जाती है।
40:38लेकिन क्या आप जानते हैं महामृतुंजय मंत्र का प्रथम जाब महाकाल परिसर में ही किया गया था
40:48और महाकाल की स्तुती के तौर पर मारकंडे रिशी द्वारा रचा गया था
40:53मृत्योर मुक्षी यमामृता
40:58मिरकंड रिशी ने भगवान सिव से अराधना की कि उन्हें एक दिव्य और बुद्धिमान पुत्र की प्राप्ती हो
41:08इससे भगवान सिव प्रसन्न होकर उन्हें वर्दान दिया कि उन्हें एक दिव्य बालक की प्राप्ती होगी
41:16उसके उपरान आकास वानी भी साथ में हुई कि उस बालक की आयू केवल मात्र 16 वर्ष ही रहेगी
41:27इससे रिशी रिशी पत्नी चिंतित हुए जब बालक 14 वर्ष की आयू में आया तो माता की चिंता का कारण पूछा
41:36तब मारकंडे रिशी ने भगवान सीव की अरादना की और महामृतंजे के जब से अपनी मृत्यु को बसमे किया
41:45जब यम्राज उनहें उनके प्रान हरने को आये तब उन्होंने भगवान सीव के उस महामृतंजे जब के प्रभाव से
41:54भगवान सीव प्रगट हुए और उन्होंने यमराज को क्रोधित होकर वहां से भगाया और उन्हें अजर अमर होने का आशिरवात प्रदान किया
42:06शिव पुराण और मारकंडे पुराण के अनुसार महाकाल का आशीरवाद प्राप्त होने के बाद
42:14रिशी मारकंडे अमरत्व को प्राप्त हुए और अश्ट चिरन जीवियों में उनकी गणना होती
42:20माकाल की दर्बार में आने वाले शद्धालू जीवन की विशमताओं से मुक्ति की कामना करते हैं
42:29और ये क्रम सदियों से अनवरत जारी है
42:32जितनी भी अद्भुत बाते हम अपने आसपास देखते हैं
42:42उनका एक अविश्वस्निय स्वरूप होता है और एक अकल्पनिय सच भी
42:48अद्भुत अविश्वस्निय अकल्पनिय में आज के लिए इतना ही
42:52क्यामर पॉस्न अमित बदवार के साथ मुझे दीजिये इजासत देश और दुनिया की बाकी खबरों के लिए आप देखते रहिए आज तक
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