- 7/17/2025
Category
📚
LearningTranscript
00:00:00कोई आएगा बड़ी से बड़ी बाते करेगा तरक की और उसके पीछे को इतनी सी बात ये होगी
00:00:05सोना है काम नहीं करना अब तरक बहुत बड़े बड़े देगा उधारन के लिए ये भी हो सकता है
00:00:14आठ दस पुराने ग्यानियों को धृत करके बोले कि देखो सब ने बोला है कि इतने आए इतना काम किया चले गए बताओ किसको क्या मिला
00:00:23बड़ी बड़ी बातें गजब बातें कहीं से कोई रिपोर्ट लाके बता देगा इस तरह का मालब खुब मिल जाता है न जब से चैट जी पीटी आया है
00:00:35लेकिन बेइमान आदमी में हिम्मत भी नहीं कि सीधे बस ये लिख दे कि काम नहीं करना है सोना है
00:00:42पांच सकेड़ की नीद लेले भले बाद में पांच जूते खाएं ले श्याकी को मौ� grave
00:00:51वोलो आई की नहीं आई
00:00:55अभी तक इतनी बाते हो रही था किसी बात पर हसी आई तही मौज तो इसी बात पर आई आई अ तो बस हम नगारजून के साथ नहीं है
00:01:05हम हैं तो इसी को तरकी के साथ
00:01:07दुख अध्यात्मकी के इंद्री ये समस्या है
00:01:19और दुख
00:01:29कामनाओं के होने और पूरे ना होने का नाम है
00:01:52पहली बात क्या?
00:01:53इस सारी बात ही इसलिए है क्योंकि दुख है
00:02:01दुख नहो
00:02:05तो धर्म की कोई आवश्यक्ता भी नहीं है
00:02:16दूसरी बात है कि धर्म
00:02:18कामनाओं के अस्तित्तों में होने से और अपूरित होने से आता है
00:02:31कामना है तो पर पूरी नहीं है
00:02:36तीसरी बात ही है कि कामना के लिए
00:02:49मुझे होना होगा
00:02:50और किसी विशे को होना होगा
00:02:56विशे को मुझे से
00:03:04स्वतंत्र भिन्न अनाश्रित होना होगा
00:03:13चौथी शर्त क्यों है
00:03:15क्योंकि
00:03:19विशे
00:03:24अगर
00:03:26मूलता मेरी ही तरह है
00:03:29तो उसको
00:03:32स्वयम में जोड़ने से
00:03:35मैं
00:03:39स्वयम में स्वयम को ही जोड़ रहा होंगा
00:03:43और उससे
00:03:47अपूर्णता नहीं मिटेगी
00:03:51तो विशे का मुझे से भिन्न होना बहुत जरूरी है
00:03:57और भिन्न भी
00:04:03संख्यात्मक तौर पर नहीं
00:04:09गुणात्मक तौर पर
00:04:12नहीं तो
00:04:21जो
00:04:24अपूर्णता
00:04:26मुझे में है
00:04:27जो मेरा दुख बनी हुई है
00:04:31वो अपूर्णता बची ही रह जाएगी
00:04:34विशे को यदि स्वयम में जोड़ लिया तो भी
00:04:39आपने नल खोला नहाने के लिए
00:04:54और ये क्या
00:05:06उटी में तो
00:05:10पानी गंदा आ रहा है
00:05:13मिट्टी मिली हुई है न जाने के ऐसे
00:05:19बड़ा बुरा लगा
00:05:26साफ कुछ चाहिए था उसमें मिट्टी लगे हुई थी
00:05:30एक बाल्टी पूरी उसमें पाया एक किलो मिट्टी है
00:05:43एक बाल्टी में एक किलो मिट्टी है तो बहुत हैरान हो गए
00:05:48बुरा लगा बुले खोशते हैं बाहर कुछ जिसमें शुद्धता हो
00:05:57जिसको सुएम में जोड लें जिससे जाकर हम जोड जाएं तो शुद्धता मिल जाएगी
00:06:07तो जो पानी की टंकी थी
00:06:13वहाँ ही पहुंच गए
00:06:23ये तो एक बाल्टी पानी था इसमें एक ही किलो मिट्टी थी
00:06:26वहाँ जाकर के बहुत खुश हुए
00:06:28बहुत प्रभावित हो गए
00:06:30लगा कि सब दुख हो गयरा चले गए
00:06:34वहां सौ किलो पानी था
00:06:37सौ किलो पानी
00:06:43दिखा हम तो चोटे से हैं और दुनिया इतनी बड़ी है, दुनिया में इतना कुछ है, जो हमारी काम नवगे पूर्त कर देता है
00:06:56मैं ही तंगी में, गरीबी में, अल्पता में जी रहा था, कुल एक बाल्टी मेरे पास पानी था
00:07:04इसी लिए तो उस एक बाल्टी पानी में एक किलो मिट्टी थी
00:07:10ये मेरी
00:07:15गरीबी का परिणाम है कि मेरी
00:07:20बाल्टी में एक किलो
00:07:23मिट्टी निकली
00:07:25अब उसका आकार देख करके बड़ी खुशी चाही है
00:07:34जिसके पास गए हो, वहाँ पर हो सकता है मात्रा, संख्या, सब ज्यादा हो
00:07:40वहारे पास एक किलो
00:07:45वहारे पास एक बाल्टी पानी है
00:07:48वहाँ पर हो सकता है सौ बाल्टी हो, हजार बाल्टी हो, पर अगर वहाँ हजार बाल्टी होगा
00:07:53उसे मिटी भी फिर कितनी होगी
00:07:58अजार किलो होगी
00:08:00आप बेशक उसको स्वेम में जोड सकते हैं
00:08:04लेकिन आप उस बाल्टी के पानी से नहाते या टंकी के पानी से नहाएं
00:08:11कोई फर्क पड़ा क्या
00:08:13हाँ आपको बाहर बाहर से ये गुमान जरूर हो जाएगा कि आपने कुछ हासिल कर लिया
00:08:24आप कह दोगे मेरे जीवन में अमीरी है उपलब्धियां है
00:08:29देखो वो बगल वाला है
00:08:31एक बाल्टी मेरे पास पूरी टंकी
00:08:36लेकिन नहाने के लिए तो एक पाल्टी भी प्रयाप्त है समस्या ये नहीं थी कि एक बाल्टी पानी था बस समस्या ये थी कि उसमें एक किलो
00:08:45और उसके पास अगर एक किलो मिट्टी थी
00:08:49तो आपनी जो स्वेम में जोड़ लिया
00:08:52उसमें हजार किलो मिट्टी है
00:08:53हजार किलो पानी भी है
00:08:55बात समझ में आ रही है
00:09:00वो विश्य जो है उधर का
00:09:10यदि मुझे दिख जाए कि बिलकुल मेरे ही जैसा है
00:09:12तो मैं उसको
00:09:19पानी के लिए मारा मारा फिरूँगा क्या
00:09:24उसको पानी के लिए मैं तभी लालाइत रहता हूँ
00:09:30जब मुझे ब्रह्म बना रहता है कि उसमें और मुझे में कुछ फर्क है
00:09:35है ना
00:09:37अशुद्धी कुछ कम हो गई क्या
00:09:43पूरी टंकी पाने से
00:09:44मात्रा बढ़ गई
00:09:49अशुद्धी का अनुपात तो बिलकुल
00:09:52पुराना ही रहा ना और परेशान आप अशुद्धी से थे
00:09:56अशुद्धी तो अभी भी उतनी है
00:09:59उसको वो बिलकुल वही है जो तुम्हारे पास था
00:10:03बस वो दिखने में अलग है ना अपनी बाल्टी छोटी सी
00:10:13आपकी बाल्टी हो सकता है प्लास्टिक की हो टंकी
00:10:17हीट सीमेंट की बनी हुई है वो ज़रा प्रवावशाली लगती है
00:10:22गजब आसमान में टंकी हुई है
00:10:24और आपकी कहा वो गरीब बाल्टी उसमें हो सकता है छेद भी हो टंकी को देखिए बादशाह सलामत
00:10:35उपर बैठी हुई है लेकिन चीज वहां भी वही है जो अब भागोगे बोलो भागोगे
00:10:54जो विधि है माध्यमिकों की तो यह दिखाने की है कि जो बाहर जो विशय है
00:11:16उसकी अपनी कोई स्वतंत्र सत्ता नहीं है और जो हमने चार सूत्र लिखे उसमें
00:11:25चौथा क्या था तो जो दुख की पूरी कारक शंखला है उसमें इस जगह पर तोड़ा जा रहा है
00:11:38फ्रेंखला कहीं से भी तूट जाया जो तूट गई तूट गई न दुख होने के लिए अनिवार है
00:11:47यह मानना कि वो जो उधर है वो इधर से भिन्न है सुतंत्र है अलग है कुछ है उसमें ऐसा जो इधर नहीं है
00:11:57तो माधमक दर्शन यहां पर प्रहार करता है कहता है यह बात ही तुम्हारी गलत है कि उधर कुछ ऐसा है जो इधर नहीं है
00:12:09दिखा देंगे कि उधर जो है वो इधर पर बिलकुल आश्रित है
00:12:15कि जगत जो है वो जीव पर और संसार जो है वो हंकार पर पूरे तरीके से आशरित है
00:12:27अब यही जो वाक्य है कि संसार हंकार पर आशरित है
00:12:32इसको ऐसे भी लिखा जा सकता है कि संसार की कोई सोतंतर सत्ता नहीं है
00:12:39और इसी को और कड़ाई के साथ ऐसे भी लिखा जा सकता है
00:12:47कि संसार नहीं है यही शुन्यवाद हो गया
00:12:52आपके मन में अपनी छाया को लेकर के
00:13:04बहुत उदारता हो तो आप कहेंगे कि
00:13:11छाया मुझे से सुतंतर नहीं है
00:13:15छाया मेरे जैसी दिखती है पर मुझे से सुतंतर नहीं है
00:13:20और कोई आएगा
00:13:24जो और शुद्धता के साथ इसी बात को ऐसे बोल देगा कि छाया मने
00:13:33ऐसा व्यक्ति जो है ही नहीं
00:13:37वो व्यक्ति जैसा दिखता है पर वो है ही नहीं
00:13:39यही शुन्ने बात है
00:13:40वो इतना आप पर आश्रित है जगत
00:13:44कि अपमें आपमें वो कुछ है ही नहीं
00:13:47जब वो कुछ है ही नहीं तो क्या उसके पीछे भागोगे
00:13:49और इसी बात को
00:13:53जब आपकी तरफ मोड़ दिया जाता है
00:13:56तो ऐसे कह दिया जाता है कि आप इतना ज्यादा आशरित हो जगत पर
00:14:00जगत के बेन आप होई नहीं
00:14:04तो एक छोर पर जगत शुनने हैं दूसरे छोर पर आप शुनने हो
00:14:08लेकिन ये दो शुनने एक दूसरे को पकड़ करके
00:14:15नजाने कौन सी मिथ्या सत्ता प्रदान कर देते हैं
00:14:20इसको कहते हैं प्रतीत समुत्पाद
00:14:22दो ऐसे जो दोनों ही नहीं हैं
00:14:31जब एक दूसरे का हाथ ठाम लेते हैं
00:14:34तो गजब माया खड़ी हो जाती है
00:14:35जहां लगता है कि ये भी है और वो भी है
00:14:39है दोनों ही नहीं
00:14:45और स्वतंत्र कर दो, काट दो दोनों का साथ, तो दोनों में बचे का कोई नहीं, लेकिन जहां दोनों ने हाथ पकड़ा एक दूसरे का, तहां दोनों की न सिर्फ सत्ता खड़ी हो जाती है, बलकि ऐसा लगता है कि दोनों एक दूसरे से प्रथक और स्वतंत्र भी हैं,
00:15:01आप कहते हो ना मैं नहीं भी रहूँगा तो दुनिया रहेगी
00:15:06कहते हो कि नहीं
00:15:08मैं मर जाओंगा उसके बाद भी दुनिया रहेगी
00:15:11तो आप मानते हो कि दुनिया सुतंतर है आपसे
00:15:14ठीक है
00:15:16हम?
00:15:20इसी तरीके से हम ये भी मानने को तैया रहें
00:15:31उदारण के लिए
00:15:33कि जलवाई उपर और तन हो गया
00:15:35खूब प्रत्वी बिलकुल उपर नीचे हो गई
00:15:38तो अभी इनसान तो बचा ही रहेगा
00:15:40इसमें क्या भावनेहित है
00:15:47कि हम
00:15:49प्रत्वी से
00:15:51शायद पूरे ब्रहमांड से ही सुतंतर है
00:15:53हमारा वहाँ पर ये गुमान बैठा हुआ है
00:15:55कि वो बाहर वाला सब बदल भी जाएगा
00:15:58तो हम थोड़ी बदलेंगे हम अपने आपको बचा ले जाएगे
00:16:00बाहर जो है वो सब बिलकुल
00:16:03विक्षत विक्षत टुकड़े टुकड़े भी हो जाएगा
00:16:05तो भी इंसान किसी तरह बच जाएगा
00:16:08सारी प्रजातियां मिट जाएगी तो भी एक प्रजाती बच जाएगी हमारी
00:16:11तो यहां क्या भाव है कि हम उससे
00:16:14हम दोनों ही बाते मानते हैं
00:16:19वो मुझसे सवतंत्र है
00:16:20और मैं उससे सवतंत्र हूँ
00:16:27यही जवरदस्त भ्रहम है
00:16:31माद्यमक दर्शन देखता है कि यही भ्रहम दुख के मूल में है
00:16:40क्योंकि जब वो अलग दिखता है और अपने भीतर बेचैनी दिखती है
00:16:46तो आदमी उसकी और भागता है उसको पाने के लिए
00:16:51जब ऐसा प्रतीत होता है कि वो जो आगे है
00:16:57जो इंद्रियों का मन का विशय है
00:17:00वो मुझसे अलग है
00:17:03पहली बात तो
00:17:05और दूसरी बात मुझे में क्या है निरंतर एक खाली पन
00:17:10सुना पन बेचैनी अपूर्नता
00:17:13तो फिर ये होकर रहेगा कि हम उसकी और भागेंगे
00:17:18अब भागोगे तो दो ही चीज़ें हो सकते हैं या तो पाओगे या तो
00:17:22नहीं पाओगे
00:17:24नहीं पाया तो क्या होगा
00:17:28अरे और
00:17:32निराशा का दंश
00:17:36हार हीनता
00:17:38नहीं मिला
00:17:41कई बार तो एक ही विशह होता जिसको पाने के लिए
00:17:45एक अनार सौ बीमार होते हैं
00:17:49होते हैं न
00:17:50वो फलानी चीज़ है वहाँ है उसको मिल जाए तो बिलकुल एक दम तर जाएंगे
00:17:57शानती हो जानी है
00:17:59नहीं मिल सकती
00:18:01वस तो एक है चाहने वाले सौ है
00:18:04तो निन्यानुवे को तो नहीं मिलेगी जाहिर सभी बात है
00:18:07नहीं मिली तो वैसे ही दिल तूट जाना है
00:18:11और आहत हो करके घूमेंगे
00:18:14ठीक दुख क्या होगा फिर दुख और
00:18:18बढ़ जाएगा ठीक
00:18:20और मिल गई तो क्या होगा
00:18:22मिली तो क्या मिलेगा
00:18:27कि कुछ तो मिलेगा ही वस्तु तो थी आखों को दिखाई पड़ती थी हाथ से छूभी लोगे जो मिला लेकिन वो क्या मिला है
00:18:36वो इस्रीटी के मरीज को एसिड मिला है पीलो
00:18:46वही मिला जो तुम्हारे पास पहले ही आधिक्य में है प्रचुरता में है
00:18:53वही मिला है जो तुम हो जो तुम अपने भीतर लिए बैठे हो वही और मिल गया
00:18:58जिसका दुख नशा है उसको और शराब मिल गई है
00:19:20तुम्हारी बात समुझ में है
00:19:23अब क्या हुआ कि नीचे नहाए उस एक बाल्टी पानी से
00:19:30पता नहीं कहां कहां वो मिट्टी रेत सब घुझ गई शरीर में
00:19:36और लगी खुझली खाय खाय खाय खाय खाय बाल नोच लिये
00:19:41खुझा खुझा करके खाल नोच ली खुझ निकाल लिया और कोई एक जगह नहीं नहाए पूरा उपर से नीचे तक थे
00:19:50कान के अंदर मिट्टी घुझ गई नाक में घुझ गई मूँ में घुझ गई
00:19:55नीचे जाके तलवे खुझा रहे हैं पता चल रहा है पीठ पे अभी चिपकी हुई है
00:20:03बड़ा दुख लगा भयानक दुख है अब एकदम कामना उठी की कुछ पाही लें कि अपनी इस इस्थिति से छुटकारा मिले यह हंकार की इस्थिति है
00:20:12कुछ पाही लें कि अपनी इस्थिति से निजात मिल जाए
00:20:16कहीं तो कुछ होगा ना जो मुझे दुख से छुटकारा दिला दे
00:20:23तो क्या गिया जुनुनाल ने
00:20:26जुनुनाल दोड़के गए उपर वाली टंकी में पूरे ही कूद गए
00:20:30उस टंकी में क्या था
00:20:36आईए हो सकता है कि जब जो जल सरोत होता है
00:20:44जलाश होता बहुत बड़ा होता है तो उसमें मिट्टी नीचे बैठ जाती तो उपर से जहां के बोले
00:20:52यह कुछ मिला जो मुझसे भिन्न है स्वतंत्र है मेरे जीवन में तो बहुत मलिंता है
00:20:58मिट्टी मिट्टी है और यह मिला जो शुद्ध है यह मेरी सारी कामनाओं की निश्पत थे
00:21:07इसी दिन के लिए तो जी रहा था आगई बहार और खड़े होकर के बकाइदा
00:21:15ओलिम्पिक की अदा में डाइव मार दे
00:21:18खुजली बहुत हो रही थी
00:21:25अब
00:21:25यह जीवन की स्थित्य होती है
00:21:32तुम जिसकी ओर जा रहे हो तुम उसे उससे भिन्न समझ रहे हो जो तुम हो जो तुमारे पास पहले से है
00:21:41यहा कुछ भिन्न नहीं है
00:21:45इस अर्थ में वो जो तुम्हें सामने दिख रहा है
00:21:49चुकि वो स्वतंत्र नहीं है अतह वो नहीं है
00:21:52इस अर्थ में तुम भी चुकि उससे स्वतंत्र नहीं हो
00:21:57अतह तुम नहीं हो
00:21:58यह शुन्यवाद है
00:21:59बात समझ में आ रही है
00:22:08तो बौतधों ने
00:22:15ये दर्शन में
00:22:22बड़ी गहरी चीज प्रविश्ट कराई
00:22:28और बड़ा इसका अभ्यास करा
00:22:31कहां कुछ कोई वजन नहीं है किसी बात में हलके हो जाओ
00:22:40जब कुछ नहीं है तो उसका कुछ महत्तो भी तो नहीं है
00:22:48तो पाना क्या और खोना क्या हलके हो जाओ
00:22:53किसी चीज़ को मैं महत्तो तब दूँ हूँ जब उससे मुझे कुछ है
00:23:02मिलता हो
00:23:04क्या चाहिए मुझे कटाई वो तो बिलकुल भी नहीं जो मेरे पास
00:23:15क्योंकि मेरे पास जो पहले से उसी से तुम्हें परिशान हूँ
00:23:20और वही और मिल गया तो परिशानी और बढ़ी जाएगी
00:23:23जब परिशानी और बढ़ जाएगी तो मैं और जोर से कलपूँगा
00:23:26कि मुझे कुछ और दो
00:23:27तो मुझे कुछ और मिल भी जाएगा और क्या मिल जाएगा फिर से
00:23:30वही जो मेरे पास पहले से
00:23:32तो फिर मैं और ज्यादा जोर से कलपूँगा
00:23:34कि मुझे कुछ और दो
00:23:35ये जीव का
00:23:38पूरा चक्र है
00:23:39इसको हम जीवन बोलते हैं
00:23:43यही जीवन है
00:23:44जीव का
00:23:46काल चक्र
00:23:48जिसमें बस वो छोटे
00:23:50दुख से बड़े दुख की
00:23:52यात्रा करता रहता है
00:23:54समाप्त हो जाता है
00:23:56समझा रही बात
00:24:16दाल में नमक ज्यादा था
00:24:18तो उसमें फिर सॉल्ट मिलाया
00:24:20क्योंकि सॉल्ट नमक से भिन और स्वतंत्र लगा
00:24:27नामा का और सॉल्ट दोनों में
00:24:33क्या समानता है कुछ भी नहीं
00:24:34दोनों अलग है एक दूसरे से प्रथक हैं और स्वतंत्र है
00:24:37ये जीव की होश्यारी है
00:24:42जो तुम्हारे पास पहले ही ज्यादा है
00:24:45तुम वही अपने जीवन में और जोडते हो
00:24:48जिस वजह से पहले ही हैरान परेशान थे
00:24:51उसी को श्रम करकर के और अपने घर लेा लेते हो बांध लेते हो
00:24:58गाड़ी बहुत तेज से ली जा रही है
00:25:22अब मदहोशी चोटी पर चड़ी हुई एक दम
00:25:29देखा कुछ
00:25:35सामने से आ रहा है
00:25:39खट से पेडल दवा दिया
00:25:45अठे दर्द भराया चेहरे पर समझे गई
00:25:52समझगे बात को
00:25:55जो तुम्हारे पास पहले ही अधिक था तुमने उसको और बढ़ा दिया
00:25:59कौन से पेडल दवा दिया
00:26:02एक्सिल लेटर दवा दिया
00:26:04प्योंकि बेहोश पहले ही थे नहीं तो गाड़ी इतनी तेज चल नहीं रही होती
00:26:11पहले ही बेहोश था इसलिए गाड़ी इतनी तेज चल रही थी
00:26:16और उसी बेहोशी की पिनक में जब कुछ सामने दिखा तो पेडल और दवा दिया
00:26:21बोले अब तो स्पीड कम करनी होगी न तो पेडल दवाओ दवा दिया
00:26:28ये हम है
00:26:34आठ समझ में आ रही है
00:26:38तो एक कसौटी हमको दे रहे हैं आचारे ना गारजुन पूछ रहे हैं वो जो तुमको उधर दिखाई दे रहा है
00:26:51क्या तुम्हें विश्वास है कि वो वैसा सदा ही तुमको दिखाई देगा
00:27:02या उसका दिखाई देना तुम्हारी भीतरी इस्थिते पर निर्भर कर रहा है
00:27:12बस ये बताओ
00:27:14जो मूल बात है उसको दुहराते चलिए
00:27:20दुख का संबंध विशय से है विशया सकते ही दुख है ठीक है
00:27:26तो हम विशय का अन्वेशन कर रहे हैं ये इनका तरीका है
00:27:30करने अच्छा विशय सामने आया बड़ा आकरशित कर रहा है
00:27:36या विकरशित कर रहा है कुछ भी महत्वपूर्ण लग रहा है किसी वजह से
00:27:40सूत्र दे रहे हैं आज कि पूछो कि वो जैसा लग रहा है क्या सदा ऐसा ही लगता है
00:27:48पक्का इमांदारी से अब इमांदारी तो गड़ बड़ बात हो वही लेकर उसका कोई विखल्प किसी गुरु के पास नहीं होता
00:27:58आचारे ना हरजुन भी ये बात आपके उपर छोड़ देते हैं कि क्योंकि देखिए जीवन आपका है वो विशय आपके सामने आना है
00:28:06तो बचने की आकांक्षा भी आपकी होनी चाहिए है आचारे आठार आपको नहीं बचा लेंगे कोई नहीं कर सकता
00:28:17पूछना कि वो सदा वैसे ही रहता है क्या उसका होना अविखस्चिन है
00:28:26क्या उसमें एक सततदार है निरंतरता है या वो अभी ऐसा लग रहाए
00:28:36बार-बार ये पूछलो अपने आपसे कि क्या कोई भी और इस्थित हो उसमें भी वो विशय वैसा ही लगेगा जैसा अभी लग रहा है
00:28:48और यदि पाओ कि विशय का तुम्हारे उपर जो प्रभाव है या विशय का तुम्हारे भीतर जो मुल्य है वो इस्थित और समय सापेक्छ है
00:29:08तो सीधे कह देना कि वो विशय है ही नहीं क्योंकि वो विशय क्या है जैसा मैं हूँ वैसा है
00:29:18अभी मैं ऐसा हूँ तो वो ऐसा लग रहा है
00:29:22और थोड़ी देर बाद वो विशे बदल जाता है क्यों बदल जाता है क्योंकि
00:29:26मैं बदल जाता हूँ
00:29:28वो विशे बदल जाता है
00:29:31और कुछ विशे तो ऐसे होते हैं
00:29:34कि उनकी प्रक्रति में इन नहित होता है बदल जाना
00:29:48दूदिन बाद आओ
00:29:50यह तो मिलेगा नहीं
00:29:53अब मिलेगा तो
00:29:54पीला
00:29:56इसमच में आ रही बात है
00:30:06जो कुछ भी आप पर
00:30:08निर्भर करता हो
00:30:09उसको शुन्य जान लेना
00:30:11शुन्य जान लेना इस हर्थ में नहीं
00:30:14कि गरम कडा ही है
00:30:16और हमें पता है कि हम पे निर्वर करती है, इसका मूल ले इसलिए, क्योंकि उसे पका के हम ही खाते हैं,
00:30:22तो इसमारी ये पका हो गया कि इसका मूल ले हम पर आशरित है,
00:30:27कड़ाई में बढ़ियां छोंक लग रही है, मैं खाता हूँ,
00:30:29हूँ इस स्वार्थ के नाते मैं कड़ाई को महत्तो देता हूँ आचार नागारजुन बता गए कि जो स्वतंतर नहीं हो शून्य है तो गर्मा गरम कड़ाई में जाके बैठ गए तो शून्य है
00:30:44कुम भी शून्य हो जाओगे शून्य ही छप जाएगा किस अर्थ में शून्य है महत्तो से शून्य है
00:31:02क्योंकि उसको महत्तो प्रदान करने वाला अंतरिक नहीं है उसके पास मूल्य
00:31:15इनेट इंट्रिंसिक नहीं है उसकी वैल्यू
00:31:20मैं दे रहा हूँ और जो मूल्य मैं दे रहा हूँ वो भी एक भ्रमित मूल्य है
00:31:31क्योंकि मैं यह सोच के दे रहा हूँ कि उसके पास कुछ ऐसा है जो मेरे पास
00:31:35जबकि तत्थ ही है कि वो भी वही है जो तुम हो वही टंकी और टोटी
00:31:42जो टोटी से आ रहा है वोई टंकी में है
00:31:46क्यों सोच रहे हो कि वहां कुछ अलग है
00:31:49समझ में हारी ये बात ये है
00:31:56जिसका
00:32:00मूल्य समय पर इस्थिति पर आश्रित हो
00:32:06उसको अस्तित्युगत रूप से शुन्यमहत्यो देना
00:32:13ये सीख है
00:32:15शुन्यमहत्यो देना माने ये नहीं कि खुट थपड मार दिया
00:32:19तो कुछ है ये नहीं तो पटाक ये नहीं
00:32:24अस्तित्युगत महत्यो क्या
00:32:26कि तेरे होने से मेरी हस्ती का सत्यापन नहीं हो पाएगा
00:32:36मेरी हस्ती को पूर्णता तो नहीं मिल पाने वाली
00:32:39तो मैंने तुझसे ये आशा हटा दी
00:32:43ये है महत्तो को शून्य कर देना
00:32:46इस अर्थ में महत्तो को शून्य कर देना
00:32:49कि तुझसे ये आशा नहीं रखेंगे
00:32:51कि तुझे जीवन में ले आए
00:32:54तो भीतर जो तमाम तरह के रोग लगे हुए है
00:32:57उदासी, लटका हुआ मूँ, सुनापन
00:33:05ये सब दूर हो जाएंगे, कुछ नहीं दूर होना है
00:33:08इसी तरह कुछ बहुत डरा रहा है, तो उससे भी यही पूछना है
00:33:14क्या स्थितियां बदल जाएं तो भी ये डराएगा
00:33:21बदलती स्थितियों के साथ क्या ये स्वयम भी रह पाएगा
00:33:28अगर नहीं
00:33:34तो फिर ये मुझसे कुछ खीच नहीं सकता, कुछ बाहर नहीं निकाल सकता
00:33:39क्योंकि ये वही है जो मैं हूँ
00:33:44जब ये मुझसे जुड़ कर मुझसे कुछ दे नहीं सकता
00:33:51तो मुझसे ना जुड़ करके मेरा कौन सा नुकसान कर रहा है
00:33:59या जब ये मुझसे से जुड़ कर मुझसे में कुछ जोड़ नहीं सकता
00:34:04तो मुझसे जुड़ कर मुझसे कुछ तोड़ भी कैसे लेगा
00:34:07मिट्टी वाले पानी में मिट्टी वाला पानी अगर मिलेगा
00:34:18तो न तो आप ये कह सकते हो
00:34:25कि पानी और शुद्ध हो गया
00:34:30न आप ये कह सकते हो कि पानी और अशुद्ध हो गया
00:34:34जब कुछ मिलना भी नहीं है
00:34:38तो कुछ छिनना भी नहीं है
00:34:40इससे जीवन के प्रती
00:34:49बड़ा स्वस्थ रिष्टा बन जाता है
00:34:52ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर
00:34:57यही निश्कामता है
00:35:04सब कुछ है
00:35:11परमभली भाते जानते हैं कि जो कुछ है
00:35:14वो ना हमारा दोस्त है ना हमारा दोश्मन है
00:35:20हाँ यदि हम जीवित हैं
00:35:24तो इस अर्थ में समश्टी के प्रत्यनुग्रहीत हैं
00:35:27कि यह जो कुछ है उसी से जीवन है
00:35:29यह जीवन हमको प्यारा लगता है तो
00:35:35प्यारा नहीं लगता तो अनुग्रह के भी कोई जरूरत नहीं है
00:35:37वो भी हटाओ
00:35:38अगर ऐसे हो गए हो कि अभी मर भी जाएं तो क्या है तो फिर ठोड़ो प्रक्रति के प्रति नमन के भी फिर कोई जरूरत नहीं है
00:35:47पर अगर जीवन में थोड़ी मौज है आनन्द है
00:35:56तो जो कुछ आसपास है उससे फिर भोग का कामना का रिष्टा यानी नहीं रखता है
00:36:06प्रक्रति के साथ स्वस्थ संबंध रखने का मतलब भी होता है निरलिप्तता अनासक्ति जिसमें एक सूक्ष्म अनुग्रह निहित है
00:36:16तीक वैसे जैसे भोग में सूक्ष्म हिंसानिहित है
00:36:25बदलाव की बात कर रहे है
00:36:36कोई आ करके
00:36:47तरक की प्रक्रिया में यदे सामने ये तरक रखे जैसे यहां पर कहा है पूर पक्षी की बात
00:36:58क्या मिक्यों कह रहे हैं कि जो सामने हैं वो एकदम नहीं है
00:37:06ये भी तो हो सकता है कि जो सामने है वो बस परिवर्तित हो गया हो
00:37:10कारण अपना कार्य करके विलीन हो गया हो
00:37:16ये भी तो हो सकता है अब ये तरक क्यों रखा जा रहा है क्योंकि हमारी
00:37:22बड़ी कामना रहती है ये मानने की कि जो सामने है वो
00:37:28है
00:37:29बड़ा स्वार्थ रहता है, क्यों रहता है स्वार्थ?
00:37:36क्यों रहता है? क्योंकि एकर सामने नहीं है, तो मझे कैसे आइंगे?
00:37:46सामने रजग अल्ल्ला है, सामने वो सब चीजे हैं, जो बिलकुल मन को पकड़े हुए हैं.
00:37:54उदरासी वृत्ति है वो बहुत पुरानी आदिम और उस आदिम वृत्ति से बड़े पैने धारदार विद्वत्ता पूर्ण तर्क पैदा हो जाते हैं
00:38:07कुल मिलाकर के तर्क का आशय इतना ही है कि देखो वो जो रसगुला है उसे मिथ्या माया शून्य इत्यादी मत कहो
00:38:20क्योंकि अगर कह दिया कि मिथ्या माया शून्य है तो पचास रसगुले भोगुँगा कैसे और उसके लिए पश्वों का जो शोशन करना पड़ता है उसको जायस कैसे ठहराऊंगा
00:38:35बात समझ में आ रही है
00:38:38कमूल बात यह है कि सामने जो रखा है मन उसका गुलाम हो गया है अहम अहम ने मन को में उस विशय को बड़ा महत्वपूर्ण स्थान दे दिया है
00:38:55जो सामने चीज रखी है अब वहां अचारे नाग अरजुन आ जाते हैं टहलते
00:39:00वो कहते हैं शुन्ने है किस चीज से शुन्ने है महत्व से शुन्ने है
00:39:07तो अब यह कैसे बोलें कि देखो हम आपकी बात नहीं मानेंगे क्योंकि हम तो पेटू है
00:39:13कैसा अजीब लगेगा दो विद्वान बैठे हैं
00:39:16और एक तर्क दे रहा है बड़े उंचे उंचे और दूसरा कह रहा है आपके सारे तर्कों का मेरे पास एक ही जवाब है
00:39:22आइम ग्लेटनस
00:39:24मैं पेटू हूँ
00:39:27मेरी लार बह रही है
00:39:29कुछ वो संस्कृत मैं ऐसे बोल रहा है
00:39:32यह शास्त्रार्थ के बीच चल रहा है
00:39:35उन्होंने बड़ी उंची उंची बात करी दर्शन की
00:39:38और यह बोल रहा है मेरे पास आपके सारे तर्कों का एक ही जवाब है
00:39:42क्या
00:39:43मुझे रस्गुला चाहिए
00:39:47चाहिए तो चाहिए
00:39:50यही होता है
00:39:53यह मेरा रोज कानुभव है
00:39:55कोई आएगा बड़ी से बड़ी बाते करेगा तर्क की
00:40:02और उसके पीछे को इतनी सी बात यह होगी
00:40:04सोना है काम नहीं करना
00:40:08अब तर्क बहुत बड़े बड़े देगा
00:40:10उधारन के लिए यह भी हो सकता है
00:40:13आठ दस पुराने ग्यानियों को धृत करके बोले कि
00:40:17देखो सबने बोला है कि इतने आए इतना काम किया चले गए
00:40:21बताओ किसको क्या मिला
00:40:22बड़ी बड़ी बातें गजब बातें
00:40:27कहीं से कोई रिपोर्ट लाके बता देगा
00:40:30इस तरह का मालब खूब मिल जाता है ना
00:40:33जब से चैट जी पीटी आया है
00:40:37कोई रिपोर्ट लाके बता देगा कि बताया गया है कि
00:40:41ज्यादा काम करना भी क्लाइमेट चेंज के लिए उत्तरदाई है
00:40:45गजब तरक एक के बाद एक लेकिन बात कुल कितनी क्या होगी
00:40:53मुझे सोना है बस इतनी बात है लेकिन बेइमान आदमी में हिम्मत भी
00:41:00नहीं के सीधे बस यह लिख दे कि काम नहीं करना सोना है
00:41:05तमस्या बस यह है जिए उनमें कि पड़े रहना है काम करने में
00:41:12पता नहीं लोग नानी को क्यों मारते रहते हैं जो परदस्ति
00:41:16नानी का कोई इसमें किरदार होना नहीं चाहिए
00:41:19पर अब है तो कहे देता हूँ
00:41:21नानी मर्थी है
00:41:22वही यहां हो रहा है
00:41:41अब जहां बता दिया
00:41:45कि तुम्हारा दुक पर जैसे है
00:41:47और इसली को वस्तुगत समझते हो
00:41:51वस्तु से आशर होता है
00:41:53वो जिसमें
00:41:55सत्था भू, सच्चाई हो
00:41:56उसको वस्तु बोलते है
00:41:57वस्तो का एक अर्थ यह होता है
00:42:00लोग भाषा में वस्तु माने हो जाता है
00:42:02तिंग, अबजेक्ट, चीज, सामान, दर्शन में वस्तुता का मतलब सत्यता, तो तर्क ये लेकर के आ गए, कि देखो चीज है, चीज है, भले ही वो चीज कभी दिखती है, कभी नहीं दिखती है,
00:42:26तो भले ही उसकी हस्ती अब विच्छिन नहीं है, लेकिन फिर भी वो चीज है, ठीक है, वो चीज है और बस ये है कि वो रहती है और फिर पलट जाती है, बदल जाती है, या एक चीज दूसरे में परवर्टित हो जाती है, या एक चीज जो कारे रूप में है, वो कारण बन कर
00:42:56थोड़ी देर के लिल्चाती हैं बरबाद करती हैं और गायब हो जाती हैं इतना तो दिख गया अब इतनी भी बहुत धिक बैमानी नहीं करी जा सकती कि कह दें कि नई साहब हर चीज का महत्तो शाश्वत होता है तो यह तो मान लिया यहां पूरुपक्षी नहीं यहां यह तो
00:43:26नहीं रह जाता लेकिन अब वो यह साबित करना चाह रहे हैं कि अगर किसी चीज का महत्तो थोड़ी देर क्लिए भी रह जाता है तो भी उस चीज का होना मानो भले ही उसका अस्तित्व अविच्छिन नहीं है टेंपोरल है समय आश्रित है समय सापेक्ष है तो भी यह मानो क
00:43:56अब यह कैसे बोल दोगे कि रजगुल्ला नित्य है सत्य है सनातन है शाश्वत है बोल सकते हो यह तो पता है अभी है और हम खाएं चाहें ना खाएं दस दिन में सड़ जाएगा कोई रजगुल्ला है तो इस ज्यादा चला है कितना भी तुम उसको बचा लो तो अब वो य
00:44:26बता रहा हूं अब यह यह कहरें कि देखो आचारी जी आपने बिल्कुल समझा दिया और साबित कर दिया कि रजगुल्ला आज है और कल और रजगुल्ले को भी महत्तों दे रहा हूं तभी तक दे रहा हूं जब तक मुझे भूख लगी है ठीक है और तभी तक महत्तों दे
00:44:56रखा है पर पेचिश लगी है तो अक्दम हरा जाएगा यह तभी तक महत तो दे रहा हूं जब रखाने के लिए ऐसे गया जुका और पाया कि वहाँ बढ़ियां पांच मक्षी तैर रही है
00:45:05तो यह तो माना कि उसका महत तो जो है निरंतर नहीं है माना और यह भी माना कि जीवन में जो कुछ भी कामना बन के आता है उसका महत तो निरंतर नहीं होता एक ऐसे चोटी की तरह होता है
00:45:23अचानक सी जैसे कुछ खड़ा हो गया हो जैसे भूमी ने अचानक एक शिखर ले लिया हो
00:45:34ऐसे आई और ऐसे उची कोई लहर खड़ी हो गई हो बहुत उसने उचाई ले लेकिन थोड़ी देर में धराश आई
00:45:53नींद हो चाहे वासना हो चाहे कोई विशय हो चाहे क्रोध हो चाहे कुछ हो उसका महत तो थोड़ी देर को है इतना हमने आपकी बात मान ली गारदुन साब लेकिन हम फिर भी कह रहें कि थोड़ी भी देर को है तो है तो अब यह है
00:46:10कि माना की थोड़ी देर को है लेकिन
00:46:15पल भर के लिए
00:46:20अब माना की पल भर का प्यार फर है तो उसे जूटा ही सही
00:46:26ये कुल मिला के तरक है
00:46:28अब ये समझाने के बाद और क्या बता हूँ
00:46:31जब तरक ही ऐसा है
00:46:32तो उस तरक की काट की ज़रूरत बची कोई
00:46:40ये अब एक पल को आई थी पर जिंदगी तो रोशन हो गई ना एक पल में
00:46:45बिजली थी बिजली कतई
00:46:47जैसे आसमान में कड़की थी एक पल के लिए
00:46:53पर वो रात तो रोशन होगा, निका पूरी रात तो नहीं रोशन होगा, पूरी रात तो नहीं कड़ करें, एक पल को तो हुआ ना, वो कड़की नहीं है, तेरे भेजे पे गिरी है, एकदम फुक गया है, कुछ समझने को तयार नहीं है, देखो कैसा कुतर कर रहा है,
00:47:09पाँची सेकेंड को आया
00:47:22मजा आया कि नहीं आया
00:47:25ये है तरक
00:47:27और पाँच सेकेंड की नीद ले लें भले ही बाद में पाँच जूते खाएं
00:47:35नीद के मजे आये कि नहीं आये
00:47:38पाँची सेकेंड को मौज आई
00:47:41बोलो आई कि नहीं आई
00:47:44अभी तक इतनी बाते हो रही थी किसी बात पर हसी आई थी
00:47:51मौज तो इसी बात पर आई
00:47:53हाँ तो बस हम नागारजुन के साथ नहीं है
00:47:57हम हैं तो इसी को तरकी के साथ
00:48:00क्योंकि मौज तो इसी में आती है
00:48:03बढ़ मुझे से किसी ने बोला कि अच्छा जी अब आप बताते हैं नित्यता होनी चाहिए जहां नित्यता है वहीं शुद्धता है और वो जो आप गाने सुनते रहते हैं गुन-गुनाते भी हैं और कई बार शेर भी कर देते हैं वो क्या था जिन्दगी प्यार की दो-चार
00:48:33राज हो तक तो यहो या दौलत हो जमाने भर की कौन सी चीज मोहबत से बढ़ी होती उसमें उनको यह था कि जो प्यार की दो-चार घड़ी आपने ही बोला था ना इसका मतलब है कि दो-चार घड़ी की पी चीज है पर मौश तो आई ना रदव गार इधर लाई यहाँ अ�
00:49:03भोग नहीं लिखा है, जिन्दगी आयाशी की दो चार घड़ी होती है, यह नहीं गाता हूँ, जिन्दगी प्यार की दो चार घड़ी होती है, वो ठीक है फिर, और जब जिन्दगी प्यार की दो चार घड़ी होती है, तो भोग करा नहीं जाता, भोग तूट जाता है, ताज
00:49:33भी छोड़ी जा रही है यह प्यार है और तुम रजग अल्ला भोगने की बात कर रहे हैं और उल्टे तुम मेरे ही गाने का उदाहरण दे रहे हैं सच मुछ हुआ था
00:49:41कि अले नित्य उत्य कुछ नहीं होता
00:49:45कि यहांस पर डांस कर लो जहां जो मिले उड़ा लो
00:49:49यही अध्यात में कुल और यही गुरूओं की सीख है मौका मिला नहीं मैंने का तुम में और जो महले की चोटी बिल्ली होती है उसमें अंतर क्या है वो भी यही करती है
00:50:02जिसके घर का दर्वाजा खुला देखा वहां घुसी दूद पिया भगी वहां से
00:50:07यही तो करती है
00:50:11कुटे सब जो होते हैं महले के वो सड़क पे होते हैं बिल्लियां सड़क पे होती हैं कभी बिल्लियां कहां पाई जाती है अरे इधर से उधर से घुसेगी और आवाज नहीं करती वो
00:50:22बिल्ली को भॉकते सुना
00:50:24दबे पाउँ आएगी एक पल की
00:50:29मौज करेगी और निकल लेगी
00:50:31मुझ में आ रही है बात
00:50:41अरे वो पस यूही है
00:50:45धूम के तो
00:50:47धूम के तो समझते हैं क्या
00:50:49शूटिंग स्टार
00:50:52तूटता तारा
00:50:54मीटियोराइट
00:51:00एक पल के लिए वो आकाश को जगमगा देता है
00:51:07किस किस ने देखा है
00:51:10ऐसा लगता है बाप प्रिपाप
00:51:11पूरे आकाश में सबसे प्रभावशाली
00:51:14अभी यही वस्तु है
00:51:15एक पल के लिए
00:51:17फिर
00:51:21कुछ नहीं
00:51:24वही हम वही अमावस
00:51:31कोई और नहीं चाहिए तुलना करने के लिए
00:51:46किसी और को आदर्श बना के नहीं कहना है
00:51:48कि बुद्ध ने राजबाट छोड़ा था
00:51:50क्या मैं रजगुल्ला नहीं छोड़ सकता
00:51:51नहीं जरूरत है
00:51:54कुछ से ही पूछ लो
00:51:56पांच मिनट बाद यह रजगुल्ला इतना ही
00:51:59प्यार लगेगा क्या
00:52:01मुझे ही किसी और को नहीं
00:52:04बुद्ध की बात नहीं कर रहें
00:52:05अपनी बात कर रहे है
00:52:06पांच मिनट बाद मैं इस रजगुले पर थूखू नहीं
00:52:10माने इसका जो मूल है वो मेरी वर्तमान अंतर स्थिति पर आश्रित है निर्भर है मतलब वो मुझसे सौतंतर नहीं है
00:52:20मतलब वो मेरे ही जैसा है जो मेरे ही जैसा है तो काहे को उसको पाने के लिए जिन्दगी खराब करूँ
00:52:25चलो ना कुछ ऐसा ढूंडते हैं जो हमारे जैसा बिलकुल नहीं है तो अध्यात्मा उसी की खोज है वो जो हमारे जैसा बिलकुल नहीं है अध्यात्मा इसी का नाम है वो हो जाना
00:52:39जो आज हम बिलकुल भी नहीं है
00:52:43मात रूपांतरन ही नहीं
00:52:46पूर्ण विगलन
00:52:47कुछ भी अपने जैसा अपने जीवन में प्रविष्ट मत कराओ
00:52:52ये गुरुओं की सीख है
00:52:54जो कुछ भी तुम्हारे ही जैसा हो
00:52:56तुम्हारी कामनाओं के जैसा हो
00:52:58उसको जोड़ना पाप तो नहीं
00:53:01पर मुर्खता जरूर है
00:53:02और इस अर्थ में पाप भी है
00:53:05कि जो कुछ तुम्हारा दुख बढ़ाए
00:53:07उसको ही पाप बोलते हैं
00:53:09जो है रही है बती
00:53:16तुझे कुतरिक है उसका
00:53:21उत्तर कैसे दे रहे हैं यहां पर
00:53:23कह रहे हैं कि देखो जो तुम बोल रहे हो
00:53:25कि जो अभी महत्वपूर्ण लग रहा है
00:53:29थोड़ी देर में वही तो है
00:53:31जो महत्वपूर्ण नहीं लगेगा
00:53:33पर वो बना रहेगा
00:53:34यह तुम्हारी बात को तर्क है
00:53:38इसका कोई प्रमाण नहीं
00:53:39इसको कोई सिद्ध नहीं कर सकता
00:53:40तुम तो थोड़ी देर में उस विशे को
00:53:44पूरी तरह भुला भी दोगे
00:53:46जिस विशे के लिए
00:53:48कल जान देने को तैयार थे
00:53:50आपके जीवन में ऐसे विशे नहीं रहे हैं क्या
00:53:52जिन मुद्दों पर आप
00:53:54कल तक जान लेने और देने को तैयार थे
00:53:56आज आपके
00:53:58सामने पड़ें तो आप उन्हें
00:54:00दिर्ची नजर से भी न देखें
00:54:03क्याना
00:54:06कुले नहीं कुछ नहीं ऐसा नहीं है
00:54:08कि कोई वस्तु है
00:54:10जिसके भाव की जिसके होने
00:54:12की जिसके अस्तित्यों की continuity है
00:54:14निरंतर्ता है
00:54:15कुछ भी नहीं है
00:54:17निरंतर्ता अगर है भी
00:54:21किसी बात की तो अज्ञान की
00:54:22इसको ही तुम कहा सकते हो शुन्निता की निरंतर्ता है
00:54:25बाकी तो सब ऐसा ही है
00:54:32यह अज्ञान
00:54:34का काला आसमान है
00:54:36उसमें कभी बिजली कड़क जाती है
00:54:38कभी तारा तूट जाता है, कभी कुछ हो जाता है, और हम उसको लपकने को आतर हो जाते हैं, उससे आकाश की कालिमा घट नहीं जाती,
00:54:49याद भी तो नहीं रखते कि जिस चीज को लपकने को आज दोड़े, ओंधे मूँ गिरे, जबड़ा फोड़ लिया, दात तोड़ लिया, उसी वस्तो को लपकने के लिए तुम तीन साल पहले भी दोड़े थे,
00:55:05अंतर बस ये है, कि आज अगवाडा तुड़वाया है, तब पिछवाडा तुड़वाया था, और तुम्हारे तरक में ये समता नहीं भेद है, तुम कहते हैं, देखा, वस्तो निश्चित रूप से अलग है, आप क्यों कह रहे हो कि यहां जो कुछ है, वो सब कुछ, तु
00:55:35कि जीवन में कुछ नया हुआ है, ये तो तरक है, इसका क्या जवाब दिया जाए, क्या चाहरे जी ने बताया कि जीवन में कुछ नवीन, मौलिक लेकर क्या हो, बहुत खुशी-खुशी आया जुन्नू, आज तक दाएं गाल पे खाता था, आज कुछ नया करा है,
00:56:03तन के खड़ा हो गया बिलकुल, मैंने का सुन मारने वाले, बहुत मार लिया तुने, दाएंगाल पर, आज बाया, ये हमारी जिन्दगी में नवीनता है, नए बातें नए अनुभव हैं, रोमांच है, रोचकता है,
00:56:33मन के चले साल भर पहले भी थे, छे महीने पहले भी थे, आज भी थे, अब भी तूट-फूट हुई थी, आज भी तूट-फूट है, लेकिन हर बार,
00:56:49माया ये जहासा दे जाती है, कि इस बार अब कुछ नया होने जा रहा है, कैसे नया होगा,
00:57:00हमारी छाया की दिशा और लंबाई दोनों लगातार बदलती रहती है, पर न तो उसमें कुछ नया है, न स्वतंत्र है,
00:57:10और छाया बदलती लगातार रहती है, हर तरीके से आपकी छाया बदल सकती है, इतने तरीके संभव हैं एक द्विय आयामी जियोमेट्री में, हर तरीके से छाया बदल सकती है,
00:57:32कभी ये भी हो सकता है कि आपकी छाया बानी पर पड़ रही हो, और एक नया उसके बदलने का तरीका खड़ा हो जाएगा,
00:57:41कभी भी हो सकता है
00:57:45कि आप
00:57:47किसी क्लिफ पर
00:57:49खड़े हो जाएं
00:57:50किसी मुहाने पर
00:57:55किसी पहाड़ी के
00:57:58और वहाँ नीचे
00:58:00खाई में आपकी छाया पड़े
00:58:01वो एकदम ही अलगतरे की पड़ेगी
00:58:03पर
00:58:07न तो
00:58:10कोई भी छाया नई होती है
00:58:13न स्वतंत्र होती है
00:58:15आपसे
00:58:16छाया जब भी पड़ी है
00:58:17एक शर्त तो अनिवारतह रही है
00:58:19आप होंगे तभी छाया है
00:58:21तो कैसे स्वतंत्र हो गई छाया
00:58:24यही बात
00:58:25विशेयों पर और कामना पर भी लागू होती है
00:58:28यह जीवन नीरस करने के सूत्र नहीं है
00:58:35जीवन तो बहुत उची बहुत आनन्द पूर्ण चीज हो सकता है
00:58:45यह सूत्र है उस आनन्द को बचाने के
00:58:50हमारी संभावना को हमारी ही नजर लग जाती है
00:58:58अध्यात्म काला टीका है
00:59:06वह ना बहुत बढ़िया के
00:59:11करीं तुम्हें तुम्हारी नजर न लग जाए
00:59:18बढ़ियां बढ़ियां इस पर गाने है
00:59:21उनको पता भी नहीं था वो जो लिख रहे हैं
00:59:24उसका गूढ़ अध्यात्मे करत है
00:59:25हमें हमारी ही नजर लग जाती है
00:59:32अध्यात्मे इसलिए है ताकि हम खुद कोई न खा जाएं
00:59:39जीवन जो कुछ हो सकता है
00:59:45थोड़ा उसके आसपास तो आ जाएं
00:59:48नहीं तो
00:59:53मुह दात पीठ तुड़वाने
00:59:58के तरीके और मौके तो अनंत हैं
01:00:03पिटने तूटने की शंखला तब तक चल सकती है
01:00:14जब तक ये जो शरीर है ये चैतन्य है तब तक चल सकती है
01:00:20आखरी सांस भी पिटी हुई सांस बिलकुल हो सकती है
01:00:26दुख जिसको मैं पिटाई कह रहा हूँ
01:00:32वही दुख है वही वो समस्या है जिसको सब बुद्धों ने संबोधित कराया
01:00:37अन्य था उनके पास बोलने का और कोई कारण नहीं था उन्हें अपना ज्यान नहीं जाड़ना था
01:00:44कर दो जका तो है
01:00:50कर दो
01:00:54कर दो
01:01:05कर दो
Recommended
1:06
0:49
1:11
0:46
1:38
0:50
1:12
0:46
1:08
0:44
1:12
0:59
0:59