बेबाक भाषा के दलित डिस्कोर्स कार्यक्रम में वरिष्ठ रचनाकार ओमप्रकाश वाल्मीकि को उनकी जयंती पर याद किया, श्रद्धांजलि दी और बताया कि आज भी ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविता ठाकुर का कुआं से क्यों सत्ता को कंपकपी आती है. राज वाल्मीकि की पेशकश.
00:00नमस्कार दोस्तों मैं राजबालमी की बेबाक भासा के दली डिस्कोर्स में आपका स्वागत करता हूँ
00:11दोस्तों आज बेबाक भासा की तरफ से हम ओम प्रकास बालमी की को जै भीम और क्रांतिकारी सलाम पेस करते हैं
00:26आज ओम प्रकास बालमी की अगर जीबित होते तो 75 बर्स के होते
00:3230 जून 1950 में जन्वे ओम प्रकास बालमी की का साहित और समाच के लिए एक अहम योगदान है
00:43आज के समय में उनकी कमी और महसूस होती है जब दलितों पर अत्याचार कब अपने बरवर्तम रूप में देखने को मिल रहे हैं
00:56अगर दलित घोडी पर चड़ें या बाबा साब की तस्वीर अपने पास रखें इसके लिए ही उनकी पिटाई कर दी जाती है हत्याएं तक हो जाती है
01:07ऐसे में ओम प्रकास बालमी की और उनका साहित याद आना जरूरी है
01:15उनकी आत्मकथा जूटन एक अच्छूत की कहानी है जिसमें उन्होंने बताया है कि किस तरह दलितों को दूसरों की जूटन खाने के लिए विवस किया जाता था
01:43किस तरह उन पर जातीगत भेदभाव और अत्याचार होते थे
01:49ओम प्रकास बालमी की का साहित इसी सोशन उत्पीडन और अत्याचार के खिलाफ है
01:57ओम प्रकास बालमी की का साहित दलित साहित का आधार है
02:03कह सकते हैं कि ओम प्रकास वालमी की हिंदी दलिस साहिते के आधार इस्तम्भ है
02:10उनकी आत्मकता जूटन ना केबल भारत में बलकि विदेसों में भी मसूर है और कई सिलेबस में उसे पढ़ाया जाता है
02:21लेकिन ओम प्रकास वालमी की सिरफ आत्मकता की वज़े से यानी जूटन की वज़े से ही मसूर नहीं है बलकि उन्होंने कविताएं, कहानिया, लेक और नाटक भी लिखे हैं
02:35उनके प्रमुक कहानी संग्रय हैं, सदियों का संताप, बस अब और नहीं, ये उनके प्रसिद कविता संग्रय हैं
02:46इसके अलावा उन्होंने कहानी संग्रय भी लिखे हैं, जिसमें सलाम और घुस पैठिये कहानी संग्रय चर्चित रहे हैं
02:55वे एक नाटक कार भी थे नाटिन्रदेशक भी थे उनका एक नाटक दो चहरे काफी चर्चित रहा है
03:05कह सकते हैं कि उम्प्रकास वालमी की बहुमखी प्रतिवा के धनी थे और उनकी वज़े से आज हम बाबा साहब अंबेटकर की बिचार धारा को आगे ले जाने में उनका अहम योगदान रहा है
03:22वे सच्चे अंबिट करवादी थे और अंबिट करी विचारधारा उनके साहित्य में देखने को मिलती है
03:30उन प्रकास वालमी की मानविय गरिमा की पैरोकारी करते हैं और जाती को समाज की सबसे बड़ी बुराई मानते हैं
03:39उनका मानना था कि जाती की वज़े से ही दलितों पर इतने भेदभाव, छुआचुद और अत्याचार होते हैं
03:47उनका लेखन भी इसी के खिलाब आवाज उठाता है
03:52आज बेसक उम्प्रकास वालमी की हमारे साथ नहीं है
03:56लेकिन उनका लेखन हम दलितों के लिए हमेशा प्रिरित करता रहेगा
04:01मानमिय गरिमा और स्वाबिमान से जीने के लिए
04:05उनकी एक कविता पर राजनीती में घमासान हो चुका है
04:10और वह कविता आज मैं आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ
04:15उनकास वालमी की की उस कविता का सीर्सक है ठाकुर का कुआं
04:21चूला मिट्टी का मिट्टी तालाब की तालाब ठाकुर का
04:29भूक रोटी की रोटी बाजरे की बाजरा खेत का खेत ठाकुर का
04:37बैल ठाकुर का, हल ठाकुर का, हल की मूट पर हतेली अपनी फसल ठाकुर की,
04:47कुआ ठाकुर का, पानी ठाकुर का, खेत खल्यान ठाकुर के, गली मुहले ठाकुर के, फिर अपना क्या, गाउं, सहर, देश, धन्यवाद.