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  • 6 months ago
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के रस शास्त्र विभाग के विभाग अध्यक्ष प्रो. आनंद चौधरी ने पारे की मांग को लेकर पीएम मोदी को पत्र लिखा.

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00:00भारत का उपयोग भारत में आर्वेदिक दवाओं में पांचवी सताथी से शुरू हुआ और इस पर अंसंधान करके गारवी सताथी में पूरी तरह से होने लगा लेकिन जब से
00:10मरकरी फ्री वर्ड अमेरिका की एक इंवर्मेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी है उसने यह देखा कि नहीं मरकरी से कुछ दुस्प्रभाव हो रहे हैं तो मिना मटा कन्वेंशन हुआ और यह तैक किया गया कि फूरे बिश्व से मरकरी को जहां भी मानों के लिए उप्योग में
00:40करते हैं क्योंकि कुछ तरहों पर टॉक्सिक है लेकिन आयर्वेदी आचारियों ने आयर्वेदी को शदियों में इनके उप्योग इस तरीके से किया कि उन्होंने सोधन मारण संस्कार की विधाओं का उनसंधान किया पूरे एक हजार साल लगा करके और तब जाकर के इसका
01:10अत्यंत दूरलब किस्म की ओशदियां इससे बनती हैं जो की बहुत ही क्रॉनिक डीजीजिस का बड़ा आसानी सी टीटमेंट करती है इसलिए भारती ज्यान परंपरा का संग्रक्षा आवश्यक है और बैन के बाद ही पारत की उपलब्दता बहुत कम हो गई है अगर यह उ
01:40लिए इस करम को ऐसे कर लेते हैं मैनुफेक्टरर्स को मरकरी मिल नहीं पा रही है कि वह आउशदिय निर्मान करें चिकित्सक के पास यह है कि वह अपने मरीज को कैसे समझाए कि भाई यह दाम अचानक चार गुना तीन गुना कैसे बढ़ गया और बिना इन आउशदियों
02:10प्रक्रिया वही है अंतरास्ट्रिय संधियां जिन पर भारत एक हस्ताक्षर करता है भारत का प्रियावरण मंत्राले ने इन पर हस्ताक्षर किये कि हम भारत में मरकरी का उपयोग बंद तराएंगे लेकिन प्रियावरण मंत्राले के संग्यान में संभता यह बात नहीं थी
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