बेबाक भाषा के खास प्रोग्राम Decoding RSS में लेखक-चिंतक राम पुनियानी बता रहे हैं कि कैसे मुस्लिम त्योहारों के प्रति नफरत संघ की विचारधारा के बुनियाद में रही है। यही वजह है कि जब बकरीद जैसे त्योहार आते हैं तो अचानक दक्षिणपंथी खेमे को अचानक जानवरों से प्रेम याद आने लगता है..
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00:00दोस्तो बेबाग भाशा पर आपका स्वागत है आज हम बात करेंगे RSS, डिकोडिंग RSS की श्रंग खला में इस मुद्धे के बारे में यो बार बार समाज भी उठाया जा रहा है
00:16और वो मुद्धा है बकरीब के समय मुसल्मान समाज जो बकरे की बली देता है उसके बारे में
00:23अब ये बकरे की बली देने की परंपरा तो बहुत पुरानी है इसका इसलाम के इतियास से भी संबन्ध है जहां इबरहिम नाम के रखती को सपनाया
00:34कि उसमें अपनी सबसे प्यारी चीज़ अल्ला को कुर्बान कर भीना चाहिए और वहीं से ये बजलते-बजलते इसने रूप लिया
00:41बक्रे की कुर्बानी का
00:43और ये जो कुर्बानी बक्रे की होती है
00:47वो उस समय इसका जो गोश्ट है
00:50वो कम्यूनिटी में बाटा जाता है
00:52और कम्यूनिटी के लोग इसको खाते हैं
00:55सवाल जी है कि इसके आधार पर
00:57आज ये फैलाया जा रहा है
00:59कि ये जीवत्या है, ये बहुत कुरूता है, ये निर्ममता से मुसल्मान लोग अपने परवार में जानवर की बली देते हैं
01:09और ये एक कुरूत चीज़ को रोका जाना चाहिए
01:12अब ये बात सच है कि जीव दया करनी चाहिए, जानवरों का भी आदर करना चाहिए
01:19और ये बात भी सच है कि हमारे समाज में आज अभी भी हम एक तरफ से शाकारी और एक तरफ से मासाहारी हैं
01:28और इस मासाहार में मचली हो या फिर मुर्गी हो या फिर बफेलो, कहीं-कहीं गाए और बखरा ये सब उसमें आते हैं
01:39और ये देखा जाए तो मोटे तोर पर भारत में 74 परसेंट लोग, 74 प्रतिशत लोग ये मासाहारी हैं
01:50अब भारत के मुसल्मान तो किवर 14 प्रतिशत हैं ये बाकी मासाहार के लिए जानवरों को तो काठा जाता है
01:57पर ये हजारों टन में बक्रियां, गाए, बफेलो, यानि भैंस, मुर्गे, इनका सेवन किया जाता है
02:06तो सवाल ये उखता है कि जीव दया की नाम पर मुसल्मानों के प्रवार पर ही ये अक्षेप क्यों किया जाता है
02:15ये थोड़ा हमको इसके बारे में सोचने की जरूरत है
02:18अगर आपको जीव दया, खुरूरता, इन चीज़ों को सोचना है
02:22तो पूरे साल भर में जो हमारे बुचर खाने चलते हैं
02:27जहां एक तरफ बक्रे का गोश्ट, भैंस का गोश्ट, मुर्गियों का गोश्ट, ये सब जो मिलता है
02:34उसके बारे में क्या?
02:36एक चुन्दा रूप से केवल मुसल्मानों के तेवार को अपने निशाने पर लाना ये कहा तक उचित है
02:43समाज में हम ये बात तो में कह रहा है, कि जो मासाहर है, वो सब में करने चाहिए
02:50और जो हमारी परमपराएं चली आ रही है, उसके हिसाब से मासाहर है
02:55ये बात भी सच है, कि मेरी अपनी राई ये है, कि धीरे धीरे हमने शाकाहर की तरफ जाना चाहिए
03:02क्योंकि मासहार, ये पर्यावरण के लिए उतना उचित नहीं हैं, पर्यावरण के लिए, हमें ज़्यादा तर शाकाहर होना चलिए, तो ये मेरी नीजी राय है, समाज में जो प्रक्रिया चलती है, वो अगर हम देखि लिए, तो अब पुरी दुनिया में, भारत में नहीं, �
03:32कहीं modernize है, machine के तरीके से किये जाते हैं और कहीं जिस पकार से भारत में दोनों पकार के बूछ रखाने हैं, अब क्या ये काम केवल मुसल्मान करते हैं, ये भी एक रोचक सवाल है, मुसल्मानों को ज्यादातर मासाहर से जोड़ा जाता है, पर याद रखना चाहिए कि हिंद�
04:02के एक्सपोर्ट में भी काफी उपर है, पिष्टे 10-11 साल में ये संख्या और भी बढ़ गई है, भारक कभीफ, गल्फ कंट्रीज के अलाबा दूसरे दिशों में भी जाता है, और ये कंपनियों को चलाने वाले कई हिंदू हैं, कई जैन हैं, जैसे एक नाम मैंने इसमें �
04:32जैनिया, हिंदूनों भी चलाते हैं, कई जैन भी चलाते हैं, कई ग्रामन भी ऐसी कंपनियों को ओन करते हैं, उनके भी तबके में हैं, तो खेर, मुख के बात ही होना चाहिए, कि जो समाज में हिंसा अहिंसा का मामला है, उसको इस पकार से नहीं जोड़ना चाहिए, जो ल
05:02मुसल्मानों में ये परंपरा है, वैसे मैंने कई जगों पर दिखा है, जैसे बंबरी के पास, रोनावला के पास, एक एक बीरा देवी का एक मंदिर है, वहां मुर्गी को बली दिया जाता है, ऐसे दिया बहुत सारी जगाए हैं, जहां बड़े-बड़े जानवरों को भी ब
05:32की भी कोई सच्चाई का अंच नहीं है, मैं अमूद करता हूं कि हम लोग इस प्रकार की बातों से बचेंगे, और दूसरे लोगों के भी खाने-पीने के तरीकों का पूरा-पूरा आधर करके, एक व्यापक रूप से समस्या को समझनी की कोशिश करेंगे, आपका धन्यवा