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  • 2 days ago
आपके घर में कभी मेंढक आता है ! तो मेरी यह बात ध्यान से सुन लो ! premanand ji maharaj #motivation 🥀😱


अगर आपके घर में कभी मेंढक आता है
घर में मेंढक आना शुभ है या अशुभ
आज की कथा
15 मई 2025
15 मई की कथा

राधा नाम महिमा
राधा नाम की महिमा
नाम जप महिमा
नाम जप
राधा नाम जप
गुरु मंत्र महिमा
दान की महिमा
नाम जप चल रहा है
मनुष्य का सबसे बड़ा धन
इंसान का सबसे बड़ा धन

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Transcript
00:00गौमुक से लेकर चलते चलते चलते चलते वो गंगा भी कलकत्ता तक जब पहुची है, गंगा सागर तक जब पहुची है, तो उसके घाट पर उसके तट पर गंगा महराणी के किनारे पर जितने भक्त, जितने सादू, जितने सन्यासि, जितने सादक, जितने उपासक, जितन
00:30गंगा में विझा जी आपको वऺंडेपरिवार को बहुत-बहुत सादु बत्ता है कि गंगा केवल उस घाट पर ही रह रही है जीवों का आनन्द रहे है जो उसके पुछल �і च्रनो में चले गया उसको आनन्द पर्दान कर रही है पर गंगाश्य महापुराण की गरा कर यह
01:00गर गर तक पहुचा दिए
01:01उसके लिए बहुत बहुत साजु बात बहुत धन्य बात अगर चुमाह पुराण के रूप में
01:07गंगा गर गर तक पहुचे
01:09गर गर तक
01:15कुछ तितियां होती है
01:18जिन तितियों में अगर आप रोज गंगा का जल
01:21शंकर को नहीं चड़ा सकते
01:23तो श्युमाहापुराण कथा करती है
01:24इसकंदपुराण करती है
01:25विश्णुपुराण करती है
01:26गरगसहिता करती है
01:27गिताप्रोस गुरगपूर का कल्यान
01:31का गंगा अंक करता है
01:32कि कुछ तितियां भारत की भूमी पर
01:36एसी वरनित है, जिन तितियों में भी गंगा का
01:38जल, हम शिव को अगर एक
01:39बून्ध भी समर्पित कर रहे हैν
01:42गंगा का जल मात्र एक
01:44आदी चमजभी आचमन जितना भी
01:46अगर हम शिव को समर्पित कर रहे हैं, तो उसका शुकानन
01:48देत है, जैसे पंचमीति थी
01:49नौमी तिथी, दशमी तिथी, एकादशी, प्रदोष, पूर्णी मा, अमावस्या, ये तिथियां हमारे यहां जो दी गई हैं, इन तिथियों में अगर गंगा का मात्र थोड़ा सा जल भी अगर जल के पात्र में डालकर गंगा जी का जल थोड़ा सा भी शिव के पास लेकर �
02:19पाहन चाहिए कि मैं गंग उत्री से जल भर कर सीदे रामिश्वर में ले जाकर गंगा के जल को समरभिद कर रही हैं स्रामन के महिने में या अन्यीव, अन्यम आप शिव को समरभिद कर आएं ये अब के भी तर एंवह उत्वन होना चाहिए
02:31एक बड़ा सुन्दर संबाद है मारत
02:42वही कथा फिर आ गई है जिसका मुर्णन कर रहे हैं कि
02:50बोंडे परिवार इस गंगा जी को लेकर घर घर तक पहुच रहे हैं
02:55फिर खिर उच्जिया में मारत जी कार निव कि वहां गव मुख से निकली गंगोत्री से निकली चलते चलते चलते चलते वो गंगा सागर तक पहुचिये
03:05हरीद्वार इशिकेश प्रयाग राच अच्छा सब जगा से निकलती हो चली गई है
03:08पर केवल वहीं तक नहीं
03:13जइन जण तक
03:13एक
03:18स� physiology, तपस्री मुनी थे
03:20बड़े साधाते, मुनी किस प्रकार के थे
03:23कि वो साधना कोई अलग नहीं करते
03:25वो कहीं बेट कर तप नहीं करते
03:28वो कहीं बेट कर आराधना नहीं करते
03:31तो फिर गुर्दे
03:37आप कह रहे हो कि मुनी है
03:39तपस्वी है, साधक है
03:41उपासक है और आप एक तरफ से कह रहे हो
03:44कि ना तो वो तप कर रहा है
03:45ना वो साधना कर रहा है
03:46ना बेट कर कोई यक्य कर रहा है
03:49ना कोई बेट कर रहा है
03:49नुश्ठान कर रहा है
03:50फिर मुनीद साधक उपासक कैसे हो गया
03:54फिर सो इतना कह सकते हैं कि एक केवल एक ब्रहमन है
03:58जो पूजनादिक में लगा हुआ है
04:02नहीं नहीं
04:03शिव महा कुरान की कथा कहती है
04:06कि वो एक मुनी
04:08एक साधक है ब्रहमन कुल में जन्दमा
04:10पर बड़ा तपस्वी
04:15तपस्वी किस चीज का था तो शिव पुरान करती है उसको एक तपसाधना थी कि वो कहीं अगर भगवान की कथा होती थी
04:23कहीं अगर शिव महा पुरान मिल जाए
04:25कहीं भागवत कुराण मिल जाए, कहीं रमायन मिल जाए, कहीं गीता मिल जाए, कहीं भगवान का गुणनलबात करना मिल जाए
04:29या कोई संतों का समागम अगर कहीं प्राप्त हो जाएं जगत चर्चा प्राप्ट हो जाएं तो उस जगा पर जाकर बेढ़ जातä था
04:43ऑबिक मुखान की कठा में जाकर बेढ़ना भी एक अफ़ि� дев and few का भाव है एक सादग ऑव ln
04:48एक साधना है, एक अराधना है, एक तप है, एक भगवान को प्राप्त करने का, भगवान को अपने भीतर उतारने का एक इस्थान है।
05:18तुझे ओजिनी में पाया है, शिव पुरान के पन्नों में भोलेबात का ठीकाना है।
05:48पुरान की कथा श्रवन कर लेते, हम भागवत पुरान, हम रमायन, हम गीता, हम भगवान का गुणनदबाद कर लेते, बस केवल कथा में हमरी चित्त वरत्ती रमी हुए।
05:55और आपका दिल, आपका हिदाए, आपकी चित्त, आपकी वरत्ती, आपका मनगर कथा में लगा हुआ है ना तो समझ लिना आप मूनी हो।
06:05अत्पस्वी अपशध को आप अपासतों। इसको।
06:09ये ये कई लोगो ने प्रिष्ण लिख कर वह जैँ है।
06:12और बहुत सारे संबाध भी हमराथ।
06:14इसमें कई लोगों लिखा है कि हम पेले कथा नही सुनते थे।
06:18कि किसिने लिखा में लिखा हीं कि हम पाले श्यू मन जातैते तै फिर किसिने लिखा हीं हम बना दुन का भगवान का भजन करना dieta ही हम संकर κιि फ़ो प्रजल कई चड Bennett घर है हम वह नहीं जानते हैं
06:29कि अरहीं को शीख मिला है हम को कुछ सीख मिला है
06:37हुशन
06:40हमको कुछ मिल गया उससे, शिमाहा पुरान से हमको कुछ प्राप्त हो गया और एसा प्राप्त हुआ है, एसा सुक प्राप्त हुआ है, ऐसा आनंद प्राप्त हुआ है, कि वो फिर हमारी हिर्दय में, हमारी चित्त में, हमारी ब्रत्ती में वो समा गया, वो हमारे भीतर उतर �
07:10बेटकर कोई साध्धना करी ना तप करा ना साध्या, उच भी नहीं करा, फिर भी उसको मुनी कहा गया, फिर भी उसको तपस्वी कहा गया, फिर भी उसको साध्ध कहा गया, कारण क्या था? वस एक कारण था, कि जहां काथा होती थी वहां चले जाता था.
07:23जहां पर मिल गई श्यु पुराण
07:34जहां पर मिल गई आभगवान का भजन वस महाँ बेट जाता था
07:37और एक नहीं आप सब भी
07:39जितने आस्था चेनल के माध्यम से कथा श्रमन कर रहे हो ना
07:42जितना फेस्बूक यूटूब पर आप लोग कथा कुछ सुन रहे हो
07:45आपको सादुबाद दूँगा आप भी किसी तपस्वी से कम नहीं हो
07:48आप भी किसी साधग से कम नहीं हो
08:01तीन घंटा एक आसन से एक जगहा बेट कर कथा कर अश्रस्वादन ज़रा करिए
08:08कथा को ज़र आपने वीतर उतारिए
08:10और चित्त को, व्रत्ति को, मन को, इड़े को, दिल को भगवान में जरा लगा कर रखी है
08:17थोड़ा रखी है
08:20तो आप तपस्वी ही कहला होगे
08:22आप सादक ही कहला होगे, आप उपासत ही कहला होगे
08:34आप कि उपासना हो गई
08:36वो
08:37ब्राह्मन केवल मुनी का जो वेश रखता है और भगवत की चर्चा में बगवान की स्मर्ण में डूबा रहे था
08:46चार संथ निकल कर जा रहे थे बड़े जटा जूड बंदे हुए थे बड़े माला कंठी पहने हुए थे बहुत
08:52बहुत माला धार्ण करें चंदन लगाया हुआ है और ये व्यक्ति कहीं से शुमहा पुराण की कथा कहीं से भगवान की चर्चा करकर आरा रहा था
09:06और इसके पास में जो जाने वाले व्यक्ति थे उन्होंने चार संक्तों ने आकर पूचे लिया
09:12ओ बैया तुम उनी के वेश में लग रहा है तुम तपस्वी के वेश में लग रहा है वस्तर भी तुम तपस्वी ऐसा धारण करकर रखे हो पर एक मन में प्रिश्ण है हम यहां से
09:23हरिद्वार जाना है आप हमको रिस्ता बता दोगे कि हरिद्वार जाने का
09:30उसने पूछा, काही के लिए जाना है, और एक गंगा का स्नान करने जाना है, अच्छा अच्छा अच्छा गंगा का स्नान करने जाना है, हाँ, चले जाओ, यहाँ हमको, देखो, हम जानते तो नहीं है, तो आप इस गाउं के नहीं हो क्या, हम गाउं के हैं, किते साल हो गाउं
10:00तो तुम्हें यह नहीं मालूम कि हरिद्वार का रस्ता कौन सा है गंगा के जार है आपको मालूम नहीं क्या उसने हाथ जोड़कर कहा वहिया देखो बात इतनी सी है कि मैं गंगा मता को नमन करता हूं मैं गंगा के चरणों को पावन समस्ता हूं मैं गंगा के चरणा को चरण
10:30उचा, बस, मैंने सुना है, यहां से 42 किलो मेटर के दूरी पर गंगा जी है,
10:3742 किलो मेटर की दूरी पहाना, और तुम कभी नहने नहीं कई, नहीं, नहीं, मेरा जाना opening nonsense
10:39अब ने ने मेरा जाना नहीं सुझेख में मिलं से देखा होगा थोग पता नहीं बार तो लोग कहते इधर मोला इधर से जाते अब लिए।
10:51कि मैं और जानता तु नहीं आच्छा ठीक ठीक
10:55संतों को आ गया प्रोध, चारो संतों ने मिलकर एक साथ कहा, कैसा मूर्ख है, कितना पागल वेती है, 42 किलो मेटर दूर गंगा जी विराज रही है, 42 किलो मेटर दूर गंगा विराज मान है, और 42 किलो मेटर दूर यह आज तक गंगा नहने नहीं गया, तो इसके वरावर पा�
11:25कि इसके बराबर पापी को और कुनों गा?
11:30चारों ने कह दिया तेरे जैसे पापी का हमने कहा मुख देख लिया
11:34कहा हमने मुख देख लिया
11:36तेरे जैसे पापी का कहा हमने मुख देख लिया
11:39कहा मुख देख लिया
11:42चारों
11:45हर गंगे हर गंगे हर गंगे कहते कहते
11:48गंगा जी के घाट पर हरिद्वार के उदर जाने लगे गंगा को ढूंडने के लिए, गंगा को पाने के लिए जा रहे हैं, चारो, जब चले, हरिद्वार पोच गए, किसी से पूचा है हरिद्वार है, हाँ यह हरिद्वार है, पर यह गंगा जी तो दिखने ही रही है, गं�
12:18गंगा कहा एंगा के या मैं कि अरिद्वार थु यही और गंगा मिं मैंदी पर No more time Wow ओ Хांसे गंगा जी को DOWNок गढका चलेक्गे।
12:27यहां भी गंगा नहीं है, रूंते रूंते और आगे बढ़े, और रूंते रूंते रूंते रूंते रूंते रूंते गंगोत्री तक पहुच गए पर गंगा नहीं है, गंगोत्री में जाकर इन्होंने किसी तपस्वी से पूछा यह गंगा है, हाँ यह गंगोत्री है, यह �
12:57तो हमें तो गंगा दिखनी रही है, कहीं गंगा नजरानी रही है, फिर गंगा गई कहा है, पता नहीं, तपस्वी से बूचा की गंगा कहा है, तपस्वी बोलते है गंगा तो यही है, पर हमको लगता है कि तुम चार संतों ने ग्यान गंगा का अपमान कर दिया,
13:19किसी मुनी का तपस्वी का साथक का उपासक कर तुम अपमान करकर आए
13:25और उस तपस्वी का तुमने जो अपमान करा है उस मुनी का जो तुमने अपमान करा है
13:31उस मुनी के अपमान के तर तुमको गंगा का धर्शन नहीं गरिए
13:36बहुत ध्यान देना महराद, यह शिव ज्ञान गंगा है और वो अभीरल बहने वाली विश्नुपदी भागी रती एक गंगा वो है, एक यह ज्ञान गंगा है और एक भागी रती विश्नुपदी एक वो गंगा है, दोनों में अंतर है,
14:00कवी आपके वीतर यह गंग नहीं हो प्रकूदी भाव नहीं होना चाहिए कि मह गंगा नहीं के तीके हैं अगर यह जो चुमा खर Andra क��ंट की जिया है, हुआ बहूं कि बहुता को गंगा इन रभ टर
14:30अब क्या करा जा तो कहा उस मुनी के पास जा चारों संत मुनी को ढूंटे ढूंटे पहुचे कथा में बेठा हुआ था कहीं श्युमाहा पुरान कहीं ससंग कहीं बजन कहीं किर्टन कहीं स्मर्ण कहीं नाम जाप कहीं मंतर जाप में डूबा हुआ था गया चारों मुनियों न
15:00गंगा कौन है कहां से आई क्यों आई हां प्रिभक्तो गंगा के बारे में अनेक चरित्र हैं आपने सुना होगा कि जब राम ये तो राम चरित्मानस में लिखा ही है कि राम जब गए जनक पूर तो रास्ते में गंगा जी मिली मतलब राम के जमाने में भी गंगा थी है ना औ
15:30पुत्र उद्दंडता के कारण एक रिसी कपिल जी का अपमान कर दिया कपिल देव जी की द्रश्टी पड़ते ही सगर के साथ हज्जार पुत्र जलकर धेर बन गए राक के सगर की दूसरी पत्नी केसनी की पुत्र का नाम था असमंजस
15:48असमंजस के पुत्र अंशुमान ने शिवजी से प्रार्चना की कि है प्रभू मेरे पूर्वजीये मर गए है संत की द्रश्टी से अब इनका उधार कैसे होगा तब कहा कि यद गंगा मैया आ जाए तो इनका उधार हो जाएगा
16:02तो असमंजस की पुत्र अंशुमान ने तब किया गंगा को लाने के लिए तब करते करते प्राण निकल गई पर गंगा नहीं आई
16:09अंसुमान के असमंजस के पुत्र अंसुमान के पुत्र दिलीप ने जब सुना कि मेरी पिता गंगा को लाने तब करते करते मर गए हैं
16:17तो क्योंना मैं पिता के सपने को पूरा करू तब राजा दिलीप भी तब करने लगे
16:22और दिलीप की साधी हुई समझिएगा दिलीप की शाधी हुई इनकी दो शाधी थी पहली साधी हुई पुत्र नहीं हुआ दूसरी साधी हुई पुत्र नहीं हुआ अब दिलीप को लगा कैसा तो नहीं कि मैं पुत्र के इंतिजार में पिता का सपना भूल जाओं तो दिली�
16:52गुरू के पास गए तो गुरू वसिष्ठ जी ने कहा कि इन दौनों रानियों के द्वारा ही बच्चा पैदा होगा बिना पूरुस के जो बच्चा पैदा होगा उसी से गंगा क्योंकि गंगा पावन क्यों है गंगा पवित्र क्यों है गंगा के शनान से क्यों पाप धुल �
17:22तो दो में से एक गर्ववती हो गई बेना पुरुष के इस्त्री इस्त्री ही गर्ववती हो गई और जब गर्ववती हुई तो उनके सरीर से समय पूरा होने के बाद एक बालक ने जनम लिया बालक ने जनम तो ले लिया पर सरीर में कोई हड्डिया नहीं थी अब गुरु ज
17:52भगीरत भगीरत इसलिए तब किया कि मेरे दादा पर दादाओं का सपना पूरा करूं गंगा को लाना है तब भगीरत ने तब किया और जब तब किया तो गंगा प्रगट हो गई पुत्र वरदान मांगो तब भगीरत जी ने कहा गंगा मैया मुझे वरदान दो कि मैं आपको
18:22जीवन में एक बार तो भी भवसागर पार जा सकते हो यह गंगा शनान का महत्व है अब गंगा शनान अब भगी रजी ने गंगा को कहा आईए गंगा जी ने कहा मैं आतो जाओंगी परंतु मेरा वेग इतना तेज रहेगा कि मैं प्रचवी को फारती हुई पाताल में जली ज
18:52कहते हैं कि जब भगवान बावन राजा बली के द्वार पर तीन पग भूमी मांगने गए तो पहले पग में पूरा अदल वितर सुतल तलातल रसादल महादल मांग लिया
19:01दूसरे पग में सत्य लोग को नापा
19:03तीसरा पग कहां रखें
19:04कहते हैं जब भगवान दूसरा पग लेकर गए
19:07ब्रह्मा लोग में
19:08तो भगवान के अंगूठे से
19:10ब्रह्मांड फट गया
19:11बामन भगवान ने इतना विशाल रूप बनाया
19:14कि इनके अंगूठे से चर्ण के अंगूठे से
19:16ब्रह्मांड भट गया
19:17और ब्रह्मांड के बाहर का जल इनका अंगूठा धोता हुआ
19:20गिरने लगा
19:21ब्रह्मा को लगा कि यस पानी से प्रथवी डूब जाएगी
19:24तब ब्रह्मा जी ने अपना कमंडल लिया
19:26और उस कमंडल में पूरा जल भर लिया
19:28वो चर्णोदक था जो भगवान के चर्णों का धोता हुआ जो जल था
19:32वो ब्रह्मा जी के कमंडल में था
19:34और जब भागिरजी ने तब किया
19:36तो ब्रह्मा जी ने वही चर्णों का जल छोड़ दिया
19:39वह चरणोदक ही गंगा है
19:41भागवान के चरणा
19:42चरणाम्रत चरणो का
19:44धोया हुआ जल ही गंगा जल है
19:47आज भी गंगा जल में
19:48आप प्रक्टिकल करके देख लें
19:50लाखों साल रखके देख लें
19:52हजारों साल तक भरा रहे गंगा जल कभी
19:54खराब नहीं होता क्योंकि ये मेरे गोविंद के चरणों का धौमन है इसलिए इसलिए गंगा अपवित्र नहीं होती और गंगा सब को पावन करती है और फिर गंगा जी ने जाकर गंगा सागर तक जाकर के गंगोत्रिशे निकल कर अच्छा गंगा जी जब गई तो हरिद्व
20:24तब संत ने अपनी जांग से गंगा प्रगट की
20:27इसलिए गंगा का एक नाम जान भी भी पढ़ा
20:29और आगे चली तो साथ रिशियों की कुटिया थी
20:33तब गंगा ने साथ रिशियों की कुटिया बचाते बचाते
20:36साथ धारा में प्रगट हो गई
20:37तो हरित्वार के उपर गंगा शफ्त धारा में दिखाई पड़ती है
20:40गंगा की साथ धाराएं दिखाई पड़ती है
20:42साथ धाराएं क्यों हो गई
20:44क्योंकि वहाँ साथ रिश्यों की सब्तरश्यों की कुटिया थी
20:47उन्हों कुटियों को बचाती हुई जब गंगा आगे बढ़ी तो वो साथ धारा में परिवर्तित हो गई
20:51और गंगोत्री से निकल कर जब गंगा मैया आप प्रयाग राज पहुँची
20:56तो प्रयाग राज में आल्रेडी वहाँ पर यमना मैया थी
20:59तो यमना है भगवान की पत्नी और गंगा है भगवान की दासी
21:04तो दासी बढ़ी के पत्नी बढ़ी तो गंगा मैया वहाँ रुक गई
21:08गंगा मैया प्रयाग राज में खड़ी हो गई थी
21:12हाथ जोड़के किसके सामने हाथ जोड़ लिया यमना क्योंकि यमना भगवान की पत्नी है
21:16हाथ जोड़के खड़ी हो गई आप तो पत्नी बनने वाली है भगवान की तो आपका तो पदकद उंचा है आप हमें आग्या करो
21:23तब यमना मैया ने कहा गंगा तुम पावन करने आई हो संसार को
21:26मैं अपनी लीला यहीं समाप्त करती हूँ
21:29अब यहां से तुम आगे जाओ
21:30जबकि प्रयाग राज में आप गौर करेंगे न
21:32तो यमना जी बिल्कुर सीधी जा रही है
21:34जबकि गंगा जी टेड़ी आकर मिली है
21:36और फिर आगे जो धार गई है न
21:38वो मानना तो यह चाहिए कि यमना
21:41यमना में गंगा मिली है
21:43परन्तु आगे यमना का नाम चलना चाहिए था न
21:46पर यमना जी ने कह ना आगे आप का ही नाम चलेगा
21:49और पापियों के पाप धुलती रहना और आज तक वो यमनामया वहाँ पन्याम को विराम करती है
21:54और वहाँ से आगे स्वेम यमनामया गंगा को स्थान देती हैं गंगा जी आगे चलती है
21:59और गंगोत्री से निकल कर प्रयाग राज होती हुई
22:01गंगा सागर कहुँची जहां सगर के साथ हज्जार कुत्र की राख पड़ी थी
22:06गंगा इश्पर्ष होते हैं जल वो सारे लोग तर गए
22:09आज भी लोग मरने के बाद अपनी राख गंगा में विशर्जित करते हैं
22:13क्योंकि भवसागर से तारने वाली केवल गंगा
22:15सच्चिदा अनंद में प्रिया प्रितम है
22:18परम कृपालू रशिक जन अनंत सक्ति संपन गजरानी
22:25प्रियाजू का प्रेम प्रदान करने में शमर्थ लताएं का गमरक पशूपंची
22:31साक्षाद स्रंगार रस ही द्रवित होकर प्रवाहित हो रहा है
22:36ऐसी मंडला कार श्रीयमुनारस रानी
22:39अब हमारी जो ब्रती आनंद और प्रेम में प्रवेश नहीं कर पा रही
22:47इसका कारण है आज्यां का पालन ना करना
22:52श्रीपाद प्रवूधानन जी महराज आज्यां कर रहे है
22:58निर्विद्य कृत्याद्य खिलात कदाहम छित्वा समस्तास्थ जगत्य पेक्षाह
23:10प्रविश्य व्रंदावन मत्यसंगस तदीश वारता भिरहा निने से
23:21यदि आपको महा महिम व्रंदावन की कृपा का रशाश्वादन करना है
23:28ये जन्म शुधारना है तो इस बात को श्वैकार करें
23:33कई बार उपाशकों से कहते हैं असंग रहना सब्षे बड़ी शिद्धी है
23:39चाहे वो ग्रेष्ट मार्ग का उपाशक हो चाहे विरक्त मार्ग का
23:45अगर अपने अंदर दिव्यता प्राप्त करनी है तो हमारा हरदय असंग होना चाहिए
23:52अगर लिप्त अपेक्षा आशक्ति राग मोह तो फिर ये भगवदानंद कहां प्रकाशित होगा
24:03हरदय में ही तो प्रकाशित होना है और वो पहले ही राग मोह आशक्ति
24:10अपेक्षा, इस्प्रिहा, एक्षा, कामना, तृष्णा, वाशना, इन सबसे भरा हुआ है
24:17और ऐसे ही लोगों का शंग तो और पुष्ट हो रहा है
24:21एक संसार दुष्ट की संगती ताहू में तुम पुष्ट कराव हो
24:25वही दुष्टता की व्रत्यों को पुष्ट करने वाले संग का
24:30रंग अपने होदय में धारन जो करेगा
24:33वो नितिक धर्मिन संग रंग बढ़त नितनित सरस ये कहां धारन कर पाएगा
24:38वही जैसे नाली के कीड़े को उठाके अम्रत के कुंड़े पे ले जाने की चिस्टा करो
24:46तो वो बुरा मानता है कि हमें हमारे सुख से वन्चित कर रहा है
24:51ऐसे ये देहा भिमानी जीव विशयासक्त जीव भगवदानंद रूपी अम्रत की तरफ शास्त शंत जन सदगुर्देव आकरशित करते हैं
25:03वो चल करता है छुपाव करता है अपने को बड़ा प्रवीन समस्ता है
25:07जो शचिदानंद भगवान में चित्तरपित किये हुए है वो तुमें भोले दिखाई देते है
25:13शर्व ग्यान उनके हरदय में होता है
25:16जिस दिन वो अपने चिंतन से थोड़ा भी हटकर तुम्हारा चिंतन करेंगे सारी पूल खुल जाएगी
25:22फिर क्या रहे जाएगा फिर वहीं के वहीं
25:26लाख बार उपदेश करने पर भी जो छली आदमी होता है
25:31कप्टी होता है उस पर कोई परिवरतन नहीं होता है आमने देख लिया
25:34रोना हाँ जोड़ना प्रणाम करना चमा मांगना यह उसका नाटक होता है
25:39कभी नहीं सुदर सकता हो एक आदमी से गलती होती है चूख होती है
25:45पश्चाता होता है दुबाला कोशिश नहीं करता है
25:48कब से कम ऐसे संगम का तो कभी भी रंग स्वेकार नहीं करेगा जहां से उसकी चूख होई है
25:56पर ने ये मनमानी आचरण ये स्वेक्षाचार श्रीपात प्रवदानंद जी कह रहे जन्मान्य संखानी गतानी में विर्था व्यग्रात मनों देह ग्रहादि के हया
26:13तुम्हारे एक जन्म नहीं असंख्यानी
26:16कहे रहे जन्मान्य संख्यानी गतानी में विर्था
26:20इसी तुम्हारे मनमानी आचरण ने तुम्हारे असंख जन्म व्यर्थ कर दिये
26:25व्यग्रात्मनों देह गयादिक्के हया
26:30यही अभिमान मैं इस्त्री हूं मैं पुरुशूं इसी अभिमान से घर, परिवार, शंपत्ती, भोग, वासना ये सब प्रपंच प्रगट होता है
26:44जैसे जल है तो वहां कीचड़ भी है वहां बहुत से जल जनतु भी है बाहरी भी वहां जल पीने के लिए आएंगे
26:52ऐसी देहा भी मान है तो बाहरी दोश भी अंदर आ जाएंगे उसमें काम क्रोध लोब मोव मदमसर तो है ही अग्यान रूपी की चड़ भी है
27:02और काम क्रोध हाद ये जो बड़े विशाल विशाल पशु है ये आ करके उसके हरदय में अपना राज्य जमा लेते हैं
27:10पशु इसले कहा कि जब ये अपना प्रभाव दिखाते तो मनुष्यता नहीं रह जाती पशुता रह जाती है
27:15चाहे काम हो चाहे क्रोध हो चाहे लोब हो चाहे मोह हो ये सब पशुता पैदा करते हैं
27:22देखो न कामी आदमी क्रोधी आदमी मोही आदमी इनके द्वारा जो आचरन होते हैं पशुता के आचरन होते हैं
27:31ये जितने विकार हैं, ये कोई दिव्यता थोड़ी लाते हैं, पशुता लाते हैं, असंख जन्म केवलिशी अभिमान से पेरित होकर हमारे बृता गए, नश्ट हो गए,
27:42ये आज मेरी बात मान जाओ, थोड़ा बुद्धी लगाओ, तो तुम्हारा ये जन्म नश्ट नहीं होगा, क्या, ये तुम्हें शरीर मिला है, तुम सरीर नहीं हो,
28:03ये वासनाएं तुम्हें भगवाल से बिमुख करने वाली हैं, ये तुम्हारी मित्र नहीं है, जहां तुम्हारा सरीर अश्वस्त हुआ, भगवद चिंतन रहित जीवन, मरा हुआ जीवन है, अब कभी भी सरीर छूट जाए, दृष्टी में तो तुम मरे हुए अभी हो,
28:33वो मुर्दे के शमान, आज बुद्दी स्वईकार कर लो, क्या, ये जो मोह फांस तुम्हें फसा रहा है, मुयाम्यपी, तुम मोहित हो जाते हो, कि मैं पुरुश हो, शामने इस्त्री शरीर है, अमुक भोग शामागरी है, अगर अमुक पद मिल जाए, अमुक धनराश मिल
29:03जितनी संख्या में धन तुम चाहते हो, उससे कई गुना संख्या का धन किसी के पाश है, पर वो बहुत अशामत है, वो और चाहता है, लाज से समझो ये किवल माया है, ब्रम है, इसमें शार कुछ नहीं है, कोई शार नहीं है, अगर तत्व दृष्टी से देखो तो प्र�
29:33जर चेतन, इस्त्री, पुरुष, अच्छा, बुरा, ये माया दृष्टी है, जो अध्यात्म है, वो इससी दृष्टी का परिवर्तन करता है, विद्याविने शंपन्ने, ब्राम्हने, गविहस्तनी, स्वनी, चविसुपाकेचा, पंडिता, संदर्शिना, पंडित्मने, �
30:03करके, उस्षी अनुभों में डूब गया, वही सच्छा ग्यानी, पंडिता, शंदर्शिना, सामात्मा सुदुर्लभा, कौन, वासुदेवा सर्वमिती, साब जगे प्रभू है, तो मुहिःपी, ये मोहित होना, तुमारा श्वभाव बन गया है, छुद्र विश्यों में,
30:33ये भी अनुभों नहीं कर पा रहे है, तुमारे हरदय में है, कनकन में है, जब साब जगे है, तो इस जगे भी है, साब शमय है, तो इस शमय भी है, साब रूपों में है, तो हम जो रूप समीप है, इनके रूपों में वही है, साब के है, तो मेरे भी है, साब में है, तो मे
31:03नाम में गति है नाम को पकड़न जैसे दो लकड़ियों के घरशन से अगनी पैदा हो जाती है उसे अरणिमंधन सास्त्री सब्दों में कहा गया है ऐसे है नाम और जीव इन दोनों का जब रगण होता है घरशन होता है तो शुद्ध ग्यानागनी प्रगठ हो जाती है
31:24कोई भी ऐसा लोक लोकांतर का शास्त्रों का ग्यान नहीं है जो नाम जापक को नहों हो जाता हो पर पकड़ना ही नहीं पकड़ना तो संसार को शिखा है ना भोगों को शिखा है ना उसी में करत्यता कानुभो होता है
31:44हमारे मन के मांगे हुए भोग मिल जाते हैं तो हम नाच पड़ते हैं कि हम पर बहुत क्रपा है हमारा ब्रंदावन जाना सफल हो गया
31:52अगर हमारे मन के अनकुल भोग नहीं मिले तो लगता है अभी कोई करपा ने
31:57ये बात तुम्हारी स्वण में आ जाए तो तुम्हारे उपर बहुत बड़ी करपा है
32:02कि जैसे दो लकडियों के घरशन से अगनी प्रगट होती चिंगारी
32:07और उसको शायोग दो वायू का और फूश का त्रणादी का वही ज्वाला बन जाएगी
32:15ऐसे ही तुम्हारे जिव्या में जब नाम चलता है राधा राधा राधा राम कृष्ण हरी कोई भी नाम
32:23जो गुरू प्रदत है जिव्या और नाम के घरशन से दिव्याग निप्रगट होती है
32:29जिसे ग्याम कहते हैं विबेग कहते हैं
32:33अब उसको तुम्हे सद आचरण रूपी हुआई उसे और बढ़ाना है
32:38शद आचरण और शद वासना रूपी फूस रख देना आप जो अला बन जाएगी
32:44अशद वासनाओं को कामनाओं को दुख देने वाले करमों को सबको वो अगनी भस्म कर देगी
32:51फिर आप नाच पड़ोगे ऐसा आपको शहजानंद प्राप्त होगा
32:56और कहीं समझ पा रहे हो
32:57हजारों बार वहीं सुनते समझ पा रहे हो
33:01पकड़ पा रहे हो
33:02ऐसा नहीं कि कोई नहीं पकड़ पा रहा है
33:04पकड़ रहे है
33:05जो भगवत क्रपा पातर जने बात पकड़ रहे है
33:08पर देहा भी मानी
33:11मूरख हरदय न चेत
33:15चाहे गुरु मिलें बिरंति सम
33:18फूलें फरें न बेत
33:20बांस में चाहे जितना
33:22अम्रत जल डाल दो
33:23उसमें न फूल आएंगे न फल लगेंगे
33:25ऐसी जो बांस सुभाव के
33:28जन होते हैं
33:30जड़ जीव
33:31वो सुधरने वाले नहीं होते हैं
33:34खलव करें भरी पाई सुसंगू
33:38मिटई न मलिन शुभाव अभंगू
33:41दुष्ट शुभाव वाले लोगों को भी कभी
33:43कभी बगवत कृपा से
33:44शादुशंग मिल जाता है
33:46पर वो अपने शुभाव का परिवरतन नहीं कर सकते हैं
33:49करना चाहे तो हो जाएगा
33:51पर खलव करें भरी पाई सुसंगू
33:54मिटई न मलिन शुभाव भंगू
33:56वो अपने शुभाव को नहीं बदलते
33:59अपने शुभाव में ही बदलते हैं
34:01अगर शुभाव नहीं बदला
34:03तो शादुशंग का
34:04शाधना का
34:06सास्त्र श्वाद्याय का
34:08धाम आने का
34:10धाम वास का
34:11गुर्जनों की शेवा का
34:13क्या पल हुआ
34:14पुजिपाज स्यूडिया बबाजी महाराज के बचन
34:17तुम्हारा देहा अभिमान गलित हो रहा है
34:20तुम्हारे अंदर आग्या पालन की शामर्था रही है
34:23तुम्हारा श्रभाव पवित्र हो रहा है
34:25पवित रशवाँ

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