00:00एक मुस्कुराहट का इन्हाम एक छोटे से गाउं में एक गरीब दर्जी एहमद रहता था।
00:05इसके पास दौलत तो नहीं थी, मगर उसका अखलाक ऐसा था कि गाउं का हर शखस उसका इहतिराम करता था।
00:13वो हमेशा मुस्कुरा कर बात करता, इज़त करता, छोटों से मुहबत और गाहेकों से खुश अखलाकी से पेश आता।
00:20एक दिन एक अमीर शहर से आया, उसने एहमद से कहा, मेरे कपड़े तीन दिन में तयार होने चाहें, और अगर एक दिन भी देर हुई, तो मैं तुम्हें कुछ नहीं दूँगा।
00:31एहमद ने मुस्कुरा कर कहा, इन्शालला वक्त पर हो जाएंगे।
00:36तीन दिन बाद जब वो अमीर वापस आया, तो कपड़े तयार थे, सलीके से उस्तरी शिदा, अमीर ने हैरान होकर पूछा, तुम हो के क्या हो, ने वक्त पर कैसे कर लिया, अक्सर दर्जी तो वादा करते हैं, मगर वक्त पर नहीं देते, अहमद ने नर्मी से कहा, जनाब
01:06अमद भी थी, अहमद की खुश अखलाकी ने उसे गरीबी से हटा दिया, निकाल कर काम्याबी की राह पर गामजन कर दिया, सब अच्छे अखलाक इनसान को वहां पहुचा सकते हैं, जहां दौलत और ताकत नहीं पहुचा सकती, उसने अखलाक इनसान की सबसे बड़ी दौ