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00:00नमस्ते सर, सर मेरा सवाल है कि दुनिया में इतने सारे गरंत हैं, उन सम्में आपने भगवत गीता को ही क्यों चुना?
00:14यह आपका अपना प्रश्न है कि और किसी का है जो आप बता रहे हैं, यहां से?
00:19सर मेरा ही है, आपका ही है.
00:21देखिए, इसलिए पुछा कि डांट आपको पढ़ नहीं है कि किसी और को?
00:36आप शुरुआत से ही मजबूर कर रहे हैं, यहां जितने लोग बैठे हैं, उन में से कितने लोग मात्र, गीता, समागम में नहीं, अन्य श्रिंखलाओं में भी साथ हैं?
00:48तो किसको लग रहा है कि हमारी जो चारों श्रिंखलाओं चल रहे हैं, उसमें सिर्फ भगवत गीता पढ़ रहे हैं हम?
00:57प्रश्न आया है कि दुनिया में इतने ग्रंथ हैं, सिर्फ गीता को ही क्यों चुना?
01:01मातर गीता समागम ही है या अन्य श्रेंख खलाएं भी है
01:06तो ऐसा कहा है कि सिर्फ गीता को चुना ए
01:10ऐसा कहा है
01:12कठ उपनिश्याद अश्टा वक्र गीता क्या है
01:17और जो संतों की हम बात लेते रहते हैं वो क्या है
01:22और जो लाउच्जू हमारे साथ है
01:26और आचारे नागार्जुन हमारे साथ हैं वो क्या है और ये तो बात बस उन ग्रंथों की है जो अध्यतन हमारे साथ हैं जिनको हम अभी पढ़ रहे हैं नहीं तो आप पीछे जाके देखेंगे
01:47अभी तो कम्यूनिटी पे आप लोगों ने एक करी थी ना एक्टिविटी कि किन-किन विश्यों पर अतीत में हम बात कर चुके हैं अभी मुश्किल से हफ्ता बर हुआ होगा तो आप ही लोगों ने पूरी सूची बना करके दी थी एक के बाद एक दी थी ना
02:07कुछ नहीं तो 15-20 उपनिशदों पर पहले बात हो चुकी है विस्तरत कितनी अन्य गीताओं पर पहले बात हो चुकी है कितने ही संतों पर दार्शनकों कर बात हो चुकी है इतनी बात हो चुकी है कि कई बार कोई पुराना लेख या वीडियो सामने आता है तो मुझे यकीन
02:37हुआ है साथ साल पहले गयता हूं दिखाओ क्योंकि जिन पर बोला हुआ है वो मुझे अब याद भी नहीं है कि मैंने इन पर कभी बोला था
02:45जहां कहीं भी बोध है उसी का नाम गीता है हमारे देखे तो आचारे नागारजुन भी जो बोल रहे है बोध दिशा से भी जो आ रहा है वो गीता ही है तो उस अर्थ में आपका प्रशन बिलकुल ठीक है कि मातर गीता को क्यों चुना पर अगर आप गीता का आशय कोई विश
03:15करने वाला है पत पत रशिद करने वाला है वहीं तो क्रिशन है न या क्रिशन मातर किसी एक विशिष्ट व्यक्तित्तो का नाम है हम मातर एक क्रिशन होते है क्या सोयम क्रिशन अपने बारे में क्या बोलते है कोई नहीं सुनाएगा ऐसा कोई क्रिशन जब फिर से बोलिए�
03:45घृष्म जब होते नहीं, गीताधार बहती रही नाम अलग संग्राम वही, गीताधार बहती रही
04:03ऐसा कोई काल नहीं, कृष्म जब होते नहीं
04:08तो जहां कहीं भी हमको बोध मिल रहा हो
04:13जहां कहीं भी कोई खड़ा होके हमसे कह रहा हो
04:17कि उठो पार्थ्र और पार्थ युद्धस्य
04:20जो भी कोई हमसे कह रहा हो उठो
04:23और स्वयम के प्रते संघर्ष करो
04:27वहां क्या है?
04:30वहां क्रिश्न है
04:32और जो ये युद्यस्व का गोश है यही गीता है
04:37आर यह बात
04:40तो इसलिए हमने दुनिया भर के तमाम ग्रंथों पर ग्यानियों पर विद्वानों पर और दार्शनिकों पर बात करी है
04:50लेकिन उनको सबको हम गीता का ही एक सईयुत नाम दे सकते हैं बिलकुल
04:56ठीक है तो अभी भी आप यहां पीछे देख रहे हैं तो अब वेदान संगिता लिखा हुआ ना
05:06मुझे कोई सामने से तो दिख नहीं रहा और वेदान तुमाने क्या मातर गीता मातर भगवत गीता
05:11सारे उपनिशद और वेदान सूत्र जिन ब्रह्म सूत्र भी बोलते हैं सब आ जाते हैं
05:19अब बात आती है कि ये कहने के बाद क्या श्रीमत भगवत गीता फिर भी विशेश है हाँ है और उसके कारण पर थोड़ी हम चर्चा करेंगे
05:36देखिए निश्चित रूप से जहां कहीं भी बोध है वहाँ क्रिश्न है जहां कहीं भी कोई भ्रमित है वहाँ क्रिश्न है जहां कहीं भी कोई अरजुन तलाश रहा है कि कोई रहा सुझा दे कोई सत्य बता दे वहाँ क्रिश्न है जहां कहीं भी तटिनी है वहाँ तटको
06:06होता है क्या कि नदी बह रही है
06:08लेकिन तट नहीं है
06:10ऐसा हो सकता है क्या
06:13तो अर्जुन है तो कृष्ण है
06:14ठीक है और हर जगए है
06:17हर काल में है
06:18ये कहने के बाद हम कह रहे हैं कि
06:20अन्य ग्रंथों से फिर भी
06:22श्रीमत भगवत गीता थोड़ी अलग है
06:24कुछ उसमें विशेश है
06:25और विशेश ये है
06:27कि उसकी जो पूरी प्रिष्ट भूम है
06:31वो बड़ी व्यावहारिक है
06:34वो हमारे संसारिक जीवन से मेल खाती है
06:38क्यों?
06:41क्योंकि पहली बात
06:42वो किसी दार्शनिक द्वारा
06:44अपने कमरे में
06:45एकांत में बैठकर
06:47लिखी हुई पुस्तक नहीं है
06:49ठीक?
06:51ऐसा नहीं है कि
06:52किसी व्यक्ति ने चार-पाँ साल लगा करके
06:55अपने कमरे में चुप चाप
06:56अपनी मेज पर अकेले
06:58बैठकर किताबे लिख डाली है
07:01और द्वार्शन
07:02कि बहुत सारी
07:04बलकि ज्यादा तर उची किताबें
07:06ऐसे ही लिखी गई है
07:06कि दार्शन अपना
07:11लिखता जा रहा है लिखता जा रहा है
07:13और किसी को
07:14जो है उसका
07:17पता भी नहीं चल रहा है
07:18हेगल की एक
07:20बड़ी
07:21महत्वपूर्ण किताब थी
07:24और वो पूरी होने को
07:27नहीं आ रही थी
07:27प्रकाशक के साथ जगड़ा हो गया था
07:31अंत में जब पता चला कि
07:33नेपोलियन शहर में घुसाया अपनी सेना ले करके
07:35तो बस नेपोलियन
07:39सड़क पर द्वार पर आई गया था
07:41उससे ठीक पहले किताब पूरी करी
07:43और भाग के प्रकाशक को दी और शहर चोड़ के भाग गए
07:45तो इतना समय लेते रहे हैं
07:50और इतना एकांत मांगते रहे हैं
07:52दार्शन अपनी बातों को कहने के लिए
07:54फिर आते हैं उपनिशदों
07:58जैसे समवादों पर
08:00वहाँ भी कम से कम
08:01दो लोग रहे हैं
08:05लेकिन वो दो लोग फिर भी
08:07किसी बहुत निर्जन जगह पर
08:11अपनी शान्ति और एकांत में समवाद कर रहे हैं
08:15वहाँ पर भी जो जिग्यासा है
08:18वो हो सकता है कि जीवन से थोड़ी कम
08:22और बुद्ध से थोड़ी ज्यादा आ रही हो
08:26निरालंब उपनिशद में यदे शिष्य गुरू से पूछ रहे हैं कि
08:32स्वर्ग क्या है और नर्ख क्या है
08:35तो स्वर्ग और नर्ख के सिध्धान्तों की बात हो रही है
08:39लेकिन भगवत गीता में
08:42तो अरजुन अपने आपको नर्ख के बीचों बीच पा रहे हैं
08:48उपनिशद में जब नर्क की बात होती है और दुख की बात होती है तो लगभग एक सिधान्त है और भगवत गीता में शुरुवात सिधान्त से नहीं होती
09:03विशाद योग मैं बार-बार कहता हूँ बहुत जरूरी है समझना अरजुन कह रहे हैं कि हाथ-पाउं सब काप रहे हैं गांडी उठाया नहीं जा रहा खाल जल रही है
09:15ये चीज भगवत गीता को हमारे बहुत पास ले आ देती है हमारी जिंदगी से बिलकुल जोड देती है कोई शांत आश्रम नहीं है किसी वटवरिक्ष की छाया नहीं है पक्षियों का सुन्दर संगीत में कलरव नहीं है घोड़े हैं नहीं आ रहे हैं
09:45अस्त्रों की आवाजें धनुष की टंकार धातु का स्वर सुनाई दे रहा है अंतर समझीएगा
10:03तो रिशे जब उपनिशत की बात करते हैं वो बहुत उची बात है लेकिन हमारे साधारन सांसारिक जीवन से थोड़ा वो दूर की बात हो जाती है
10:14वो जो वहाँ पृष्टभू में है जो सेटिंग है वो आदर्ष है बिलकुल
10:20भगवद गीता आदर्ष नहीं है भगवद गीता में हमारे सामने जो है वो बात व्यवहार की है हमारे जीवन की है
10:28जो गुरु के सामने शिश्य बैठे हुए हैं उपनिशदों में वो पहले ही कुछ बातों को निप्टा चुके हैं
10:42कुछ मुद्धों को सुल्जा चुके हैं घर अपना पीछे छोड़कर गुरु के सामने आ चुके हैं
10:50लेकिन अर्जुन के सामने उनके सब भाई, बंध, मित्र, हितैशी खड़े हुए हैं
10:58तो हमारी स्थितिक इसके ज्यादा निकट है उपनिशदों के की गीता के
11:03इसलिए भगवद गीता विशेश है और इसलिए भगवद गीता उपनिशदों से कहीं ज्यादा प्रसिद्ध और प्रचलित हो गई
11:10नहीं तो भगवद गीता में जो सिधान्त है वो सिधान्त तो सब के सब उपनिशदों के ही है
11:20गीता को भी एक उपनिशद ही माना जाता है
11:25और जब गीता की श्लागा करनी होती है तो हम कहते है
11:31कि सब उपनिशद जैसे एक गाएं हो और उसका जो अम्रित है
11:38वो गीता है
11:40यह सब उपनिशदों से जो मर्म लिया गया है वो गीता में आ जाता है
11:47ये बात आते सुन्दर है पर इस बात से ये तो पता चलता ही है कि गीता में ऐसा कुछ भी नहीं है जो उपनिशदों में पहले से नहो गीता में ऐसा कुछ भी नहीं है जो उपनिशदों में पहले से नहो तो जब उपनिशद ही प्राथमिक हैं आप अगर कहीं पढ़ेंगे �
12:17फिर आप कहेंगे और बताओ क्या तो कहेंगे अरे ब्रहमसूत्र नहीं तो वेदान्त का तो प्रचलित अर्थ ही उपनिशद है वेदान्त का साधारन अर्थ ही उपनिशद होता है तो जब उपनिशद है ही और वेदान्त का अर्थ उपनिशद है ही तो गीता को उसमें जोड
12:47कृष्ण से जो हम निकटता अनुभव करते हैं
12:54अर्जुन से जो हम तादात में अनुभव करते हैं
12:58वो हम उपनिशदों से करने में थोड़ा अपने आपको असमर्थ पाते हैं
13:04इसलिए आपसे बार-बार बूला करता हूँ
13:09पहले देखिए कि आप अर्जुन हैं
13:13अगर आप नहीं देखोगे कि आप अर्जुन हैं तो गीता से आप चूक जाओगे वैसे ही जैसे भारत उपनिशदों से वेदान से चूकता रहा है अधिकांश लोगों को दस उपनिशदों के भी नाम पता नहों और एक दो भी उन्होंने कभी धंग से पढ़े नहों पर भ�
13:43हम आदमी को पता तो होते हैं इतना तो होता है उपनिशदों का तो कुछ भी नपता हो किसी को और उसकी वजह यह हम अर्जुन हैं हम अर्जुन हैं उपनिशदों में भी जो उपनिशद प्रचलित हो पाए ज्यादा वहां कोई ऐसा पात्र है जो हमें बिलकुल हमारे जैस
14:13में नचिकेता है हम देख पाते हैं कि हां ऐसा होता है हमारे घरों में कुछ हो रहा होता है जो गलत है जिसमें पाखंड है और वो सब कुछ हो रहा होता है धर्म के नाम पर हम से कह दिया जाता है कि यह सब जो चल रहा है घर में यही सच्चाई है और बड़ों द्वारा किया �
14:43पर सवाल नहीं उठाते
14:44तो पहले तो घर की बात
14:48दूसरे बड़े ही कुछ ऐसा कर रहे हैं
14:55जिस पर सवाल नहीं उठाना आए
14:56और तीसरे जो किया जा रहा है
14:58अधर्म के नाम पर किया जा रहा है
14:59जैसे क долларов निशद में
15:01कि दान दिया जा रहा था
15:02और वहाँ पर फिर आप आते हो
15:05कि आप सवाल पूछना चाहते हो
15:07और आप जो सवाल पूछते हो
15:08तो उन सवालों कोई उत्तर नहीं मिलता
15:09और आप ज्यादा सवाल करो
15:11तो आप से कह दिया जाता है
15:12कि देखो रिष्टा तूट जाएगा
15:13जैसे कटूपनिशद में कह दिया ता घर से निकल जा और जा सीधे मृत्यों के पास
15:18तो इसलिए फिर कटूपनिशद भी प्रसिद्ध हो पाया
15:23अश्टवक्र गीता भी कटूपनिशद की तुलना में बहुत प्रसिद्ध नहीं है
15:29क्योंकि वहाँ जो समवाद है पहली बात तो एक राजा है उसमें एक छोर पर खड़े
15:35और दूसरी बात तो समवाद दो ग्यानियों के बीच में है
15:37अश्टवक्र गीता में प्रश्ण पूछने वाले कौन है
15:43राजा जनक, हम जनक जैसे नहीं है, हम अर्जुन जैसे है
15:59बहुत निकट नहीं आपाती, अगली बात अश्टवक्र गीता शुरुआते ही एक उचाई से करती है
16:05बहुत उची जगह से अश्टवक्र गीता शुरुआत करती है
16:09एकदम आखरी बात जो वेदान्त की है वो अश्टवक्र गीता के हर सूत्र में सामने आ जाती है
16:16लिकिन चूँके अर्जुन जनक नहीं है इसलिए कृष्ण पूरी कोशिश करकरके
16:24अर्जुन को धीरे धीरे एक अध्याय के बाद दूसरे अध्याय आगे ले जाते हैं
16:31उसमें बीच बीच में अर्जुन की बड़े साधारन स्तर की जिग्यासाएं
16:37बलकि शंकाएं प्रकट होती हैं जिग्यासा तो अर्जुन आरम में कर भी नहीं पाते हैं
16:41शंका ही करते हैं जिग्यासा तो वहां राजा जनत करते हैं मुनिय अश्टावकर से
16:46अर्जुन हमें अपने से लगते हैं जनक हमें अपने से नहीं लगेंगे
16:50क्योंकि हमारे पास भी
16:53जिग्यासाएं कम और शंकाई ही ज्यादा होती हैं
16:56होती है न
16:57हमें से भी बहुत कम लोग हैं
17:00जो अभी भी जिग्यासा के इस तर पर पहुँच पाएं
17:02हमारे पास तो संदेह होते हैं
17:04और संदेह किसको ले करके होते हैं
17:07स्वयम को लेकर के नहीं संदे होते हैं, हमारे पास सत्य को लेकर संदे होते हैं, अपने आपको तो हम बिल्कुल ठीक मानते हैं, सत्य तो हम स्वयम है अपनी दृष्टी में, सारा संदे हमें किसके उपर रहता है, हमें सारा संदे है, सत्य के उपर रहता है, तो कैसे हम कहें कि
17:37तु रखता उल्जाई रे, तेरा मेरा मनवा, कैसे एक होई रे, और ये बात श्री कृष्ण और अर्जुन पर लागू होती है, कितना श्रम कर रहे हैं कृष्ण, सुल्जाने की कितनी कोशिश कर रहे हैं कृष्ण, और अर्जुन क्या कर रहे हैं, नहीं ये तो सब ठीक है, �
18:07अगर ज्ञान ही इतना अच्छा है तो मुझसे कर्म क्यों करवा रहे हो
18:12क्योंकि क्रिश्ण क्या बोल रहे थे उठाओ धनुश
18:18तो जो उच्चितम बात हो सकती है श्री क्रिश्ण ने सबसे पहले वो समझाई है अर्जुन को
18:24यह विचार करके कि जब दे ही रहा हूं तो सबसे उची चीज़ दूँ और जो सबसे शुद्ध ग्यान है अगर उससे ही बात बन जाए तो और कुछ बोलने की फिर जरूरत ही नहीं है
18:38तो जो दूसरा अध्याय है एकदम आरंभिक वो शुद्धतम अध्याय भी है लेकिन उन बहत्तर श्लोकों का उत्तर क्या मिलता है श्री कृष्ण को
18:53कि अगर इतना ही उचा है ग्यान तो चलिए फिर हम आप ग्यान चर्चा करते हैं न बैठ करके ये बाण वर्षा क्यों करें तो श्री किष्ण बोलते हैं फिर रुको थम अब तुम सुनो कर्मयोग
19:09अब ये समस्या मुनी अश्टावकर को कभी नहीं जहलनी पड़ी ये समस्या किसी उपनिशद के रिशी को नहीं जहलनी पड़ी हमें नहीं मिलते हैं उपनिशदों में ऐसे पात्र जो गुरूओं पर रिशीयों पर शंका करते हों हमें नहीं मिलते हैं उपनिशदों में ऐ
19:39तो कोई आपत्य ने करते हो, इसलिए बोल देता हूँ, हाँ, ब्रधा रण्यक में ऐसा होता है, कि रिशी को हम पाते हैं कि क्रोधित हो गए है, पर वो एक खण की बात है, और वो क्रोधित भी इसलिए हुए है, क्योंकि उनको बहुत अच्छा कोई मिल गया है, प्रशन करने
20:09और फिर उन्होंनों उत्तर क्या दिया था, इस पूरी बातचीत का अंत क्या निकला था, यह आप बताएंगे, लेकिन उस तरह की घटनाएं अपवाद स्वरूप हैं, विरल हैं, नहीं तो हम ज्यादातर क्या पाते हैं, कि बढ़िया घना कोई वरिक्ष है, मौलशरी, पी
20:39और कितने वहाँ पर शिशे बैठे हुए हैं, कभी तीन, कभी पांच, कभी एक ही, और बिलकुल वहाँ जो उच्चता मस्तर की वारता है, वो चल रही है, अब यह बताएंगे, कि आप दिन में कितनी बार पीपल के वरिक्ष के नीचे बैठ जाते हो, पाल्थी मार के, और �
21:09दूर हैं, जैसे उपनिशादी कहते हैं तद दूरे, तद अवन्तिके, बहुत पास की बात है, लेकिन नजाने क्यों बहुत दूर की लगती है, गीता की बात हमें बिलकुल अपनी लगती है, और जो पहला अध्याय है, वो तो ऐसा लगता है, बिलकुल हमारे घर से ही निक
21:39अरे भाई संजेत रतराश्ट के बाद उसके बाद कौन आता है?
21:49और दुरियोधन का में डर दिखाई दे रहा है?
21:53हमें भीष्म की किन करतवे मूर्टा दिखाई दे रही है?
21:57और दुरियोधन डर में कैसी उल्टी-पूल्टी बाते कर रहा है?
22:00ये सब शुरुवात में हमारे सामनी आ जाता है
22:02कहानी घर-घर की
22:04तो इसलिए गीता हमें अपनी सी लगती है
22:08और लगनी चाहिए और इसी बात में गीता की विशिष्टता है
22:10और यही गीता की सफलता है
22:12गीता हमें हमारे संघर्षों की याद दिलाती है
22:17और इसलिए गीता हमें हमारे संघर्षों में राह दिखाती है
22:21बात आप समझ पा रहे हैं अब उपनिशदों में हमने का समवाद है
22:29आप और जो ज्यादा मारमिक गरंथ है दर्शन के उनकी और जाएंगे
22:39तो वहाँ तो आपको दो लोगों के बीच भी समवाद नहीं मिलता
22:42आप अगर चले जाएं उदाहरन के लिए सांख कारिका की और तो वहाँ आपको समवाद थोड़ी मिलेगा
22:51वहाँ कोई किसी से बात नहीं कर रहा है
22:55वहाँ जो बात है बस लिखी हुई है आप समझ सकते हो तो समझ लीजिए
22:59वहाँ तो आपका प्रतिनिधी बनकर भी गुरु से या रिशी से या लेखक से पूछने के लिए को यो पस्तित ही नहीं है
23:09बस एक के बाद एक बाते आपको बता दी गई है वो बाते आपको समझ में आती है तो समझ लीजिए
23:14यही हाल लगभग योग सूत्र का भी है
23:18समझ रहें वहाँ पर भी कोई पूछने वाला नहीं है बस वहाँ बाते बता दी गई है
23:26यहाँ आपके प्रतिनिधी बनकर कौन खड़े हैं गीता में अर्जुन
23:32अर्जुन बिल्कुल वही बाते कह रहे हैं जो आप कहना चाहते हैं
23:36संदेह और शंका से भरी हुई
23:38और अर्जुन की बिल्कुल वही विशमताएं हैं जो हम सब की हैं
23:43सांसारिक, मोह, बंधन, अतीत की स्मृतियां और अतीत में जाएं
23:48तो एक और दुरापदी का चीरहरन याद आता है और दूसरी और भीशम की गोध भी याद आती है
23:54एक और तो ये नहीं भूल सकते कि कितने सालों तक जंगल में भटके और एक वर्ष अग्यातवास का भी बिताया
24:02और ये भी नहीं भूल सकते हैं कि जब छोटे थे तो कौरवों के साथ ही खेला करते थे
24:08ये भी नहीं भूल सकते हैं कि उधर जो खड़े हैं वो गुरु द्रोण है
24:11जिनोंने हाथों में छोटा सा कभी धनुश थमाया था
24:16अब उनी पर बाण चलाने है
24:17समझ में आरी बात
24:20वही जो हमारी हालत है
24:22क्या भूलें क्या याद रखें
24:24एक तरफ ये है एक तरफ ये है
24:27रिष्टा दोनों से है
24:29और समझ में नहीं आरा इधर को जुकूँ क्या ये हमारे जीवन की कहानी नहीं है
24:34इससे भी संबंद है उससे भी संबंद है
24:36इसको छोड़ूं क्यों उसको छोड़ूं
24:38और अब दोनों से वो संबंद एक साथ बनाया नहीं जा सकता है
24:41क्योंकि आप आकर खड़े हो गए हैं कुरुक्षेत्र में
24:44अब यह नहीं कह सकते कि देखो एक मध्यस्तिति बिलकुल ठीक होती है
24:49अब वो नहीं चलेगा
24:50अब यह नहीं कह सकते कि भीम भी अपना भाई है
24:56और दुर्योधन भी अपना भाई है
24:58अब एक तुम्हारी तरफ खड़ा है एक उधर खड़ा है
25:01आरी बात समझ में
25:05महाभारत इसलिए महाकाव्य है
25:11शास्तियत और पर हम बुल दते इतिहास ग्रंथ है
25:15पर वो एपिक है महाकाव्य है
25:17महाकाव्य है
25:19उसमें आम आदमी की पूरी जिन्दगी
25:24की छोटे से छोटे हिस्से
25:28की कहानी हमको मिल जाती है
25:31अगर आप महाभारत पढ़नी चाहिए
25:36तो आप आएंगे कि हमारे जीवन का शायद ही कोई मुद्दा हो
25:41जो महाभारत में संबोधित न हो
25:45आप आएंगे कि
25:47आपके व्यक्तित्तों का शायद ही कोई पक्ष हो
25:51जिसका प्रतीक बनकर महाभारत में कोई पात्र न खड़ा हो
25:55आपके भीतर है कोई
25:58जो परिवार द्वारा समाज द्वारा उपेक्षित रहा है
26:01रहा है ना सबको ऐसा लगता है ना
26:04कि किसी ने मेरी उपेक्षा कर दी
26:06मुझे बहुत ज़्यादा महत तो नहीं मिला
26:08या बहुत ज़्यादा प्यार नहीं मिला
26:09किसी को लगता है माँ से नहीं मिला
26:11किसी को लगता है कि बाप से नहीं मिला
26:13किसी को लगता है, समाद से नहीं मिला, किसी को लगता है, दोस्तों से नहीं मिला, लगता है ना, किसी ना, किसी से तो हमें यह लगता है यह ना, कि और महत तो मिलना चाहिए था, या प्रेम मिलना चाहिए था, वो हमारे भीतर का कर्ण है, जो जीवन भर इसी बात में जल रहा
26:43जिसको सब शास्त्रों का उपरी ग्यान है
26:48लेकिन जब जीवन की बात आती है
26:54तो धर्म अधर्म का सही निर्णय अक्सर कर नहीं पाता वे भारी कि स्थिति में
26:59उसका क्या नाम है? युदिश्ठिर
27:01इसी तरीके से हमारे भीतर कोई बैठा हुआ है
27:05जिसने कभी किसी को कोई वचन दे दिया था
27:11और अब वो अपने ही वचन का गुलाम हो गया है
27:15पतिग्या बद्ध हो गया है
27:16उसकी अपनी ही बात
27:18खुद जो वादा कर दिया था कभी किसी से
27:21वो वादा बंधन बन गया है
27:24हमने भी खुब वादे करे हुए न
27:26और अब पाते हैं कि वो जो वादा कर दिया वो पूरी जिन्दगी उखाए जा रहा है
27:30हमारे व्यक्तित्तों के उस हिस्से का क्या नाम है भीश्म
27:35तो महाभारत इसलिए है और उसी महाभारत का एक हिस्सा है भगवत गीता
27:43तो भगवत गीता में भी महाभारत की मारमिकता और निकटता हमको अनुभव होती है
27:49इसलिए भगवत गीता विशेश है
27:51और यही कारण है कि आप लोग यहां बैठे हुए हो
27:55बिलकुल ऐसा संभव हो सकता है
27:57कि संसरिता में से आप में से कुछ लोग हमारे साथ ना हो
28:00या वेदान संगिता में साथ ना हो या बोध प्रतिशा में साथ ना हो
28:04पर यहां पर शायद ही ऐसा कोई होगा
28:07जो वेदान संगिता में तो हमारे साथ है पर गीता में साथ नहीं है
28:11मैं तो आंकड़े जानता हूँ इसलिए कह रहा हूँ
28:14हमारी चारों श्रिंखलाओं में
28:17यदि एक श्रिंखला है जिसे कोई नहीं छोड़ना चाहता
28:20जिसमें सब हैं ही है
28:24बाकी तीन में व्यकल्पिक है मामला
28:26हो की नहीं हो, हो जाता है
28:28कोई एक चुन लेता है, कोई दो चुन लेता है
28:31पर जो एक ग्रंथ है जिसको सबने ही चुन रखा है
28:34उसका क्या नाम है?
28:35श्रीमत भगवद गीता
28:37और बात मातर धार्मिक नहीं है
28:38बात मातर माननेता की नहीं है
28:40बात यह नहीं है कि भाही क�ristna का देश है
28:42हम कृष्ण भक्त लोग हैं इसलिए भगवत गीता पढ़ रहे हैं बात बहुत वहारिक है भगवत गीता में कुछ है ऐसा जो सचमुच विशेश है ठीक है तो मैंने दोनों बाते कहीं पहली बात बोध जहां भी मिले उस ग्रंथ को गीता ही मानना और दूसरी बात मैंने ये �
29:12हैं वो हमको वहाँ पर छलकते दिखाई देते हैं इसलिए हम उससे ज्यादा करीबी रिष्टा बना पाते हैं ये बात है ठीक है बात जम रही है कुछ चलिए
29:25ऐसा कोई काल नहीं कृष्ण जब होते नहीं नाम अलग संग्राम वही
29:42गीता धार बहती रही ऐसा कोई काल नहीं कृष्ण जब होते नहीं नाम अलग संग्राम वही गीता धार बहती रही
30:12अलग संग्राम वही घुजब श्राम वही भाता धार बहती रहीं
30:21भाता बहती रहती बाता जब होते नहीं कृष्ण
30:24झाल झाल