Skip to playerSkip to main content
  • 6 months ago
शरीर ही ब्रह्माण्ड : मां भी माया का प्रतिबिंब

Category

🗞
News
Transcript
00:00नमस्कार आईए आज आपको सुनाते हैं राजस्तान पत्रिका के प्रधान संपादक डॉक्टर गुलाग कोठारी का शरीर ही ब्रह्म्हांड श्रिंखला में पत्रिकायन में प्रकाशित आलेक जिसका शीशक है माधी माया का प्रतिविंबुर।
00:16इस्त्री पुरुष की जननी भी है रचनाकार भी है गर्भ से लेकर शिशु, किशोर, युवा, पती, ग्रहस्त, वादप्रस्त, सन्यास इस्त्री के जीवन काल का यही मुख्य प्रोजेक्ट है।
00:46पत्र को इस्त्रेण रूप में अच्छी पतनी मा बने वैसा तैयार करे।
00:55देश में काहावत है कि अच्छी पतनी प्राप्त करने के लिए पुरुष को पुन्य कमाना पड़ता है।
01:01पुरुष की दिल्धायू के लिए प्रतिना करती है ताकि वह भी उतने काल तक सुहागन रह सके चुंकि उसके सारे अनुष्ठान पूजा कर्म पती की अभ्युद्य प्राप्ति से जुड़े हैं और स्वयम उसके मूल प्राण भी पती के हृदय में ही प्रतिश्चित रहते
01:31अभास होता जाता है क्योंकि आत्मा से आत्मा का सूत्र बंधन पहले से हो चुका होता है पेट में तो उसे लक्षय भी याद रहता है इस्तरी शीतल सौम्य होकर पुरुष की आयू बढ़ाती है पुर्शागनी में आहुत रहकर आगने इस्तरी के पती की आयू पर प्रभ
02:01
02:30मेख इस्त्री है, धूम वाश्प आकाश है, मन का दीपक जलाती है, सुलसी दास, काली दास, प्रमान है, सुदामा को द्वारका जाने की प्रेड़ना कहां से हुई, इस्त्री मन की गहनता या एकागरता, ध्यान अवस्था ही मा है, संतान की उगनती का रहस्य है, रित भाव �
03:00प्रिती ही बदलती है, ब्रह्म ही सम है, सम उसी की कृती है, नाना भाव विश्व ही कृती है, एकत्व ब्रह्म है, ब्रह्म तो ब्रह्म है, अकेला है, अकेला ही रहेगा, निश्कल, निराकार, निर्विशेश, उसने चतुराई से माया को पैदा किया, और स्वयम के विस्त
03:30बड़ी शर्ट भी लगा दी जीवात्मा जब संसार चक्र में भ्रमन करके ठक जाए तो उसे माया ही पुना मुक्त भी करेगी ब्रह्म कुछ भी नहीं करेगा माया आये बिजांश ले जाए और अंत में लोटा भी जाए वाह इस माया ने अपने पंख फैला है शब्द और अर
04:00पुरुष्पूरी उम्रे नाचता रहता है इसी भं में की वही नचाने वाला है इससे बड़ा चतुराई का उधारन और क्या हो सकता है शरीर तो जड़ है पती की हवाले पून समर्पन आत्मा की चेतन अवस्था से जुड़कर कारे करती है सूक्ष्म की भाषा परोक्ष �
04:30के लिए माया है जहां उसको हारौना ही है माया और जीर के बीच यहीदेवास्पर संगॠाम है सस्तो यह Hai कि माया को बना है की पुरुष के लिए हैं संकर्ट खढ़ा होता है जब वह स्वयम के लिए जीना शुरू कर देती है पुरुष उसकी दृष्टी में गॉन हो जाता
05:00ॐ ॐ ॐ ॐ
05:30ॐ ॐ
06:00ॐ ॐ
06:02
06:04
06:06
06:08
06:10
06:12
06:14
06:16
06:18
06:20
06:22
06:24
06:26
06:28
06:30
06:32
06:34
06:36
06:38
06:40
06:42
06:44
06:46
06:48
06:50
06:52
06:54
06:56
06:58
07:00
07:02
07:04
Be the first to comment
Add your comment

Recommended