Migration in Uttarakhand अभी कुछ दिन पहले मैं अपने परिवार के साथ किसी काम से दिल्ली गई हुई थी।काम खत्म होने के बाद हम थोड़ी खरीददारी करने को करोलबाग की तरफ निकल पड़े ।खरीदारी करने के बाद हम रात का खाना खाने एक रेस्टोरेंट में पहुंचे।हम पहुंचे ही थे तभी एक वेटर पानी लेकर आया और खाने के आर्डर के लिए अपना मैन्यू कार्ड देकर चला गया।लेकिन मुझे वह व्यक्ति जाना पहचाना सा लग रहा था । मैंने उसको देखा तो वह मुझसे नजरें चुरा रहा था।मानो उसकी चोरी पकड़ी गई हो।वह मेरे गांव का ही था ।और इस होटल में वेटर की नौकरी कर रहा था ।उसके बाद मेरी नजरें उसको ढूंढती रही लेकिन वह व्यक्ति वापस नहीं आया।जब हम वापस आने लगे तो अचानक मैं उस से टकरा गई तब मैंने उसका हालचाल पूछा उसने जो बताया वह बहुत ही दुखद था
मैंने उससे पूछा कि तुम्हारी तो बहुत सारी जमीन व खेती-बाड़ी थी और एक मौसमी फलों का बगीचा भी था।फिर तुम यहां होटल में वेटर की नौकरी क्यों कर रहे हो ?बोला दीदी जमीन तो अभी भी है।लेकिन उसमें अब पहले जैसी फसल नहीं होती और जो होता है उससे परिवार का पूरा नहीं होता क्योंकि फसल का बाजार में पूरा मूल्य मिलता ही नहीं।
समय से बारिश होती नहीं और सरकार हमारी तरफ ध्यान देती नहीं, ऊपर से बंदर व लंगूरों का आतंक।इसलिए बच्चों की पढ़ाई लिखाई व उन का पालन पोषण करने हेतु पैसा जुटाने के लिए मैं यहां पहुंच गया।
मेरा मन यहां लगता नहीं मुझे पहाड़ ,वहां का ठंडा पानी,खुले आंगन की ताजी हवा,पहाड़ों के फल फूल बहुत याद आते हैं।लेकिन मजबूरी है बच्चे तो पालने ही हैं। उनको अच्छे से पढ़ना पढ़ाना लिखाना है ताकि उनको कल मेरे जैसे दर दर भटकना ना पड़े। उसे विदा लेकर मैं घर को निकली।घर पहुंची तो यही सोच रही थी कि पहाड़ के कुछ लोग तो पहाड़ में अभी भी रहना ही चाहते हैं लेकिन मजबूरी से पलायन कर जाते हैं इस घटना ने मुझे यह पोस्ट लिखने को प्रेरित करत है
उत्तराखंड अपनी नैसर्गिक सुंदरता के लिए के लिए जाना जाता है जहां एक ओर उसके पास ऊंचे ऊंचे पहाड़ ,पर्वत मालाएं वाला क्षेत्र हैं ।तो दूसरी ओर मैदानी क्षेत्र भी है।कई दर्शनीय स्थल हैं तो अति पवित्र तीर्थ धाम भी हैं।कहीं कल कल बहती नदियां हैं, तो कहीं ऊंचे ऊंचे हिमशिखर।सचमुच यह उत्तराखंड अद्भुत ,अकल्पनीय, अतुलनीय है।फिर भी यहां पलायन मुख्य समस्या हो गई है।
लोग अपने सुंदर-सुंदर हरे-भरे गांवों को छोड़कर मैदानी क्षेत्रों की तरफ बढ़ रहे हैं।जहां एक और पहाड़ों में गांव के गांव खाली हो रहे हैं वहीं दूसरी ओर मैदानी क्षेत्रों में हर दिन जनसंख्या का बोझ बढ़ता जा रहा है जिससे मैदानी क्षेत्रों में भी मूलभूत सुविधाओं में कमी शुरू हो गई है।हर दिन वीरान होते गांव ,खंडर होते मकान पहाड़ों की दुर्दशा को बयान करते हैं
पलायन के कुछ मुख्य कारण हैं मूलभूत सुविधाओं का अभाव जैसे सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य ,शिक्षा, युवाओं के लिए रोजगार का ना होना।किसानों के फसलों का उचित मूल्य ना मिलना, मौसम चक्र में आए बदलाव के कारण वक्त पर बारिश ना होना और बेवक्त की बारिश से फसलों का नुकसान होना ,किसानों को आधुनिक व वैज्ञानिक तरीके से खेती की जानकारी ना होना।
दूरसंचार व यातायात के साधनों में कमी होना, स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, महिलाओं को लेकर कोई ठोस योजना नहीं और इन सब में रही सही कसर बंदर व लंगूरों ने पूरी कर दी।जो आए दिन गांव में आकर पूरी की पूरी फसलों व फल फूल के पेड़ों को नष्ट कर देते हैं।
शिक्षा किसी भी समाज व उसकी भावी पीढ़ी के सुनहरे भविष्य के लिए अत्यंत आवश्यक
Be the first to comment