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  • 5 years ago
आनंद कानन, काशी, बनारस और अन्य नामों से पहचानी जाती रही प्राचीन धर्म नगरी का आज ही के दिन यानी 24 मई 1956 को प्रशासनिक तौर पर वाराणसी नाम स्वीकार किया गया। उस दिन भारतीय पंचांग में दर्ज तिथि के अनुसार वैसाख पूर्णिमा, बुद्ध पूर्णिमा और चंद्रग्रहण का योग था। ऐसा कहा जाता है कि वाराणसी का नामकरण सबसे पुण्यकाल में स्वीकार किया गया था।

इसे जिले की पहचान से जुड़ी वरुणा व अस्सी नदियों के सम्मिलित रूप से लिया गया। आधिकारिक रूप से दस्तावेजों में दर्ज किया गया। हालांकि इस विशिष्ट नाम का मत्स्यपुराण में भी जिक्र है। एक मत के अनुसार अथर्ववेद में वरणावती नदी का जिक्र आया है जो आधुनिक काल में वरुणा का पर्याय माना जाता है। वहीं अस्सी नदी को पुराणों में असिसंभेद तीर्थ कहा गया है। अग्निपुराण में असि नदी को नासी का भी नाम दिया गया है।

आधिकारिक रूप से इस नाम को सरकारी रूप से डॉ. संपूर्णानंद ने मान्यता दिलाई। वाराणसी की संस्तुति जब शासन स्तर पर हुई तब डा. संपूर्णानंद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। स्वयं डा. संपूर्णानंद की पृष्ठभूमि वाराणसी से थी और वो यहां काशी विद्यापीठ में अध्यापन से भी जुड़े रहे थे। यह जानकारी वाराणसी गजेटियर में बतौर दस्तावेज दर्ज है।

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