Skip to playerSkip to main contentSkip to footer
  • 6 years ago
वीडियो जानकारी:

शब्दयोग सत्संग
१९ अप्रैल २०१७
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा

अष्टावक्र गीता, अध्याय १८ से

निर्वासनो निरालंबः स्वच्छन्दो मुक्तबन्धनः।
क्षिप्तः संस्कारवातेन चेष्टते शुष्कपर्णवत्॥१८- २१॥

वह वासना, आलंबन, परतंत्रता आदि के बंधनों से स्वच्छंद होता है। प्रारब्ध रूपी वायु के वेग से उसका शरीर उसी प्रकार गतिशील रहता है, जैसे वायुवेग से सुखा पत्ता।

प्रसंग:
मनुष्य का उच्चतम संभावना क्या है?
प्रकृति से एक कैसे हुआ जा सकता है?
वह वासना, आलंबन, परतंत्रता आदि के बंधनों से स्वच्छंद होता है। प्रारब्ध रूपी वायु के वेग से उसका शरीर उसी प्रकार गतिशील रहता है, जैसे वायुवेग से सुखा पत्ता। अष्टावक्र किनका सम्बोधन कर रहे है?
मनुष्य के लिए सभ्यता कितना आवश्यक है?
सभ्यता कैसी होनी चाहिए?

Category

📚
Learning

Recommended