मन की वृद्धि ही मन की अशुद्धि || आचार्य प्रशांत, यीशु मसीह पर (2015)

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शब्दयोग सत्संग
१२ जुलाई २०१५,
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा

बाइबल, मरकुस (अध्याय-७ सूत्र-१५)
ऐसी तो कोई वस्तु नहीं जो मनुष्य में बाहर से समाकर अशुद्ध करे;
परन्तु जो वस्तुएं मनुष्य के भीतर से निकलती हैं, वे ही उसे अशुद्ध करती हैं।
ऐसी तो कोई वस्तु नहीं जो मनुष्य में बाहर से समाकर अशुद्ध करे;
परन्तु जो वस्तुएं मनुष्य के भीतर से निकलती हैं, वे ही उसे अशुद्ध करती हैं।

प्रसंग:
मन की शुद्धि किस प्रकार करनी चाहिए?
मन अशुद्ध क्यों हो जाता है?
मन है क्या ?