शब्दयोग सत्संग १३ जुलाई २०१४ अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा
दोहा: जे सुलगे ते बुझि गये, बुझे ते सुलगे नाहिं | रहिमन दोहे प्रेम के, बुझि बुझि कै सुलगाहिं ||
प्रसंग: संत रहीम किस सुलगे की बात जता रहें है? जहाँ नहीं आग वहाँ जलन और ज्वाला,शीतल हो गया राख हो जाने वाला? "रहिमन दोहे प्रेम के, बुझि बुझि कै सुलगाहिं" का क्या अर्थ है? संत रहीम पूरी तरह जलने की बात क्यों कर रहें है?